अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में वापसी के बाद से तालिबान की हुकूमत ने एक जटिल और उलझे हुए मंज़र से सामना कराया है. तालिबान अपनी सरकार को इस्लामिक अमीरात कहते हैं, जो शरीयत क़ानून की उनकी अपनी व्याख्या पर आधारित है. तालिबान के शासक अंतरराष्ट्रीय संवादों में ऐसे बुनियादी मानव अधिकारों पर ज़ोर देते हैं, जो इस्लामिक क़ानून की उनकी अपनी समझ पर आधारित है. हालांकि, उनका ये दावा, ज़मीनी हक़ीक़त से कोसों दूर है. तालिबान की हुकूमत को लेकर तमाम तरह की चिंताओं का मूल्यांकन करने की ज़रूरत है. तालिबान के वैधानिकता के दावों के बावजूद उनकी सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों ने तमाम तरह की आशंकाओं को जन्म दिया है, ख़ास तौर से मानव अधिकार और समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने के दावों को लेकर. पिछले दो वर्षों के दौरान तालिबान को सत्ता के अंदरूनी संघर्षों का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा, उनकी हुकूमत ने पिछली सरकार से विरासत में मिले कई अहम संस्थानों को ध्वस्त कर दिया है, जिसका पूरे अफ़ग़ान समाज और विशेष रूप से महिलाओं पर गहरा असर पड़ा है. तालिबान की न्यायिक व्यवस्था, पारंपरिक न्याय प्रणाली के बजाय नैतिकता पर आधारित इंसाफ़ को तरज़ीह देती है और उन्होंने राजस्व वसूली की व्यवस्था को केंद्रीकृत करने की कोशिश की है. इस विश्लेषण का मक़सद तालिबान की हुकूमत के अंदरूनी प्रशासन और बाहरी दुनिया से संवाद की जटिलताओं पर रोशनी डालना है.
तालिबान के असली अधिकारियों ने ये भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि तमाम तरह की पाबंदियां , ख़ास तौर से पढ़ने लिखने को लेकर लगाए गए प्रतिबंध , अस्थाई होंगे.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान हुकूमत से जुड़ी चिंताएं
तालिबान सरकार मुख्य रूप से हुकूमत के मौजूदा ढांचे और विरासत में मिले संस्थानों के दायरे में रहकर चल रही है. लेकिन, वैसे तो तालिबान ने पुराने गणतंत्र की बुनियादी बनावट को बनाए रखा है. लेकिन, महिला मामलों के मंत्रालय और अफ़ग़ानिस्तान के स्वतंत्र मानव अधिकार आयोग जैसे कुछ संस्थानों को ख़त्म कर दिया गया और संसदीय मामलों से जुड़े दफ़्तरों को भी भंग कर दिया गया. मौजूदा प्रशासन ने कार्यवाहक की भूमिका अपनाई है. लेकिन, उन्होंने ये बात साफ़ नहीं की है कि स्थायी सरकार का गठन कब तक होगा. स्थायी सरकार बहाल होने में इस देरी के पीछे तालिबान के वो अंदरूनी तनाव हैं, जो मंत्रिमंडल के गठन के दौरान पैदा हुए थे, जब तालिबान के अलग अलग गुटों ने अच्छे ओहदे हथियाने की कोशिश की थी.
नेपाल में भारतीय मुद्रा की कीमत में अचानक गिरावट के पीछे एक बड़ी वजह ये है कि वहां ये एहसास बढ़ रहा है कि भारत की सरकार एक बार फिर 2016 की तरह नोटबंदी करेगी.
वैसे तो तालिबान के असली अधिकारियों ने ये भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि तमाम तरह की पाबंदियां, ख़ास तौर से पढ़ने लिखने को लेकर लगाए गए प्रतिबंध, अस्थाई होंगे. लेकिन, ज़मीनी हक़ीक़त से पता चलता है कि समाज के विभिन्न तबक़ों के बीच दूरी बनाने, उन्हें हाशिये पर धकेलने और ज़ुल्म ढाने वाली एक संस्थागत व्यवस्था का ढांचा खड़ा करने की रफ़्तार तेज़ हो गई है. तालिबान के हुक्मरान, स्कूलों और विश्वविद्यालयों में लड़कियों की पढ़ाई जारी रखने को लेकर आशंकाएं जताते रहे हैं. उनकी चिंता ये है कि ऐसे क़दम से, ग्रामीण क्षेत्र में उनका मुख्य समर्थक वर्ग तालिबान से दूर हो जाएगा. इसी तरह, इस बात की आशंका भी है कि इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) जैसे उग्रवादी समूह, तालिबान के इस ग्रामीण समर्थक वर्ग का लाभ उठा सकते हैं. ऐसी आशंकाओं को देखते हुए, तालिबान सरकार ने पाप और पुण्य मंत्रालय को फिर से स्थापित किया है, जिसकी ज़िम्मेदारी, नैतिकता से जुड़े मामलों जैसे कि महिलाओं की भूमिका, संगीत पर प्रतिबंध लगाने और ड्रेस कोड लागू करने जैसे क़दमों की निगरानी करना है.
तालिबान की न्यायिक व्यवस्था: नैतिकता पर आधारित इंसाफ़
तालिबान का इंसाफ़ करने के तरीक़े की जड़ें गहराई से, इस्लामिक क़ानून से जुड़े हैं. लेकिन, अफ़ग़ानिस्तान में एक कार्यकारी न्याय व्यवस्था या फिर दंड संहिता लागू होने के सीमित सबूत ही दिखते हैं. इसके बजाय, पाप और पुण्य मंत्रालय की निगरानी में नैतिकता पर आधारित इंसाफ़ करने पर ज़ोर दिया जाता है. इस रणनीति से निजी स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों में काफ़ी कटौती देखने को मिली है. स्थानीय स्तर पर विवादों के निपटारे में तालिबान की भागीदारी पर अफ़ग़ान नागरिकों की तरफ़ से अलग अलग प्रतिक्रिया देखने को मिली है. कुछ लोगों का मानना है कि इससे तुरंत और कुशलता से झगड़ों का निपटारा हो जाता है. वहीं, अन्य लोगों का मानना है कि इस अनूठी इस्लामिक न्याय व्यवस्था से ताक़त का दुरुपयोग होने और मानव अधिकारों के उल्लंघन की आशंकाएं बढ़ जाती हैं.
अपनी हुकूमत के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को दबाने के लिए तालिबान ने हिंसा का सहारा लिया है और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ने वालों, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और बौद्धिक तबक़े को निशाना बनाया है. आंतरिक मंत्रालय के तहत आने वाला खुफ़िया महानिदेशालय (GDI) और पाप को रोकने व पुण्य को बढ़ावा देने वाले मंत्रालय, ज़ुल्म ढाने के सबसे प्रमुख हथियार बनकर उभरे हैं. तालिबान ने विरोध को दबाने के लिए, ग़ैरक़ानूनी हत्याओं, बिना जवाबदेही के नज़रबंदी, लोगों को ग़ायब कर देने, टॉर्चर और दबाव डालकर जुर्म का इक़बाल कराने जैसे हथकंडे अपनाए हैं, ताकि अफ़ग़ानिस्तान पर उनका नियंत्रण बना रहे.
कर प्रणाली का केंद्रीकरण: तालिबान का आर्थिक प्रशासन
जहां तक तालिबान की न्यायिक व्यवस्था और सामान्य प्रशासनिक क़दमों की अंतरराष्ट्रीय समुदाय आलोचना करता रहा है. वहीं, तालिबान कर प्रणाली को दुरुस्त करने और देश की मुद्रा को स्थिर बनाने में कामयाबी को देश चलाने की अपनी क्षमता के सबूत के तौर पर पेश कर रहा है. इस साल की तीसरी तिमाही में अफ़ग़ानिस्तान की मुद्रा अफ़ग़ानी, सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली करेंसी बनकर उभरी है. ब्लूमबर्ग के मुताबिक़, मानवीय आधार पर मदद और तालिबान सरकार द्वारा मुद्रा पर नियंत्रण के लिए उठाए गए कुछ क़दमों ने अफ़ग़ानी को शीर्ष पर पहुंचने में मदद की है. विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले अफ़ग़ानिस्तान इकोनॉमिक मॉनिटर के सबसे ताज़ा संस्करण के मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान के कुछ आर्थिक सूचकांकों में भी प्रगति देखने को मिली है. उल्लेखनीय रूप से इस साल के पहले पांच महीनों के दौरान, पिछले साल इसी समय की तुलना में राजस्व वसूली 8 प्रतिशत बढ़ी है. तालिबान के हुक्मरान इन सकारात्मक सूचकांकों को अपनी सत्ता को वाजिब ठहराने और अफ़ग़ान अर्थव्यवस्था की लड़खड़ाती स्थिति को ख़ारिज करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, इन व्यापक आर्थिक सूचकांकों के सकारात्मक संकेतों के बावजूद , इनके लाभ आम अफ़ग़ान नागरिकों तक नहीं पहुंचे हैं. वसूले गए राजस्व का वितरण किस तरह वितरित किया जा रहा है और किन इलाक़ों को प्राथमिकता दी जा रही है, इसे लेकर चिंताएं बनी हुई हैं और आने वाले समय में भी इनके समाधान की कोई उम्मीद नहीं है.
एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान के साथ मिलकर, एक कारोबारी सम्मेलन की मेज़बानी की थी, ताकि अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की एक योजना विकसित की जा सके.
सीमा के आर-पार व्यापार को केंद्रीकृत करने और पुराने गणराज्य के तहत फलने फूलने वाली संरक्षण व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए तालिबान ने वित्त मंत्रालय के तहत राजस्व वसूली की व्यवस्था को केंद्रीकृत करने पर काफ़ी ज़ोर दिया है. तालिबान ने सड़क के किनारे बनी उन चुंगी चौकियों को ख़त्म कर दिया है, जिन्हें वो अपने उग्रवादी दौर में चलाया करते थे. अब वो सारे व्यापार को सीमा से आधिकारिक आवाजाही मार्गों के ज़रिए आने-जाने पर काम कर रहे हैं. इन क़दमों के पीछे तालिबान सरकार का मक़सद ये सुनिश्चित करना है कि जो राजस्व वसूला जाए, वो सीधे केंद्र सरकार के ख़ज़ाने तक पहुंच जाए. व्यापार व्यवस्था को इस तरह ‘नए केंद्रीकृत रास्ते पर डालना’, तालिबान की पूरे देश की व्यवस्था को अपनी मुट्ठी में करने की कोशिशों का ही एक हिस्सा है.
2021 से ही तालिबान अपने कूटनीतिक प्रयासों के तहत अपनी विदेश नीति के इन आर्थिक तत्वों को रेखांकित करते रहे हैं. उनका ज़ोर क्षेत्रीय व्यापार और आवाजाही पर अधिक रहा है. तालिबान के हुक्मरान अफ़ग़ानिस्तान के कायाकल्प के लिए मूलभूत ढांचे के विकास पर बहुत अधिक ज़ोर देते रहे हैं. हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने चीनी, ब्रिटिश, और तुर्की की कंपनियों के साथ 6.5 अरब डॉलर के खनन के ठेकों के समझौते किए थे. इससे पहले जुलाई में अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच दोहा में हुई मुलाक़ात के दौरान, अमेरिका ने अफ़ग़ान अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने में सहयोग के लिए तालिबान के साथ तकनीकी बातचीत को समर्थन देने की बात कही थी. तालिबान ने दूसरे देशों से आर्थिक संपर्क भी काफ़ी बढ़ाया है. पिछले महीने, एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान के साथ मिलकर, एक कारोबारी सम्मेलन की मेज़बानी की थी, ताकि अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की एक योजना विकसित की जा सके. तालिबान के आर्थिक मामलों के उप-प्रधानमंत्री ने और निवेश आकर्षित करने के लिए अपने क़ानूनों की वकालत ‘निवेशकों के लिए मुफ़ीद’ बताकर की थी.
रूस के कज़ान में मॉस्को फॉर्मेट के सलाह मशविरे में भारत, ईरान, चीन, कज़ाख़िस्तान, किर्गिज़स्तान , पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और रूस के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. अफ़ग़ान सरकार की नुमाइंदगी कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी ने की थी. बातचीत के बाद जारी कज़ान घोषणा, अफ़ग़ानिस्तान के हालात को लेकर अपने शब्दों और भावना के लिहाज़ से पहले जैसी ही थी. भाग लेने वाले देशों ने तालिबान हुकूमत से कहा था कि वो ISKP के उभार पर क़ाबू पाए, अफ़ीम की खेती पर प्रतिबंधों को जारी रखें और इन दोनों मसलों से असरदार तरीक़े से निपटने के लिए इस क्षेत्र के देशों के साथ मिलकर काम करे. सभी देशों ने अफ़ग़ानिस्तान में एक अधिक समावेशी स्थायी सरकार के गठन में देरी को लेकर भी अफ़सोस जताया था. मॉस्को फॉर्मेट के सम्मेलन का ये संस्करण अहम था, क्योंकि ये चीन के काबुल में अपना नया राजदूत नियुक्त करने के बाद पहली बार हुआ था. 2021 के बाद से ही पाकिस्तान, ईरान, चीन और रूस जैसे कई देशों ने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता दिए बग़ैर अफ़ग़ानिस्तान में अपने दूतावास खोल रखे हैं, ताकि तालिबान के हुक्मरानों से सक्रिय रूप से संवाद होता रहे. कुछ मसलों से निपटने को लेकर तालिबान की अक्षमता या अनिच्छा या फिर महिलाओं को उनके अधिकार देने की मांग की अनदेखी करने के बावजूद , कज़ान की बैठक में अफ़ग़ानिस्तान के साथ द्विपक्षीय और क्षेत्रीय स्तर पर आर्थिक संबंधों के विस्तार को लेकर भी बातचीत हुई.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान हुकूमत की पेचीदगियों और चुनौतियों का विश्लेषण करने के दौरान कुछ पहलुओं की बारीक़ी से पड़ताल करने की ज़रूरत है. पहला, एक अधिक समावेशी सरकार का गठन मुख्य समस्या बना हुआ है. अंदरूनी सत्ता संघर्ष से निपटने और सभी तबक़ों की भागीदारी वाली सरकार की स्थापना से घरेलू स्तर पर स्थिरता बढ़ेगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान सरकार की छवि भी सुधरेगी. दूसरा इंसाफ़ करने के तालिबानी तौर तरीक़ों को लेकर चिंताएं बनी रहेंगी, क्योंकि तालिबान नैतिकता पर आधारित इंसाफ़ की अपनी मौजूदा व्यवस्था पर अड़े हुए हैं. आर्थिक रूप से, राजस्व वसूली में बढ़ोत्तरी के बाद संसाधनों और लाभों के समान रूप से वितरण के सवाल अभी भी बने हुए हैं. तालिबान के हुक्मरान इन चिंताओं को किस तरह से दूर करते हैं, ये बात अफ़ग़ान नागरिकों की सामाजिक आर्थिक बेहतरी को प्रभावित करेगी. कूटनीति की बात करें, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय, व्यावहारिक रूप से तालिबान के साथ आतंकवाद से जुडे मसलों और दूसरे क्षेत्रीय मामलों को लेकर बातचीत जारी रखेगा.
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