Published on Apr 18, 2024 Updated 0 Hours ago

पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता में संभावित टकराव की स्थिति के बीच मुंबई को तीसरी आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत का परचम बुलंद करना चाहिए.

नई शहरी केंद्रियता का निर्माण: समय आ गया है कि मुंबई में ‘नवी-नवी मुंबई’ के विकास के काम में तेज़ी आये

दुनियाभर में फैली कोविड-19 की महामारी के ख़िलाफ़ भारत की लड़ाई के केंद्र में है मुंबई शहर. मेगापोलिस यानी एक महानगर के रूप में मुंबई, बढ़ती जनसंख्या और जनसंख्या के घनत्व की समस्या से जूझ रहा है. साथ ही इस शहर की सालाना आर्थिक विकास दर कम है, और यहां ज़मीन की उपलब्धता लगातार घट रही है. ऐसे में मुंबई के लिए यह ज़रूरी है कि वह कोविड-19 के संकट से बाहर आने के बाद अपने लिए एक बेहतर रास्ता चुने. अब वह समय आ गया है कि मुंबई में अर्बन मेट्रोपॉलिटन सेंट्रेलिटी (urban metropolitan centralities) यानी रोज़गार व सुविधाओं के नज़रिए से महानगरीय जगहों की केंद्रीयता पर अलग तरह से सोचा जाए, ताकि इस शहर को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और बेहतर गुणवत्ता वाले जीवन का केंद्र बनाया जा सके.

उदाहरण के लिए, मुंबई शहर लगातार बढ़ रहा है- लेकिन बहुत तेज़ गति से नहीं, बल्कि वार्षिक रूप से दो प्रतिशत. यह अच्छा भी है और बुरा भी. बुरा, क्योंकि इसका मतलब है कि मुंबई आव्रजन को लेकर अब उतना आकर्षक नहीं रहा है. इसकी अर्थव्यवस्था उस तरह से काम नहीं कर रही है, जैसे भारत के दूसरे शहरों में और मुंबई के समकक्ष ऐसे कई और महानगर हैं, जो अब उससे अधिक आकर्षक हैं और तेज़ी से बढ़ रहे हैं. मिसाल के तौर पर, पुणे सालाना 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है. इसके विपरीत यह अच्छा है, क्योंकि दो प्रतिशत की वृद्धि को प्रबंधित करना आसान है.

मुंबई शहर लगातार बढ़ रहा है- लेकिन बहुत तेज़ गति से नहीं, बल्कि वार्षिक रूप से दो प्रतिशत. यह अच्छा भी है और बुरा भी. 

दो प्रतिशत की वार्षिक विकास दर पर यह शहर सालाना 4,60,000 नए निवासियों का घर बनता है, जो लगभग 100,000 परिवार हैं, जिन्हें 100,000 घरों की ज़रूरत है. इसे पूरा करने के लिए, शहर को आवासीय उद्देश्य के लिए सालाना 10 वर्ग किलोमीटर से अधिक की ज़मीन जुटाने की ज़रूरत है, यह मानते हुए कि एक किलोमीटर की जगह लगभग 30,000 लोगों के लिए पर्याप्त हो सकता है.

मुंबई के पास इन नए लोगों के लिए ज़मीन नहीं है. सात दशक पहले, इस समस्या से निपटने के लिए खाड़ी के इस्तेमाल का फ़ैसला किया गया. नवी मुंबई (नई मुंबई) बनाई गई और यह सफल भी रही. अब समय आ गया है कि इससे आगे देखा जाए और नवी मुंबई के विस्तार के लिए शहरी केंद्रीयताओं का एक सेट तैयार किया जाए, जो नवी मुंबई के समानांतर हो, पूर्वी पहाड़ियों से परे हो, जो विस्तार में रुकावट पैदा करते हैं यानी- नवी नवी मुंबई (नई से भी नई मुंबई), जो मुंबई महानगर क्षेत्र (Mumbai Metropolitan Region, MMR) का हिस्सा हो.

मुंबई महानगर क्षेत्र, जो कि 6500 वर्ग किलोमीटर और आठ से अधिक नगर निगमों और आठ परिषदों में फैला हुआ है, समानांतर लाइनों के साथ एक विशिष्ट भौगोलिक स्थिति में है. इन रेखाओं में तट हैं, तटीय पहाड़ियां हैं, खाड़ी व नवी मुंबई के मैदान हैं, अंतर्देशीय पहाड़ियां, अंतर्देशीय घाटी, पठारी तलहटी और भारतीय पठार भी शामिल हैं. यह संपर्क मुख्य रूप से उत्तर-दक्षिण है, जो पूर्व और पश्चिमी इलाक़ों को साथ जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण है. जबकि नवी मुंबई जाने के लिए खाड़ी के पार पुल बनाए गए थे, इस के नए संस्करण को हरे और भूरे गलियारों (green and grey corridors) के माध्यम से बनाने की आवश्यकता होगी. साल 2018 में जारी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change report) की रिपोर्ट बताती है कि मुंबई जैसी तटीय मेगासिटी विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में हैं. यह कोविड-19 के बाद की दुनिया में एक महत्वपूर्ण विचार बनेगा, जिस के तहत अब स्थायी विकास के लिए वैकल्पिक समाधानों को देखना ज़रूरी होगा.

पूर्व की ओर यह पैटर्न, बैलेंस्ड अर्बन डेवलपमेंट (बीयूडी) के ज़रिए, जो सभी शहरी विकास कार्यों में अहम भूमिका निभाएगा उसके ज़रिये, आवासीय इकाइयों के बेहतर प्रबंधन में सहयोग करेगा. सरस्वती कॉरिडोर के साथ, बीयूडी की पहली पंक्ति से परे, उत्तर-दक्षिण महानगरीय फ्रीवे, उच्च तकनीक वाली आईटीसी फर्मों को बेहतर, सुलभ और सस्ती जगहें उपलब्ध कराएगा, जिनका नए हवाई अड्डे से सीधा संपर्क होगा और इस से मुंबई को एक वैश्विक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में उतरने में मदद मिलेगी. लॉजिस्टिक से संबंधित इस बुनियादी ढांचे के ज़रिए एक ऐसा वैश्विक मंच विकसित किया जा सकता है जो इनोवेशन, अनुसंधान, रिसर्च और उच्च तकनीकी समाधान की दिशा में काम कर सके. यह केंद्रीयता, मुंबई के रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में मूल्य वर्धिन करेगी. सिलिकॉन वैली को टक्कर देते हुए नए ज्ञान केंद्र (Knowledge cities) सामने आएंगे और रिसर्च व टेक्नोलॉजी हब उभर सकते हैं.

सभी प्राथमिक सामाजिक-प्रशासनिक, वाणिज्यिक, कार्यालयों और शहरी खुले स्थानों को इन शहरी केंद्रों में स्थापित किया जा सकता है, और यह यातायात का एक संतुलित पैटर्न भी उत्पन्न करेगा, जिससे यात्राएं और नौकरियां सुविधाजनक होंगी. 

प्रस्तावित नवी-नवी मुंबई के विकास की शुरुआत सस्ते में परिवहन लाइनों को बढ़ाने के द्वारा की जानी चाहिए जो नवी मुंबई को इंटरमॉडल स्टेशनों के सेट के साथ एक बेहतर शहर बनाने की दिशा में अग्रसर करेगा. सभी प्राथमिक सामाजिक-प्रशासनिक, वाणिज्यिक, कार्यालयों और शहरी खुले स्थानों को इन शहरी केंद्रों में स्थापित किया जा सकता है, और यह यातायात का एक संतुलित पैटर्न भी उत्पन्न करेगा, जिससे यात्राएं और नौकरियां सुविधाजनक होंगी.

केवल इस तरह की गतिविधियों के ज़रिए ही मुंबई विश्व के महानगरों में शामिल हो सकेगी और भारत के अग्रणी महानगर के रूप में अपनी जगह बना सकेगी. पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता में संभावित टकराव की स्थिति के बीच मुंबई को तीसरी आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत का परचम बुलंद करना चाहिए. यह एक ऐसी भूमिका है जिसे दुनिया के लिए भारत को निभाने की आवश्यकता है, लेकिन यह मुंबई के बिना यह नहीं हो सकता है, और निश्चित रूप से तब तक नहीं जब तक शहर पर्याप्त महानगरीय नीतियों को नहीं अपनाता.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.