वर्ष 2006 में टोंगा की राजधानी नुकुआलोफ़ा में हुए भीषण दंगों ने इस छोटे से द्वीप राष्ट्र में ना सिर्फ़ सरकार को, बल्कि व्यापारिक गतिविधियों वाले ज़िलों को बर्बाद कर दिया था. क़रीब एक महीने तक चले इन दंगों की वजह, लोकतांत्रिक सुधारों को प्रारंभ करने में वहां की सरकार द्वारा बरती जा रही ढिलाई थी. टोंगा में राजशाही समर्थकों और लोकतंत्र समर्थक गुटों के बीच जैसे-जैसे तनाव बढ़ता गया, किंग टुपू VI ने लोकतांत्रिक सुधारों को लागू करने में हो रही देरी के लिए लोगों की अलग-अलग राय को ज़िम्मेदार ठहराया, जो “अप्रासंगिक नहीं थी और बातचीत के ज़रिए हल की जा सकती थीं”. दंगों के पश्चात टोंगा की सरकार ने रॉयल पैलेस के नवीनीकरण और जहाजों के लिए एक नए घाट के निर्माण के साथ-साथ पूरे शहर में पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया. पुनर्निर्माण का यह सारा कार्य पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) द्वारा वित्तपोषित था. चीन की ऋण देने में तेज़ी, तानाशाही सरकारों का समर्थन करने की चीनी प्रवृत्ति और इन्फ्रास्ट्रचर से जुड़े ऋणों में स्थिरता के फैक्टर की कमी जैसे कुछ ऐसे तथ्य थे, जो ऋणदाता के रूप में चीन को चुनने के लिए टोंगा की पसंद में निर्णायक साबित हुए थे.
चीन की ऋण देने में तेज़ी, तानाशाही सरकारों का समर्थन करने की चीनी प्रवृत्ति और इन्फ्रास्ट्रचर से जुड़े ऋणों में स्थिरता के फैक्टर की कमी जैसे कुछ ऐसे तथ्य थे, जो ऋणदाता के रूप में चीन को चुनने के लिए टोंगा की पसंद में निर्णायक साबित हुए थे.
टोंगा को दिया गया चीन का 65 मिलियन अमेरिकी डॉलर का शुरुआती ऋण आज बढ़कर लगभग 133 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो चुका है. वर्ष 2021 में सुनामी और ज्वालामुखी विस्फोट से पहले ही तबाह हो चुके टोंगा पर अब 195 मिलियन अमेरिकी डॉलर या अपनी GDP के 35.9 प्रतिशत के बराबर राशि की चीनी देनदारी बकाया है, जिसमें से दो तिहाई देनदारी अकेले चीन के एक्ज़िम बैंक की है. टोंगा चीन के इस ऋण को चुकाने के लिए संघर्ष कर रहा है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से सामने आने वाली चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. इसके साथ ही वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधाओं के असर, महामारी के कारण लगे आर्थिक झटकों और बड़ी मात्रा में सार्वजनिक ख़र्चों ने वहां की सरकार की वित्तीय स्थिति को बद से बदतर कर दिया है.
टोंगा का यह संकट साउथ पैसिफिक यानी दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में ऋण स्थिरता से जुड़ी एक बड़ी समस्या का प्रतीक है. इससे यह आशंका प्रबल हो गई है कि यह पूरा क्षेत्र ना केवल वित्तीय संकट की चपेट में आ जाएगा, बल्कि चीन के डिप्लोमेटिक दबावों की चंगुल में भी फंस जाएगा. चीन पहले ही वर्ष 2012 से 2022 के बीच 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि के साथ द्विपक्षीय ऋण वितरित करके इस क्षेत्र के सबसे बड़े ऋणदाता के रूप में उभरा है. टोंगा के कुल बाहरी ऋण में चीनी ऋण की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक है, साथ ही वानुआतु के कुल विदेशी ऋण की देनदारी में लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा चीन का है. दूसरी ओर, पापुआ न्यू गिनी पर लगभग 590 मिलियन अमेरिकी डॉलर की चीनी ऋण की देनदारी है, जो उसके कुल विदेशी ऋण के लगभग एक चौथाई हिस्से के बराबर है.
Debt-to-GDP ratios of Pacific Island Countries |
S. No. |
Country |
Top three lenders |
Debt-to-GDP ratio (in percentage) |
|
Cook Islands |
Asian Development Bank (ADB), Export-Import Bank of China (China Eximbank), Commercial lenders |
43.5** |
|
Fiji |
ADB, China Eximbank, World Bank Group (WB) |
79.8** |
|
Kiribati |
ADB, International Cooperation and Development Fund – Taiwan Province of China (ICDF), Eximbank China |
18.4* |
|
Republic of Marshall Islands |
ADB, WB, European Investment Bank (EIB) |
27.5** |
|
Federated States of Micronesia |
ADB, U.S. Department of Agriculture, EIB |
15.3** |
|
Nauru |
Taiwan POC Exim Bank, ADB, WB |
27.1** |
|
Niue |
No debt |
No debt |
|
Palau |
China Eximbank, ADB |
74.4** |
|
Papua New Guinea |
China Eximbank, Japan International Cooperation Agency (JICA), International Development Association (IDA) |
66.7** |
|
Samoa |
China Eximbank, IDA, ADB |
46.7* |
|
Solomon Islands |
ADB, IDA, China Eximbank |
14* |
|
Tonga |
China Eximbank, ADB, WB |
49.4** |
|
Tuvalu |
ADB, EIB, ICDF |
7.3* |
|
Vanuatu |
China Eximbank, JICA, WB |
51.5* |
स्रोत: वैश्विक ऋण डेटाबेस (GDD), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF); सभी PICs के लिए ‘अनुच्छेद 4 परामर्श – ऋण स्थिरता विश्लेषण’ हेतु आईएमएफ स्टाफ रिपोर्ट; *2020 के आंकड़े, **2021के आंकड़े.
पैसिफिक आइलैंड के देशों (PICs) के ऋण और जीडीपी अनुपात का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इस क्षेत्र में चीनी द्विपक्षीय ऋण के संबंध में ऋण स्थिरता से जुड़े ज़ोख़िम कितने व्यापक हैं. कम आय वाले देशों के लिए विश्व बैंक-आईएमएफ संयुक्त ऋण स्थिरता फ्रेमवर्क द्वारा ऋण-जीडीपी अनुपात में ऋण स्थिरता के लिए 50 प्रतिशत का बेंचमार्क निर्धारित किया गया है, यानी इसके मुताबिक़ डीजीपी के 50 प्रतिशत से ज़्यादा राशि का ऋण लेना अत्यधित ज़ोख़िम की श्रेणी में आता है. पैसिफिक आईलैंड के 9 राष्ट्रों में से चीन से ऋण लेने वाले छह राष्ट्रों- वानुआतु, समोआ, टोंगा, फिजी, कुक आइलैंड और पलाऊ द्वारा लिया गया कर्ज प्रभावी रूप से 50 प्रतिशत की चेतावनी सीमा के आस-पास या उसके पार हो चुका है. फिजी को छोड़ दें, तो इन राष्ट्रों की वर्तमान परिस्थितियां ऐसी हैं कि उनके ऋणों के उपरोक्त सीमा के पार पहुंचने की अत्यधिक संभावना है. टोंगा और वानुआतु ने जिस प्रकार से अंधाधुंध ऋण लिया है, उसकी वजह से भीषण वे आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. वानुआतु पर बड़ी मात्रा में चीनी ऋण बकाया है, यह देखते हुए भी वर्ष 2018 के अंत में वहां की सरकार ने क्रॉस-कंट्री रोड प्रोजेक्ट के लिए 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का चीनी ऋण लिया. ज़ाहिर है कि यह परियोजना वानुआतु के लिए ऋण स्थिरता जोखिमों को साफ तौर पर बढ़ाने वाली है, क्योंकि यह पहले से ही भारी-भरकम ऋण के तले दबे इस देश पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालती है.
पैसिफिक आइलैंड के देशों (PICs) के ऋण और जीडीपी अनुपात का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इस क्षेत्र में चीनी द्विपक्षीय ऋण के संबंध में ऋण स्थिरता से जुड़े ज़ोख़िम कितने व्यापक हैं. कम आय वाले देशों के लिए विश्व बैंक-आईएमएफ संयुक्त ऋण स्थिरता फ्रेमवर्क द्वारा ऋण-जीडीपी अनुपात में ऋण स्थिरता के लिए 50 प्रतिशत का बेंचमार्क निर्धारित किया गया है
चीन का ऋण बांटने का विशाल पैमाना, निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र की कमी और संदिग्ध ऋण स्थिरता रेटिंग वाले देशों को ऋण देने से पहले उनकी वित्तीय हालत का आंकलन करने की अक्षमता के साथ ही पैसिफिक आईलैंड के देशों को ऋण देने के लिए चीन की अपर्याप्त ऋण शर्तें, दक्षिण प्रशांत रीजन में भविष्य की ऋण स्थिरता के लिए एक बड़ा ख़तरा सामने लाती हैं. इसीलिए, कई आलोचकों ने इस क्षेत्र में चीन की ऋण देने की इस होड़ को ‘ऋण जाल’ कहा है. ज़ाहिर है कि इन परिस्थितियों में बीजिंग को अपने ऋण स्थिरता नज़रिए को पूरी तरह से नया रूप देने की ज़रूरत है, ताकि उसे ग़लत साबित किया जा सके.
ऋण शर्तों में अस्पष्टता
ऋण देने के नियम और शर्तों में पारदर्शिता नहीं होने की वजह से पैसिफिक रीजन में चीन की ऋण देने की होड़ की आलोचना की जाती रही है. मिसाल के तौर पर कुक आइलैंड्स ने अपनी भूमि पर चीन की कुछ परियोजनाओं की अनुमति नहीं दी है. इनमें चीन द्वारा वित्तपोषित कोर्ट हाउस, पुलिस स्टेशन और स्पोर्ट्स स्टेडियम जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं, जो घटिया दर्ज़े के निर्माण के कारण फिलहाल संरचनात्मक समस्याओं से जूझ रहे हैं. चीन द्वारा जो रियायती ऋण दिए जाते हैं, उनमें संबंधित परियोजनाओं के निर्माण का ठेका चीनी निर्माण कंपनियों को ही देना और यहां तक चीन से ही श्रमबल और निर्माण सामग्री आयात करने की उसकी स्पष्ट मंशा अंतर्निहित होती है. दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो चीन पैसिफिक आईलैंड देशों को ऋण तो मुहैया करा रहा है, लेकिन वो अपने नागरिकों के लिए इस क्षेत्र में ओवरसीज रोज़गार भी पैदा कर रहा है.
सच्चाई यह है कि चीन की तरफ से ऋण देने के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को सूचित नहीं किया जाता है और चीन का एक व्यापक सहायता डेटाबेस है. यही वजह है कि किन प्राप्तकर्ता देशों को चीनी ऋण 50 प्रतिशत हो चुका है, यह सच्चाई किसी को नहीं पता है.
चीनी द्वारा देशों के साथ जो द्विपक्षीय ऋण समझौते किए जाते हैं, उनमें गोपनीयता की शर्त प्रमुखता से शामिल होती है. इसके साथ ही इन समझौतों में दोनों देशों के बीच की शर्तों, ऋण के आंकड़ों, गारंटर और कभी-कभी बाक़ी ऋणों की जानकारी को किसी भी सूरत में सार्वजनिक नहीं करने की शर्त शामिल होती है. सच्चाई यह है कि चीन की तरफ से ऋण देने के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को सूचित नहीं किया जाता है और चीन का एक व्यापक सहायता डेटाबेस है. यही वजह है कि किन प्राप्तकर्ता देशों को चीनी ऋण 50 प्रतिशत हो चुका है, यह सच्चाई किसी को नहीं पता है.
देखा जाए तो विश्व के तमाम क्षेत्रों में, जहां चीन द्वारा अधिक मात्रा में ऋण दिया जा रहा है, उसमें भी विशेषरूप से दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में, जो भी चीनी ऋण समझौते किए गए हैं, वो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं. दोनों पक्षों के बीच मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoUs) में अस्पष्ट ख़रीद और अनुबंध की प्रक्रिया ऐसी होती है, जो चीन को आधिकारिक ऋण राशि को अपने मुताबिक़ इस्तेमाल करने और प्राप्तकर्ता देशों में चीनी श्रम और सामग्री को लाने में ख़र्च करने की भी अनुमति देती है. चीन द्वारा अपनाए गए इसी तरह के हथकंडे, चीनी फर्मों को स्थानीय, राष्ट्रीय और विदेशी फर्मों की प्रतिस्पर्धा से अलग करते हैं. ज़ाहिर है कि अगर ऐसी शर्तें नहीं हों, उन्हें भी इन परियोजनाओं का ठेका पाने का अवसर मिल सकता है. ऐसे में भ्रष्टाचार को बढ़ाने और ऋण प्राप्तकर्ता देश की फर्मों व निवासियों को प्रतिस्पर्धा से दूर करने के साथ-साथ, अस्पष्ट ऋण पैटर्न दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीन से उधार लेने वालों का एक अनौपचारिक आधार तैयार करते हैं. ठीक इसी प्रकार का दावा अफ्रीका में अफ्रीकी मीडिया कंपनियों और चीन के सरकारी बैंकों के बीच वित्तीय समझौतों के संबंध में किया गया है.
दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीनी खेल का अंतिम दांव और ताइवान को समर्थन
इस रीजन में चीनी खेल का आख़िरी दांव क्या है? दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीन का उदय, एक महाशक्ति के रूप में उभरने की उसकी लगातार कोशिशों से संबंधित है, क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था और उसकी वैश्विक पहुंच में बढ़ोतरी हुई है. दूसरे देशों को ऋण देने की होड़ ने विदेशी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में सरकारी स्वामित्व वाली चीनी फर्मों की भागीदारी की राह आसान की है. इसीलिए, चीनी फर्मों ने पूरे रीजन में बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं पर कार्य शुरू किया है. ये परियोजनाएं लुगानविले घाट से लेकर वानुआतु तक फैली हुई हैं और इनमें कुक आईलैंड की देशव्यापी वाटर सिस्टम से जुड़ी परियोजना भी शामिल है. यहां यह बात विशेष रूप से गौर करने वाली है कि इन देशों में कॉन्ट्रैक्ट से लेकर संसाधन और कामगार तक, सभी चीनी थे. यह परियोजनाएं शंघाई कंस्ट्रक्शन ग्रुप और चीन सिविल इंजीनियरिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा निर्मित की गई हैं.
साउथ पैसिफिक में चीन द्वारा वित्तपोषित सभी बंदरगाहों और जहाज के घाटों में एक अक्सर देखी जाने वाली समस्या यह है कि वे युद्धपोतों को संभालने के लिहाज़ से काफ़ी बड़े हैं. एक और अहम बात यह है कि इन बंदरगाहों की ऐसी डिजाइन यह संदेह पैदा करती है कि कहीं चीन प्रशांत क्षेत्र में सैन्य साझेदारी और अपने निगरानी तंत्र को तो मज़बूत नहीं करना चाहता है. यह मई, 2022 में विदेश मंत्री वांग यी द्वारा सोलोमन द्वीप समूह के साथ प्रस्तावित द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते और पूरे दक्षिण प्रशांत क्षेत्र को कवर करने वाले सुरक्षा समझौते के लीक होने से ज़ाहिर भी हो चुका है. यह दूरगामी समझौता चीन और प्रशांत द्वीप देशों के बीच एक निकटतम साझेदारी की कल्पना करता है. इसके साथ ही यह समझौता सुरक्षा सेवाओं से लेकर समुद्री नक़्शा तैयार करने, क़ानून लागू करने वाले कर्मियों के लिए क्षमता निर्माण, साइबर सुरक्षा एवं महत्त्वपूर्ण ख़निज साझेदारी जैसे क्षेत्रों तक फैला हुआ है.
श्रीलंका में सामरिक तौर पर बेहद अहम हंबनटोटा बंदरगाह पर एशियाई दिग्गज चीन के हालिया कब्जे से यह स्पष्ट हो चुका है कि चीन अपने विदेशी ऋणों को एक ताक़तवर रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है. ताइवान की कूटनीतिक मान्यता के सवाल की वजह से दक्षिण प्रशांत क्षेत्र भी चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. पैसिफिक आईलैंड के देशों में लगभग एक तिहाई देश ऐसे हैं, जिनके साथ ताइवान के औपचारिक राजनयिक संबंध हैं. ताइवान को चीन अपना एक ‘बाग़ी प्रदेश’ मानता है और यह उम्मीद करता है कि क्षेत्रीय ताइपे-बीजिंग प्रतिद्वंद्विता के दौरान इस रीजन के देशों को दिए गए ऋणों के बोझ तले दबी उनकी सरकारें राजनयिक और आर्थिक दबावों की वजह से उसका साथ दें.
चीन के क्षेत्रीय प्रोत्साहन, शिपिंग लेन यानी समुद्री मार्गों के भू-रणनीतिक महत्त्व और इन द्वीपों के विशाल एवं इस्तेमाल नहीं किए जाने वाले समुद्री और लैंड-बेस्ड संसाधनों पर आधारित हैं. ऐसे में चीन के लिए पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में ताइपे को अलग-थलग करना एक बोनस की तरह है
पैसिफिक आइलैंड के देशों की भौगोलिक रूप से आइसोलेशन की स्थिति, इन द्वीपीय राष्ट्रों का आकार और अपेक्षाकृत नाममात्र का निवेश करने से चीन को मिलने वाला भारी रणनीतिक लाभ, चीन को इस रीजन में एक ख़तरनाक और शातिर खिलाड़ी बनाते हैं. चीन के क्षेत्रीय प्रोत्साहन, शिपिंग लेन यानी समुद्री मार्गों के भू-रणनीतिक महत्त्व और इन द्वीपों के विशाल एवं इस्तेमाल नहीं किए जाने वाले समुद्री और लैंड-बेस्ड संसाधनों पर आधारित हैं. ऐसे में चीन के लिए पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में ताइपे को अलग-थलग करना एक बोनस की तरह है, ज़ाहिर है कि बीजिंग ने दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अपने दख़ल से और अपने प्रभुत्त्व से एक हिसाब से इस बोनस को हासिल कर लिया है.
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