Published on Jul 14, 2021 Updated 0 Hours ago
भारत की दशकों पुरानी संघीय व्यवस्था (फेडरल सिस्टम) को कोविड-19 महामारी की चुनौती

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में, सरकार की संघीय प्रणालियां अब तक के सबसे बड़े परीक्षण से गुज़र रही हैं. यह परीक्षण है कोविड-19 की महामारी का. यह माना जा रहा है कि संघवाद- जो शासन की अलग-अलग घटक इकाइयों के बीच साझा संप्रभुता और क्षेत्रीयता में विश्वास करता है- बड़े पैमाने पर महामारी के ख़िलाफ़ विफल हो सकता है क्योंकि इस विकराल समस्या से तेज़ी से निपटने के लिए संभवतः केंद्रीकृत प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी. यह पेपर पिछले 18 महीनों में संघीय भारत के अपने अनुभवों की जांच करता है. इस पेपर का मकसद भारत की महामारी की प्रतिक्रिया की प्रकृति और इससे जुड़े अलग-अलग आयामों को उजागर करता है. साथ ही इसके संघीय ढांचे द्वारा पैदा की गई चुनौतियों को देखते हुए इसे किस तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ा है, इसकी पड़ताल करना भी है. पेपर भविष्य के संकटों के लिए सबक की रूपरेखा तैयार करता है.


एट्रिब्यूशन: निरंजन साहू और अंबर कुमार घोष, “द कोविड-19 चैलेंज टू इंडियन फ़ेडरलिज़्म,” ओआरएफ समसामयिक पेपर नंबर 322, जून 2021, ऑब्जर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन.


प्रस्तावना

पिछले डेढ़ साल में कोरोना महामारी ने सभी तरह की राजनीतिक प्रणालियों और संरचनाओं के गुण और दोष को सबके सामने उजागर किया है: लोकतांत्रिक और अधिनायकवादी; एकात्मक और संघीय; और वे सभी व्यवस्थाएं जो इन सभी विशेषताओं का मिला जुला स्वरूप रखती हैं. ये लेख संघीय प्रणाली पर केंद्रित है. ये देखते हुए कि संघीय प्रणाली की सरकार का स्वरूप विकेंद्रीकृत और बिखराव लिए होता है, इसलिए ये चिताएं पूरी तरह से वाजिब थीं कि इस तरह की प्रणाली वाले देश एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी की महामारी को कैसे संभाल सकते हैं, जो बहुत तेज़ी से फैल रही हो. ये चिंता जल्दी ही एक गंभीर समस्या में बदल गई जब महामारी ने एक संघीय प्रणाली वाले देश संयुक्त राज्य अमेरिका की कमज़ोरियों को उजागर करना शुरू कर दिया. अमेरिका ऐसा देश था जिसके स्वास्थ्य ढांचे को काफ़ी उन्नत माना जाता है जो ऐसी किसी आपदा को संभाल सके. विश्लेषकों ने इस बात को लेकर चिंता जताई कि अपने मूल में संघीय राजनीतिक व्यवस्था, महामारी के खिलाफ़ अनुपयोगी सिद्ध हो सकती है ख़ासकर उन स्थितियों में जब समस्या विकराल हो और उसे रोकने के लिए तेज़ और एकात्मक प्रयासों की ज़रूरत होती है.[1]

दरअसल, अमेरिका में राजनीतिक विश्लेषक सरकार से कठोर दोहरी संघीय व्यवस्था को छोड़ने की मांग करने लगे, जहां स्वास्थ्य जैसे विषय पर राज्यों और स्थानीय सरकारों का एकाधिकार है.[2] समीक्षकों ने अमेरिका के शुरुआती अनुभवों के उलट वुहान में चीन के त्वरित प्रयासों को केंद्रीकृत नीतियों के प्रभावी सिद्ध होने के प्रमाण के रूप में देखा.[3]

भारत अपनी बिखरी हुई लोकतांत्रिक संघीय व्यवस्था के साथ अक्सर ही चीन की अधिनायक-वादी केंद्रीकृत व्यवस्था के विपरीत रहा है. संभावी खतरों के विरुद्ध एक ऐसे नेतृत्व की इच्छा, जो स्पष्ट हो, निर्णयात्मक हो और जिसके नीचे काम करने वाली सभी इकाइयां एकीकृत रूप से संगठित हों, ने इन तुलनाओं को जन्म दिया है

भारत अपनी बिखरी हुई लोकतांत्रिक संघीय व्यवस्था के साथ अक्सर ही चीन की अधिनायक-वादी केंद्रीकृत व्यवस्था के विपरीत रहा है. संभावी खतरों के विरुद्ध एक ऐसे नेतृत्व की इच्छा, जो स्पष्ट हो, निर्णयात्मक हो और जिसके नीचे काम करने वाली सभी इकाइयां एकीकृत रूप से संगठित हों, ने इन तुलनाओं को जन्म दिया है.[4] यहां ये बात दोहराने की ज़रूरत है कि ऐतिहासिक रूप से, एक सशस्त्र हमले के विरुद्ध नागरिक सुरक्षा की एक केंद्रीय कमान नीति की आवश्यकता होती है ताकि आबादी सुरक्षित रहे.[5]

इन धारणाओं के मद्देनज़र महामारी के खिलाफ़ रणनीतियों के मामले में भारत की स्थिति क्या है? अपने आकार में बहुत बड़े और संघीय ढांचे वाले देश (जहां शक्ति का बहुस्तरीय ढांचा है, जो प्रत्येक स्तर पर विभिन्न संस्थाओं और अभिकर्ताओं के आदान-प्रदान पर आधारित है) ने महामारी को कैसे संभाला है? ये लेख 2020 में कोरोना महामारी के फैलने के बाद भारत की प्रतिक्रियाओं का मूल्यांकन करता है. ये केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अपनाए गए कुछ महत्त्वपूर्ण कानूनी और संस्थागत तंत्रों पर नज़र डालते हुए संघीय शासन प्रणाली और उसकी विधियों के सामने आने वाली चुनौतियों की पहचान भी करता है.

कोरोना महामारी के विरुद्ध भारत का संघर्ष 

2019 में जब चीन के वुहान शहर में कोरोना संक्रमण के सबसे पहले मामले सामने आए, तब से लेकर अब तक बहुत से देश महामारी के कई चरणों से गुज़र चुके हैं. भारत कोरोना की दूसरी लहर से लड़ रहा है. 30 जनवरी 2020 में आधिकारिक रूप से पहला मामला आने के बाद, विभिन्न स्तरों पर सरकार ने एहतियाती कदम उठाए: एयरपोर्ट पर यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग; कोरोना प्रभावित देशों से आने वाले अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द करना (ख़ासकर चीन, जहां से संक्रमण फैलना शुरू हुआ और इटली, जहां आधिकारिक रूप से संक्रमण की दर और मृत्यु दर दोनों ही पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा थीं); और सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगाना. कुछ राज्यों ने आंशिक रूप से तालाबंदी भी की और अपनी सीमाओं को बंद कर दिया. 24 मार्च 2020 को, केंद्र सरकार ने केवल चार घंटे का नोटिस देते हुए तीन सप्ताह के तालाबंदी की घोषणा की, जिसके कारण देश भर में प्रवासी मजदूरों के सामने संकट की स्थिति पैदा हो गई.[6] केंद्र सरकार ने राज्यों की मांग पर तालाबंदी की अवधि को बढ़ाकर 1 मई 2020 कर दिया. कुछ छूटों के साथ इसकी अवधि को एक बार फिर से आगे बढ़ाकर 17 मई कर दिया गया. 18 मई से लेकर अक्तूबर तक केंद्र सरकार ने एक प्रक्रिया के तहत राज्यों के परामर्श से तालाबंदी को कई चरणों में हटाना शुरू किया.[7]

हालांकि, भारत को पहले एक लाख मामलों तक पहुंचने में दो महीने से अधिक का समय लगा, लेकिन अगले एक लाख मामले महज़ 15 दिनों में ही जुड़ गए. सितंबर की शुरुआत में भारत विश्व का दूसरा सबसे प्रभावित देश बन गया.[8] 2020 के अंत तक देश में कोरोना के प्रति दिन के आंकड़े गिर कर 25000 से कम हो गए, जिसके कारण कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि देश में कोरोना की पहली लहर समाप्त हो गई है.[9] उस अवधि के दौरान, भारत पूरी दुनिया के कुछ उन देशों में शामिल था जहां प्रति दस लाख़ जनसंख्या पर होने वाली मौतों के आंकड़े सबसे कम थे (जहां वैश्विक मृत्यु दर 3.04% थी, वहीं भारत में इसकी दर 1.70% थी).[10] फरवरी 2021 की शुरुआत में नए मामलों की औसत संख्या 11000 से 12000 के बीच थी; अप्रैल 2020 के बाद से आधिकारिक मृत्यु दर न्यूनतम स्तर पर थी.[11] हालांकि, महामारी के कारण कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई, फिर भी भारत ने सख़्त तालाबंदी, स्वास्थ्य सुविधाओं के तीव्र प्रसार और संघीय स्तर पर तालमेल जैसी नीतियों के संयोजन से कोरोना की पहली लहर के प्रभाव को सीमित कर दिया.

इससे पहले कि भारत में दूसरी लहर का अंत हो, विशेषज्ञ सितंबर या अक्तूबर के आस पास कोरोना की संभावित तीसरी लहर आने के बारे में चेतावनी दे रहे हैं, ख़ासकर टीकाकरण की धीमी गति और वायरस के कई नए वेरिएंट इस संभावना की पुष्टि कर रहे हैं.

जनवरी के आखिर में विश्व आर्थिक मंच को संबोधित प्रधानमंत्री का भाषण[12] भी भारत के महामारी पर विजय प्राप्त कर लेने की भावना से लैस था, हालांकि, ये भावना भी अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकी. मार्च की शुरुआत में भारत में कोरोना की दूसरी लहर का प्रसार देखा गया. वायरस के एक नए वेरिएंट (B.1.617)[13] के कारण कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और दिल्ली में संक्रमण की दर काफ़ी तेज़ हो गई. अप्रैल के अंत तक महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली और बेंगलुरु जैसे महानगरों में संक्रमण की तेज़ रफ्त़ार ने व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया. मेडिकल ऑक्सीजन, दवाओं और अस्पताल में बेड के लिए परेशान लोगों की तस्वीरें पूरी दुनिया में सुर्खियां बन गईं;[14] सोशल मीडिया मदद मांगने वाले लोगों और सहायता पहुंचाने के माध्यम के रूप में उभर कर सामने आया.

अप्रैल-मई में प्रति दिन मृत्यु के आधिकारिक आंकड़े 3,500-4,000 के बीच थे. 17 जून आते आते भारत में कोरोना संक्रमण के आधिकारिक आंकड़े दो करोड़ (29,700,313) से ज़्यादा थे और संक्रमण से हुई मौतों की आधिकारिक संख्या 3 लाख (381,931) से ज़्यादा थी. इन आंकड़ों के अनुसार भारत केवल अमेरिका से पीछे था. ठीक उसी समय कुछ स्वास्थ्य विश्लेषकों ने चेताया कि ये आधिकारिक आंकड़ें काफ़ी कम करके बताए गए हैं.[15]

हालांकि, मई के बाद से संक्रमण दर में लगातार गिरावट आई है, लेकिन संक्रमण के दैनिक आंकड़े अभी भी काफ़ी ज़्यादा हैं. पहली लहर के विपरीत, दूसरी लहर के दौरान कोरोना संक्रमण का प्रसार अधिक जनसंख्या वाले राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में भी हो गया है, जिसके कारण इसकी रोकथाम बहुत कठिन है.[16] और इससे पहले कि भारत में दूसरी लहर का अंत हो, विशेषज्ञ सितंबर या अक्तूबर के आस पास कोरोना की संभावित तीसरी लहर आने के बारे में चेतावनी दे रहे हैं, ख़ासकर टीकाकरण की धीमी गति और वायरस के कई नए वेरिएंट इस संभावना की पुष्टि कर रहे हैं.[17]

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान न किसी राष्ट्रव्यापी तालाबंदी की घोषणा की गई और न ही गृह-मंत्रालय ने कड़े दिशा-निर्देश जारी किए. केंद्र सरकार ने निर्णय का भार काफ़ी हद तक राज्य सरकारों पर छोड़ दिया. इसका परिणाम ये हुआ, राज्यों ने अप्रैल और मई में स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन की घोषणा की और अपनी ज़रूरतों के आधार पर महामारी दिशानिर्देश या प्रोटोकॉल का पालन किया. इस लेख के लिखे जाने तक राज्य तालाबंदी में ढिलाई कर रहे थे और देश दूसरी लहर से उबरता हुआ दिखाई दे रहा था. हालांकि, दूसरी लहर का गंभीर प्रभाव अभी भी सबके सामने है.[18]

कोरोना महामारी के विरुद्ध भारत की प्रतिक्रिया: संवैधानिक और कानूनी साधन 

एक बार जब ये स्पष्ट हो गया कि कोरोना महामारी देश भर में गंभीर संकट की स्थिति पैदा कर सकती है, केंद्र एवं राज्य के सामने ये चुनौती पैदा हो गई कि वे प्रतिक्रिया स्वरूप संविधान के किस हिस्से को लागू कर सकते हैं. जबकि कुछ विश्लेषक[19] संविधान के कुछ महत्त्वपूर्ण हिस्सों के इस्तेमाल को लेकर बहस कर रहे थे,[20] इस बात को लेकर भी बहस हो रही थी कि किन अधिकारियों को महामारी के नियंत्रण के लिए महत्त्वपूर्ण फैसले लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं.[21]

संघीय दृष्टिकोण से संविधान की सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्य के बीच शक्तियों के बंटवारे से संबंधित है, जो स्वास्थ्य के मुद्दे पर केंद्र के ऊपर राज्यों को तरजीह़ देती है. संघ सूची की 81वीं प्रविष्टि “अंतर्राज्यीय प्रव्रजन; अंतर्राज्यीय क्वारंटाइन” के लिए केंद्र को विधायी शक्ति प्रदान करती है, वहीं राज्य सूची की प्रविष्टि संख्या (1), (2) और (6) “लोक व्यवस्था”, “पुलिस” और “लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता; अस्पताल और औषधालय” जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर राज्य को विधायी शक्ति प्रदान करती है; और समवर्ती सूची[22] की प्रविष्टि संख्या 23 और 29 के अनुसार “सामाजिक सुरक्षा और बीमा; रोजगार और बेरोजगारी” और “मनुष्यों, जानवरों या पौधों को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों या कीटों के एक राज्य से दूसरे राज्य में विस्तार की रोकथाम” जैसे विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों ही क़ानून बनाने की शक्ति रखते हैं.

संविधान के अनुच्छेद 73 और 162 के अनुसार, केंद्र और राज्य की कार्यकारी शक्तियां “विधायी शक्तियों के साथ साथ उससे कहीं ज़्यादा व्यापक” हैं. इसलिए संवैधानिक रूप से लोक स्वास्थ्य और क़ानून -व्यवस्था का प्रबंधन मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है

संविधान के अनुच्छेद 73 और 162 के अनुसार, केंद्र और राज्य की कार्यकारी शक्तियां “विधायी शक्तियों के साथ साथ उससे कहीं ज़्यादा व्यापक” हैं.[23] इसलिए संवैधानिक रूप से लोक स्वास्थ्य और क़ानून -व्यवस्था का प्रबंधन मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है; वहीं राष्ट्रीय नेतृत्व, प्रमुख संघीय इकाईयों के बीच समन्वय बनाने और राज्यों को वित्तीय एवं अन्य जरूरी सहायता उपलब्ध कराने संबंधी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है.

पिछले साल मार्च में भारत में कोरोना संकट को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने इससे निपटने के लिए दो कानूनी साधनों का प्रयोग किया. केंद्र ने आपदा प्रबंधन क़ानून, 2005 का हवाला[24],[25] देते हुए महामारी को “अधिसूचित आपदा” घोषित करते हुए 24 मार्च 2020 को पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा की.[26] चूंकि सातवीं अनुसूची में “आपदा” शब्द का प्रयोग कहीं नहीं हुआ है, इसलिए केंद्र ने अपनी अवशिष्ट शक्तियों[27] का प्रयोग करते हुए क़ानून को लागू किया और राज्यों को महामारी की स्थिति से निपटने के लिए कई निर्देश जारी किए.

राज्यों ने अपनी ओर से महामारी रोग अधिनियम, 1897[28],[29]  का सहारा लिया, जो उन्हें महामारी जैसी स्थितियों से निपटने की शक्तियां प्रदान करता है. कई राज्य सरकारों ने अपने अधिकार क्षेत्रों में इस क़ानून के ज़रिए राज्य महामारी रोग कोविड-19, 2020 विनियम (स्टेट एपिडेमिक डिसीजेज कोविड-19 2020 रेगुलेशंस)[30] लागू किए, जिसमें व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, कार्यालयों और अन्य सार्वजनिक स्थानों को बंद करने और आवाजाही पर प्रतिबंध शामिल हैं. केंद्र द्वारा किसी दिशा निर्देश जारी करने से पहले, राज्यों ने उल्लंघन-कर्ताओं को सज़ा देने के लिए आईपीसी,1860 की कई धाराओं का प्रयोग किया. हालांकि, ये क़ानून अपर्याप्त सिद्ध हुए. चूंकि ये क़ानून औपनिवेशिक काल के थे या वर्तमान में महामारी जैसी परिस्थितियों के अनुरूप नहीं थे, इसलिए उसकी धाराएं अपर्याप्त सिद्ध हुईं. कोविड-19 जैसी गंभीर चुनौती से निपटने के लिए एक निर्देशित, आधुनिक और व्यापक क़ानून व्यवस्था की आवश्यकता थी, जिसका अस्तित्व ही नहीं था. इसने केंद्र और राज्य सरकारों को संवैधानिक और कानूनी कमियों की भरपाई के लिए अध्यादेशों, और आईपीसी और अन्य प्रावधानों का सहारा लेने के लिए बाध्य किया.[31]

संघीय प्रतिक्रिया के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू

महामारी के विरुद्ध संघीय प्रतिक्रिया कई तरीकों से विकसित हुई है. निम्नलिखित पैराग्राफ़ प्रमुख प्रतिक्रियाओं और उनके आपसी संबंधों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है.

पहली लहर: केंद्र की एकपक्षीयता और राज्यों की स्वायत्तता के बीच

संविधान और मौजूदा क़ानूनों के अनुसार कोरोना महामारी जैसी परिस्थितियों से निपटने की मुख्य ज़िम्मेदारी राज्यों की है. हालांकि, केंद्र ने नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाते हुए महामारी के प्रबंधन में मुख्य भूमिका निभाई, ख़ासकर राष्ट्रीय तालाबंदी की अवधि (24 मार्च से 31 मई 2020) के दौरान. जब महामारी के चलते मानव जीवन और आजीविका पर ख़तरा मंडराने लगा और राष्ट्रीय स्तर पर त्वरित कार्रवाईयों की मांग होने लगी, ऐसे में केंद्र सरकार ने कई ज़िम्मेदारियों का भार अपने ऊपर ले लिया, जो अन्यथा राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आती थीं. केंद्र द्वारा लिए गए कई निर्णयों में से टीके की ख़रीद को बढ़ाना, राज्य एवं सरकारों के लिए दिशानिर्देश जारी करना, उचित मानकों की स्थापना के लिए ज्ञान का सृजन करना और अंतर-राज्यीय बाह्यता का शमन करना शामिल है.[32]

शुरुआत के लिए केंद्र सरकार द्वारा 24 मार्च 2020 को लिया गया राष्ट्रीय तालाबंदी का फैसला एकतरफ़ा था. हालांकि, केंद्र ने महामारी के ख़तरे को लेकर राज्यों से परामर्श लिया था, लेकिन पूरे देश में केवल चार घंटे की नोटिस पर एक जैसे नियमों के साथ तालाबंदी की घोषणा में केवल केंद्र सरकार शामिल थी.[33] केंद्र ने आपदा प्रबंधन क़ानून, 2005 के तहत इस शक्ति का इस्तेमाल किया.[34] फिर भी केंद्र सरकार ने आवाजाही पर प्रतिबंध के चलते होने वाली समस्याओं के समांतर किसी राष्ट्रीय योजना को लागू किए बग़ैर तालाबंदी की घोषणा कर दी.[35] इसके अलावा केंद्र सरकार ने राज्यों को तालाबंदी की अवधि, प्रतिबंध और कंटेनमेंट ज़ोन जैसे मामलों पर आवश्यक दिशा-निर्देश देने और सूचनाएं जारी करने के लिए आपदा प्रबंधन क़ानून का प्रयोग किया.[36],[37] आपदा प्रबंधन क़ानून के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिशानिर्देश जारी करने और पूरे देश में तालाबंदी और संबंधित मानदंडों के क्रिर्यान्वयन की निगरानी करते हुए एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य किया.[38]

महामारी की पहली लहर के दौरान केंद्र सरकार की नीतियों की सबसे प्रमुख आलोचना ये थी कि उसने राज्यों से बिना सलाह लिए पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा कर दी. जिसके कारण प्रवासी मजदूर बिना नौकरी और बुनियादी संसाधनों के बिना शहरों में फंस गए और अपने गांवों की तरफ पैदल ही निकल पड़े. तालाबंदी ने एक ऐसी मानवीय आपदा को जन्म दिया जिसमें कई मजदूरों को हजार किमी की दूरी को पैदल ही तय करना पड़ा. महामारी प्रबंधन के लिए प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार राज्य सरकारें भी प्रवासी समस्या से निपटने के लिए तैयार नहीं थीं.[39]

जैसे-जैसे महामारी के कारण राजकोषीय घाटा बढ़ता गया, और राज्यों द्वारा अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक राजस्व की मांग की जाने लगी, वैसे-वैसे केंद्र का मनमाना रवैया और भी स्पष्ट दिखाई देने लगा. केंद्र ने बिना शर्त राहत अनुदान देने के बजाय राज्यों को सशर्त ऋण देने पर ज़ोर डाला, जबकि राज्यों को राहत अनुदान दिए जाने की ज़रूरत थी. 

इसके अलावा तालाबंदी और कंटेनमेंट ज़ोन को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लिए कड़े और एकतरफा फैसले, जिसका क्रियान्वयन ज़मीनी हकीकत से अनजान रहते हुए किया गया, ने वायरस के प्रसार को रोकने की राज्य सरकारों की क्षमता को काफी हद तक सीमित कर दिया.[40] उदाहरण के लिए केंद्र सरकार की अनुमति के बिना राज्य अपने स्तर पर मेडिकल किट नहीं ख़रीद सकते थे. इसने राज्यों की आवश्यक संसाधनों को जुटाने की क्षमता को प्रभावित किया.[41] कई मौकों पर बिना राज्य सरकारों से परामर्श लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनकी प्रतिक्रिया की निगरानी हेतु राज्यों में पर्यवेक्षकों की टीम को तैनात किया.[42] इसलिए महामारी आने के बाद, खासकर पहली लहर के दौरान, केंद्र ने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन व्यापक रूप से किया: केंद्र सरकार ने तालाबंदी की, केंद्र ने ही शारीरिक दूरी के मानदंडों, और आर्थिक गतिविधियों के विनियमन और वित्तीय पैकेजों के प्रावधान सहित राज्य की प्रतिक्रियाओं की निगरानी का फैसला लिया.[43]

तालाबंदी के दौरान ही केंद्र सरकार ने राज्य की प्रमुख शक्तियों में कटौती करते हुए उसके अधिकार क्षेत्रों को सीमित करने वाले फैसले लिए, जैसे शराब बिक्री पर पाबंदी लगाना, और सार्वजनिक यातायात को बंद (या फिर से चालू करना) करना.[44] इन फैसलों के कारण राज्यों में आक्रोश फैल गया.[45] “केंद्रीकृत संघवाद” का सबसे बड़ा उदाहरण तब सामने आया जब गृह मंत्रालय ने केरल सरकार को उसके रेस्टोरेंट खोलने के फैसले (केरल सरकार ने स्थानीय हालातों के मूल्यांकन के आधार पर ये फैसला किया था) को वापिस लेने के लिए निर्देश जारी किया.[46] अंततः राज्यों की स्वायत्तता की मांग के आगे घुटने टेकते हुए केंद्र ने अपनी शक्तियों को सीमित कर दिया, और इससे ये स्पष्ट हो गया कि कोविड-19 का प्रसार रोकने में केंद्रीकृत नियंत्रण एक बाधा है.[47]

राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्रीकरण से परे, भारत की महामारी के खिलाफ़ शुरुआती नीतियां राजकोषीय केंद्रीकरण की थीं. सीमित संसाधनों पर अपना एकाधिकार रखने वाली केंद्र सरकार के सामने राज्य उसकी दया पर निर्भर थे. असल में भारत की संघीय व्यवस्था टैक्स और उससे जुड़े अधिकार क्षेत्रों के मामले में केंद्र के पक्ष में झुकी हुई है.[48] केंद्र ने महामारी की परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए कुछ वित्तीय साधनों पर अपना आधिपत्य जमा लिया, जबकि राज्यों के दावे वैध थे. सबसे पहले राज्यों को देय वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का भुगतान, करीब 300 बिलियन रूपये, विवाद का विषय बना. जबकि तालाबंदी और अन्य बाधाओं के चलते राज्यों की आर्थिक स्थिति पहले से ही ख़राब थी, केंद्र ने जीएसटी भुगतान को काफ़ी महीनों तक रोके रखा; जिसके कारण राज्यों को कड़ी चेतावनियां जारी करनी पड़ी.[49] दूसरा, जैसे-जैसे महामारी के कारण राजकोषीय घाटा बढ़ता गया, और राज्यों द्वारा अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक राजस्व की मांग की जाने लगी, वैसे-वैसे केंद्र का मनमाना रवैया और भी स्पष्ट दिखाई देने लगा.[50] केंद्र ने बिना शर्त राहत अनुदान देने के बजाय राज्यों को सशर्त ऋण देने पर ज़ोर डाला, जबकि राज्यों को राहत अनुदान दिए जाने की ज़रूरत थी.[51] संसाधनों की कमी और आसन्न खतरों को देखते हुए राज्यों के पास अपनी शक्ति और स्वायत्तता में अस्थाई नुकसान को स्वीकार करने के अतिरिक्त दूसरा कोई रास्ता नहीं था, और इसलिए उसने केंद्र सरकार का बड़े पैमाने पर साथ दिया.[52]

दूसरा चरण: विकेंद्रीकरण का एकतरफा फैसला

जहां महामारी के पहले चरण में संघ की तरफ से केंद्रीकृत और एकतरफ़ा फैसले लिए गए, वहीं दूसरा चरण इसके ठीक विपरीत साबित हुआ. लुईस टिलिन, जो संघवाद पर अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध हैं, कहती हैं: “भारत पहली लहर में अपनी एक तरफा केंद्रीकृत निर्णयन की नीति से दूसरी लहर में पूर्व नीति के अभाव में एक तरफा विकेंद्रीकृत निर्णयन की नीति की ओर मुड़ गया है.”[53] पहली बात, पहले चरण के दौरान केंद्र ने तेज़ी से और निर्णायक रूप से फैसले किए जैसा कि संघीय सरकारों को राष्ट्रीय आपातकाल की परिस्थितियों में करना चाहिए. जबकि कई राज्य सरकारों ने स्थानीय स्तर पर तालाबंदी की और शारीरिक दूरी के प्रोटोकॉल लागू किए, ये केंद्र था जिसने राष्ट्रीय तालाबंदी की घोषणा की, और राज्य के अधिकारियों को वायरस के प्रसार को रोकने के लिए रियल टाइम अलर्ट और दिशानिर्देश और प्रोटोकॉल जारी किए. एक सक्रिय संघीय नेतृत्व राज्यों (और अन्य निर्वाचन क्षेत्रों) के साथ साझेदारी करने, कम समय में आपातकालीन स्वास्थ्य ढांचे को खड़ा करने, मेडिकल उपकरणों और पीपीई किटों का निर्माण करने में सक्षम था.[54] हालांकि, केंद्र सरकार की नीतियों में से अधिकांश को तब बेकार पाया गया जब अधिक संक्रामक दूसरी लहर राज्यों और देश की स्वास्थ्य प्रणालियों पर भारी पड़ने लगी.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों (और बाद में सरकार के अपने वैज्ञानिक सलाहकारों) द्वारा फरवरी 2021 में वायरस के नए और खतरनाक म्यूटेंट के प्रसार[55] की चेतावनी जारी किए जाने के बावजूद केंद्र सरकार और केंद्रीय संस्थान उन चेतावनियों को गंभीरता से लेने में विफल रहे. मार्च की शुरुआत में गृह मंत्रालय ने कहा कि भारत में महामारी ख़त्म हो रही है.[56] स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनियों के बावजूद, अधिकारियों ने कुम्भ मेला जैसे बड़े धार्मिक उत्सव के आयोजन को मंजूरी दी,[57] और केंद्रीय नेतृत्व पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में व्यस्त हो गया, और प्रोटोकॉल और गाइडलाइनों को ताक़ पर रखते हुए चुनावी रैलियां आयोजित की गईं.[58]

केंद्र ने संकट पर ध्यान देना तब शुरू किया जब कई राज्यों में संक्रमण की दर में तेज़ी के कारण स्वास्थ्य व्यवस्थाएं ढहने लगीं, इसके कारण जनता के बीच में डर का माहौल तैयार हुआ, इसमें सरकार का समर्थन करने वाला वर्ग भी शामिल था.[59] प्रतिक्रिया स्वरूप प्रधानमंत्री ने 20 अप्रैल को राष्ट्र को संबोधित करते हुए लोगों से महामारी के अनुरूप व्यवहार करने और अधिकारियों से राहत कार्यों में तेज़ी लाने को कहा.[60] हालांकि तब तक पूरे देश में संक्रमण फैल चुका था और ‘राज्य के ध्वस्त’ होने के आभासी संकेत दिखाई देने लगे थे.[61] ये तब दिखाई दिया जब कई राज्य सरकार ज़रूरी दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर एक-दूसरे से लड़ रहे थे, कुछ ने दूसरों की आपूर्ति को रोक दिया.[62] केंद्र सरकार के लड़खड़ाने और उसकी नीतियों के विफल होने, राज्यों के बीच समन्वय के टूट जाने के बीच सर्वोच्च न्यायालय को राज्यों के बीच संसाधनों की लड़ाई को सुलझाने के लिए आगे आना पड़ा.[63]

संघवाद पर आधारित किसी भी सरकार से गंभीर राष्ट्रीय आपदा के समय यही अपेक्षा की जाएगी कि वो राज्यों का नेतृत्व करे, लेकिन केंद्र सरकार ने बजाय किसी योजना या बीच-बचाव राज्यों को ही ये कहते हुए इस स्थिति के लिए दोषी ठहरा दिया कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और उन्हें महामारी के खिलाफ़ सावधानी बनाए रखना चाहिए था.[64]

केंद्र ने संकट पर ध्यान देना तब शुरू किया जब कई राज्यों में संक्रमण की दर में तेज़ी के कारण स्वास्थ्य व्यवस्थाएं ढहने लगीं, इसके कारण जनता के बीच में डर का माहौल तैयार हुआ, इसमें सरकार का समर्थन करने वाला वर्ग भी शामिल था

केंद्र सरकार राष्ट्रीय तालाबंदी जैसे साहसिक उपायों को अपनाने की इच्छुक नहीं थी (जबकि दूसरी लहर के दौरान समस्या पहले से कहीं ज़्यादा गंभीर हो गई थी), न ही उसने राज्यों को नए वेरियंट को लेकर सचेत किया; इसके अलावा उसने उपचार और संसाधनों के भंडारण को लेकर कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किए. बजाय इसके, उसने राज्यों को स्थानीय उपायों के ज़रिए वायरस का प्रसार रोकने की ज़िम्मेदारी सौंप दी, जबकि पहली लहर के दौरान उन्हें ज़िम्मेदारी बहुत से दबावों के बाद मिली. इसलिए पेंडुलम का डोलन पूर्ण केंद्रीकरण से एक-तरफ़ा विकेंद्रीकरण की तरफ़ होने लगा.

विकेंद्रीकरण का तर्क टीकाकरण नीतियों के दौरान सबसे ज़्यादा देखने को मिला. चूंकि देश टीकों की भारी कमी से जूझ रहा है (जिसका आंशिक कारण ये भी है कि केंद्र सरकार ने 18-44 आयु वर्ग के लोगों बीच टीकाकरण का जल्दबाजी में फ़ैसला लिया), कई राज्य सरकारों ने अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से टीका खरीदने के लिए स्वायत्तता की मांग की. केंद्र सरकार ने इस मांग को स्वीकार कर लिया जबकि विशेषज्ञों ने मांग और आपूर्ति के बीच बेमेल संबंध और टीके के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा को देखते हुए टीकाकरण की इस नीति को अव्यावहारिक पाया.[65] कई राज्यों ने टीकों की खरीद के लिए निविदाएं जारी कीं लेकिन उन्हें बोली लगाने वाले नहीं मिले. इसके अलावा टीकों के दामों में अंतर[66] के कारण एक अराजक स्थिति सामने आई, जो भारत के संघीय ढांचे का विवादास्पद पहलू बन गया, जहां केंद्र और राज्य दोनों ने ही इस भ्रम की स्थिति के लिए एक दूसरे को दोषी ठहराया. केंद्र और राज्य के बीच इस तनाव को दूर करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को सामने आना पड़ा.

ये नोट करना ज़रूरी है कि 2020 में महामारी की शुरुआत से ही, केंद्र सरकार ने भारत में टीकाकरण प्रक्रिया की पूरी ज़िम्मेदारी ली हुई थी; जो कि ठीक ही था. सभी संघीय सरकारों की तरह, केंद्र सरकार के पास कहीं ज़्यादा संसाधन हैं और इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय टीका निर्माताओं से संपर्क करने, परीक्षण करने, मंज़ूरी देने, उन्हें भंडारण और वित्तीय छूट प्रदान करने और उसके बाद टीका खरीदने संबंधी फैसलों के लिए ज़रूरी तकनीकी साधन भी केंद्र सरकार के पास हैं.[67] उसके अनुसार संघीय सरकार ने 2020 में टीकाकरण अभियान चलाते हुए उसने उपयोग के लिए दो टीकों की सुविधा प्रदान की: ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका द्वारा बनाई गई कोविशील्ड वैक्सीन, जिसे भारत में पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने निर्मित किया, और कोवैक्सीन (जिसे भारतीय कंपनी भारत बायोटेक ने निर्मित किया). योजना के अनुसार, केंद्र सरकार ने वैक्सीन निर्माता कंपनियों से वैक्सीन खरीदकर उसे राज्य सरकारों में वितरित किया: जिसे सबसे पहले फ्रंटलाइन पर काम कर रहे कर्मचारियों को दिया जाना था, उसके बाद वृद्धों को और आख़िर में 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगाया जाना था.

हालांकि, विपक्ष शासित राज्य टीका ख़रीद को लेकर अपनी गैर ज़रूरी मांगों के दोष से बच नहीं सकते और कुछ राज्यों ने महामारी के प्रबंधन की अपनी असफ़लता को ढकने के लिए केंद्र की टीका संबंधी ढिलाई का राजनीतिकरण किया,[68] इसके बावजूद सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की ही है.[69] टीकाकरण को लेकर केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच कड़वाहट तब जाकर ख़त्म हुई जब जून की शुरुआत में केंद्र ने टीकाकरण अभियान से अपने नियंत्रण का फैसला उलट दिया.[70] हालांकि, टीकाकरण को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तनातनी की स्थिति ख़त्म हो गई लेकिन देश ने टीका खरीद और उसके वितरण के अपने शुरुआती लाभ को खो दिया, जबकि यही महामारी को ख़त्म करने का इकलौता रास्ता है.

विकेंद्रीकरण के बीच स्थानीय सरकारों की भूमिका

महामारी को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के आपसी झगड़ों के बीच सबसे ज़्यादा उपेक्षित तृतीय श्रेणी के संस्थान नायक बनकर उभरे: पंचायत (ग्राम निकाय) और शहरी स्थानीय निकाय. केंद्र ने इन तृतीय-स्तरीय संस्थानों की भागीदारी पर ज़ोर दिया है, लेकिन विभिन्न राज्यों ने महामारी के प्रबंधन में इन संस्थानों को पर्याप्त शक्तियां और ज़िम्मेदारियां सौंपी हैं.[71] उदाहरण के लिए, उड़ीसा सरकार ने प्रवासी मज़दूरों की आवाजाही को नियंत्रित करने और शारीरिक दूरी के नियम को लागू करने हेतु सरपंच को ज़िलाधिकारी के बराबर शक्तियां दे दीं.[72] इसी तरह केरल सरकार[73] ने स्थानीय निकायों को कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करने, स्वास्थ्य शिविर लगाने, स्वच्छता अभियान चलाने और स्वास्थ्य संबंधी प्रोटोकॉल के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने की ज़िम्मेदारी देते हुए उनके अधिकार क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि की. ग्रामीण इलाकों में स्थानीय सरकारों ने “कृषि गतिविधियों को बनाए रखने के लिए श्रम की आपूर्ति करने और गांवों में आवश्यक  खाद्य संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने” में मदद की.”[74]

पहली लहर के दौरान आगरा (उत्तर प्रदेश), भीलवाड़ा (राजस्थान), और पथानामथिट्टा (केरल) जैसी जगहों पर जिला-स्तर पर की गई कार्रवाईयों ने वायरस के प्रसार को नियंत्रित किया.[75] ठीक इसी तरह महाराष्ट्र जैसे राज्यों, जहां कोरोना काफ़ी तेज़ गति से फैल रहा था, में नगर पालिकाओं ने महामारी के अलग-अलग चरणों में आपदा प्रबंधन के कई नए तरीके अपनाए. खासकर बीएमसी (बृहन् मुंबई नगर निगम) और मुंबई पुलिस ने मिलकर धारावी[76] की गंदी बस्तियों में क्वारंटाइन प्रक्रिया की निगरानी की और जागरूकता अभियान चलाया.[77] दूसरे चरण में भी बीएमसी ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए नई पद्धतियों का प्रयोग किया और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की जांच की, इसके अलावा उसने वार्ड स्तर पर कंट्रोल रूम बनाकर मेडिकल सुविधाओं का विस्तार किया.[78] दूसरे शब्दों में कहें तो विकेंद्रीकृत नीतियों का फल स्थानीय स्तर पर देखने को मिला, जहां सरकारों ने इन स्वशासित निकायों पर भरोसा किया और उन्हें शक्तियां प्रदान करीं.

भारत के समकालीन इतिहास में कोरोना महामारी के अलावा शायद ही किसी दूसरी आपदा ने देश की संघीय व्यवस्था को इस तरह से परखा है. ख़ासकर, दूसरे चरण के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य संकटों से निपटने (जिसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत प्रयासों की आवश्यकता होती है।) की भारत की संघीय क्षमता और उसकी प्रकृति को लेकर कुछ ज़रूरी सवाल उठते हैं. निम्नलिखित बिंदु कुछ ज़रूरी सबकों का उल्लेख करते हैं, जिन्हें भारत में एक मजबूत संघीय व्यवस्था के निर्माण में मददगार सिद्ध होना चाहिए.

1) महामारी ने संघीय व्यवस्था की कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है (ख़ासकर राष्ट्रीय संकट के दौरान केंद्र और राज्यों के बीच साझेदारी और एक समन्वित प्रयास से जुड़ी चुनौतियां) और मौजूदा संवैधानिक, कानूनी और प्रशासनिक ढांचा सदी में एक बार आने वाली इस गंभीर मानवीय आपदा से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है. कहने का अर्थ ये नहीं है कि ये अनुभव अकेले भारत के हैं; वास्तव में, कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया के संघीय व्यवस्थाओं की सीमाओं से परिचय कराया है. संघीय देशों जैसे अमेरिका, ब्राजील, जर्मनी और कनाडा महामारी की शुरूआत में लड़खड़ा गए. कुछ देशों, ख़ासकर अमेरिका और जर्मनी, ने ये पाया कि उनकी विकेंद्रित और बिखरी हुई नीतियां संक्रमण की दर को नियंत्रित करने में असफल रहीं. हालांकि, ज़्यादातर देशों ने अपना सबक जल्दी ही सीखते हुए महामारी के अगले चरणों को बेहतर ढंग से नियंत्रित किया.[79] भारत की बात करें तो उसने पहली लहर के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं एवं संसाधनों में विस्तार करके और मृत्यु दर को कम रखते हुए महामारी का बेहतर प्रबंधन किया, लेकिन दूसरे चरण में बुरी तरह असफल रहा. केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने लापरवाही बरतते हुए महामारी को अनियंत्रित होने का मौका दिया और स्वास्थ्य ढांचा लड़खड़ा गया, और संघवाद का एक ख़राब उदाहरण पेश किया.

भारत की बात करें तो उसने पहली लहर के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं एवं संसाधनों में विस्तार करके और मृत्यु दर को कम रखते हुए महामारी का बेहतर प्रबंधन किया, लेकिन दूसरे चरण में बुरी तरह असफल रहा. केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने लापरवाही बरतते हुए महामारी को अनियंत्रित होने का मौका दिया और स्वास्थ्य ढांचा लड़खड़ा गया, और संघवाद का एक ख़राब उदाहरण पेश किया.

2) कोविड-19 ने उन संस्थाओं की महती भूमिका को उजागर किया है जो विभिन्न अभिकर्ताओं के बीच सहयोग को सुनिश्चित करते हैं, जैसा कि अन्य संघीय देशों में देखा गया.[80] गृह मंत्रालय, जो आपदा प्रबंधन क़ानून, 2005, के तहत पूरे देश में महामारी के प्रबंधन के लिए नोडल निकाय था, विपक्ष शासित राज्यों के लिए अवरोध बनकर सामने आया; जिसके कारण अविश्वास बढ़ा और गतिरोध पैदा हुआ. उदाहरण के लिए राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद (नेशनल एक्जीक्यूटिव काउंसिल), जो 2020 में लागू किए गए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क़ानून के अनुसार शीर्ष स्तर निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है, की नवंबर और मार्च के बीच एक भी बैठक नहीं हुई और महामारी के आने वाली लहरों के खतरों को देखते हुए उसके प्रति कोई तैयारी, संसाधनों का जुटाव नहीं किया गया. ये तब हुआ जब गृह मंत्री, जो एनईसी की अध्यक्षता करते हैं, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार चुनावी प्रचार में व्यस्त थे.[81] ये अंतर-सरकारी मंचों जैसे अंतर्राज्यीय परिषदों और अन्य संघीय संस्थाओं के महत्त्व को रेखांकित करता है, जो बेहतर संवाद और साझेदारी को सुनिश्चित करते हुए राज्य और केंद्र के मध्य तनाव को कम कर सकती थीं.[82] ऐसी संस्थाएं केवल तभी प्रभावी ढंग से काम कर सकती हैं, जब राज्य और केंद्र नेतृत्व के बीच आपसी विश्वास और राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, जो दल गत राजनीति से ऊपर उठ कर काम करें.

3) कई मायनों में महामारी ने मौजूदा संवैधानिक और कानूनी ढांचों की अपर्यप्तता को उजागर किया है, जो किसी महामारी या राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल के प्रबंधन में सक्षम नहीं हैं. इसके अलावा महामारी के संदर्भ में आपदा प्रबंधन क़ानून, 2005 और महामारी रोग अधिनियम, 1897 की अस्पष्टता भी चिंता का विषय है.[83] हालांकि स्वास्थ्य आपातकाल को लेकर दोनों क़ानूनों में कोई प्रावधान नहीं हैं, केंद्र और राज्य दोनों ने ही या तो इन क़ानूनों की व्यापक व्याख्या करते हुए या विशिष्ट उपायों का सहारा लिया, जैसे फ्रंटलाइन पर काम रहे कर्मचारियों के लिए अध्यादेश जारी करना या शारीरिक-दूरी के नियमों को लागू करना. केंद्र,[84] उत्तर प्रदेश,[85] पंजाब,[86] और आंध्र प्रदेश[87] जैसे कुछ राज्यों के साथ मिलकर औपनिवेशिक युग के राजद्रोह क़ानून और इसी तरह के अन्य कड़े क़ानूनों को लागू करने जैसे कठोर और चरम उपायों का सहारा लिया. ऐसे में संघीय सरकार को एक व्यापक राष्ट्रीय क़ानून का मसौदा तैयार करने की ज़रूरत है, जिससे भविष्य में कोरोना जैसी महामारियों और अन्य राष्ट्रीय आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपट जा सके.

निष्कर्ष

महामारी के बिना ही भारत को अपनी कमज़ोर और अल्प वित्तपोषित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, राज्यों की सीमित क्षमताओं के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.

विशेषज्ञों ने पिछले साल की शुरुआत में ही चेतावनियां देनी शुरू कर दीं, एक 135 करोड़ जनसंख्या वाले देश में संक्रमण दर,[88] मृत्यु के अनुमानों ने सुर्खियां बटोरीं. ये परिस्थितियां असाधारण प्रयासों की मांग करती थीं, और प्रथम चरण के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों ने कई स्तरों पर चुनौतियों का सामना किया. पहला प्रयास राज्यों की तरफ से किया गया, केंद्र सरकार ने नीतियों की दिशा तय करने, जरूरी संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और तकनीकी सहायता प्रदान करने में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाई. बावजूद इसके कि केंद्र सरकार ने कई एक-तरफा और केंद्रीकृत फ़ैसले किए, कोविड-19 के प्रबंधन में सहकारी संघवाद के सिद्धांत निहित थे. ये एक ऐसे देश के लिए एक उपलब्धि है, जहां अधिकार क्षेत्रों को लेकर केंद्र-राज्य के बीच कड़वाहट का लंबा इतिहास रहा है. उदाहरण के लिए अमेरिका और कनाडा में महामारी की शुरुआत में, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच गंभीर लड़ाईयां हुईं.[89]

हालांकि, महामारी के प्रथम चरण पर मिश्रित सफ़लता हासिल हुई, वहीं द्वितीय चरण के दौरान भारत का संघीय ढांचा लड़खड़ा गया. पहली लहर के दौरान कोरोना पर विजय प्राप्त कर लेने की भावना, दूसरी लहर के दौरान संक्रमण बढ़ाने में मिलीभगत और उसे लेकर गंभीरता का अभाव, संघीय नेतृत्व का लापता होना और केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और विश्वास की भावना का लोप होना: इन सभी कारकों ने मिलकर महामारी के कुप्रबंध में अपना योगदान दिया, जिसके चलते देश की व्यवस्थाएं कुछ समय के लिए पूरी तरह से ध्वस्त हो गईं. कोरोना महामारी के दूसरे चरण के दौरान भारत के अनुभवों से सब से बड़ा सबक यही मिलता है कि किसी गंभीर राष्ट्रीय आपदा के दौरान राज्यों और केंद्र के बीच स्वस्थ सहयोग की ज़रूरत होती है. संघीय सरकार को नेतृत्वकर्ता की अपनी भूमिका के लिए तैयार रहना चाहिए.


Endnotes

[1] Naoh Feldman, “U.S. Federalism isn’t Great at Handling Pandemics”,  Bloomberg, March 19, 2020.

[2] See Jennifer Selin, “How the Constitution’s federalist framework is being tested by COVID-19”, Brookings, June 8, 2020.

See Ross. K. Baker, “Donald Trump’s laissez faire federalism is as toxic as COVID-19”, USA Today, July 14, 2020.

[3] Richard Perez-Pena, Virus hits Europe harder than China. Is that the price of an open society? New York Times, March 19, 2020.

[4]  Fabian Hattke and Helge Martin, Collective Action during Covid-19: A case of Germany’s Fragmented authority, Administrative Theory and Praxis, Routledge, 2020.

[5] David Alexander, “Disaster and emergency planning for preparedness, response, and recovery”. In Oxford research encyclopedia of natural hazard science, Oxford: Oxford University Press, 2015

[6]  Jeffrey Gettleman and Kai Schultz, “Modi Orders 3-Week Total Lockdown for All 1.3 Billion Indians”, The New York Times, March 24, 2020.

[7] For an excellent summary of the chronology of lockdowns, see Jay Shah and Pradip Chouhan, Lockdown and Unlock for Covid-19 and associated residential mobility in India, International Journal of Infectious Disease, Vol.104, March 2021.

[8] Alison Rourke and Helen Sullivan, “Global report: India overtakes Brazil as second most Covid-infected country”, The Guardian, September 7, 2020.

[9] R. Prasad, Coronavirus: Is the first wave coming to an end? The Hindu, December 26, 2020.

[10] India’s Covid-19 cases per million population among lowest in the world: Health Ministry”, Times of India, September 8, 2020.

[11] Masks, distancing, demography: The mystery behind India’s declining Covid cases”, Times of India, February 6, 2021.

[12] See  “PM Modi at Davos: Despite doomsday predictions, India defeated Covid and helped 150 other countries”, India Today, January 28, 2021.

[13] Covid variant accelerating India’s ‘explosive’ pandemic outbreak: WHO Top scientist”, Mint, May 9, 2021.

[14] Report by Vikas Pandey, “Covid-19 in India: Patients struggle at home as hospitals choke”, BBC, 26 April, 2021.

[15] Jeffrey Gentleman, Samir Yasir, Hari Kumar and Suhashin Raj, “As Covid devastates India, Deaths go Unaccounted,” The New York Times, April 24, 2021.

[16]  Malancha Chakrabarty and Shoba Suri, “Winning the Covid-19 battle in Rural India: A Blueprint for Action”, ORF Special Report, June 16, 2021.

[17] Third wave could hit India by October: experts”, The Hindu, 18 June 2021.

[18] Paran Balakrishan, “The Second wave’s devastating blow”, The Businessline, May 12, 2021.

[19] Sanjoy Ghose and Rhishabh Jetley, “Does the Constitution Allow Modi to Declare a National Emergency Over COVID-19?”, The Wire, March 23, 2020.

[20] Kevin James, “Covid-19 and the need for Clear Centre-State Roles“,  Vidhi Centre for Legal Policy, April 3, 2020.

[21] There are 3 types of emergency provisions available in the constitution of India, viz national emergency (Article 352), financial emergency (Article 360) and state emergency (Article 256). But these provisions  specifically deal with health emergency or epidemic as in the case of COVID-19.

[22] The Constitution mandates that in case of a deadlock between the Centre’s law and State law on any subject present in the Concurrent List, the Centre’s law will prevail.

[23] Pankhuri Agarwal, “COVID-19 and dwindling Indian federalism”, Economic and Political Weekly, Volume 55, Issue No26-27, June 2020, https://www.epw.in/journal/2020/26-27/commentary/covid-19-and-dwindling-indian-federalism.html

[24] National Disaster Management Act, 2005

[25] The DMA under Section 3 constitutes the National Disaster Management Authority (NDMA) with the Prime Minister as ex officio chairperson and its nominees. Interestingly the powers and functions of the NDMA as provided under Section 6 are related with “laying down the policies, plans and guidelines for disaster management” along with the power under Section 6 (2)(i) to “take such other measures for the prevention of disaster, or the mitigation, or preparedness and capacity building for dealing with the threatening disaster situation or disaster as it may consider necessary.”

[26] Ameya Bokil and Nikita Sonavane, “Why relying on Criminal Law should not be the answer to the pandemic?”, The Wire, April 11, 2020. https://thewire.in/law/criminal-law-coronavirus-pandemic

[27]  The subjects which are not mentioned in any of the three lists in Schedule VII are called residuary subjects and the Centre has the power to legislate on those subjects.

[28]  Epidemic Disease Act, 1897

[29] The Epidemic Diseases Act (EDA), 1897 was framed “to provide for the better prevention of the spread of Dangerous Epidemic Diseases.” The EDA under Section 2 provides ample powers to the state governments “to take special measures and prescribe regulations as to dangerous epidemic disease,” which include “the inspection of persons … the segregation of persons suspected by the inspecting officer of being infected with any such disease.”

[30] See Nolan Pinto, “Karnataka govt invokes sections of Epidemic Diseases Act in form of Covid-19 rules, 2020”,  India Today, March 11, 2020, https://www.indiatoday.in/india/story/karnataka-govt-invokes-sections-of-epidemic-diseases-act-in-form-of-covid-19-rules-2020-1654567-2020-03-11

See Government of Meghalaya Notification, No. Health 68/ 2020/ 56, Dated Shillong 28 May 2020, https://meghealth.gov.in/covid/Notification%20-%204th%20Amendment%20of%20MED%20COVID%20Regulations%202020.pdf

See ” Jharkhand State Epidemic Diseases (COVID-19) Regulations, 2020”, Avantis, May 1. 2020, https://www.avantis.co.in/legalupdates/article/8749/jharkhand-state-epidemic-diseases-covid-19-regulations-2020/

[31] Devanshu Anand, “Is Indian Legal Frameworks capable of handling Corona Virus Pandemic?”, ipleaders, April 13, 2020. https://blog.ipleaders.in/indian-legal-framework-capable-handling-coronavirus-pandemic/

[32] Srinivas Chokkakula, “India’s response to Covid-19 reflects the power, problems, potential of federalism”, The Indian Express, September 18, 2020, https://indianexpress.com/article/opinion/columns/coronavirus-covid-19-pandemic-and-federalism-6600329/

[33] According to a recent investigation by BBC, Prime Minister Narendra Modi did not consult any key ministers or states while taking the decision of imposing strictest nation-wide lockdown on 24 March, 2020. “India Covid-19: PM Modi ‘didn’t consult’ before lockdown”, BBC,, March 30, 2012. https://www.bbc.com/news/world-asia-india-56561095. Also  R. Ramachandran, “COVID-19: A chain of blunders by the Central government”, Frontline, September 22, 2020. https://frontline.thehindu.com/the-nation/chain-of-blunders/article32525553.ece

[34]  Under Section 11 of the DM Act, 2005, the national plan to deal with crisis has to be prepared by the Centre “in consultation with state governments and other expert bodies in the field of disaster management”.

[35] Sarthak Sethi, “Covid-19 and Indian Federalism: Through the Lens of the Disaster Management Act, 2005 and Fiscal Federalism”, Indian Law Journal. https://www.indialawjournal.org/covid-19-and-indian-federalism.php

[36] GoI (2020a): Order No 33-4/2020-NAM-I, Ministry of Home Affairs (Disaster Management Division), 14 March, 2020.  https://www.ndmindia.nic.in/images/gallery/Items%20and%20Norms%20of%20as…

[37] The notifications issued by the Central Government on March 24 (the first lockdown) and April 15 (extended lockdown) are in the nature of rag-bag executive orders covering fields strictly falling within the domain of the State (7th Schedule of the Constitution). This includes the State government offices (Entry 41), hospitals (Entry 6), shops and markets (Entry 28), industries (Entry 24), agriculture (Entry 14), alcohol (Entry 8) etc.

[38] Sarthak Sethi, “Covid-19 and Indian Federalism: Through the Lens of the Disaster Management Act, 2005 and Fiscal Federalism”, India Law Journalhttps://www.indialawjournal.org/covid-19-and-indian-federalism.php

[39] Jeffrey Gettleman, Suhasini Raj, Sameer Yasir and Karan Deep Singh, “The virus trains: How unplanned lockdown chaos spread Covid-19 across India”, Business Standard, December 16, 2020, https://www.business-standard.com/article/current-affairs/the-virus-trains-how-unplanned-lockdown-chaos-spread-covid-19-across-india-120121600103_1.html

[40]  Anshu Sharma and Jude Sannith, “Lockdown relaxation: States to decide, but within Home Ministry guidelines”, CNBCTV18, 25 April, 2020, https://www.cnbctv18.com/economy/lockdown-relaxation-states-to-decide-but-within-home-ministry-guidelines-5773661.htm

[41] Amrita Madhukalya, “Covid-19: States protest against Centre’s directive on PPE procurement”, hindustantimes, April 10, 2020, https://www.hindustantimes.com/india-news/covid-19-states-protest-against-centre-s-directive-on-ppe-procurement/story-C2HLEkLKvPL9gMYGA494LP.html

[42] Leroy Leo, “Mamata writes to PM Modi, protests central govt team’s visit to West Bengal”, Mint, April 21, 2020, https://www.livemint.com/news/india/mamata-writes-to-pm-modi-protests-central-govt-team-s-visit-to-west-bengal-11587405367250.html

[43] Anirudh Burman, “How Covid-19 is changing Indian federalism”, Carnegie India,July 28, 2020, How COVID-19 is Changing Indian Federalism”, Carnegie India, July 28, https://carnegieindia.org/2020/07/28/how-covid-19-is-changing-indian-federalism-pub-82382

[44] “Lockdown 4.0: Kejriwal wants Modi to allow public transport, pvt offices”, Business Standard, May 16, 2020, https://www.business-standard.com/article/current-affairs/lockdown-4-0-kejriwal-wants-modi-to-allow-public-transport-pvt-offices-120051600191_1.html

[45] Anubhav Khamroi, “Federalism and Covid-19: Analysing the National Importance of Justification of the Centre”, Law School Policy Review, August 8, 2020,https://lawschoolpolicyreview.com/2020/08/08/federalism-and-covid-19-analysing-the-national-importance-justification-of-the-centre/

[46] Niranjan Sahoo, “Covid-19 and Cooperative federalism in India: So Far, so good”, ORF Expert Speak, April 24, 2020. https://www.orfonline.org/expert-speak/covid19-cooperative-federalism-india-so-far-good-65429/

[47] While the COVID-19 pandemic with its pan-India nature witnessed a centralised and swiftly coordinated response led by the federal government with their usual arbitrariness during the lockdown phases, such a response was difficult to sustain in subsequent phases. This is because the very nature and dynamics of the pandemic impacting the entire country required a decentralised response where the states have to be the key drivers. Even during the period of lockdown, the Centre understood the limitations of a hyper centralised response and was quick to recognise the vital roles of the states and local governments in putting an effective response to the crisis. The state governments’ rightful discretion regarding deciding lockdown measures and necessary guidelines as well as containment zoning[47] was given back to them with the Centre deciding to play the advisory role in many decisions critical to manage the crisis. The effective models of combatting the crisis in states like Delhi and Kerala at different phases of the pandemic was duly appreciated by the Centre.  See report by The New Indian Express, May 18, 2020, https://www.newindianexpress.com/nation/2020/may/17/centre-gives-charge-to-states-on-lockdown-40-heres-whats-allowed-whats-not-2144568.html

[48] Ambar Kumar Ghosh, “The Paradox of ‘Centralised Federalism’: An Analysis of the Challenges to India’s Federal Design”ORF Occassional Paper, September 2020. https://www.orfonline.org/research/the-paradox-of-centralised-federalism/

[49] Nikunj Ohri, “Centre Still Owes States Over Rs 30,000 Crore In GST Dues For FY20”, Bloomberg Quint, April 11, 2020, https://www.bloombergquint.com/gst/centre-still-owes-states-over-rs-30000-crore-in-gst-dues-for-fy20

[50] AnujaGyan Varma &Nidheesh M.K.Gyan VarmaNidheesh M.K., “States displeased with Centre over conditions on borrowing”, Livemint, May 18, 2020, https://www.livemint.com/news/india/states-displeased-with-centre-over-conditions-on-borrowing-11589743259710.html

[51]  “Covid-19 Economic Package: Government Allows Increased State Borrowings With Conditions Attached”, Bloomberg Quint, May 17, 2021, https://www.bloombergquint.com/economy-finance/covid-19-economic-package-government-allows-increased-state-borrowings-with-conditions-attached

[52] Niranjan Sahoo, “COVID-19 and cooperative federalism in India: So far, so good”, ORF Expert Speak, April 30, 2020, https://www.orfonline.org/expert-speak/covid19-cooperative-federalism-india-so-far-good-65429/

[53] Louise Tillin, “Centre and States need to Coordinate, not Compete”, CASI, June 2, 2021,https://casi.sas.upenn.edu/iit/louisetillin

[54] Swweta Punj, “How India became a PPE Manufacturing hub”, India Today, February 21, 2021, https://www.indiatoday.in/india-today-insight/story/how-india-became-a-ppe-manufacturing-hub-1771584-2021-02-21

[55] See Report by Reuters, “ Scientists says Indian government ignored warnings amidst Conoravirus surge”, Reuters, May 1, 2021. https://www.reuters.com/world/asia-pacific/exclusive-scientists-say-india-government-ignored-warnings-amid-coronavirus-2021-05-01/

[56] “We are in the endgame of Covid-19 pandemic in India: Health Minister Harsh Vardhan”, India Today, March 7, 2021. https://www.indiatoday.in/coronavirus-outbreak/story/we-are-in-the-endgame-of-covid-19-pandemic-in-india-vardhan-1776697-2021-03-07

[57] See Hassan M  Kamal, “Kumbh Mela and election rallies: How two super spreader events have contributed to India’s massive second wave of COVID-19 cases”,

Firstpost, April 22, 2021.  https://www.firstpost.com/india/kumbh-mela-and-election-rallies-how-two-super-spreader-events-have-contributed-to-indias-massive-second-wave-of-covid-19-cases-9539551.html

[58] Soutik Biswas, “Covid-19: How India failed to prevent a deadly second wave”, BBC, April 19, 2021. https://www.bbc.com/news/world-asia-india-56771766

[59] See“Worry Within BJP, RSS Over Covid Mismanagement, Electoral Impact: Sources”NDTV, May 10, 2021, https://www.ndtv.com/india-news/coronavirus-worry-within-bjp-rss-over-covid-handling-electoral-impact-sources-2438545

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