Published on Mar 27, 2021 Updated 0 Hours ago

एक पूरी तरह से क्रियाशील सीबीडीसी को अबतक दुनिया में कहीं भी अमल में नहीं लाया गया है. आंशिक तौर पर इसकी वजह तकनीक को लेकर आ रही दिक्कतें हैं.

सेंट्रल बैंक का डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) और इसका आर्थिक प्रभाव

भुगतान का परिदृश्य तेज़ी से बदल रहा है. हाल के वर्षों में डिजिटल मनी से जुड़े कई विचारों ने नकदी से दूरी बनाने में मदद की है. वैसे इससे जुड़ी कुछ व्यवस्थाएं तो पहले से ही प्रचलन में रही हैं. स्वाभाविक रूप से महामारी के मौजूदा दौर में ऑनलाइन शॉपिंग में बढ़ोतरी हुई जिससे डिजिटल करेंसी के इस्तेमाल को और बढ़ावा मिला है. ऐसे में एक तकनीकी क्रांति की प्रक्रिया जारी है.

ब्लॉकचेन के अभ्युदय के साथ ही क्रिप्टोकरेंसी के विस्तार और मोबाइल पेमेंट सिस्टम ने एक ही वक़्त में उत्साह के साथ-साथ संदेह को भी पैदा किया है. इलेक्ट्रॉनिक मनी में मौजूदा व्यवस्था को सिर के बल पलट देने की क्षमता है. इसको सहारा देने वाली डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर्स (डीएलटी) की व्यवस्था ने सेंट्रल बैंकों और निजी वित्तीय संस्थाओं का समान रूप से ध्यान आकृष्ट किया है. जहां कुछ लोग डीएलटी के विकेंद्रीकृत स्वभाव और पारदर्शिता की वजह से इसकी तारीफ़ कर रहे हैं वहीं दूसरा पक्ष इसे बैंकिंग व्यवस्था से परे काम करने वाले कुछ आदर्शवादियों द्वारा गढ़ा गया फ़ीचर बताकर खारिज़ करा रहा है.

इलेक्ट्रॉनिक मनी में मौजूदा व्यवस्था को सिर के बल पलट देने की क्षमता है. इसको सहारा देने वाली डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर्स (डीएलटी) की व्यवस्था ने सेंट्रल बैंकों और निजी वित्तीय संस्थाओं का समान रूप से ध्यान आकृष्ट किया है.

डिजिटल करेंसी किस ओर जा रही है?

वर्चुअल कैश का स्वभाव बुनियादी रूप से अंतरराष्ट्रीय है. इसी वजह से इसे एक दोधारी तलवार की तरह देखा जाता है. इसमें अपार संभावनाएं मौजूद हैं. इसके ज़रिए अबतक व्यापार और निवेश के जो अवसर अज्ञात या अनछुए थे, उन्हें हासिल कर कार्यक्षमता से जुड़े लाभ अर्जित किए जा सकते हैं. डिजिटल माध्यमों तक पहुंच की आसानी, तकनीक की मज़बूती और लचीलेपन की वजह से मौद्रिक और वित्तीय लेनदेन को बढ़ावा दिया जा सकता है. डिजिटल माध्यमों से नीति निर्माण के क्षेत्र में भी व्यापक संभावनाओं के द्वार खुलते हैं. हालांकि इनसे जुड़े ख़तरे और जोख़िम भी कुछ कम नहीं हैं. हो सकता है कि इनसे जुड़ी कुछ चिंताएं बेवक़्त या यूं ही ज़ाहिर की जा रही हों. लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि दुनिया भर की सरकारें फाइनेंसियल डेटा सिक्योरिटी, कर चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग, मुद्रा-आपूर्ति और विनिमय दरों में अव्यवस्था की आशंकाओं जैसे मामलों से दो-चार होती रही हैं.

केंद्रीय बैंकों के लिए एक मुद्दा ख़ास तौर से परेशानी पैदा करने वाला है. दबेछिपे ढंग से ही सही इस बात की समझ बनी है कि मौद्रिक नीति पर नियंत्रण का पूरी तरह से त्याग करना कोई समझदारी भरा विकल्प नहीं है. लिहाजा अपने अधिकार-क्षेत्र की सुरक्षा और ख़ुद को अलग किए जाने से की प्रवृत्ति को चरम सीमा तक पहुंचने से रोकने के लिए केंद्रीय बैंक डिजिटल पेमेंट से जुड़ा अपना ख़ुद का नेटवर्क खड़ा करना चाहते हैं. इस सिलसिले में वो आधिकारिक रूप से एक सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी या सीबीडीसी जारी करने की योजना रखते हैं. सामान्य प्रयोजन वाले सीबीडीसी का अनूठापन उसके वैधानिक करेंसी होने के तथ्य में छिपा है. अगर इस दिशा में आगे बढ़ा जाता है तो पेमेंट मार्केट में विविधता और नवाचार लाने में मदद मिल सकती है.

.सामान्य प्रयोजन वाले सीबीडीसी का अनूठापन उसके वैधानिक करेंसी होने के तथ्य में छिपा है. अगर इस दिशा में आगे बढ़ा जाता है तो पेमेंट मार्केट में विविधता और नवाचार लाने में मदद मिल सकती है.

इस व्यवस्था को पूरी तरह से सुरक्षित मोल वाले वर्चुअल स्टोर के रूप में डिज़ाइन किया गया है. ऐसी व्यवस्था सार्वभौमिक, एक तय दर पर नकदी में आसानी से परिवर्तित की जाने वाली और पूर्व-निर्धारित नीतियों और मानकों पर आधारित होगी. इसके साथ-साथ इसे स्थानीय मुद्रा में नामित भी किया जाना है, जो सेंट्रल बैंक की बैलेंस शीट में ब्याज़ के रूप में भी जुड़ेगा.  इस पृष्ठभूमि में सीबीडीसी की खुदरा और थोक, दोनों तरह की संभावनाओं पर चर्चाएं चल रही हैं. खुदरा रूप में इसका इस्तेमाल सीधे तौर पर बचतकर्ताओं द्वारा किया जा सकेगा जबकि थोक सीबीडीसी अनन्य रूप से वाणिज्यिक कर्ज़दाताओं के लिए होगी, हालांकि इन्हें केंद्रीय बैंकों के निर्देशानुसार ही संचालित किया जाएगा.

सीबीडीसी के पीछे की प्रेरणा

एक पूरी तरह से क्रियाशील सीबीडीसी को अबतक दुनिया में कहीं भी अमल में नहीं लाया गया है. आंशिक तौर पर इसकी वजह तकनीक को लेकर आ रही दिक्कतें हैं. लिहाजा अनुभवजन्य आंकड़ों के अभाव के चलते इस तरह के संक्रमण के पीछे की असली लागत का पता लगाना बेहद मुश्किल है. ऐसी परिस्थितियों में मौद्रिक नीति के प्रभाव को मापना दूसरी बड़ी चुनौती है. स्वाभाविक तौर पर इन अनिश्चितताओं के साए में सीबीडीसी जारी किए जाने को लेकर आधिकारिक तौर पर अबतक मिश्रित विचार ही सामने आ रहे हैं. वैसे इसके बावजूद बताया जाता है कि दुनिया भर के 80 फ़ीसदी केंद्रीय बैंक सटीक सीबीडीसी की रूपरेखा तय करने के लिए शोध और अनुसंधान का विकल्प अपना रहे हैं. कुछ समय पहले इसको लेकर केंद्रीय बैंकों में थोड़ी हिचक थी लेकिन इस विचार से जैसे-जैसे उनका परिचय बढ़ता जा रहा है तो हालात बदलने लगे हैं. बैंक ऑफ़ इंटरनेशनल सैटलमेंट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर के सेंट्रल बैंकर्स आगे चलकर सीबीडीसी के प्रभावी होने को लेकर धीरे-धीरे और अधिक आशावादी होते जा रहे हैं.

हालांकि, सच्चाई यही है कि अगर निजी डिजिटल करेंसी को समूचे वित्तीय तंत्र पर दबदबा दिखाने का मौका दिया जाता है तो इस बात की काफ़ी संभावना है कि आगे चलकर ये वैधानिक नकदी मुद्रा का स्थान भी ले सकते हैं. टेंसेंट और गूगल द्वारा डिजिटल माध्यमों में पेश की गई प्रतिस्पर्धा बेहद तगड़ी है और ऐसे कई किरदार विभिन्न प्लैटफ़ॉर्मों के बीच परस्पर संबद्धता का समर्थन करने के विचार को नापसंद करते रहे हैं. कालांतर में इन फ़र्मों का आकार बड़ा हो जाने पर वो अपनी बाज़ार शक्ति के इस्तेमाल से अपने प्रतिस्पर्धियों के लिए रुकावटें खड़ी कर ख़ुद ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. ऐसी  परिस्थिति को आम तौर पर उपभोक्ताओं के हितों के ख़िलाफ़ समझा जाता है.

सच्चाई यही है कि अगर निजी डिजिटल करेंसी को समूचे वित्तीय तंत्र पर दबदबा दिखाने का मौका दिया जाता है तो इस बात की काफ़ी संभावना है कि आगे चलकर ये वैधानिक नकदी मुद्रा का स्थान भी ले सकते हैं. 

सेंट्रल बैंक और सरकारें इन घटनाक्रमों पर पैनी नज़र बनाए हुए हैं. इस संदर्भ में सीबीडीसी पर अमल करने की उनकी इच्छा समझ में भी आती है. हालांकि केंद्रीय बैंकों के लिए विफलताओं और अचानक काम  ठप होने जैसी आशंकाओं की रोकथाम करने के साथ साथ सबसे पहले अपने तंत्र की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना ज़रूरी है, ताकि धीरे-धीरे नकदी से दूर निकलने की प्रक्रिया में मदद मिल सके. ऐसा नहीं होने पर लोगों का विश्वास नही जाग सकता. चीन और नीदरलैंड्स जैसे देशों ने सीमित तौर पर ही सही पर डिजिटल व्यवस्था का प्रयोग शुरू कर दिया है. स्वीडन के भी अपने ई-क्रोना के ज़रिए इसे अपनाने की संभावना है. माना जा रहा है कि अमेरिकी फ़ेडरल रिज़र्व द्वारा डिजिटल ग्रीनबैक के रूप में सिक्का जारी किया जाने वाला है. यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) भी इसको लेकर उत्साहित है.

दुनिया भर के केंद्रीय बैंक धीरे-धीरे क्रिप्टोकरेंसी और निजी डिजिटल पेमेंट सिस्टम्स से प्राप्त अनुभवों से सबक लेते दिख रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं कि वो तकनीक द्वारा हासिल लचीलेपन और कार्यक्षमता से जुड़ी प्राप्तियों का लाभ उठाना चाहते हैं. ‘परमिशंड’ व्यवस्था में पूरी तरह से विकेंद्रीकृत तंत्र से छुटकारा मिलने की उम्मीद है लेकिन इसके बावजूद इस नई व्यवस्था में विकेंद्रीकृत तंत्र के कुछ फ़ायदों को शामिल किया जाएगा. तकनीकी मोर्चे पर केंद्रीय बैंकों का मुख्य ज़ोर लेन-देन की लागत को कम करने और सीबीडीसी प्लैटफ़ॉर्म को और अधिक प्रोग्राम करने योग्य बनाने पर रहा है. ख़ासतौर से डच सेंट्रल बैंक (डीएनबी) ने क्रिप्टोकरेंसी के उत्साही समर्थकों द्वारा पसंद की जाने वाली गुमनामी की ज़रूरतों को अपनाना शुरू कर दिया है. लेकिन बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या सीबीडीसी अर्थव्यस्था में यथोचित मूल्यवर्धन कर सकेंगे या नहीं.

अवसर और चुनौतियां

उत्तरदायित्व की बात करें तो हमें कुछ खट्टे-मीठे अनुभवों को ध्यान में रखना होता है. केंद्रीय बैंक इस व्यवस्था में अपनी मौद्रिक प्रोत्साहन के कार्य को बेहतर ढंग से लक्षित कर सकते हैं क्योंकि इसके ज़रिए आर्थिक संकट के समय व्यक्तिगत लाभार्थियों और कमज़ोर वर्गों की पहचान आसानी से की जा सकती है. इतना ही नहीं वो निर्दिष्ट उद्देश्यों से खाते के टॉप-अप तय करने में भी सक्षम हो सकेंगे. हालांकि इतने सारे फ़ीचर जोड़ने से जटिलताएं आ सकती हैं और पहुंच की आसानी पर कुप्रभाव पड़ सकता है. इससे मुद्रा के झटपट विनिमय किए जाने संबंधी गुण पर बुरा असर पड़ सकता है. इसके साथ-साथ केंद्रीय बैंकों को इतने गहन अधिकार मिलने से निजता को लेकर भी चिंताएं पैदा हो सकती हैं. ख़ासतौर से एकाधिकारवादी सरकारें इसका इस्तेमाल कर हर तरह के लेनदेन की खोजख़बर रख सकती हैं और जनता पर अपना और अधिक नियंत्रण बना सकती हैं.

बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या सीबीडीसी अर्थव्यस्था में यथोचित मूल्यवर्धन कर सकेंगे या नहीं.

मौद्रिक नीति पर भी इसका प्रभाव पड़ना तय है. विकसित अर्थव्यवस्थाओं में डिजिटल तंत्र को सीधे तौर पर उसी हिसाब से प्रोग्राम कर नकारात्मक ब्याज़ दरों को अमल में लाना आसान हो सकता है. इसके तहत ये मानकर चला जाता है कि अर्थव्यवस्था भौतिक रूप से नकदी लेनदेन से मुक्त हो गई है, अन्यथा बचतकर्ताओं में भौतिक रूप से नकदी की जमाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ सकती है. यहां इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि ब्याज़ की नकारात्मक दरें किसी भी मुद्रा में लोगों का भरोसा कम कर सकती हैं और ऐसे में सोने या ऐसी ही दूसरी परिसंपत्तियों की ओर लोगों का ध्यान जा सकता है.

यहां एक और चिंता ये है कि अगर आम जनता को अपनी जमा पूंजी को सीबीडीसी खाते में बदलने की मंज़ूरी मिल जाती है तो वाणिज्यिक बैंक अपने लिए कोष इकट्ठा करने के प्राथमिक स्रोत से ही वंचित हो जाएंगे. बैंकिंग तंत्र से मांग जमाओं की तादाद घटने पर बैंकों को दूसरे महंगे विकल्पों जैसे होलसेल फ़ंडिंग पर निर्भर रहना होगा. इसके साथ-साथ केंद्रीय बैंकों को संकट के समय वित्तीय मध्यवर्तियों की जोख़िम भरी भूमिका निभानी होगी क्योंकि उस समय तमाम फ़ंड के उनके खाते की ओर जाने की ही संभावना रहेगी. फंड जारी करने और निकासी की सीमा तय किए जाने से इनमें से कुछ ख़तरों को कम किया जा सकता है लेकिन सारी समस्याओं का इससे अंत संभव नहीं.

निष्कर्ष

जहां तक इलेक्ट्रॉनिक मनी की अंतरराष्ट्रीयता का सवाल है तो देशों के न्याय क्षेत्र और विशाल साइबरस्पेस के बीच मौद्रिक नियंत्रण के मसले पर टकराव छिड़ सकता है. चरम तौर पर पारंपरिक नकदी मुद्राओं के मुक़ाबले डिजिटल मनी के ज़्यादा मुक्त रूप से देशों की सरहदों के आर-पार प्रवाहित होने की क्षमता के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अस्थिरता पैदा हो सकती है. लिहाजा इन परिस्थितियों में मुद्रा के इस्तेमाल से जुड़े गूढ़ नियम तैयार करने और साइबरस्पेस पर और अधिक नियंत्रण पाने के लिए समानांतर ढांचा तैयार करने का विचार लुभावना प्रतीत होता है. वैसे तो कुछ तरीके के नियंत्रण अवश्यंभावी हैं लेकिन  अंतरराष्ट्रीय वित्त बिरादरी के डिजिटल नौकरशाही के विचार को लेकर सशंकित बने रहने की संभावना है.

यहां एक और चिंता ये है कि अगर आम जनता को अपनी जमा पूंजी को सीबीडीसी खाते में बदलने की मंज़ूरी मिल जाती है तो वाणिज्यिक बैंक अपने लिए कोष इकट्ठा करने के प्राथमिक स्रोत से ही वंचित हो जाएंगे

ऐसे प्लैटफ़ॉर्म की मेज़बानी करने वाला व्यापक साइबरस्पेस पारदर्शिता के अभाव, सुरक्षा से जुड़े ख़तरों और कपटपूर्ण गतिविधियों की आशंकाओं को लेकर हमेशा से बदनाम रहा है. ख़ासकर सरकारी व्यवस्थाओं में तकनीक के ठप हो जाने की घटनाएं आम हैं. हालांकि इन अप्रिय चुनौतियों के बावजूद डिजिटल तंत्र कल्याणकारी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली अपार संभावनाओं के द्वार खोलती है. हर नए विचार की तरह ही सीबीडीसी भी जोख़िमों से परे नहीं है. डिजिटल कैश की जांच-पड़ताल करती रहनी पड़ेगी और इस दौरान इनमें लगातार  सुधार लाते रहने की ज़रूरत पड़ेगी. इनके ज़रिए व्यवस्थाओं में हासिल होने वाले लचीलेपन को केंद्रीय बैंक निश्चित तौर पर पसंद करेंगे, हालांकि उन्हें इस रास्ते पर काफ़ी सोच समझकर कदम बढ़ाना होगा. वैसे आख़िरी तौर पर इस्तेमाल करने वाले की पसंद और प्राथमिकताएं ही व्यापक अर्थव्यवस्था पर सीबीडीसी के प्रभाव को तय करने वाला प्रमुख कारक सिद्ध होगा. बहरहाल, तकनीकी मोर्चे पर सबसे पहले सीबीडीसी को खड़ा करने और इनतक पहुंच सुगम बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा.

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