चीन की अलीबाबा, बायडू, बाइटडांस, डिडी, मीतुआन और टेनसेंट कंपनियां इस वक़्त चीन की सरकार तकनीकी कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए चलाए जा रहे अभियान के निशाने पर हैं. लेकिन, इन कंपनियों में इसके अलावा भी एक बात समान है. ये सभी कंपनियां अपने अलग अलग कारोबार को तेज़ रफ़्तार और कुशलता से बड़े पैमाने पर चलाने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) के डेटा पर निर्भर हैं. करीम आर. लखानी और मार्को इयानसिती की किताब, ‘कम्पीटिंग इन द एज ऑफ़ एआई’ में इस बारे में गहराई से पड़ताल की गई है. इस किताब से पता चलता है कि किस तरह, ‘आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का कारखाना’ तरह नए युग की कंपनियों में फ़ैसला लेने की धुरी बन चुकी है. बेहद जटिल एआई एल्गोरिद्म निश्चित रूप से आज के दौर के सबसे बड़े आविष्कारों में शामिल है, जिनकी वजह से रचनात्मक बदलाव आ रहे हैं, जो आर्थिक तरक़्क़ी और समृद्धि लाने का ताक़तवर हथियार हैं.
2019 में यूरोपीय संघ ने एल्गोरिद्म की जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए, एक गवर्नेंस फ्रेमवर्क जारी किया था. इसमें यूरोपीय संघ ने माना था कि एल्गोरिद्म व्यवस्थाओं ने न केवल कारोबार के पारंपरिक मॉडलों में नई जान डाली है. बल्कि, इन्होंने हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर भी गहरा असल डाला है. उसके बाद से इंटरनेट को सुरक्षित बनाने के लिए अपनी कोशिशें और तेज़ कर दी हैं. इनमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चेहरे से शिनाख़्त (फेशियल रिकॉग्निशन) पर प्रस्तावित प्रतिबंध शामिल हैं. कैंब्रिज एनालिटिका के डेटा घोटाले के बाद, अमेरिका में भी संसद सदस्यों ने इंस्टाग्राम के एल्गोरिद्म आधारित कंटेंट के किशोरों की मानसिक सेहत पर पड़ने वाले बुरे असर की आशंकाओं लेकर फ़ेसबुक के अधिकारियों से पूछताछ की है. हालांकि, इस मामले में भी चीन ने बाज़ी मार ली है और ऑर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से चलने वाली तकनीक कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए एल्गोरिद्म के बारे में सख़्त क़दम उठाए हैं.
बेहद जटिल एआई एल्गोरिद्म निश्चित रूप से आज के दौर के सबसे बड़े आविष्कारों में शामिल है, जिनकी वजह से रचनात्मक बदलाव आ रहे हैं, जो आर्थिक तरक़्क़ी और समृद्धि लाने का ताक़तवर हथियार हैं.
झुआंग रोंगवेन की अगुवाई वाले चीन के साइबर स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (CAC), जो डेटा को राष्ट्रीय संपत्ति मानते हैं, ने पिछले हफ़्ते ‘गाइडलाइंस फॉर स्ट्रेंथेनिंग द कॉम्प्रिहेंसिव मैनेजमेंट ऑफ़ इंटरनेट इन्फ़र्मेशन सर्विस एल्गोरिद्म’ के नाम से एक नोटिस जारी किया. इस नोटिस पर चीन के नौ अहम संस्थानों की मुहर लगी थी. इनमें स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन फॉर मार्केट रेग्यूलेशन, सेंट्रल पब्लिसिटी डिपार्टमेंट, शिक्षा मंत्रालय और सार्वजनिक सुरक्षा के मंत्रालय शामिल थे. इस नोटिस में तकनीकी कंपनियों से कहा गया था कि वो शी जिनपिंग के ‘नए युग में चीन की ख़ूबियों वाले समाजवादी विचारों’ को अपनी नीति निर्देशक विचारधारा के रूप में अपनाएं, जिससे एल्गोरिद्म को स्वस्थ, अनुशासित और समृद्ध विकास के लिए इस्तेमाल किया जा सके, और इसके साथ जनता की राय से छेड़खानी करने, प्रतिद्वंदियों पर हमला करने और नागरिकों के अधिकारों और हितों में घुसपैठ के लिए एल्गोरिद्म पर आधारित गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके. नोटिस के तहत तकनीकी कंपनियों को तीन साल का समय दिया गया है. इस दौरान उन्हें एल्गोरिद्म की सुरक्षा और प्रशासन का एक व्यापक ढांचा बनाने के लिए तीन साल का समय दिया गया है, जिससे एल्गोरिद्म के सुशासन, एक मज़बूत निगरानी व्यवस्था और एक मानक एल्गोरिद्म व्यवस्था विकसित हो सके.
चीनी सरकार की शह पर अभियान
चीन की सरकार का ये क़दम बिल्कुल भी अप्रत्याशित नहीं है. पर्यवेक्षक मानते हैं कि ये चीन की सरकार द्वारा बड़ी तकनीकी कंपनियों के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे बड़े अभियान का ही एक हिस्सा है. अगस्त महीने में सीएसी ने इंटरनेट सूचना सेवा एल्गोरिद्म से जुड़े सुझावों और प्रबंधन के उपायों पर लोगों की राय मांगने वाला एक ड्राफ्ट जारी किया था. इस ड्राफ्ट में एल्गोरिद्म के नियमन के लिए वो अन्य क़दम भी शामिल किए गए थे, जो हाल में जारी की गई नोटिस का हिस्सा नहीं थे. इसमें तकनीकी कंपनियों के लिए ये अनिवार्य कर दिया गया था कि वो यूज़र्स को ऐसे टूल्स दें, जो ग्राहकों की प्रोफाइल से जुड़े डेटा एल्गोरिद्म का प्रबंधन ख़ुद कर सके और कम उम्र लोगों को इंटरनेट की लत पड़ने से रोक सके. ये हालिया क़दम कंपनियों की उन कारोबारी नीतियों के भी ख़िलाफ़ था, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की नज़र में कामगारों या ग्राहकों के लिए नुक़सानदेह हैं. जैसे कि, ज़्यादा क़ीमत, ज़बरदस्ती की सेल, पीक आवर्स में क़ीमतें बढ़ना वग़ैरह. इसी साल फूड डेलिवरी कंपनी मीतुआन और कैब कंपनी डिडी की उनके कामगारों के ख़राब माहौल में काम करने के लिए भारी आलोचना हुई थी.
नोटिस के तहत तकनीकी कंपनियों को तीन साल का समय दिया गया है. इस दौरान उन्हें एल्गोरिद्म की सुरक्षा और प्रशासन का एक व्यापक ढांचा बनाने के लिए तीन साल का समय दिया गया है, जिससे एल्गोरिद्म के सुशासन, एक मज़बूत निगरानी व्यवस्था और एक मानक एल्गोरिद्म व्यवस्था विकसित हो सके.
एल्गोरिद्म संबंधी इन नियमों से चीन की इंटरनेट कंपनियों के फ़ैसले लेने की प्रक्रिया पर चीन की सरकार का शिकंजा और कस जाएगा. इससे पहले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रस्ताव रखा था कि चीन की सरकार, बड़ी तकनीकी कंपनियों में प्रबंधन की विशेष हिस्सेदारी ख़रीदकर, वीटो के अधिकार के साथ उनके बोर्ड में शामिल हो जाए. इससे इन कंपनियों के कंटेंट और उन्हें सेंशर करने पर सरकार को और अधिक अधिकार हासिल हो जाएंगे. वैसे भी, इन उपायों को पिछले साल बड़ी सख़्ती से लागू किया गया था. इसके बावजूद, ये नियम एल्गोरिद्म पर आधारित फ़ैसले लेने की प्रक्रिया को इस तरह नियंत्रित करने में नाकाम रहे, जो चीन के सामाजिक नियमों से मेल खाते हों. अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी चाहती है कि तकनीक उद्योग उसके दूरगामी लक्ष्य हासिल करने में अपनी भूमिका अदा करे. हालांकि, मालिकाना हक़ वाली तकनीकों से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने, यूज़र के बर्ताव के अध्ययन और यूज़र को सुझाव देने वाली सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने से चीन जैसे देश में तकनीकी इनोवेशन की राह में बाधा पड़ेगी. जबकि इसी इनोवेशन का नतीजा था कि चीन में वीचैट जैसे सुपर ऐप की परिकल्पना को साकार किया गया.
मालिकाना हक़ वाली तकनीकों से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने, यूज़र के बर्ताव के अध्ययन और यूज़र को सुझाव देने वाली सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने से चीन जैसे देश में तकनीकी इनोवेशन की राह में बाधा पड़ेगी.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने चीन को नियमों का आविष्कारक कहकर उसकी तारीफ़ की है. लेकिन, तकनीकी कंपनियों पर चीन के शिकंजे के मामले में बहुत से विशेषज्ञ ये मानते हैं कि इससे ऐसे अन्य देश भी प्रेरित हो सकते हैं, ‘जो तेज़ी से आगे बढ़ रही डिजिटल अर्थव्यवस्था तो चाहते हैं. लेकिन इसके सामाजिक और राजनीतिक संवाद पर कड़ा शिकंजा भी कसना चाहते हैं.’ ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि ख़ुद को लोकतंत्र का चैंपियन कहने वाले लोग सूचना के महायुग में एल्गोरिद्म की इस पहेली को कैसे सुलझाते हैं. क्योंकि लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत करने वाले, इंटरनेट पर एकाधिकार को लोकतंत्र के लिए तो ख़तरा मानते हैं. लेकिन वो इस पर सख़्त निगरानी को डिजिटल तानाशाही भी कहते हैं.
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