Author : Swati Prabhu

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Published on Jul 31, 2024 Updated 2 Hours ago

मोदी सरकार भारत की छवि विकास के काम में आर्थिक मदद देने वाले देश के रूप में बनाना चाहती है. इस साल के बजट में ग्लोबल साउथ के कई देशों को आवंटित राशि से इस बात की पुष्टि होती है.

बजट 2024: विकसित भारत की 'सहायता' कूटनीति

10 साल तक सत्ता में रहने के बाद पीएम मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार ने अपना तीसरा कार्यकाल भी शुरू कर दिया है. खास बात ये है कि इस बार भी बजट में सरकार ने पड़ोसी देशों को लेकर अपनी राजनयिक प्राथमिकताएं स्पष्ट कर दी हैं. निर्मला सीतारमण ने वित्त मंत्री (एफएम) के तौर पर अपना लगातार सातवां बजट पेश किया. 2024-25 के बजट में भी मुख्य एजेंडा विकास ही है. 83 मिनट लंबे अपने बजट भाषण में निर्मला सीतारमण ने देश के विकास के लिए 9 प्राथमिकताएं तय कीं. इनमें कृषि क्षेत्र में उत्पादकता और लचीलापन बढ़ाने, रोज़गार और कौशल, समावेशी मानव संसाधन विकास और सामाजिक न्याय, विनिर्माण और सेवाएं, शहरी विकास, ऊर्जा सुरक्षा, नई खोजें यानी इनोवेशन, अनुसंधान और विकास, टिकाऊ बुनियादी ढांचा और अगली पीढ़ी के सुधार जैसे मुद्दे शामिल हैं. चूंकि सरकार की नीयत सभी, खासकर ग्लोबल साउथ के, देशों के 'समावेशी विकास' की है. उनकी दीर्घकालिक समृद्धि और स्थायी विकास के लिए रास्ते खोलना है. ऐसे में इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए विकास के क्षेत्र में सहयोग किया जाना एक महत्वपूर्ण माध्यम है. ये भारत की विकास कूटनीति का प्रमुख हिस्सा भी है, जिसे वो पिछले कुछ साल से ज़ोर-शोर से आगे बढ़ा रहा है.

2024-25 के बजट में भी मुख्य एजेंडा विकास ही है. 83 मिनट लंबे अपने बजट भाषण में निर्मला सीतारमण ने देश के विकास के लिए 9 प्राथमिकताएं तय कीं.

पिछले साल दिल्ली में हुई जी-20 की मीटिंग और भारत की अध्यक्षता के दौरान भी उसका ये रुख़ देखा गया था. भारत ने ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज़ और उनकी चिंताओं को सुना और फिर इस मंच के ज़रिए सबके सामने रखा. इसके अलावा बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में पूंजीगत व्यय के लिए 11 लाख, 11 हजार और 111 करोड़ रुपये यानी करीब 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित करने की वित्तमंत्री की घोषणा विकास को लेकर सरकार की नीतिगत प्राथमिकताओं को दोहराती है. ये रकम भारत की जीडीपी का लगभग 3.4 प्रतिशत है. इसका उद्देश्य मुख्य सड़कों, रेलवे और बिजली क्षेत्र को लेकर की गई घोषणाओं के कार्यान्वयन के लिए संसाधन जुटाना और उन्हें तेज़ करना है.

अगर इस हिसाब से देखें तो पड़ोस के अन्य देशों को 'सहायता' देने की जो प्रतिबद्धता भारत दिखाता है, वो लंबे समय में संपर्क बढ़ाने और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने की नीति के इर्द-गिर्द घूमती है. भारत अपने राजनीतिक उद्देश्यों को व्यापक आर्थिक एजेंडे से जोड़ता है. इसके लिए मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर हस्ताक्षर करना, प्रशांत द्वीप देशों (PICs) के साथ विकास साझेदारी बनाना और दूसरे देशों के साथ संपर्क (सड़क,रेल या अन्य माध्यम) बढ़ाना शामिल है. भारत की आर्थिक कूटनीति के अलग-अलग तरीके वैश्विक मोर्चे पर काफी लोकप्रिय हो रहे हैं. ऐसे में सवाल है कि बजट 2024 में विकास साझेदारी के लिए क्या-क्या प्रावधान किए गए हैं?

भारत अपने राजनीतिक उद्देश्यों को व्यापक आर्थिक एजेंडे से जोड़ता है. इसके लिए मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर हस्ताक्षर करना, प्रशांत द्वीप देशों (PICs) के साथ विकास साझेदारी बनाना और दूसरे देशों के साथ संपर्क (सड़क,रेल या अन्य माध्यम) बढ़ाना शामिल है.


वैसे हक़ीकत ये है कि आर्थिक कूटनीतिक मोर्चे पर थोड़े बहुत उतार-चढ़ाव को छोड़कर भारत सरकार का बजटीय आवंटन पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में काफी हद तक स्थिर बना हुआ है. विदेश मंत्रालय (एमईए) के बजट निवेदन की मांग संख्या 29 के मुताबिक एमईए का कुल परिव्यय 18,050 करोड़ रुपये से बढ़कर 22,154 करोड़ रुपये हो गया है. इस बढ़ोत्तरी के बावजूद विदेश मंत्रालय का कुल सहायता व्यय पिछले साल के 5,408.58 करोड़ रुपये से घटाकर 4,883.56 करोड़ रुपये कर दिया गया है. ये बात काफी चौंकाने वाली है क्योंकि भारत ये कहता रहा है कि वो ग्लोबल साउथ के बाकी देशों के साथ विकास में सहयोग की परंपरा को साझा करने वाले अपने रुख में निरंतरता बनाए रखेगा.



चित्र 1 - 2024 के बजट में 'सहायता प्राप्त करने वाले देश'


स्रोत : भारत का बजट

पड़ोसी देशों को मदद

बजट में विदेशी सहायता का सबसे बड़ा हिस्सा यानी 2,068 करोड़ रूपये भूटान को आवंटित किए गए हैं. नेपाल, श्रीलंका,मॉरीशस और सेशेल्स को दी जानी वाली सहायता राशि भी बढ़ाई है. हिमालयी देश नेपाल को पिछले साल 700 करोड़ की तुलना में 550 करोड़ रूपये की सहायता राशि वितरित करने की बात कही गई है. दूसरी तरफ आंतरिक संघर्षों से जूझ रहे अफ़गानिस्तान को इस बार भी 200 करोड़ रूपये दिए जाएंगे. पिछले साल भी उसे इतनी ही सहायता दी गई थी. बांग्लादेश को मिलने वाली मदद की 200 करोड़ रूपये से घटाकर 120 करोड़ रूपये कर दिया गया है, जबकि बांग्लादेश इस समय नागरिक अशांति और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि जैसे संकटों का सामना कर रहा है. हालांकि हिंद महासागर में भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका को इस साल 245 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं,जो पिछले साल के 150 करोड़ रूपये की तुलना में काफी ज़्यादा हैं. मालदीव को इस बार के बजट में 400 करोड़ रूपये दिए गए हैं, जबकि पिछले साल संशोधित बजट में उसे 700 करोड़ रूपये मिले थे. पिछली बार की तुलना में ये बहुत कम है, लेकिन इसे लेकर किसी को हैरानी नहीं है क्योंकि भारत और मालदीव के बीच राजनयिक विवाद पैदा हुआ था और उसका असर बजट आवंटन में दिखा. लेकिन इसका असर इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी में दिख सकता है.

हिंद और प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन का असर धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है और ये भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय हो सकता है. यही वजह है कि भारत ने इस बार मॉरीशस और सेशेल्स को पिछली बार के संशोधित बजट से ज़्यादा सहायता राशि दी है.

हिंद और प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन का असर धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है और ये भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय हो सकता है. यही वजह है कि भारत ने इस बार मॉरीशस और सेशेल्स को पिछली बार के संशोधित बजट से ज़्यादा सहायता राशि दी है. मॉरीशस को इस बजट में 370 करोड़ जबकि सेशेल्स को 40 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं. ये हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ संबंध मज़बूत करने की भारत की रणनीतिक इच्छाशक्ति को दिखाता है. अगर बात भारत के महात्वाकांक्षी चाहबर बंदरगाह की करें तो इसके लिए 100 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं. खाड़ी देशों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए भारत ने ईरान के साथ चाहबर पोर्ट के 10 साल तक के संचालन के लिए समझौता किया है. इसके अलावा अफ्रीकी देशों को सहायता राशि के रूप में 200 करोड़, लैटिन अमेरिकी देशों को 30 करोड़ और यूरेशिया के देशों को 20 करोड़ रूपये दिए जाएंगे.

मौजूदा दौर में आर्थिक कारकों और राजनीतिक लक्ष्यों के बीच बढ़ती परस्पर निर्भरता बढ़ती जा रही है. इनके बीच के संबंधों वैश्विक शासन के लिए उत्पन्न हो रहे अभूतपूर्व खतरे को ध्यान में रखते हुए ये स्वभाविक है कि सभी देशों को तय नियमों के हिसाब से सहमति बनाकर आपसी सहयोगी की कोशिश करनी चाहिए. इस संदर्भ में देखा जाए तो विकास, खासकर ग्लोबल साउथ के देशों में, में सहायता मुहैया कराने वाले देश के रूप में भारत की भूमिका आने वाले दिनों में और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी. इस बात में कोई शक नहीं है कि विकसित भारत की 'सहायता' कूटनीति पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय करीबी नज़र रख रहा है क्योंकि नए भू-राजनीतिक, भू-अर्थशास्त्र और भू-रणनीतिक गेम प्ले लगातार सामने आते रहते हैं.


स्वाति प्रभु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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