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मालदीव और श्रीलंका में चीन का रुझान अब बड़ी परियोजनाओं से हटकर उच्च-स्तरीय बातचीत और छोटी विकास योजनाओं की ओर है.
Image Source: Getty
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़ू ने जनवरी 2024 में अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चीन को चुना. उनका यह कदम मालदीव के पूर्व शासनाध्यक्षों से विपरीत था जिन्होंने अपनी पहली यात्रा के लिए भारत को चुना था. मुइज़ू द्वारा बीजिंग को चुना जाना मालदीव की नई सरकार का चीन से बढ़ती उम्मीदों का प्रतीक था. लेकिन पिछले एक साल में इन उम्मीदों से बहुत कम हुआ है. चीन से जुड़ा यह अकेला मामला नहीं है. चीन ने श्रीलंका में भी, 2021 के अंत में आर्थिक संकट की शुरुआत के बाद से अपनी सक्रियता को बहुत हद तक कम कर लिया है. दक्षिण एशियाई क्षेत्र में, विशेष रूप से मालदीव और श्रीलंका में चीन के दख़ल के तरीके में बदलाव नज़र आ रहा है. चीन अब वित्तीय सहायता देने और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में सहायता करने जैसी रणनीतियों का उपयोग करने में हिचकिचा रहा है. अब उसने उच्च-स्तरीय बातचीत, द्विपक्षीय संबंध और छोटी विकास परियोजनाओं में अपना ध्यान बढ़ा दिया है.
चीन अब वित्तीय सहायता देने और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में सहायता करने जैसी रणनीतियों का उपयोग करने में हिचकिचा रहा है. अब उसने उच्च-स्तरीय बातचीत, द्विपक्षीय संबंध और छोटी विकास परियोजनाओं में अपना ध्यान बढ़ा दिया है.
दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के बढ़ते भू-राजनीतिक महत्व के कारण सदी की शुरुआत में इस क्षेत्र में चीन के दख़ल और प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, ख़ासकर ऋण, निवेश और विकास सहायता के माध्यम से. जैसे-जैसे श्रीलंका में गृहयुद्ध तेज हुआ, चीन एक महत्वपूर्ण प्रदाता और विकास के भागीदार के रूप में सामने आया. इसी के साथ साथ चीन ने मालदीव में भी लगातार अपनी पैठ मजबूत की. दोनों देशों में, 2013 में बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) के संस्थागतकरण और लॉन्च के साथ चीन का प्रभाव काफ़ी बढ़ गया. घरेलू सुधारों को लेकर न्यूनतम शर्तें और ऋणों के त्वरित वितरण ने चीन को दोनों देशों के लिए एक भरोसेमंद साथी बना दिया. यह साथ इस कदर बढ़ा कि 2020 तक, श्रीलंका में चीन का बुनियादी ढांचे में निवेश लगभग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था.
चीन ने इन देशों में बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करके इन पर अपनी महत्वपूर्ण निर्भरता बनाई. श्रीलंका में चीन ने सड़कों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, ऊर्जा, दूरसंचार क्षेत्र और जल आपूर्ति परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया और मालदीव में मुख़्य रूप से सड़क निर्माण, हवाई अड्डे के विकास, बड़े पुल, आवास परियोजनाओं, बिजली और पानी के डिसैलिनेशन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया. इनमें से अधिकतर परियोजनाएँ ऋण के रूप में थी लेकिन श्रीलंका में कुछ रणनीतिक परियोजनाओं को निवेश के रूप में किया गया. मालदीव में कुछ परियोजनाओं ने अनुदान और सॉवरिन गारंटी रूप अख्तियार किया. टेबल 1 और 2 क्रमशः चीन की श्रीलंका और मालदीव में की गई परियोजनाओं का लेखा-जोखा है.
टेबल 1. श्रीलंका में चीन की मुख़्य परियोजनाएं
प्रमुख परियोजनाएं |
सहायता का स्वरूप |
राशि |
कोलंबो - काटुनायके एक्सप्रेस वे |
लोन के रूप में |
US$248 मिलियन |
दक्षिणी एक्सप्रेस वे |
लोन के रूप में |
US$1.5 बिलियन |
आउटर सर्कुलर हाईवे |
लोन के रूप में |
US$494 मिलियन |
हंबनटोटा (मट्टाला) अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा |
लोन के रूप में |
US$190 मिलियन |
नोरोचलाई पावर स्टेशन |
लोन के रूप में |
US$1.3 बिलियन |
कोलंबो पोर्ट सिटी |
निवेश के रूप में |
US$1.3 बिलियन |
कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल |
निवेश के रूप में |
US$500 मिलियन |
लोटस टावर |
लोन के रूप में |
US$88 मिलियन |
हंबनटोटा पोर्ट |
लोन के रूप में |
US$1.3 बिलियन |
जलापूर्ति परियोजनाएँ |
लोन के रूप में |
US$400 मिलियन |
मटारा-कटारागामा रेलवे लाइन |
लोन के रूप में |
US$278 मिलियन |
टेबल 2. मालदीव में चीन की मुख़्य परियोजनाएं
प्रमुख परियोजनाएं |
सहायता का स्वरूप |
राशि |
सिनामेल ब्रिज |
अनुदान के रूप में |
US$108 मिलियन |
|
लोन के रूप में |
US$72 मिलियन |
एयरपोर्ट रोड का अपग्रेड |
सोवरन गारंटी के रूप में |
US$31 मिलियन |
आवास परियोजनाएँ |
सोवरन गारंटी के रूप में |
US$548 मिलियन |
वेलाना एयरपोर्ट पर सीप्लेन सुविधाएँ |
सोवरन गारंटी के रूप में |
US$47 मिलियन |
बिजली परियोजनाएं |
सोवरन गारंटी के रूप में |
US$181 मिलियन |
आवास परियोजनाएँ |
लोन के रूप में |
US$219 मिलियन |
वेलाना एयरपोर्ट का अपग्रेड |
लोन के रूप में |
US$374 मिलियन |
लामू लिंक रोड |
अनुदान के रूप में |
उपलब्ध नहीं |
डीसलाइनेशन संयंत्र |
अनुदान के रूप में |
उपलब्ध नहीं |
हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में चीन ने बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं यानी मेगा -इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को वित्त पोषण और प्रोत्साहन देने की गति धीमी कर दी है.
उदाहरण के लिए अगर बात करें, चीन ने आखिरी बार 2021 में श्रीलंका को 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की करेंसी एक्सचेंज के रूप में अपनी वित्तीय सहायता की पेशकश की थी. यह करेंसी एक्सचेंज इस शर्त पर जारी किया गया था कि इसका उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब देश के पास तीन महीने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार हो. जब 2022 में आर्थिक संकट गहरा गया, तो चीन ने मानवीय राहत के रूप में केवल 76 मिलियन अमेरिकी डॉलर की पेशकश की. चीन ने श्रीलंका के 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (नए ऋण में 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर, क्रेडिट लाइन में 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर और मुद्रा विनिमय में 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की सहायता के अनुरोध पर आंखें मूंद लीं. श्रीलंका के ऋण पुनर्गठन के दौरान भी, चीन आधिकारिक ऋणदाता समिति से बाहर रहा और यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को सुनिश्चितता देने वाला भी अंतिम देश था. 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के चीनी वाणिज्यिक ऋणों के पुनर्गठन को दिसंबर 2024 में ही अंतिम रूप दिया गया था. हंबनटोटा बंदरगाह पर 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तेल रिफाइनरी के अलावा, चीन ने देश में किसी अन्य मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भी निवेश नहीं किया है.
चीन नए ऋण देने में हिचकिचा रहा है और उसने कहा है कि ऋण पुनर्गठन से मालदीव की नए ऋण लेने की संभावना भी और सीमित हो जाएगी.
इसी तरह, राष्ट्रपति मुइज़ू ने अपनी चीन यात्रा के दौरान 20 से अधिक समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किए और वित्तीय सहायता के साथ-साथ ऋण पुनर्गठन का अनुरोध भी किया. अब तक चीन ने माले और विलिमाले में सड़कों को उन्नत करने और सिनामाले पुल के मुफ़्त में रखरखाव के लिए 130 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान देने की पेशकश की है. मुइज़ू की यात्रा के एक साल बाद भी, मालदीव की बढ़ती आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, चीन ने पांच साल की छूट अवधि के अपने वादे पर आगे कोई कदम नहीं उठाया है. चीन नए ऋण देने में हिचकिचा रहा है और उसने कहा है कि ऋण पुनर्गठन से मालदीव की नए ऋण लेने की संभावना भी और सीमित हो जाएगी. अक्टूबर में, चीन ने 75 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण को पुनर्वित्त किया (एक नया ऋण देने की पेशकश की) ताकि मालदीव अपने चीन EXIM (निर्यात-आयात) ऋणों का कुछ हिस्सा चुका सके. जबकि चीन ने कृषि क्षेत्रों, आवास परियोजनाओं और काधू एयरपोर्ट की अपग्रेडिंग में अपनी दिलचस्पी दिखाई है, उसका यह सहयोग सहायता के रूप में नहीं बल्कि निवेश के रूप में हो रहा है
निष्क्रिय नीति की व्याख्या
चीन के सक्रिय दृष्टिकोण की कमी को निम्नलिखित पहलुओं के साथ जोड़कर देखा जा सकता है:
यह चीन की मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की तुलना में "छोटी और सुंदर" परियोजनाओं को प्राथमिकता देने की सामान्य नीति के कारण हो सकता है. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब चीनी अर्थव्यवस्था कोविड के बाद वृद्धि के लिए संघर्ष कर रही है. आर्थिक मंदी, धीमा मैन्युफैक्चरिंग, उच्च अचल संपत्ति की कीमतें, बेरोज़गारी, उपभोक्ता विश्वास में कमी और बढ़ते कर्ज़ के बोझ ने बीजिंग को विदेशों में अपनी प्रतिबद्धताओं और उच्च ज़ोख़िम और उच्च लागत वाली परियोजनाओं में निवेश और सहायता करने की आवश्यकता पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है, ख़ासकर जब कर्ज़ में डूबे देश कर्ज़ चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
कर्ज़ के जाल की चिंताओं ने भी बीजिंग को अपनी कार्यप्रणाली पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है. लगभग एक दशक तक, चीन ने अपनी आर्थिक ताकत और उधार देने की शक्ति का लाभ उठाकर विकासशील देशों के बीच अपनी पैठ में महत्वपूर्ण तरक्की की है. कुछ शर्तों और सुधारों के आग्रह के साथ, इन बढ़ते कर्ज़ के बोझ ने उधार लेने वाले देशों के संरचनात्मक आर्थिक मुद्दों को बढ़ावा दिया और चीन और उसकी उधार देने की रणनीति के ख़िलाफ़ आलोचना को भी जन्म दिया. श्रीलंका द्वारा ऋण चुकाने के संघर्ष के दौर में हंबनटोटा बंदरगाह का प्रबंधन करने के चीन के फ़ैसले ने और 2022 में श्रीलंका के आर्थिक संकट ने चीनी कर्ज़ के जाल को लेकर चिंताओं को और बढ़ा दिया है. इस बात से संभवतः चीन को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने में मदद मिली है.
जबकि चीन ने बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करने के अपने काम से महत्वपूर्ण लाभ उठाया है, अस्थिर दक्षिण एशियाई राजनीति और भूराजनीति ने इन रणनीतियों की स्थिरता पर सवालिया निशान लगाया हैं. आज, दक्षिण एशियाई देशों ने अपनी समझ का प्रयोग करना शुरू कर दिया है और भारत और चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना शुरू कर दिया है क्योंकि भारत अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना रहा है और चीनी ऋणों को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं. छोटे देशों ने चीन से ऋण देने और पुनर्गठन में अधिक उदार होने के लिए कहा है, और कभी-कभी भारत को खुश करने या भारतीय हितों को नुक़सान न पहुंचाने के लिए चीनी परियोजनाओं को रद्द भी किया है. श्रीलंका द्वारा चीनी हाइब्रिड ऊर्जा परियोजनाओं को रद्द करना, उसका आर्थिक संकट, और सोलिह सरकार द्वारा कई चीनी परियोजनाओं को बंद करना जैसी कदमों से ऐसा लगता है कि चीन को ऋण देने की आवश्यकता और क्षेत्र में मेगा-बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की स्थिरता पर पुनर्विचार करने के लिए राजी कर लिया है.
छोटे देशों ने चीन से ऋण देने और पुनर्गठन में अधिक उदार होने के लिए कहा है, और कभी-कभी भारत को खुश करने या भारतीय हितों को नुक़सान न पहुंचाने के लिए चीनी परियोजनाओं को रद्द भी किया है.
अंत में, श्रीलंका और मालदीव चीन की कनेक्टिविटी गणना के अंतिम छोर पर हैं. हिंद महासागर में चीन के BRI में तीन प्रमुख गलियारे थे- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा (CMEC), और बांग्लादेश-चीन-भारत म्यांमार (BCIM) गलियारा. तीनों पहलों को चीनी उत्पादन के लिए नए बाज़ार ख़ोजने और मलक्का स्ट्रेट में चोक पॉइंट से बचने के लिए वैकल्पिक भूमि मार्ग प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था. चीन, क्षेत्र के दूरदराज के द्वीप देशों से जुड़ने से पहले हिंद महासागर में सड़क संपर्क बनाने का इच्छुक था. इसके लिए, श्रीलंका और मालदीव को बीजिंग के बाज़ार विस्तार का पूरक बनना था. जैसे-जैसे BRI और मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट अन्य जगहों पर आगे बढ़े, उन्होंने श्रीलंका और मालदीव में भी ऐसा ही किया. हालांकि, ऐसी स्थिति में जब कि BCIM को लागू नहीं किया जा रहा है, और CPEC और CMEC में पाकिस्तान और म्यांमार में सुरक्षा, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के कारण काफ़ी देरी हो रही है, अब श्रीलंका और मालदीव के साथ आगे बढ़कर संपर्क बनाने से कोई ख़ास फ़ायदा नज़र नहीं आ रहा है.
आउटरीच की निरंतरता
चीन की विकास सहायता और मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की रणनीति निश्चित ही धीमी पड़ गई है, चीन के पास अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त आर्थिक शक्ति और प्रभाव है. चीन ने श्रीलंका और मालदीव को चाइना इंडियन ओशियन फोरम और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए बेल्ट एंड रोड फोरम में शामिल करना जारी रखा है. चीन ने उन्हें वैश्विक सुरक्षा पहल (GSI), वैश्विक विकास पहल (GDI) और वैश्विक कल्चरल पहल (GCI) जैसी नई पहलों में भी शामिल किया है.
दूसरी ओर चीन लगातार अपने व्यापार संबंधों को बढ़ाने पर जोर दे रहा है. मालदीव ने हाल ही में 1 जनवरी 2025 को चीन के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लागू किया. इसके अलावा यह भी उल्लेखनीय है कि चीन श्रीलंका के साथ भी FTA पर चर्चा कर रहा है. अपनी "छोटी और खूबसूरत" परियोजनाओं के साथ, चीन ने सामुदायिक विकास परियोजनाओं, अनुदानों और मानवीय सहायता के क्षेत्र में इन देशों के साथ सहयोग किया है. और, चीन क्षमता निर्माण, छात्रवृत्ति और एक्सचेंज कार्यक्रमों में भी शामिल है. श्रीलंका और मालदीव के राजनीतिक तबके के लिए और सिविल सेवा में कार्यरत अधिकारियों के लिए नियमित रूप से उच्च स्तरीय दौरे और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चीन आयोजित करता है.
जैसे-जैसे हिंद महासागर महत्वपूर्ण होता जाता है, चीन, श्रीलंका और मालदीव में अपने मौजूदा प्रभाव को ख़त्म करने का ज़ोख़िम नहीं उठा पाएगा.
जैसे-जैसे हिंद महासागर महत्वपूर्ण होता जाता है, चीन, श्रीलंका और मालदीव में अपने मौजूदा प्रभाव को ख़त्म करने का ज़ोख़िम नहीं उठा पाएगा. जबकि चीन का मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए उनके द्वारा दिए जाने वाला ऋण और मदद तनाव में है, यह अन्य तरीकों और बातचीत के माध्यम से इसकी भरपाई कर रहा है. इसलिए, चीन अपने प्रभाव को बढ़ाने, भारत को नियंत्रण में रखने और क्षेत्र में अपने हितों और उपस्थिति को आगे बढ़ाने के लिए उसका लाभ उठाना जारी रखेगा.
आदित्य गोदारा शिवमूर्ति ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के एसोसिएट फेलो हैं.
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Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme’s Neighbourhood Studies Initiative. He focuses on strategic and security-related developments in the South Asian ...
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