Published on Jul 19, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन में इस बदलाव को देखकर तब कई पश्चिम के विशेषज्ञों ने यहां तक भविष्यवाणी करना शुरू कर दिया कि कम्युनिस्ट चीन में अब प्रजातंत्र के रास्ते खुलने लगे हैं.

चीन: सीसीपी के 100 साल पूरे; शी जिनपिंग का फ़ोकस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी संचालन की तरफ़..!
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1 जुलाई को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) 100 साल की हो गई. इस दिन चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना दिवस के जश्न के मौके को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी मौज़ूदगी में आगे बढ़ाया. इस भव्य अवसर पर 70,000 प्रतिनिधि एक साथ गाते और हाथ हिलाकर अभिवादन करते दिखे जो इस बात का प्रतीक था कि एक देश पूरी तरह से अपने अस्तित्व को लेकर आश्वस्त है. दरअसल इस मौके पर देशव्यापी उत्सव का आयोजन करने का मक़सद पूरी दुनिया को यह संदेश देना था कि पार्टी और राज्य मज़बूत, एकीकृत और संगठित है. हालांकि इस अवसर पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने भाषण में चीन से दुश्मनी रखने वाले देशों को चेताया कि वो ग्रेट वाल ऑफ स्टील से टकरा रहे हैं. हालांकि जिनपिंग ने कहा कि चीन की सीसीपी बाहरी ताकतों से मिलने वाली चुनौतियों का, ख़ास कर अमेरिका और दूसरे विरोधी मुल्क़ों से सामना कर रही है. इसमें दो राय नहीं कि चीन ने दुनिया के कई बड़े देशों के मुक़ाबले कोविड 19 महामारी का सामना बेहतर तरीके से किया और महामारी के दौरान ऊंची आर्थिक विकास दर को बनाए रखा. हालांकि जिनपिंग के शासनकाल में दुनिया के कई हिस्से में चीन की छवि ख़राब हुई ख़ासकर उस बात को लेकर कि जिस तरह से जिनपिंग ने हांगकांग और उइगर मुसलमानों की समस्या का सामना किया. इतना ही नहीं, जिनपिंग की सरकार की आलोचना कोरोना महामारी शुरू होने के बाद एक के बाद एक हुई घटनाओं को लेकर भी हुई. मुख्य रूप से यूनाइटेड फ्रंट वर्क डेवलपमेंट (यूएफडबल्यूडी) के ज़रिए सीसीपी की संदेहास्पद और संदिग्ध गतिविधियों – जो कि सीसीपी की प्रोपेगेंडा करने का साधन है – के चलते दुनिया के कई हिस्सों में चिंता का विषय बन गया.

सीसीपी और इसकी उथल-पुथल भरी यात्रा

100 साल पूरे होने का जश्न कोई छोटा मौका नहीं होता है, और यह अवसर सीसीपी के इतने लंबे समय तक अस्तित्व में बने रहने, अपनी अहमियत को फिर से खोज लाने की क्षमता की ओर भी इशारा करता है. साल 1921 में शंघाई में 13 प्रतिनिधियों के साथ सीसीपी की स्थापना हुई थी जिसमें एक प्रतिनिधि माओ जिदॉंग थे. हालांकि शुरुआती साल में सीसीपी को काफी झटके झेलने पड़े ख़ास कर सैन्य वापसी के फैसले (जिसे लॉन्ग मार्च कहते हैं) को लेकर, लेकिन साल 1949 में सीसीपी ने नेशनलिस्ट को सत्ता से बाहर कर दिया और खुद सत्ता पर क़ाबिज़ हुए. लेकिन जिस बर्बर और क्रूर जंग के ज़रिए सीसीपी ने सत्ता तक का रास्ता तय किया उसकी कालिख हमेशा पार्टी के साथ चिपकी रही और यही बात दूसरे मुल्कों के साथ पार्टी की नीतियों और दृष्टिकोण को निर्धारित करती रही. सीसीपी की ऐसी नीतियों का ही नतीजा था कि ग्रेट लीप फॉरवर्ड और सांस्कृतिक क्रांति जैसी घटनाएं चीन में हुई जिसमें लाखों चीनी नागरिक मारे गए.

डेंग जियोंगपिंग के नेतृत्व में सीसीपी ने एक कुशल नेता पाया जिन्होंने देश और इसकी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल कर रख दिया जिसे अब ‘दूसरी क्रांति’ के रूप में जाना जाता है.

इसके बावज़ूद सीसीपी अपने कार्यान्वयन में बेहद व्यावहारिक रुख़ अपनाते हुए देश और पार्टी के लिए अहम सुधारों के जरिए माओ जिदॉंन्ग की बड़ी ग़लतियों को अप्रासांगिक बना दिया.

हालांकि डेंग जियोंगपिंग के नेतृत्व में सीसीपी ने एक कुशल नेता पाया जिन्होंने देश और इसकी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल कर रख दिया जिसे अब दूसरी क्रांति के रूप में जाना जाता है. डेंग ने ‘राज्य पूंजीवादी मॉडल’ के तहत एक के बाद एक  आर्थिक सुधारों और उदारीकरण की योजनाओं को लागू किया और एशिया के एक दरिद्र देश को चार दशकों में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति के रूप में ला खड़ा किया. अर्थव्यवस्था की लगातार ऊंची दर ने देश में एक बड़े शहरी और मध्यम वर्ग को जन्म दिया जिसके चलते 800 मिलियन से ज़्यादा लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला जा सका. इस अभूतपूर्व उपलब्धि ने माओ जिदॉन्ग के शासनकाल के दौरान सीसीपी की खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से वापस लौटाने में मदद की. हालांकि उदारीकरण और विकास की ऊंची दर को प्राप्त करने के दौरान डेंग से लेकर हू जिन्ताओ जैसे चीनी नेताओं ने सीसीपी की सैद्धान्तिक प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया और विकास के साथ पुनर्वितरण पर पूरा ध्यान दिया. यह ऐसा वक़्त था जब विचारधारा को लेकर कट्टरता को तिलांजलि दे दी गई और कुछ नए राजनीतिक विचारों को जगह दी गई. चीन में इस बदलाव को देखकर तब कई पश्चिम के विशेषज्ञों ने यहां तक भविष्यवाणी करना शुरू कर दिया कि कम्युनिस्ट चीन में अब प्रजातंत्र के रास्ते खुलने लगे हैं.

शी और सीसीपी का कायाकल्प

हालांकि जैसे ही साल 2012 में शी पार्टी के महासचिव पद पर क़ाबिज़ हुए राजनीतिक उदारीकरण का यह खुशनुमा दौर  चीन की फ़िज़ाओं से ग़ायब होने लगा. उसके बाद से शी जिनपिंग ने डेंग जियांगपेंग की उस सिद्धान्त से भी किनारा कर लिया जिसके तहत कहा जाता था कि – “अपनी मज़बूती को छिपाओ और वक़्त की प्रतीक्षा करो”. शी ने पार्टी में महासचिव पद संभालते ही अपने कैडरों को राष्ट्रीयता की घुट्टी पिलानी शुरू कर दी. मसलन, साल 2017 में शी ने अपने लोगों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वक़्त आ गया है जब दुनिया का नेतृत्व थामने के लिए चीन सामने आए और अपनी शानदार आर्थिक उन्नति के मॉडल को दुनिया के सामने प्रस्तुत करे. उन्होंने कहा कि “चीन की विशेषताओं के साथ एक तेजी से बढ़ते हुए समाजवाद के आर्थिक मॉडल का विकल्प अब दुनिया के सामने होगा.” सीसीपी के एक पूर्व प्रोफेसर काई शिया -जो शी जिनपिंग जब पार्टी के महासचिव थे तब पार्टी में राजनीतिक ट्रेनिंग की ज़िम्मेदारी उनपर थी –  के मुताबिक़ जिस पार्टी में पूर्व के नेताओं के नेतृत्व में कुछ हद तक स्वायत्तता दिखती थी, वह शी जिनपिंग के नेतृत्व में पूरी तरह उनके सख़्त निर्देशों पर चलने लगी.  शी जिनपिंग ने अपनी कुशलता और परिश्रम से सीसीपी के इतिहास में माओ और डेंग के बाद तीसरे सबसे बड़े नेता होने का गौरव प्राप्त किया. शी जिनपिंग ने अपने विरोधियों को ख़ामोश कर ऐसी कामयाबी पाई. पार्टी में उनके बढ़ते वर्चस्व की मिसाल तब देखने को मिली जब साल 2017 में सीसीपी के 19 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में उन्हें ‘डेंग जियोंगपेंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता’ घोषित किया गया और पार्टी ने एक नए युग के लिए चीन की विशेषताओं के साथ समाजवाद पर  शी जिनपिंग के विचारों को स्थापित किया. इस क्रम में जो सबसे अहम बदलाव हुआ वह यह कि साल 2018 में चीन में सिर्फ दो बार राष्ट्रपति बनने की सीमा को ख़त्म कर दिया गया जिससे शी जिनपिंग के ताउम्र राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया.

विदेश में प्रभावी संचालन को कामयाब बनाने के लिए शी जिनपिंग के शासन के दौरान कभी कम प्रभावी हो चुके युनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट (यूएफडबल्यूडी) की भूमिका – जिसे विश्लेषक ‘जादू की छड़ी’ कहते हैं – को फिर से अहम बनाया गया है.

इस तरह शी जिनपिंग ने एक व्यवस्था के तहत सामूहिक नेतृत्व की विचारधारा जिसकी वज़ह से जियांग जेमिन और हू जिन्ताओ जैसे नेताओं के शासनकाल पर कुछ अंकुश लगाती थी उसे हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया. पार्टी में सामूहिक नेतृत्व को लेकर डेंग की मंशा लगातार यही थी कि पार्टी सरकार से अलग हो – और माओ के लंबे शासनकाल के दौरान जिस तरह नेतृत्व में अधिनायकवाद दिखी उससे पार्टी को बचाया जा सके. पार्टी में स्थापित समझौते को ख़त्म कर शी जिनपिंग ने अपने लिए ना सिर्फ सबसे महत्वपूर्ण नेता का पद सुनिश्चित कर लिया बल्कि उन्होंने अपने साथ पार्टी प्रमुख, सरकार का मुखिया, कमांडर इन चीफ जैसे तमाम पद को जोड़ लिया. शी जिनपिंग ने अतिराष्ट्रवाद और सामूहिक चिंता जैसे दो मुद्दों को देश और पार्टी पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया.  शी के नेतृत्व में सीसीपी ने लगातार बाहरी ख़तरे  (मसलन, हांगकांग और जिनजियांग प्रांत) और चीन की समृद्धि से ईर्ष्या रखने वाली ताक़तों का भय दिखाकर विरोधी ताक़तों को टारगेट किया और साथ ही प्रमुख संस्थानों जैसे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) पर नियंत्रण को मज़बूत किया. इसका नतीज़ा यह हुआ कि सीसीपी में कई तरह के बदलाव हुए और जो चीन आर्थिक उदारीकरण की ओर बढ़ने के क्रम में मार्क्स -लेनिन के सिद्धान्तों को लेकर थोड़ा लापरवाह हो रहा था उसे फिर से निजी फर्म तक के लिए विस्तार दिया गया.

प्रभावी संचालनों को लेकर सीसीपी की कोशिशें 

दशकों तक चीनी नेतृत्व ने प्रमुख तौर से आर्थिक प्रगति की ओर ध्यान दिया लेकिन शी जिनपिंग के शासन में देश का पूरा कायाकल्प हो गया. शी जिनपिंग के शासन के दौरान सीसीपी अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही. इतना ही नहीं देश के घरेलू मामलों से लेकर पड़ोस के क्षेत्र में होने वाले आंतरिक मामलों में भी पार्टी हस्तक्षेप करने से अब मुंह नहीं मोड़ रही है. और यह बेहद ही व्यवस्थित रणनीति और बहुआयामी कदमों के ज़रिए पूरा किया जा रहा है.  पहला, अब निजी कंपनियां भी सीसीपी के रडार पर हैं क्योंकि पार्टी कमेटी के सदस्य इन कंपनियों के निर्णय लेने वाली समिति के साथ सीधे तौर पर विचार विमर्श करते हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि हाल के सालों में सीसीपी को यह अधिकार दिया गया है कि विदेश में प्रभावी संचालन को जारी रखने के लिए देश के संसाधनों ( करीब 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ) का जमकर इस्तेमाल कर सकती है.  दूसरा, विदेश में प्रभावी संचालन को कामयाब बनाने के लिए शी जिनपिंग के शासन के दौरान कभी कम प्रभावी हो चुके युनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट (यूएफडबल्यूडी) की भूमिका – जिसे विश्लेषक जादू की छड़ी कहते हैं – को फिर से अहम बनाया गया है. विदेशों में ऐसे ऑपरेशन को बढ़ावा देने के लिए शी जिनपिंग ने युनाइटेड फ्रंट को चीनी प्रवासियों के साथ रिश्ते बनाने और सीसीपी में ‘विदेशी सेवा’ को शामिल करने के मक़सद से फिर से जिंदा किया.

पार्टी में स्थापित समझौते को ख़त्म कर शी जिनपिंग ने अपने लिए ना सिर्फ सबसे महत्वपूर्ण नेता का पद सुनिश्चित कर लिया बल्कि उन्होंने अपने साथ पार्टी प्रमुख, सरकार का मुखिया, कमांडर इन चीफ जैसे तमाम पद को जोड़ लिया.

कई मामलों में वैसे एनजीओ जिसे युनाइटेड फ्रंट पूंजी मुहैया करा रहा है, उसे अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और यूरोप में बसे चीनी प्रवासियों के साथ जोड़ने का काम किया गया है. आख़िरकार, सीसीपी और युनाइटेड फ्रंट से जुड़ी पूंजी अब नए नए विचार पैदा करने के काम आ रही है. इसका नतीज़ा यह है कि इन देशों में महत्वपूर्ण यूनिवर्सिटी, थिंक टैंक समूह, एनजीओ, अख़बार और उससे जुड़े अन्य मीडिया मंच को प्रभावित करने में यह काम आ रहा है. निश्चित तौर पर सीसीपी और युनाइटेड फ्रंट के गठजोड़ से चलाई जा रही प्रभावी संचालन की कोशिशों का नतीज़ा बेहद चौंकाने वाला है. हाल के वर्षों में चीन के प्रभावी संचालन का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण ऑस्ट्रेलिया (राजनीतिक चंदे के ज़रिए प्रभाव जमाया गया) , न्यूजीलैंड और अमेरिका है. अमेरिका में यह एक बड़ी समस्या के तौर पर ट्रंप शासनकाल के दौरान देखा गया जब ट्रंप प्रशासन को सैद्धान्तिक विचार की घुट्टी पिलाने और जासूसी के आरोप में जगह जगह फैले कन्फ्यूसियस सेंटरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी पड़ गई. इसके साथ ही बेल्ट एंड रोड जैसे मेगा भूराजनीतिक प्रोजेक्ट की शुरुआत के पीछे मक़सद दुनिया को पार्टी और चीन की कठोर और नर्म शक्तियों से परिचय कराना था.

सारांश में यही कहा जा सकता है कि सात दशकों तक सत्ता में बने रहने और एक वक़्त के कमज़ोर राष्ट्र को चौंकाने वाली समृद्धि के द्वार तक पहुंचाने की इस कोशिश की प्रशंसा की जानी चाहिए. तय है कि शी जिनपिंग के नेतृत्व में सीसीपी हठधर्मिता और अतिराष्ट्रवाद की धार के साथ आगे बढ़ रही है. इसके बढ़ते अधिनायकवादी मंसूबों (प्रभावी संचालनों में जो दिखता है ) और कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में जिस तरह का बर्ताव दिखा – उससे पार्टी के भविष्य को लेकर गहरी चिंता पैदा होने लगी है. सवाल है कि किस तरह की प्रमुख शक्ति में यह ख़ुद को ढालना चाहती है. आख़िर में यही कहा जा सकता है कि शी जिनपिंग के शासन के दौरान एक कामयाब कम्युनिस्ट पार्टी ने एक कमज़ोर और अजीब से दिखने वाले  मुल्क़ को दुनिया की आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र का सुपरपावर बना दिया .

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