Author : Harsh V. Pant

Published on Sep 16, 2022 Updated 0 Hours ago

नेपाल को इस बात का बखूबी अंदाजा है कि चीन की बीआरआई परियोजना के झांसे में जो भी देश फंसे हैं उनका परिणाम क्या हुआ है. उन्‍होंने कहा कि श्रीलंका और पाकिस्तान का उदाहरण दुनिया के सामने है.

BRI Projects in Nepal: चीन-नेपाल के समझौते से भारत चिंतित; ड्रैगन के झांसे में फंस सकता है ‘नेपाल’

चीन ने एक बार फिर से महत्‍वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव नेपाल को अपने झांसे में फंसाने की कोशिश तेज कर दी है. उसने नेपाल में बीआरआई प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने के लिए नेपाल के साथ एक नया समझौता कर लिया है. चीन ने कहा है कि अक्टूबर 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफ‍िंग की नेपाल यात्रा के दौरान लिए गए फैसलों को दोनों देशों के विकास और समृद्धि के लिए लागू किया जाना चाहिए. चीन ने कहा है कि यह द्विपक्षीय संबंधों का आधार बनेंगे. नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ऑफ चाइना के चेयरमैन ली झांशाऊ अपने काठमांडू दौरे के दौरान ली झांशाऊ राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, पूर्व पीएम केपी ओली और पुष्प कमल दहल सहित अन्य महत्वपूर्ण लोगों से मुलाकात करेंगे. आखिर भारत इस समझौते से क्‍यों चिंतित है. क्‍या है चीन की बड़ी चाल.

नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ऑफ चाइना के चेयरमैन ली झांशाऊ अपने काठमांडू दौरे के दौरान ली झांशाऊ राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, पूर्व पीएम केपी ओली और पुष्प कमल दहल सहित अन्य महत्वपूर्ण लोगों से मुलाकात करेंगे. आखिर भारत इस समझौते से क्‍यों चिंतित है. क्‍या है चीन की बड़ी चाल.

1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि नेपाल को इस बात का बखूबी अंदाजा है कि चीन की बीआरआई परियोजना के झांसे में जो भी देश फंसे हैं, उनका परिणाम क्या हुआ है. उन्‍होंने कहा कि श्रीलंका और पाकिस्तान का उदाहरण दुनिया के सामने है. नेपाल ने कुछ महीने पहले ही चीन के एक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को रद कर दिया था. नेपाल को चीन भले ही बीआरआई परियोजना का हिस्सा बनाने के लिए बड़े-बड़े सपने दिखाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन शायद नेपाल भी कहीं न कहीं इसे लेकर सजग है. इसलिए नेपाल में बीआरआई का कोई बड़ा प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका है.

चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल की नीति 

2- प्रो पंत का कहना है कि भारत शुरू से इस परियोजना का विरोधी रहा है. भारत ने कई अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर इस परियोजना की निंदा की है. दरअसल, चीन इस परियोजना के जरिए भारत के पड़ोसी मुल्‍कों से समझौता कर भारत के खिलाफ दबाव बनाने की रणनीति बनारहा है. चीन की मंशा को देखते हुए भारत ने शुरू से ही इस परियोजना का विरोध किया है. भारत ने अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सवाल भी उठाया है. दरअसल, इस परियोजना का एक हिस्‍सा पाकिस्‍तान के कब्‍जे वाले भारतीय क्षेत्र से होकर गुजरता है. चीन इस परियोजना के जरिए भारत को सामरिक रूप से घेरने का प्रयास कर रहा है. यही कारण रहा है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत ने बीआरआई परियोजना का विरोध किया है. यदि इस परियोजना पर ब्रेक लगता है तो भारत के प्रति चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल की नीति को भी गहरा धक्‍का लगेगा.

भारत शुरू से इस परियोजना का विरोधी रहा है. भारत ने कई अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर इस परियोजना की निंदा की है. दरअसल, चीन इस परियोजना के जरिए भारत के पड़ोसी मुल्‍कों से समझौता कर भारत के खिलाफ दबाव बनाने की रणनीति बनारहा है.

3- इसके अलावा भी भारत के समक्ष एक और बड़ी चिंता है. दरअसल, चीन ने इस परियोजना के तहत भारत के पड़ोसी मुल्‍कों श्रीलंका, पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश और नेपाल को भारी कर्ज दे रखा है. अगर यह योजना अधर में लटकी तो चीन अपने कुचक्र में इन मुल्‍कों को फंसा सकता है. यदि ये मुल्‍क ऋण चुकाने में विफल रहे तो चीन इन देशों को अपना उपनिवेश बना सकता है. इनको ब्‍लैकमेल कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो यह सीधे तौर पर भारत के सामरिक और रणनीतिक हितों को जबरदस्‍त चुनौती देगा.

चीन की एशिया, यूरोप और अफ्रीका के 65 देशों को जोड़ने की योजना

इस योजना के तहत चीन ने पूरी दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए 65 देशों को जोड़ने की योजना बनाई है. इसमें एशिया, यूरोप और अफ्रीका के देश शामिल हैं. दरअसल, यह परियोजना छह आर्थिक गलियारों की मिली-जुली योजना है. इसके तहत रेलवे लाइन, सड़क और बंदरगाह और अन्‍य आधारभूत ढांचे शामिल हैं. इसके तहत तीन जमीनी रास्‍ते होंगे. इनकी शुरुआत चीन से होगी. इसके तहत पहला मार्ग मध्‍य एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों की ओर जाएगा. इस मार्ग के जरिए चीन की पहुंच क‍िर्गिस्‍तान, ईरान, तुर्की से लेकर ग्रीस तक हो जाएगी. दूसरा, मध्‍य मार्ग मध्‍य एशिया से हाेते हुए पश्चिम एशिया और भूमध्‍य सागर की ओर जाएगा. इस मार्ग से चीन, रूस तक जमीन के रास्‍ते व्‍यापार कर सकेगा. इस योजना के तहत तीसरा मार्ग दक्षिण एशियाई देश बांग्‍लादेश की ओर जाएगा. इसके साथ पाकिस्‍तान के सामरिक रूप से अहम बंदरगाह ग्‍वादर को पश्चिम चीन से जोड़ने पर भी कार्य हो रहा है.

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