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आज चीन का लगभग हर प्रमुख शहर हाई स्पीड रेलवे से जुड़ा है. इससे सफ़र करने में हवाई यात्रा से महज़ कुछ घंटे ज़्यादा लगते हैं, लेकिन आराम ऐसा है जो केवल ट्रेन में ही मुहैया कराया जा सकता है.
ये एक दशक से कुछ ज़्यादा पहले की बात है. 2009 में वुहान से गुआंगझो के बीच चीन की पहली लंबी दूरी की 968 किलोमीटर लंबी हाई स्पीड रेल सेवा शुरू हुई थी. इसकी औसत रफ़्तार 350 किलोमीटर प्रति घंटे थी. इस प्रोजेक्ट को वैश्विक आर्थिक संकट के प्रति चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का ‘क़र्ज़ लेकर दिया गया जवाब’ कहा गया था. ये रेलवे के ज़रिए देश की अर्थव्यवस्था की मांग बढ़ाने की कोशिश थी. चीन ने रेलवे के मूलभूत ढांचे का विस्तार करके देश में न सिर्फ़ कंक्रीट और स्टील की मांग बढ़ाई, बल्कि लाखों रोज़गार भी पैदा किए थे. उसके बाद के दशक में चीन के हाई स्पीड रेलवे ट्रैक की लंबाई बढ़कर 38 हज़ार किलोमीटर लंबा हो गया, जो दुनिया भर में सबसे बड़ा है. चीन की कुल रेलवे लाइनों में हाई स्पीड रेलवे की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत है. आज चीन का लगभग हर प्रमुख शहर हाई स्पीड रेलवे से जुड़ा है. इससे सफ़र करने में हवाई यात्रा से महज़ कुछ घंटे ज़्यादा लगते हैं, लेकिन आराम ऐसा है जो केवल ट्रेन में ही मुहैया कराया जा सकता है.
चीन को हाई स्पीड रेलवे को कुछ लाइनों से, जैसे कि बीजिंग –शंघाई और बीजिंग –गुआंगझो से ज़बरदस्त मुनाफ़ा हुआ. इसे देखकर चीन ने हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क का और विस्तार करके भरपूर मुनाफ़ा कमाने की सोची. इससे देश के कई प्रांतों की सरकारों ने आंख मूंदकर इस उपलब्धि की नक़ल करने की कोशिश की. हालांकि, राज्य स्तर पर बनाए गए ऐसे ज़्यादातर नेटवर्क ने इन मंहंगे प्रोजेक्ट की तरफ़ यात्रियों को आकर्षित करने की कम से लेकर लगभग शून्य दिखने वाली संभावनाओं की अनदेखी कर दी. नतीजा ये हुआ कि आज इनमें से ज़्यादातर रूट पर भारी लागत से बनाए गए प्रोजेक्ट ख़ाली पड़े हैं.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान चीन की कई प्रांतीय सरकारों ने हाई स्पीड रेलवे लाइनें बिछाने के लिए भारी मात्रा में क़र्ज़ लिया है. इससे वो क़र्ज़ के ऐसे दलदल में फंस गए हैं, जिसने सरकारी संस्था चाइना रेल कॉरपोरेशन को मुश्किल में डाल दिया है.
चीन के ज़्यादातर हाई स्पीड रेलवे प्रोजेक्ट की ‘ट्रांसपोर्टेशन डेंसिटी’ या यात्रियों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है. इसे प्रति किलोमीटर सफ़र करने वाले यात्रियों की संख्या के आधार पर मापा जाता है. ये इस बात का संकेत होता है कि वार्षिक औसत परिवहन की मात्रा के पैमाने पर कोई रेलवे प्रोजेक्ट कितने अच्छे से चलाया जा रहा है. मिसाल के तौर पर, वर्ष 2015 में 1318 किलोमीटर लंबे बीजिंग– शंघाई हाई स्पीड रूट की ‘ट्रांसपोर्टेशन डेंसिटी’ 4.8 करोड़ यात्री प्रति किलोमीटर थी. वहीं, 1776 किलोमीटर लंबे लैंझोऊ– उरुमची लाइन पर ये केवल 23 लाख यात्री प्रति किलोमीटर थी. हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क पर चीन की औसत ‘ट्रांपोर्टेशन डेंसिटी’ वर्ष 2015 में 1.7 करोड़ यात्री प्रति किलोमीटर थी. उसी साल जापान की शिंकासेन की ट्रांसपोर्टेशन डेंसिटी 3.4 करोड़ यात्री प्रति किलोमीटर थी.
किसी पारंपरिक रेलवे लाइन की तुलना में हाई स्पीड की रेलवे लाइन बिछाने में तीन गुना ज़्यादा लागत आती है. चूंकि हाई स्पीड रेलवे पर माल ढुलाई नहीं होती है, तो ऐसे प्रोजेक्ट की लागत निकालना और उसका मुनाफ़े में संचालन करना सिर्फ़ यात्री भाड़े पर निर्भर होता है. हाई स्पीड रेलवे लाइन बिछाने की धुन में चीन ने पारंपरिक रेलवे लाइन के निर्माण की अनदेखी की है. इससे देश में आवाजाही के संसाधन विकसित करने में संतुलन पर बहुत बुरा असर पड़ा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि माल ढुलाई के मामले में सड़क और जल परिवहन, रेलवे से आगे निकल गए हैं. इससे प्रदूषण फैलाने वाली सड़कों, ट्रकों और ट्रेलर में निवेश बढ़ा है. इसका एक नतीजा ये हुआ है कि हाई स्पीड रेलवे बिछाने से पर्यावरण को जो फ़ायदा हुआ था, उसे गंवा दिया गया. लेकिन, हाई स्पीड रेलवे पर मालिकाना हक़ रखने वाला चाइना रेल कॉरपोरेशन इससे ज़रा भी चिंतित नहीं है.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान चीन की कई प्रांतीय सरकारों ने हाई स्पीड रेलवे लाइनें बिछाने के लिए भारी मात्रा में क़र्ज़ लिया है. इससे वो क़र्ज़ के ऐसे दलदल में फंस गए हैं, जिसने सरकारी संस्था चाइना रेल कॉरपोरेशन को मुश्किल में डाल दिया है. सीआरसी की वित्तीय परेशानियां चार साल पहले तब शुरू हुई थीं, जब 60 फ़ीसद से ज़्यादा हाई स्पीड रेलवे ऑपरेटरों में से हर एक ने वर्ष 2018 मे लगभग 10 करोड़ डॉलर का घाटा उठाया. उस साल सबसे कम मुनाफ़े वाले चेंगडू लाइन के ऑपरेटर ने 1.8 अरब डॉलर का शुद्ध घाटा होने की जानकारी दी थी. उसी साल चीन में परिवहन क्षेत्र के अर्थशास्त्रियों ने आशंका जताई थी कि ‘चीन का हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क तेज़ी से कर्ज़ के दलदल में धंस रहा है. ये नेटवर्क सरकार से मिल रही सब्सिडी के सहारे हैं, जो हमेशा नहीं दिया जा सकता और बहुत सी लाइनों की हालत तो ऐसी है कि मूल धन की तो बात ही छोड़िए, वो क़र्ज़ का सूद तक चुका पाने की हालत में नहीं हैं.’ विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि चीन का हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क ‘नया क़र्ज़ लेकर पुराना क़र्ज़ चुकाने के दुष्चक्र में फंस चुका है’. इसका नतीजा ये हुआ है कि वर्ष 2015 से चाइना रेल कॉरपोरेशन अपने संचालन से होने वाले मुनाफ़े से कहीं ज़्यादा रक़म तो क़र्ज़ की ब्याज अदा करने में ख़र्च कर रहा है. ज़ाहिर है कि उसका ख़ज़ाना ख़ाली होता जा रहा है.
स्टेट काउंसिल ने हर उस इलाक़े में हाई स्पीड रेलवे का निर्माण कार्य रोक दिया है, जहां पर क़र्ज़ का बोझ उसकी वित्तीय ताक़त से कहीं ज़्यादा है. क़र्ज़ से दबे शहरों में हल्के या ज़मीन के भीतर रेलवे लाइन बिछाने का काम भी रोक दिया गया है.
2015 से चाइना रेलवे कॉरपोरेशन द्वारा ब्याज का भुगता
चार साल बाद, मार्च 2021 में चीन के प्रांतों की सर्वोच्च संस्था स्टेट काउंसिल ने प्रांतों को क़र्ज़ के दलदल में और गहरे से फंसने से रोकने के लिए हाई स्पीड नेटवर्क में निवेश कम करने की चेतावनी दी. नए निर्देशों के तहत ख़ास तौर से उन हाई स्पीड रेलवे रूट पर नई लाइनें बिछाने का काम रोक दिया गया है, जो तय क्षमता से 80 प्रतिशत से भी कम पर चलाई जा रही हैं. जिस चीन ने 2015 से 2020 के बीच अपने हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क का 91 प्रतिशत विस्तार कर लिया था, उसके ये नए दिशा निर्देश इशारा देते हैं कि तेज़ रफ़्तार के पीछे दौड़ने की उसने भारी क़ीमत चुकाई है.
किसी ख़ास संख्या या एक पैमाने का हवाला दिए बग़ैर ही, स्टेट काउंसिल ने सभी प्रांतीय सरकारों से कहा है कि वो ये सुनिश्चित करें कि वर्ष 2035 तक रेलवे का क़र्ज़ एक ‘तार्किक दायरे’ में आ जाए. सितंबर 2019 की तुलना में सितंबर 2020 में चाइना रेलवे कॉरपोरेशन का कुल ऋण 5.28 ट्रिलियन आरएमबी से बढ़कर 5.57 ख़रब आरएमबी यानी 850 अरब डॉलर हो गया था. इससे सीआरसी की संपत्तियों की तुलना में उस पर क़र्ज़ का अनुपात 65.8 प्रतिशत हो गया था.
स्टेट काउंसिल के दिशा निर्देशों में प्रांतीय सरकारों से कहा गया है कि वो मुक़ाबले की अंधी दौड़ से बचें. बेकार के ख़र्चीले निर्माण न करें और ‘रेलवे से जुड़े हुए क़र्ज़ बढ़ने पर पहले से चेतावनी देने वाली व्यवस्था का निर्माण करें.’ स्टेट काउंसिल ने हर उस इलाक़े में हाई स्पीड रेलवे का निर्माण कार्य रोक दिया है, जहां पर क़र्ज़ का बोझ उसकी वित्तीय ताक़त से कहीं ज़्यादा है. क़र्ज़ से दबे शहरों में हल्के या ज़मीन के भीतर रेलवे लाइन बिछाने का काम भी रोक दिया गया है.
ये दिशा निर्देश जारी होने के तीन दिनों के भीतर चीन ने शांगडोंग और शांक्ची सूबों में क़रीब 130 अरब आरएमबी (20 अरब डॉलर) के दो हाई स्पीड रेलवे प्रोजेक्ट का काम रोक दिया था. शांगडोंग की 270 किलोमीटर लंबी लाइ से इसकी राजधानी जिनान को दक्षिण में स्थित शहर झाओझुआंग से जोड़ा जाना था. शांगडोंग को गुआंगझोंगे चेंगजी के 71.6 अरब आरएमबी के प्रोजेक्ट पर भी काम रोकने को कहा गया. इस प्रोजेक्ट में उत्तर पश्चिम चीन के शांक्ची में 13 लाइनें बिछाई जानी थीं. शांक्ची प्रांत की सरकारी वेबसाइट में प्रकाशित एक पोस्ट में जानकारी दी गई कि रेलवे के निर्माण और वित्तीय स्थिति की एकीकृत समीक्षा के बाद, ये प्रोजेक्ट ‘जोखिम का स्तर कम करने’ के लिए रोका गया है.
हाई स्पीड रेलवे की नक़ल करने वाले ग़रीब देशों को इन कमज़ोरियों के प्रति सावधान रहना चाहिए.
क़र्ज़ के बोझ तले दबे हाई स्पीड ऑपरेटरों ने तो निवेश बैंकों और चाइना रेलवे डेवेलपमेंट फंड के शेयरधारकों को भी नुक़सान पहुंचाया है. चूंकि इनके बॉन्ड पर रिटर्न घट गया और मुनाफ़ा ख़त्म हो गया, तो सीआरसी ने तय किया कि वो आरडीएफ के बॉन्ड को 9 साल पहले ही भुना ले, जिससे निवेशकों को डिविडेंड का भुगतान कर सके. रेलवे डेवेलपमेंट फंड की स्थापना वर्ष 2014 में हुई थी, जिससे चीन के तेज़ी से फैल रहे हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क के लिए पैसे जुटाए जा सकें. आरडीएफ ने निवेशकों को अच्छे रिटर्न वाले शेयर आवंटित किए. आरडीएफ में निवेश करने वाले पहले पांच बैंकों को 5.5 प्रतिशत का तय वार्षिक रिटर्न देने का वादा किया गया. वहीं, इसमें बाद में पैसे लगाने वाले बैंकों को 5.32 प्रतिशत सालाना रिटर्न का वादा किया गया. साल दर साल की तुलना में यात्रियों की संख्या में 54.8 प्रतिशत की गिरावट के चलते वर्ष 2020 की पहली तिमाही में सीआरसी 61.4 अरब आरएमबी के भारी भरकम घाटे के बोझ तले दबा हुआ था. इसके चलते उसे निवेशकों को इतना अधिक तय रिटर्न दे पाना मुश्किल हो रहा था. निवेशकों के लिए स्थिति तब और बिगड़ गई, जब आरडीएफ द्वारा जारी 20 साल के बॉन्ड पर ब्याज दरें 2014 में 5.78 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2020 में 3.97 फ़ीसद ही रह गईं.
चीन के हाई स्पीड रेलवे की सफलता ने पिछले दशक में पूरी दुनिया को चकाचौंध कर दिया था. लेकिन, अब बढ़ती घरेलू वित्तीय परेशानियों ने इसकी कमज़ोर नस को उजागर कर दिया है. हाई स्पीड रेलवे की नक़ल करने वाले ग़रीब देशों को इन कमज़ोरियों के प्रति सावधान रहना चाहिए. भारत, जो 2024 में मुंबई से अहमदाबाद के बीच हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क का परीक्षण शुरू करने की उम्मीद कर रहा है, उसे भी सावधान रहना चाहिए. 1.08 खरब रुपए (14.3 अरब डॉलर) का ये प्रोजेक्ट पहले ही 2023 की तय मियाद से पांच साल पीछे चल रहा है और अब इसके 2028 में शुरू होने की उम्मीद है. इसमें जापान इंटरनेशनल को–ऑपरेशन एजेंसी ने पैसे लगाए हैं. 508 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन के निर्माण की लागत 2.744 करोड़ डॉलर प्रति किलोमीटर बताई जा रही है, जो यूरोपीय हाई स्पीड रेलवे के ऊंचे मानकों के क़रीब है. इसकी तुलना में चीन के हाई स्पीड रेलवे के प्रति किलोमीटर निर्माण की लागत 2.1 करोड़ डॉलर प्रति किलोमीटर है. 1709 डॉलर सालाना की प्रति व्यक्ति आमदनी वाले भारत को ये समझना होगा कि हाई स्पीड रेलवे वाले दो अन्य एशियाई देशों चीन और जापान की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय लगभग 8123 डॉलर और 38,895 डॉलर है. टिकाऊ परिवहन व्यवस्था के विकास के दौरान भारत को ये भी ध्यान रखना होगा कि वो इस पर कितना ख़र्च करने का बोझ उठा सकता है. ये बात भारत की सबसे बड़ी कमज़ोरी भी बन सकती है.
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Dhaval is Senior Fellow and Vice President at Observer Research Foundation, Mumbai. His spectrum of work covers diverse topics ranging from urban renewal to international ...
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