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वर्ष 2025 की शुरुआत में सुरक्षा बलों की ओर से देश में माओवादियों के विरुद्ध जिस प्रकार से सफल अभियानों को अंजाम दिया गया है, वो निश्चित रूप से नक्सल प्रभावित इलाक़ों में सुरक्षा तंत्र और सुरक्षा इंतज़ामों को मज़बूती प्रदान करेगा.
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इस साल की शुरुआत से ही छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों की ओर से माओवादियों के ख़िलाफ़ लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं और इन प्रभावशाली अभियानों की बदौलत बड़ी तादाद में माओवादी मारे गए हैं. सुरक्षा बलों ने 19 जनवरी को एक बड़ी क़ामयाबी हासिल करते हुए छत्तीसगढ़-ओडिशा राज्य की सीमा पर स्थिति छत्तीसगढ़ के भालुडिग्गी इलाक़े में हुई एक मुठभेड़ में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया -माओवादी (CPI-M) के 15 नक्सलियों को मार गिराया था. इस मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों में इनका शीर्ष कमांडर रामाचंद्र रेड्डी भी शामिल था. सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे अभियान के तहत माओवादियों के लिए एक सप्ताह के भीतर यह दूसरा बड़ा झटका था, जब इतनी बड़ी संख्या में नक्सली मुठभेड़ में मारे गए थे. इससे पहले, 16 जनवरी को बीजापुर ज़िले में हुई एक अन्य मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों ने तेलंगाना राज्य समिति के नेता दामोदर सहित 18 माओवादियों को ढेर कर दिया था.
जिस तरह से इस साल की शुरुआत में सुरक्षा बलों ने दो सफल ऑपरेशनों में बड़ी संख्या में नक्सलियों को मौत के घाट उतारने में सफलता हासिल की है, उससे लगता है कि पिछले साल सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के विरुद्ध जो क़ामयाबी हासिल की थी, वो सिलसिला इस साल भी जारी रहेगा. आपको बता दें कि वर्ष 2024 में छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने अपने नक्सल विरोधी अभियान के दौरान 115 मुठभेड़ों में 219 माओवादियों को मार गिराया गया था. वहीं वर्ष 2023 के दौरान सुरक्षा बलों को 68 मुठभेड़ों में 26 माओवादियों को मारने में सफलता मिली थी. यानी एक साल में मारे जाने वाले माओवादियों की संख्या में लगभग 750 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ. यह आंकड़ा हैरान करने वाला है. वामपंथी उग्रवाद (LWE) मूवमेंट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब सुरक्षा बलों को एक साल के भीतर 200 से ज़्यादा नक्सलियों को ढेर करने में सफलता मिली है.
यानी एक साल में मारे जाने वाले माओवादियों की संख्या में लगभग 750 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ. यह आंकड़ा हैरान करने वाला है. वामपंथी उग्रवाद (LWE) मूवमेंट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब सुरक्षा बलों को एक साल के भीतर 200 से ज़्यादा नक्सलियों को ढेर करने में सफलता मिली है.
नक्सल प्रभावित इलाक़ों में सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे अभियानों में तेज़ी और विस्तार की वजह से न केवल बड़ी संख्या में माओवादी मारे गए हैं, बल्कि नक्सली संगठनों के सदस्यों का मनोबल भी टूटा है. इतना ही नहीं, सुरक्षा बलों के लगातार अभियानों की वजह से माओवाद प्रभावित इलाक़ों का दायरा भी कम हुआ है. देखा जाए तो सीपीआई-एम के सशस्त्र माओवादियों का दायरा अब सुकमा-बीजापुर के इलाक़ों और छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र तक ही सिमट गया है. इसके अलावा दक्षिण और पश्चिम बस्तर के इलाक़ों में कुछ सशस्त्र माओवादी समूहों को तो काफ़ी ज़्यादा नुक़सान पहुंचा है, यहां तक कि उनका संगठन लगभग समाप्त सा हो गया है. अगर व्यापक रूप से देखें तो पिछले वर्ष सुरक्षा बलों के सफल नक्सल रोधी अभियानों की वजह से माओवादियों के चार प्रमुख सशस्त्र संगठनों की कमर टूट गई है. महाराष्ट्र में सुरक्षा बलों ने 17 जुलाई 2024 को एक ज़बरदस्त मुठभेड़ में 12 माओवादियों को ढेर कर दिया था, तब गढ़चिरौली डिवीजनल कमेटी को भारी नुक़सान झेलना पड़ा था. सुरक्षा बलों के इस ऑपरेशन के बाद उत्तरी गढ़चिरौली का इलाक़ा काफ़ी हद तक माओवादियों से मुक्त हो गया. इसके अलावा, छत्तीसगढ़ के कांकेर में 15 अप्रैल 2024 को हुई मुठभेड़ में कंपनी नंबर 5 के 29 माओवादी मारे गए, जिससे परतापुर एरिया कमेटी काफ़ी कमज़ोर हो गई. इसके अलावा, छत्तीसगढ़ के कांकेर में 15 अप्रैल 2024 को हुई एक ज़बरदस्त मुठभेड़ में कंपनी नंबर 5 के 29 माओवादी मारे गए थे. इसके बाद सशस्त्र माओवादियों की परतापुर एरिया कमेटी बेहद कमज़ोर हो गई. इनता ही नहीं, पिछले साल ही अक्टूबर व अप्रैल में हुई मुठभेड़ों में सशस्त्र माओवादियों की कंपनी नं. 6 और कंपनी नं. 2 को भी काफ़ी नुक़ासान उठाना पड़ा था.
हाल में हुई मुठभेड़ों में काफी नुक़सान उठाने के बाद अब माओवादी छत्तीसगढ़ में सॉफ्ट टार्गेट्स को निशाना बना रहे हैं. माओवादियों ने संदिग्ध पुलिस मुखबिरों पर हमले बढ़ा दिए हैं. विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में माओवादियों द्वारा मुखबिरी के शक में आम नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है.
पिछले महीने 19 जनवरी को ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर सुरक्षा बलों और सशस्त्र नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ से यह साफ संकेत मिलता है कि सीपीआई (माओवादी) ने अपने सशस्त्र गुटों को लेकर रणनीति में बदलाव किया है और उन्हें एक जगह इकट्ठा करने के बजाए अलग-अलग सुरक्षित इलाक़ों में ले जाया जा रहा है. माओवादी नेताओं को लगता है कि सुकमा-बीजापुर और अबूझमाड़ में ठिकाना बनाए रखना अब सुरक्षित नहीं रहा है. उन्हें लगता है कि मध्य ओडिशा वर्तमान में उनके लिए एक सुरक्षित ठिकाना है, यही वजह है कि सशस्त्र माओवादी गुटों ने कंधमाल, कालाहांडी, बौध और नयागढ़ जिलों में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. इसके अलावा, माओवादी ओडिशा के ज़रिए छत्तीसगढ़ से झारखंड तक के क्षेत्रों को जोड़ने के लिए संबलपुर देवगढ़-सुंदरगढ़ डिवीजनल कमेटी को फिर से सक्रिय करना चाहते हैं. माओवादी नेताओं को लगता है कि आने वाले दिनों में ओडिशा में केंद्रीय सशस्त्र बुलिस बलों की तैनाती में बदलाव से उनके लिए अवसर पैदा हो सकते हैं.
फिलहाल जो हालात हैं, उनके मद्देनज़र सीपीआई (माओवादी) के लिए अब करो या मरो की स्थिति पैदा हो गई है, यानी उनके सामने सुरक्षा बलों के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई के अलावा अब कोई विकल्प नहीं है. हाल में हुई मुठभेड़ों में काफी नुक़सान उठाने के बाद अब माओवादी छत्तीसगढ़ में सॉफ्ट टार्गेट्स को निशाना बना रहे हैं. माओवादियों ने संदिग्ध पुलिस मुखबिरों पर हमले बढ़ा दिए हैं. विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में माओवादियों द्वारा मुखबिरी के शक में आम नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है. वर्ष 2024 में पुलिस का मुखबिर होने के शक में माओवादियों ने लगभग 80 नागरिकों की हत्या कर दी थी, जबकि वर्ष 2023 में दक्षिण बस्तर में क़रीब 68 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. दक्षिण छत्तीसगढ़ के इलाक़ों में सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ हमलों में माओवादी ज़्यादातर इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IEDs), स्पाइक्स और बूबी ट्रैप जैसे हथियारों का उपयोग करते हैं. हालांकि, माओवादी सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए एरिया वीपन यानी दूर से हमला करने वाले हथियार विकसित करने में भी जुटे हुए हैं. माओवादियों ने हाल ही में 300 से 400 मीटर की दूरी से सुरक्षा बलों के ठिकानों पर हमला करने के लिए क्रूड बैरल ग्रेनेड लांचर का इस्तेमाल किया है. हालांकि, इन हमलों से सुरक्षा बलों को कोई ज़्यादा क्षति तो नहीं पहुंची, लेकिन इसने दहशत पैदा करने का काम तो किया ही है. माओवादी सुरक्षा बलों के विरुद्ध जवाबी हमलों की भी तैयारी कर रहे हैं, जिसमें सुरक्षा बलों के फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (FOBs) पर हमले किया जाना भी शामिल है. पिछले महीने 6 जनवरी को बीजापुर जिले के कुटरू में माओवादियों द्वारा किए गए आईईडी धमाके में आठ जवान मारे गए थे. नक्सली बहुल इलाकों में जैसे-जैसे सुरक्षा बल अपनी पकड़ मज़बूत कर रहे हैं, वैसे-वैसे उन पर और ज़्यादा जवाबी हमले होने की संभावना है. माओवादियों द्वारा हर साल गर्मियों के महीनों में आक्रामक अभियान चलाया जाता है, जिसे टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन यानी रणनीतिक जवाबी आक्रामक अभियान कहा जाता है, के दौरान सुरक्षा बलों पर माओवादी हमले बढ़ने की भी आशंका है.
सुरक्षा बलों ने हाल के दिनों में जिस प्रकार से छत्तीसगढ़ में माओवादियों को नियंत्रित करने में क़ामयाबी हासिल की है, उसका बहुत व्यापक असर पड़ेगा. ऐसा इसलिए हैं, क्योंकि सुरक्षा बलों ने राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में, ख़ास तौर पर सुकमा-बीजापुर को जोड़ने वाले बड़े हिस्से में और अबूझमाड़ के आस-पास पहले ही फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस यानी अग्रिम अभियान शिविरों का विस्तार किया है. ज़ाहिर है कि माना जाता है कि इन इलाक़ों में ही सशस्त्र माओवादियों के सबसे मज़बूत ठिकाने हैं और उनके ज़्यादातर शीर्ष कमांडर यहीं रहकर ऑपरेट करते हैं. दक्षिण और पश्चिम बस्तर के बाद अबूझमाड़ के इस इलाक़े में, जिसे "अज्ञात पहाड़ियों" वाले क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, आज वामपंथी उग्रवाद वहीं तक सिमट चुका है. सुरक्षा बल यहां अपना फैलाव कर माओवादी गतिविधियों के ताबूत में आख़िरी कील ठोकने की तरफ बढ़ रहे हैं. माओवादियों के सबसे सुरक्षित ठिकाने और 'आधार क्षेत्र' माने जाने वाले इस क्षेत्र में सुरक्षा बलों की पहुंच से न केवल माओवादियों की स्वतंत्र आवाजाही पर लगाम लगेगी, बल्कि सुरक्षा बलों का मनोबल भी बढ़ेगा और इलाक़े में उनका मज़बूत सुरक्षा नेटवर्क भी स्थापित होगा. इसके अलावा, ऐसा होने पर यह धारणा भी समाप्त हो जाएगी कि नक्सलियों और माओवादियों का गढ़ अबूझमाड़ अभेद्य है. उम्मीद की जा रही है कि अबूझमाड़ सहित माओवादियों के प्रभाव वाले बाक़ी इलाक़ों भी निकट भविष्य में सुरक्षा बलों की निगरानी के तहत आ जाएंगे.
पिछले कुछ अर्से के दौरान वामपंथी उग्रवाद का दायरा सिमटा है. चाहे सशस्त्र माओवादियों के प्रभाव क्षेत्र में कमी बात हो, या फिर उनके द्वारा की जाने वाली हिंसक वारदातों का मामला हो या उनकी ताक़त में कमी हो, इसमें कोई संदेह नहीं है कि वामपंथी उग्रवाद की कमर टूटी है. देखा जाए तो यह क़ामयाबी हाल के दिनों में सुरक्षा बलों की ओर से सटीक ख़ुफ़िया जानकारी के बाद की गई कार्रवाइयों की वजह से मिली है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान माओवाद के सफाए में सुरक्षा बलों को काफ़ी सफलता मिली है. इन सफलताओं में बिहार और झारखंड में स्थित सुरक्षित ठिकानों से सीपीआई (माओवादी) कैडरों को खदेड़ना शामिल है. इतना ही नहीं, सुरक्षा बलों ने दक्षिण छत्तीसगढ़ के साथ ही तेलंगाना से सटे सीमावर्ती ज़िलों में भी माओवादियों पर लगाम लगाने में सफलता हासिल की है. इसके अलावा, राज्य के गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), मलकानगिरी और कोरापुट (ओडिशा) से लगे सीमावर्ती ज़िलों के माओवादी गढ़ों में भी सुरक्षा बलों को काफ़ी हद तक क़ामयाबी हासिल हुई है. इतना ही नहीं, मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ और केरल-कर्नाटक-तमिलनाडु के सीमवर्ती इलाक़ों के जंगलों में भी माओवादी की मौज़ूदगी कम हो रही है और उनकी गतिविधियों पर लगाम लग रही है.
सुरक्षा बलों ने सटीक ख़ुफ़िया जानकारी के बाद चलाए गए अभियानों में सीपीआई (माओवादी) की पूर्व केंद्रीय कमेटी के आधे से अधिक सदस्यों और पोलित ब्यूरो मेंबर्स को ढेर करने में सफलता हासिल की है. सुरक्षा बलों की इस कार्रवाई की वजह से देखा जाए तो सीपीआई (माओवादी) का संगठन तबाह हो चुका है और उसकी ताक़त में भी भारी कमी आई है.
सुरक्षा बलों ने सटीक ख़ुफ़िया जानकारी के बाद चलाए गए अभियानों में सीपीआई (माओवादी) की पूर्व केंद्रीय कमेटी के आधे से अधिक सदस्यों और पोलित ब्यूरो मेंबर्स को ढेर करने में सफलता हासिल की है. सुरक्षा बलों की इस कार्रवाई की वजह से देखा जाए तो सीपीआई (माओवादी) का संगठन तबाह हो चुका है और उसकी ताक़त में भी भारी कमी आई है. ज़ाहिर है कि संगठन में माओवादी विचारधार के प्रति समर्पित कैडर की कमी की वजह से शीर्ष नेतृत्व में पैदा हुए इस खालीपन की भरपाई करना बेहद मुश्किल है. धुर वामपंथी और माओवादी विचारधारा वाला आंदोलन देखा जाए तो वर्तमान में पूरे देश में समाप्त सा हो गया है और इस कट्टर विचारधारा को मानने वाले गिने-चुने लोग ही बचे हैं. इतना ही नहीं, इस वजह से संगठन में नए कैडर की भर्ती में भी तमाम मुश्किलें आ रही हैं और कहीं न कहीं विभिन्न राज्यों के आदिवासी बहुल ज़िलों से ही कैडर की भर्ती हो पा रही है. जिस तरह से पिछले वर्षों में सुरक्षा बलों ने बड़ी तादाद में सशस्त्र माओवादी कैडरों को ढेर किया है और बड़ी संख्या में सदस्यों ने आत्मसमर्पण किया है, उससे संगठन में कैडरों की संख्या बहुत कम हो गई है और इनकी जगह नए लोगों की भर्ती नहीं हो पा रही है. इसके अलावा, सभी जगहों पर युवाओं के बीच अब माओवादी आंदोलन से जुड़ने और हथियार उठाने का आकर्षण भी कम हुआ है (दक्षिण छत्तीसगढ़ के कुछ इलाक़ों को छोड़कर). इस वजह से भी सशस्त्र माओवादी संगठन की ताक़त कम हुई है. देखने में आया है कि अपने दबदबे वाले क्षेत्रों में भी माओवादी नेतृत्व को संगठन का अस्तित्व बचाने के लिए जूझना पड़ रहा है और समर्थकों को जोड़े रखने के लिए वे उनके साथ ज़बरदस्ती कर रहे हैं.
वर्ष 2025 की शुरुआत में सुरक्षा बलों द्वारा देश में माओवादियों के विरुद्ध जिस प्रकार से सफल ऑपरेशनों को अंज़ाम दिया गया है, वो निश्चित रूप से नक्सल प्रभावित इलाक़ों में सुरक्षा तंत्र और सुरक्षा इंतज़ामों को गति प्रदान करेगा. वर्ष 2005 में अपने गठन के बाद से सीपीआई (माओवादी) अब तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है और उसकी कमर बुरी तरह से टूट चुकी है. जिस तरह से माओवादियों के मज़बूत गढ़ों में सुरक्षा बलों की ओर से अधिक से अधिक अग्रिम ऑपरेशन बेसों का विस्तार करने की योजना है, साथ ही जिस प्रकार से पिछले साल से ही सुरक्षा बलों द्वारा माओवादियों के विरुद्ध सफल अभियान चलाए जा रहे हैं, उससे न केवल माओवादी कैडर्स की संख्या में भारी कमी दर्ज़ की गई है, बल्कि जो बचा-खुचा कैडर है, उसका मनोबल भी बुरी तरह से टूट गया है. इन वास्तविकताओं के मद्देनज़र यह कहा जा रहा है कि आने वाले महीनों में सीपीआई (माओवादी) पर सुरक्षा बलों का शिकंजा और कसेगा, साथ ही अब तक अभेद्य समझे जाने वाले माओवादियों के अबुझमाड़ में भी इनकी हालत और पतली होगी. बावज़ूद इसके सुरक्षा बलों को चौकन्ना रहने की ज़रूरत है, क्योंकि माओवादी संगठनों में जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता है, विशेष रूप से आईईडी विस्फोटों के माध्यम से सुरक्षा बलों पर हमले की आशंका बनी हुई है. माआवोदियों की ये ताक़त एक बड़ी चिंता का मुद्दा है, इसलिए सुरक्षा बलों को जरा सी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए और हर स्तर पर सतर्क रहते हुए इन पर काबू पाने की कोशिशें जारी रखनी चाहिए.
कंचन लक्ष्मण सिक्योरिटी एनालिस्ट हैं और दिल्ली में रहते हैं. उन्हें आतंकवाद, कट्टरपंथ, वामपंथी उग्रवाद और आंतरिक सुरक्षा जैसे विषयों में विशेषज्ञता हासिल है.
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Kanchan Lakshman is a Delhi-based security analyst. His area of specialisation includes terrorism, radicalisation, Left Wing Extremism & internal security. ...
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