Published on Jun 08, 2022 Updated 0 Hours ago

छात्र असंतोष के बीच, नई पीढ़ी (जेनरेशन एक्स) पर प्रभाव जमाने के लिए योजना बनाई जा रही है.

भविष्य में लड़े जाने वाले हर युद्ध को जीतने के लिए,अपने सैन्य प्रतीकों को विकसित करने की कोशिश में है चीन!

एक प्रसिद्ध सेनापति ने एक बार कहा था कि सैनिक ही सेना है और कोई सेना उसके सैनिकों से बेहतर नहीं है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) इस कहावत पर विचार कर रही है और वास्तविक जीवन में भी एक छद्म योद्धा को पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.

साल 2020 में भारत-चीन सीमा पर हुई हिंसक झड़प ने इस कोशिश को और भी तेज़ी दी है. हालांकि यह ऐसे समय में घटित हो रहा है जब कोरोना महामारी के चलते लगाई गई सख़्त पाबंदियों की वज़ह से चीनी अर्थव्यवस्था पटरी से उतरती  दिख रही है और देश में तमाम नियंत्रणों के चलते छात्रों में भारी रोष है. कम्युनिस्ट यूथ लीग को संबोधित करते हुए, सीसीपी महासचिव शी जिनपिंग ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के एक सैनिक की कविता का उल्लेख किया, जिसकी मौत दो साल पहले गलवान घाटी में भारतीय सेना के साथ संघर्ष के दौरान हुई थी. इतना ही नहीं, बीजिंग में फरवरी के शीतकालीन ओलंपिक के दौरान, गलवान घाटी में संघर्ष में शामिल रहे एक सैनिक को मशाल रिले के लिए चुना गया था.

सैन्यवाद को नागरिक समाज में देशभक्ति, एकता और अनुशासन जैसे सैन्य मूल्यों को नागरिकों में शामिल करने के तौर पर परिभाषित किया जाता रहा है और सीसीपी भी भविष्य की पीढ़ियों के लिए युद्ध नायकों को गढ़ने की कोशिश कर रही है.

सीसीपी ने भविष्य की पीढ़ियों के सैन्यीकरण करने की अपनी योजना के चलते भारतीय राजनयिकों द्वारा खेलों के बहिष्कार का जोख़िम उठाया. सैन्यवाद को नागरिक समाज में देशभक्ति, एकता और अनुशासन जैसे सैन्य मूल्यों को नागरिकों में शामिल करने के तौर पर परिभाषित किया जाता रहा है और सीसीपी भी भविष्य की पीढ़ियों के लिए युद्ध नायकों को गढ़ने की कोशिश कर रही है. चीन में अपने एक दशक के लंबे कार्यकाल के दौरान शी जिनपिंग ने निजी क्षेत्र पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं लेकिन सामाजिक रीति-रिवाज़ों पर उनकी कार्रवाई पर किसी का ध्यान अब तक नहीं गया है. चीन के मीडिया नियामक, राष्ट्रीय रेडियो और टेलीविजन प्रशासन ने हाल ही में उन कलाकारों के बहिष्कार की घोषणा की जो पार्टी की मर्दानगी के मापदंडों के मुताबिक सही नहीं पाए गए. इसके बजाय  सेंसर ने निर्दिष्ट किया कि मनोरंजन उद्योग “पारंपरिक चीनी संस्कृति और क्रांति संस्कृति” से संबंधित विषयों पर अधिक ज़ोर देता है. सीसीपी को यह उम्मीद है कि युवाओं की जीवन शैली से संबंधित इस तरह के सुधार से उनके राजनीतिक मक़सद को साधा जा सकता है. साल 2020 के प्लेनम में- सीसीपी की केंद्रीय समिति की वार्षिक सभा जो नीतिगत मामलों पर विचार-विमर्श करती है – घोषित मुख्य ‘विकास लक्ष्यों’ में से एक था, पीएलए के 100 साल पूरे होने पर 2027 तक एक मज़बूत, आधुनिक सेना का निर्माण करने का लक्ष्य.

चीन का वियतनाम सिंड्रोम

सेना अपने सैनिक जितनी ही अच्छी होती है और यहीं शी जिनपिंग एक पहेली से जूझ रहे हैं. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने आख़िरी बार 1979 में वियतनाम के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी. उस लड़ाई में लड़ने वाले सैनिक अब चीनी सेना से रिटायर हो चुके हैं जिससे चीन की सेना के पास वास्तविक युद्ध का अनुभव बेहद कम है. हालांकि पीएलए के किसी भी जवान के हताहत होने की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई, जबकि यह अनुमान लगाया जाता है कि इस लड़ाई में पीएलए के 6,500 से अधिक जवान हताहत हुए थे और लगभग 31,000 सैनिक घायल हुए थे. ऐसा लगता है कि वियतनाम की पराजय ने सीसीपी को लंबे सशस्त्र संघर्ष के लिए बिना तैयारी के साथ अधर में छोड़ दिया. जबकि चीन के सैन्य इतिहासकार 1950 के कोरियाई युद्ध में चीनी पीपुल्स वालंटियर आर्मी की भूमिका की सराहना करते थकते नहीं हैं लेकिन वियतनाम से जंग की स्मृति को उन्होंने काफी हद तक मिटा दिया है. जंग के मैदान में पराजय के बावजूद सीसीपी ने “जीत” या “युद्ध नायकों” को गढ़ना नहीं छोड़ा है.

हाल के वर्षों में, “क्रांतिकारी शहीद” वांग की कहानियों को नई उड़ान मिली है जिसमें एक कथित पत्र को काफी प्रचारित किया जा रहा है जिसमें वांग ने सीसीपी सदस्यता के लिए आवेदन करने की मांग की और अपना जीवन इसके लिए समर्पित करने की बात कही है.

इस साल दक्षिण चीन सागर के ऊपर एक चीनी लड़ाकू विमान और एक अमेरिकी जासूसी विमान के बीच आमना-सामना होने की 20 वीं वर्षगांठ है. इस हादसे की वजह से अमेरिकी चालक दल को हिरासत में ले लिया गया था, जिसकी रिहाई तब मुमकिन हो सकी जब बीजिंग में अमेरिकी राजदूत द्वारा कथित तौर पर इस कृत्य के लिए माफी मांगी गयी. लेकिन चीन ने इस घटना को अपनी एक बड़ी जीत के रूप में दिखाया और लेफ्टिनेंट-कमांडर वांग वेई, जिन्होंने इस हादसे में अपनी जान गंवा दी थी, उन्हें एक नायक के तौर पर पेश किया. हाल के वर्षों में, “क्रांतिकारी शहीद” वांग की कहानियों को नई उड़ान मिली है जिसमें एक कथित पत्र को काफी प्रचारित किया जा रहा है जिसमें वांग ने सीसीपी सदस्यता के लिए आवेदन करने की मांग की और अपना जीवन इसके लिए समर्पित करने की बात कही है. सीसीपी की शताब्दी से पहले, “अमेरिका की आक्रामकता का विरोध और कोरिया को सहायता करने के लिए युद्ध” की 70वीं वर्षगांठ को लेकर एक हाई-प्रोफ़ाइल कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें चीन की पीपुल्स वालंटियर आर्मी ने अहम भूमिका निभाई थी. सीसीपी ने आदेश दिया कि हर फिल्म थियेटर युद्ध से संबंधित फिल्मों को बढ़ावा दे और 12 फिल्मों की आधिकारिक सूची में से दो फिल्मों की स्क्रीनिंग सुनिश्चित करे. कोरियाई संघर्ष में शामिल होने पर चीन को लेकर बनी फिल्म, ‘बैटल ऑन शांगनलिंग माउंटेन’ को छह दशकों के बाद पूरे देश के सिनेमाघरों में फिर से रिलीज़ किया गया. आधिकारिक प्रचार तंत्र ने इसे अमेरिकी सेना के ख़िलाफ़ चीन की जीत के रूप में दर्शाया. शी ने कहा: “चीनी पीपुल्स वालंटियर आर्मी ने एक बेहतर सशस्त्र प्रतिद्वंद्वी को हराया … इस मिथक को तोड़ दिया कि अमेरिकी सेना अजेय है.” पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) द्वारा अमेरिकी सेना को हराने को लेकर जो भी दुष्प्रचार किए गए उसके बावज़ूद, युद्ध के मैदान में इसे परखा नहीं जा सका है, क्योंकि सैनिकों के लिए यह हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है. हाल के दिनों में सेना के मुखपत्र, ‘पीएलए डेली’ में बताया गया कि आर्थिक समृद्धि ने पुरुषों की चेतना और देश के मनोबल दोनों को खोखला कर दिया है और इसे ‘शांति रोग’ के तौर पर परिभाषित किया है.

सैन्य प्रतीक गढ़ने की ज़द्दोज़हद

जब कोई व्यक्ति सेना में शामिल होने के लिए हस्ताक्षर करता है तो वह व्यक्ति वास्तव में अपने जीवन को इस संस्था के लिए सौंप देता है. पीएलए सीसीपी की सेना है और इस तरह यह एक राजनीतिक ताक़त बनी हुई है. इसके अधिकारी एक नेता की सेवा करते हैं, राष्ट्र की नहीं. साल 2014 के बाद से ही पीएलए जनरलों ने शी जिनपिंग के प्रति अपनी वफ़ादारी दिखानी शुरू कर दी है और वास्तव में, यह ऐसी भावना को जन्म देती है जिसके तहत एक व्यक्ति अपनी ईमानदारी और देश के प्रति निष्ठा की क़ीमत पर अपने भविष्य की संभावनाओं को ज़्यादा तलाशता है. हालांकि रिटायर होने के बाद बकाया राशि और बेहतर स्थितियों के लिए विरोध कर रहे सेना के पूर्व दिग्गज, सेना में युवाओं की भर्ती के लिए अच्छी मिसाल पेश नहीं कर रहे हैं.

साल 2014 के बाद से ही पीएलए जनरलों ने शी जिनपिंग के प्रति अपनी वफ़ादारी दिखानी शुरू कर दी है और वास्तव में, यह ऐसी भावना को जन्म देती है जिसके तहत एक व्यक्ति अपनी ईमानदारी और देश के प्रति निष्ठा की क़ीमत पर अपने भविष्य की संभावनाओं को ज़्यादा तलाशता है

वैसे इस छवि को सुधारने के लिए चीनी शासन ने कुछ संस्थागत परिवर्तन शुरू किए हैं. मार्च 2018 में अवैतनिक देय राशि के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले सैनिकों द्वारा विरोध किए जाने के एक साल बाद, इस तरह के 57 मिलियन समुदाय से जुड़ी समस्याओं को निपटाने के लिए मिनिस्ट्री ऑफ़ वेटेरन्स अफ़ेयर्स का गठन किया गया था. साल 2021 में पूर्व-सैन्य कर्मियों का समर्थन करने के लिए एक नया कानून लागू हुआ जिसके तहत वैसी कंपनियों को ऋण प्राप्त करने और टैक्स में रियायत देने की घोषणा की गई जो सेवानिवृत सैन्य कर्मियों को अपने यहां काम पर ऱखते हैं. ईमानदार व्यवस्था बनाने के लिए भ्रष्टाचार और मुनाफ़ाखोरी के आरोपी वरिष्ठ अधिकारियों को हटाया जा रहा है. राष्ट्रीय भर्त्सना पर कानून में बदलाव की योजना बनाई जा रही है. सक्रिय-कर्तव्य बलों में शामिल होने के योग्य युवाओं पर यह लागू होती है. युवा लोगों के लिए पंजीकरण को आसान बनाने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की वेबसाइट शुरू की गई है. इस प्रकार एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश हो रही है जहां युवा, सेना में करियर तलाशने को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखते हैं और उन लोगों की चिंताओं को दूर करते हैं जो भविष्य में इससे जुड़ी सख़्ती और पाबंदियों को लेकर है.

यूक्रेन से सबक

हालांकि यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के आक्रमण के बाद से ही अधिक युवाओं को सेना में शामिल करने के लिए प्रेरित करने वाली परियोजना को प्राथमिकता दी जा रही है. जंग के अब तक के विश्लेषण से पता चलता है कि अपने जज़्बे और हौसले की बदौलत यूक्रेन की सेना एक ऐसी सेना के सामने ज़बर्दस्त पलटवार कर रही है जिसने कभी नाज़ी जर्मनी को कुचल कर रख दिया था. आर्मी वॉर कॉलेज के मेजर जनरल मनदीप सिंह का तर्क है कि पीएलए को सोवियत रेड आर्मी की तर्ज़ पर तैयार किया गया था और अब भी रूसी सिद्धांतों से यह काफी प्रभावित है. रूस यूक्रेन जंग पर चीन नज़र बनाए हुए है और पुतिन की ग़लतियों से सबक सीख रहा है. ऐसे में चीन के समाज में सैन्यवाद को बढ़ावा देने की राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हाल की कोशिशों को इसी नज़रिये से देखा जाना चाहिए.

2022 रायसीना डायलॉग – जो भू-राजनीतिक और भू-अर्थव्यवस्था पर भारत का प्रमुख सम्मेलन है – के दौरान चीन की महत्वाकांक्षाओं पर चर्चा की गई. ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय खुफ़िया कार्यालय के महानिदेशक एंड्रयू शियरर ने तर्क दिया कि सोलोमन द्वीप के साथ चीन का समझौता प्रशांत क्षेत्र में चीनी सैन्य मौज़ूदगी की संभावना को और बढ़ाता है.

2022 रायसीना डायलॉग – जो भू-राजनीतिक और भू-अर्थव्यवस्था पर भारत का प्रमुख सम्मेलन है – के दौरान चीन की महत्वाकांक्षाओं पर चर्चा की गई. ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय खुफ़िया कार्यालय के महानिदेशक एंड्रयू शियरर ने तर्क दिया कि सोलोमन द्वीप के साथ चीन का समझौता प्रशांत क्षेत्र में चीनी सैन्य मौज़ूदगी की संभावना को और बढ़ाता है. शी जिनपिंग चीनी इतिहास में एक ऐसे नायक के रूप में पहचान बनाने को आतुर हैं जिन्होंने ताइवान को एकीकृत किया और रेनमिन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रोफेसर जिन कैनरोंग की मानें तो वो साल 2027 तक ताइवान द्वीप को ज़बरन चीन में मिला सकते हैं.

शी जिनपिंग इस वक़्त का इस्तेमाल पीएलए की परिचालन क्षमता को बढ़ाने में कर सकते हैं, इस उम्मीद में कि छोटे द्वीपों पर चीन की सेना अपनी पकड़ मज़बूत करेगी तो इससे चीन से बाहर के भू-भाग  की परिस्थितियों के साथ चीनी फौज का अनुकूलन हो पाएगा. इस प्रकार, नए सैन्य प्रतीकों को गढ़ना, शी जिनपिंग के ताइवान पर कब्ज़ा करने की योजना का पहला चरण हो सकता है.

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