Published on Aug 02, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत की डीकार्बनाइज़ेशन योजनाएं हरित ऊर्जा उत्पन्न करने की उसकी क्षमता पर निर्भर हैं. तब तक, सामान्य समझ के अनुसार ऊर्जा परिवर्तन का रास्ता 2070 तक सबसे अच्छा रहेगा या सबसे ख़राब स्थिति में, तदर्थ रहेगा.

कार्बन शुल्क तकनीकों के बीच न्यूनीकरण व्यय को तर्कसंगत बना सकता है.

नेट ज़ीरो (net zero- ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इतना कम करना कि वह शून्य के जितना नज़दीक हो सके, उतना हो जाए) लक्ष्य के लिए अलग-अलग समय क्षितिज (time horizon- जिसे planning horizon भी कहा जाता का अर्थ वह समय सीमा है जिसके बाद किसी प्रक्रिया का मूल्यांकन किया जाएगा या उम्मीद की जाती है कि वह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी) का अर्थ यह है कि कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम स्तर पर लाने की कीमत सबके लिए समान (universal price) नहीं हैं. भारत समेत दुनिया भर में डीकार्बनाइज़ेशन (Decarbonization: कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती) योजनाओं का विकास हो रहा है. सबसे पहले वाहनों को इलेक्ट्रिफाई (बिजली से चलने में सक्षम बनाना) करने की योजना आई, हालांकि तब तक विद्युत आपूर्ति 0.999 विश्वसनीयता के अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची भी नहीं थी. अगली योजना के तहत 2030 तक विद्युत ऊर्जा आपूर्ति का 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन या एनएफ़एफ़ (जल विद्युत, परमाणु, सौर, पवन, और जैव पदार्थ-biomass) से पाने का लक्ष्य रखा गया है. इस सुखद परिणाम को पाने के लिए साल के अंत तक 65 प्रतिशत से अधिक विद्युत उत्पादन हरित ऊर्जा से किया जाना चाहिए (सीईए 2023).

अगली योजना के तहत 2030 तक विद्युत ऊर्जा आपूर्ति का 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन या एनएफ़एफ़ (जल विद्युत, परमाणु, सौर, पवन, और जैव पदार्थ-biomass) से पाने का लक्ष्य रखा गया है. इस सुखद परिणाम को पाने के लिए साल के अंत तक 65 प्रतिशत से अधिक विद्युत उत्पादन हरित ऊर्जा से किया जाना चाहिए

ये दोनों लक्ष्य एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) केवल तभी कार्बन शून्य बनते हैं और वायु प्रदूषण को कम करते हैं जब उन्हें हरित ऊर्जा से चार्ज किया जाता है. हरित ऊर्जा से चार्ज किए गए ईवी का दूसरा फ़ायदा यह है कि यह पेट्रोलियम ईंधन के आयात को कम करता है— एक आत्मनिर्भर प्रणाली. कहीं अधिक सुरक्षित और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति के साथ ही यह विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारतीय रुपये पर दबाव को कम करता है. जब तक कि भारी निर्यात की पीठ पर सवार होकर भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं पा लेता है तब तक इस महत्वपूर्ण विचार पर ध्यान दिया जाना चाहिए. क्योंकि अब तक हम उस स्थिति में नहीं पहुंचे हैं.

ज़मीनी हक़ीक़त की पड़ताल

ऊर्जा और बिजली दोनों के ही उत्पादन के लिए गैर-जीवाश्म ऊर्जा (एनएफ़एफ़) का तय लक्ष्य अब भी काफ़ी महत्वाकांक्षी है क्योंकि 2030 आने में सिर्फ़ सात साल बचे हैं. 2030 तक 322 गीगावाट (वार्षिक 46 गीगावाट) अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता की आवश्यकता है. इसमें से 88 प्रतिशत (283 गीगावाट) सोलर पीवी और पवन ऊर्जा, 226 गीगावाट और 57 गीगावाट, से बनाए जाने का लक्ष्य है. यह क्षमता बढ़ाने के जो संकेत बीते कुछ समय से मिल रहे हैं वह उत्साहवर्धक नहीं हैं.

सौर और पवन ऊर्जा का क्षमता निर्माण उम्मीदों से कम है

अच्छी खबर यह है कि 2017 से 2022 तक जो 85 गीगावाट की विद्युत निर्माण क्षमता जोड़ी गई थी, उसमें से दो-तिहाई ग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा की और केवल एक-तिहाई जीवाश्म ईंधन की थी. (राष्ट्रीय बिजली योजना मई 2023). इनमें से सौर ऊर्जा में 42 गीगावाट और पवन ऊर्जा में 8 गीगावाट क्षमता जुड़ी, जो कुल मिलाकर 50 गीगावाट या औसतन 10 गीगावाट प्रतिवर्ष रही. वित्तीय वर्ष 2022-23 में, 15 गीगावाट नई ग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता तैयार हुई. यह पिछले वर्षों की तुलना में तेज़ी से वृद्धि है लेकिन इसके बावजूद अब भी 2030 तक 283 गीगावाट क्षमता के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर साल 40.4 गीगावाट प्रतिवर्ष विद्युत क्षमता का निर्माण और किया जाना चाहिए.

अपने पैर पर कुल्हाड़ी

2020 तक सौर ऊर्जा उत्पादन की लागत को कृत्रिम रूप से बढ़ा दिया गया था (आयातित सोलर पीवी सेल और मॉड्यूल पर सीमा शुल्क बढ़ाकर). जीवाश्म ईंधन पर आधारित उत्पादन के विपरीत, ग़ैर-जीवाश्म उत्पादन में उपकरणों की कीमत (पूंजी लागत) ऊर्जा उत्पादन के खर्चों का प्रमुख हिस्सा है. ग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा उत्पादन के उपकरणों पर भारी, और चुनकर आयात कर लगाने से खेल में सब बराबरी पर आ गए हैं, जो नहीं होना चाहिए था, यह भारी मात्रा में कार्बन-उत्सर्जन करने वाले जीवाश्म ईंधन के पक्ष में गया है. इसके साथ ही ऋण वित्तपोषण (debt financing) की भारी मांग, ज़रूरत के समय आजकल प्रचलित ब्याज दरें भी ऊंची हैं. भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने बेंचमार्क पॉलिसी रेट (रेपो रेट) को फरवरी 2022 के 4.00 प्रतिशत से अप्रैल 2022 में 6.50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया- एक साल से भी कम समय में 2.50 प्रतिशत बढ़ोतरी, जिसका अर्थ यह हुआ कि अगर बैंक का ऋण देने का मार्जिन न बदले तो उधार की लागत में 60 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो जाएगी. हालांकि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना भी ज़़रूरी है लेकिन इसका भारी पूंजी लागत वाली तकनीकों, जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा, पर भी सुन्न कर देने जैसा असर होता है.

राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) डिस्कॉम्स द्वारा राज्य के अंदर ही महंगी बिजली खरीदने से उनकी लागत बढ़ने पर आंखें मूंद लेते हैं जबकि द्विपक्षीय विनिमय या पावर एक्सचेंज विनिमय के माध्यम से सस्ती बिजली हासिल की जा सकती है.

व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट – आरपीओ पर समय नष्ट करना

विद्युत मंत्रालय गैर-जीवाश्म उत्पादन के पूंजीगत उपकरणों पर बढ़े हुए आयात शुल्क के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए कदम उठा रहा है, जिसमें ग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा परियोजनाओं को अंतरराज्यीय पारेषण शुल्क (Inter State transmission charges) से छूट देने और नामित इकाइयों पर कार्बन क्रेडिट खरीदने के लिए बाध्य करने, ठीक अक्षय ऊर्जा खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligation- RPO. इस नियम के तहत सभी नामित विद्युत आपूर्ति कंपनियों को अपनी बिजली खरीद का एक निश्चित प्रतिशत अक्षय ऊर्जा स्रोतों से लेना बाध्यकारी होता है) की तरह. दुर्भाग्य से पीआरओ योजना सरकार के स्वामित्व वाली संस्थाओं, जैसे कि डिस्कॉमों में लागू होने में भी ढिलाई ही नज़र आ रही है, जिन पर बाध्यता है कि उन्हें या तो हरित ऊर्जा खरीदनी है या हरित ऊर्जा उत्पादकों को जारी हुए क्रेडिट खरीदने हैं. वित्तीय संकट झेल रहे डिस्कॉम आम तौर पर राज्य सरकारों के स्वामित्व वाले ऊर्जा उत्पादकों से सस्ती बिजली खरीदना पसंद करते हैं, जो जीवाश्म ईंधन का प्रयोग विद्युत उत्पादन करते हैं. राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) डिस्कॉम्स द्वारा राज्य के अंदर ही महंगी बिजली खरीदने से उनकी लागत बढ़ने पर आंखें मूंद लेते हैं जबकि द्विपक्षीय विनिमय या पावर एक्सचेंज विनिमय के माध्यम से सस्ती बिजली हासिल की जा सकती है. अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि क्या कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना बाज़ार आधारित प्रीमियम (market-based premium- किसी निवेश पर मिलने वाले औसत रिटर्न से अतिरिक्त रिटर्न) को सुनिश्चित कर स्वच्छ ऊर्जा के लिए अधिक प्रभावी साबित हो सकती है.

बड़ा हमेशा ख़ूबसूरत नहीं होता है

ग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा उत्पादन मुख्यतः बड़े प्रोजेक्टों से हो रहा है – कई सोलर पार्कों में. प्रधानमंत्री कृषि उत्थान एवं सुरक्षा महाभियान (कुसुम) और रूफ़ टॉप सोलर प्लांट जैसी विकेंद्रीकृत सौर योजनाएं को लागू करने में आने वाली बाधाएं दूर नहीं हो पा रही हैं. नीचे दी गई तालिका में सरकार की प्रमुख योजना प्रधानमंत्री किसान उत्थान एवं सुरक्षा महाभियान की धीमी प्रगति को दिखाया गया है. यह योजना अप्रैल 2019 में शुरू की गई थी. हो सकता है कि 2020-2021 में कोविड महामारी के चलते लगे प्रतिबंधों की वजह से इसकी शुरुआती प्रगति पर असर हुआ हो.

इस नवाचारी (innovative) योजना को चलाने वाली ताकत है “मूल्य में वृद्धि” (value stack), जिसमें सिंचाई के लिए पहले ही से भूजल की कमी वाली ज़मीन से पानी निकालने के लिए जीवाश्म ईंधन से सौर ऊर्जा में बदलाव करने पर किसान को दोहरे लाभ मिलते हैं. यदि पंप पहल से ही बिजली से चलते हैं तो उसके प्रोत्साहन फ़ीड इन टैरिफ (FiT- एक प्रोत्साहन नीति है जिसके तहत अक्षय ऊर्जा के लघु उत्पादकों से बाज़ार दरों से अधिक पर बिजली खरीदी जाती है) के रूप में एक प्रोत्साहन दर निर्धारित की जाती है, जिसे संबंधित एसईआरसी तय करता है, उस दर पर डिस्कॉम वह ऊर्जा खरीदते हैं जिसे पानी का इस्तेमाल कम करके या पंप चलाने की अवधि घटाकर बचाया गया है.

इस नवाचारी (innovative) योजना को चलाने वाली ताकत है “मूल्य में वृद्धि” (value stack), जिसमें सिंचाई के लिए पहले ही से भूजल की कमी वाली ज़मीन से पानी निकालने के लिए जीवाश्म ईंधन से सौर ऊर्जा में बदलाव करने पर किसान को दोहरे लाभ मिलते हैं.

नीचे दी गई टेबल-1 में इस योजना, जो मूल रूप से 2022 तक थी लेकिन इसे 2026 तक बढ़ा दिया गया है, के तहत उपलब्ध चार विकल्पों की सूची है. (विकल्प बी और सी) में आकर्षक सब्सिडी पैकेज मिलते हैं. इनकी निर्धारित लागत का 30 प्रतिशत (विशेष राज्यों में 50 प्रतिशत) तक केंद्र सरकार और 30 प्रतिशत राज्य सरकार देती है और शेष भाग ऋण वित्तीय पैकेज के आता है. इससे प्रोजेक्ट को लगाने की लागत का अधिकतम 10 प्रतिशत ही लाभार्थी को देना होता है. इस योजना का उद्देश्य विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा से, सिर्फ़ किसानों के द्वारा ही 38 गीगावाट विद्युत उत्पादन करना है. यह 2030 तक सौर ऊर्जा से हासिल की जाने वाली 226 गीगावाट सौर ऊर्जा के लक्ष्य का 17 प्रतिशत है.

टेबल 1

31 मार्च, 2026 के लिए विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा उत्पादन (प्रधानमंत्री कुसुम) के लक्ष्य

  यूनिट लक्ष्य स्वीकृत स्थापित उपलब्धि  
        (मार्च, 2023) स्वीकृत  
अवयव अ गीगावाट 10 4.9 0.1 49%

1%

अवयव ब मिलियन में 2 0.96 0.23 48% 12%
अवयव स-1 मिलियन में 1.5 0.14 0.0015 9% 0%
अवयव स-2 मिलियन में 2.4 2.4 0 100% 0%

स्रोतः https://pmkusum.mnre.gov.in/landing.html

अवयव अ किसान समूहों या डिस्कॉमों द्वारा 2 मेगावाट तक की सोलर इकाइयों की स्थापना की सुविधा देता है, जो ग्रिड से जुड़े पंप सेट को सौर ऊर्जा चालित पंप बदलती हैं. 49 फ़ीसदी की दर पर योजनाओं का स्वीकृत प्रतिशत तो ऊंचा है लेकिन लागू करने में यह पिछड़ रहा है.

अवयव ब का लक्ष्य अब तक ग्रिड के बाहर और जीवाश्म ईंधन का उपयोग करते हुए चल रहे स्वतंत्र किसानों के 7.5 एचपी तक के पंपों को स्वतंत्र रूप से सौर ऊर्जा चालित पंप में बदलना है. इसमें किसान के लिेए प्रोत्साहन का विषय बाज़ार की कीमत पर डीज़ल को खरीदने की लागत बचाना है क्योंकि किसानों को मिलने वाली बिजली, बहुत कम दर पर या निशुल्क है. इसमें भी स्वीकृति 48 प्रतिशत तक ऊंची है और लगाने की दर 12 प्रतिशत, चारों अवयवों में सबसे अच्छी है.

भाग स-1 का उद्देश्य स्वतंत्र किसानों के इलेक्ट्रिक पंप सेट को सौर ऊर्जा चालित पंप में बदलना है, जो मौजूदा मोटर की दोगुनी क्षमता वाले होते हैं और जो अतिरिक्त बिजली बनाते हैं जिसे ग्रिड को बेच दिया जाता है. इसमें अनुमोदन और कार्यान्वयन दोनों ही असंतोषजनक हैं. किसान को पहले ही मुफ्त बिजली की सुविधा मिल रही होती है. बिजली बेचकर अतिरिक्त कमाई करने के प्रोत्साहन की तुलना अनौपचारिक तरीके से बाज़ार में पानी बेचने से मिलने वाले फ़ायदे से की जानी होगी. भाग स-2 के तहत राज्यों को कृषि फ़ीडर्स को सौर ऊर्जा से चलने वाले में बदलने की सुविधा मिलती है. कृषि फ़ीडर्स को अलग करने के लिए विशिष्ट वित्तीय संस्थानों जैसे नाबार्ड, पीएफ़सी, आरईसी या विद्युत मंत्रालय के पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) के तहत सहायता मिलती है. एक अक्षय ऊर्जा सेवा कंपनी का 25 सालों के लिए प्रबंधन में साझेदार बनना भी संभव है. इस योजना के तहत आवेदनों के अनुमोदन तो लक्ष्य का 100 प्रतिशत हो चुका है, लेकिन स्थापित कोई भी नहीं हुआ.

लघु सौर ऊर्जा का लक्ष्य को पाने के लिए संघर्ष

2021-22 तक 40 गीगावाट सौर रूफ़ टॉप क्षमता के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ़ 5.87 गीगावाट की ग्रिड कनेक्टेड क्षमता स्थापित हो पाई है (एमएनआरई वार्षिक रिपोर्ट 2022-23). इसकी सबसे बड़ी बाधा यह है कि खर्च को लेकर सजग, ऊर्जा बचाने वाले उपभोक्ता ग्रिड से मिलने वाली मुफ़्त बिजली (अलग-अलग शर्तों वाली उदार योजनाओं के ज़रिये) का आनंद उठाते हैं और उनके लिए सौर ऊर्जा में बदलाव करने के लिए कोई नकद प्रोत्साहन नहीं है. धनवान ग्राहक छत के अधिकार का विभिन्न वैकल्पिक कामों के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिनमें छत पर बागवानी के लिए खुली जगह रखना शामिल है. इस योजना को बेचने वाले विक्रेता आमतौर पर कई लोगों के अधिकार वाली या साझा छत के अधिकार को स्वीकार नहीं करते क्योंकि उसमें अनुबंध संबंधी जटिलताएं सामने आती हैं.

इस बीच, सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने भी अब स्वतंत्र ग्रिड-स्केल सौर प्रोजेक्ट्स से बिजली उत्पादन करने वाले विद्युत उत्पादकों से ऊर्जा खरीदने की सुविधा देना शुरू कर दिया है. इससे पैसे की कमी से जूझ रहे डिस्कॉमों के साथ व्यवसायिक संबंध बनाने के खतरे से बचा जा सकता है. राष्ट्रीय थर्मल पावर कॉर्पोरेशन भी इसी तरह की मध्यस्थता की सेवाएं प्रदान करता है.

सकारात्मक बात यह है कि वाहन इलेक्ट्रीकरण तेजी से आगे बढ़ रहा है और 2030 तक इसके ग्राहकों का एक नया वर्ग (संभवतः 30 मिलियन की बड़ी संख्या) रिटेल विद्युत आपूर्ति बाज़ार में प्रवेश करेगा, जो अपने इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए लागत के साथ ही दरों का भुगतान करने की क्षमता रखेगा.

खुदरा विद्युत आपूर्ति में निष्फलताओं के मूल में है विकृत दर ढांचा, जो आपूर्ति में प्रतिस्पर्धा को बाधित करता है, गुणवत्ता सुधारों को सीमित करता है और प्रदूषण फैलाने वाले और अपर्याप्त, विकेन्द्रीकृत जीवाश्म ईंधन संचय को स्थिर बनाता है. सकारात्मक बात यह है कि वाहन इलेक्ट्रीकरण तेजी से आगे बढ़ रहा है और 2030 तक इसके ग्राहकों का एक नया वर्ग (संभवतः 30 मिलियन की बड़ी संख्या) रिटेल विद्युत आपूर्ति बाज़ार में प्रवेश करेगा, जो अपने इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए लागत के साथ ही दरों का भुगतान करने की क्षमता रखेगा.

एक बाज़ार-निर्धारित कार्बन मूल्य विभिन्न क्षेत्रों को सब्सिडी की सीमा को परिभाषित करने में मदद कर सकता है जिससे मांग और आपूर्ति में कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. फिर यह राशि पारदर्शी रूप से तकनीकों के बीच बांटी जा सकती है ताकि कार्बन को न्यूनतम करने के विकल्पों की मांग और आपूर्ति की लोचशीलता का आकलन किया जा सके. इससे कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए राज्य से मिलने वाली सहायता के तार्किक बंटवारे को बल मिलेगा और ऊर्जा की दक्षता बढ़ेगी जबकि जीवन रेखा की तरह ज़रूरी ऊर्जा आपूर्ति के साथ समय और मौसम के अनुसार वितरण संभव हो सकेगा. इससे कीमत को साधारण लागत के नज़दीक रखा जा सकेगा. तब तक, सामान्य समझ के अनुसार ऊर्जा में परिवर्तन का रास्ता 2070 तक श्रेष्ठतम रहेगा या सबसे ख़राब स्थिति में, तदर्थ (ad hoc) रहेगा.


संजीव अहलूवालिया ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में सलाहकार हैं.

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