Author : Sunaina Kumar

Published on Feb 14, 2022 Updated 0 Hours ago

कुल मिलाकर युवाओं से जुड़ी योजनाओं में बढ़ोतरी की गई है. हालांकि युवा आबादी की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के हिसाब से ये कतई पर्याप्त नहीं हैं.

बजट 2022: आज के युवाओं के लिए संभावनाओं की पड़ताल

ये लेख बजट 2022: नंबर्स एंड बियॉन्ड सीरीज़ का हिस्सा है.


शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और युवाओं के भविष्य पर महामारी ने बेहद बुरा असर डाला है. ख़ासतौर से बेरोज़गारी गले की फांस बन गई है. हाल में पेश किया गया बजट कोविड-19 की आमद के बाद दूसरा बजट रहा. पिछले 2 वर्षों से कोविड-19 के चलते शिक्षा को भारी नुक़सान हुआ, रोज़गार में कटौतियां हुईं और लोगों को भारी मुश्किलें झेलनी पड़ी. लिहाज़ा बजट से इन तकलीफ़ों पर मरहम लगाए जाने की उम्मीद थी.

शिक्षा

बार-बार लग रहे लॉकडाउन के शिक्षा जगत पर पड़ रहे प्रभावों के बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है. सरकार ने ख़ुद ही इस बात को स्वीकार किया है. 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक शिक्षा जगत के बारे में आख़िरी उपलब्ध आधिकारिक आंकड़े 2019-20 (यानी कोविड-19 की आमद से पहले) के हैं. इस साल शिक्षा बजट में तक़रीबन 11 प्रतिशत की आंशिक बढ़ोतरी हुई है. पिछले साल के 93,224 करोड़ रु (पुनरीक्षित अनुमान 88,001 करोड़) से बढ़कर ये 104,278 करोड़ रु. हो गया है. ग़ौरतलब है कि 1968 के बाद की हरेक राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा जगत पर कुल ख़र्च को जीडीपी के 6 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा जाता रहा है. ऐसे में मौजूदा बजट आवंटन भी इस लक्ष्य से काफ़ी नीचे है. बहरहाल बजट में डिजिटल शिक्षा पर ख़ासा ज़ोर दिया गया है. पीएम ईविद्या के ‘एक कक्षा-एक टीवी चैनल’ कार्यक्रम का 12 से बढ़ाकर 200 चैनलों तक विस्तार कर दिया गया है. ये कार्यक्रम सभी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध होंगे. एक केंद्र और अनेक शाखाओं की तर्ज पर एक डिजिटल यूनिवर्सिटी के गठन का प्रस्ताव किया गया है. इसके साथ ही उच्च गुणवत्ता वाली डिजिटल कंटेंट लाइब्रेरी, विज्ञान और गणित में 750 ई-लैब्स और कौशल विकास के लिए 75 ई-लैब्स स्थापित किए जाने का भी एलान बजट में शामिल है.

कुल मिलाकर युवाओं से जुड़ी योजनाओं में बढ़ोतरी की गई है. हालांकि युवा आबादी की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के हिसाब से ये कतई पर्याप्त नहीं हैं.

डिजिटल शिक्षा ने भारत में असमानता को और हवा दे दी है. आर्थिक सर्वे में शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2021 के हवाले से डिजिटल खाई के और गहरी होने की बात कही गई है. राष्ट्रीय स्तर पर स्मार्ट फ़ोन रखने वाले आधे से भी ज़्यादा बच्चे (53.8 प्रतिशत) शिक्षा के मकसद से उनका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं.

ASER रिपोर्ट में महामारी के चलते कम उम्र के बच्चों के नामांकन पर पड़ा कुप्रभाव भी सामने आया है. रिपोर्ट के मुताबिक ‘मौजूदा वक़्त में स्कूली दाखिले से बाहर’ रहने वाले 6 से 14 साल तक के बच्चों की तादाद 2021 में बढ़कर 4.6 प्रतिशत हो गई. 2018 में ये आंकड़ा 2.5 प्रतिशत था. भारत में पब्लिक स्कूल शिक्षा प्रणाली को तत्काल मज़बूत बनाए जाने की दरकार है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा क्षेत्र के निजीकरण को बढ़ावा दिया गया है. हालांकि महामारी के दौरान के तजुर्बे बताते हैं कि सरकार शिक्षा के क्षेत्र में अपनी भूमिका से पल्ला नहीं झाड़ सकती. ASER समेत कई सर्वेक्षणों से ये बात सामने आई है कि निजी स्कूलों के  बच्चों ने सरकारी स्कूलों में दाख़िले ले लिए हैं. इसके पीछे अनेक कारण ज़िम्मेदार रहे हैं. इनमें सस्ते निजी स्कूलों में तालाबंदी, अभिभावकों की आर्थिक तंगी और परिवारों का शहरों से गांव लौट जाने जैसी वजहें शामिल हैं. ख़ासतौर से ग्रामीण इलाक़ों में बड़े पैमाने पर ये रुझान देखा जा रहा है.

​आर्थिक सर्वेक्षण में पब्लिक स्कूलों को अतिरिक्त मदद पहुंचाई जाने के विचार पर ज़ोर दिया गया है. इनमें शिक्षक-छात्र अनुपात, कक्षा के स्थान और पठन/पाठन की सामग्रियां जैसी सहूलियतें शामिल हैं. इन सुविधाओं से निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में लौटने वाले छात्रों को स्वीकार करना आसान हो सकेगा. साथ ही शहरी इलाक़ों से ग्रामीण इलाक़ों में लौटे बच्चों को भी स्कूलों में जगह दे पाना मुमकिन हो सकेगा. इसके बावजूद बजट में इसके लिए बेहद मामूली प्रावधान किए गए हैं. स्कूली शिक्षा की सबसे बड़ी योजना- समग्र शिक्षा अभियान को 37,383.36 करोड़ रु आवंटित किए गए हैं. 2021 के बजट के मुक़ाबले इसमें 6 हज़ार करोड़ रु से भी ज़्यादा का इज़ाफ़ा किया गया है. हालांकि अब भी ये आवंटन 2019 के मुक़ाबले कम है. उस साल इस मद में 38,750.50 करोड़ रु आवंटित किए गए थे.

ASER समेत कई सर्वेक्षणों से ये बात सामने आई है कि निजी स्कूलों के  बच्चों ने सरकारी स्कूलों में दाख़िले ले लिए हैं. इसके पीछे अनेक कारण ज़िम्मेदार रहे हैं. इनमें सस्ते निजी स्कूलों में तालाबंदी, अभिभावकों की आर्थिक तंगी और परिवारों का शहरों से गांव लौट जाने जैसी वजहें शामिल हैं.

बच्चों के पोषण पर भी महामारी ने कुप्रभाव दिखाया है. ऐसे में उम्मीद थी कि इस साल पीएम पोषण अभियान को और मज़बूत बनाया जाएगा. इसके उलट मिड डे मील स्कीम के आवंटन में कटौती कर दी गई. 2021-22 में इस मद में 11,500 करोड़ रु आवंटित किए गए थे जिसे 2022-23 के बजट में घटाकर 10,233 करोड़ रु कर दिया गया.

मानसिक सेहत

इस साल के बजट में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल किया गया है. बड़े ही नाज़ुक वक़्त पर ये पहल की गई है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) के मुताबिक भारत में गंभीर मानसिक विकारों से पीड़ित 76 से 85 फ़ीसदी लोगों को किसी भी तरह का इलाज नहीं मिलता है. महामारी के दौर में हालात और बिगड़ने की आशंका है. पिछले बजट में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत मानसिक स्वास्थ्य के लिए महज़ 597 करोड़ रु दिए गए थे. इनमें से 500 करोड़ रु तो अकेले बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज़ (NIMHANS) को ही आवंटित किए गए थे.

ASER समेत कई सर्वेक्षणों से ये बात सामने आई है कि निजी स्कूलों के  बच्चों ने सरकारी स्कूलों में दाख़िले ले लिए हैं. इसके पीछे अनेक कारण ज़िम्मेदार रहे हैं. इनमें सस्ते निजी स्कूलों में तालाबंदी, अभिभावकों की आर्थिक तंगी और परिवारों का शहरों से गांव लौट जाने जैसी वजहें शामिल हैं.

इस साल के बजट में गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखभाल की सेवाओं में सुधार के प्रावधान किए गए हैं. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर टेली-मेंटल हेल्थ प्रोग्राम शुरू किया जाएगा. इस कार्यक्रम को 23 टेली-मेंटल हेल्थ सेंटर्स ऑफ़ एक्सीलेंस के नेटवर्क के तहत संचालित किया जाएगा. इस सिलसिले में NIMHANS नोडल सेंटर की तरह काम करेगा. बेंगलुरु स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इसके लिए तकनीकी सहायता मुहैया कराएगा. महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए पहले से ही कुछ कार्यक्रम शुरू किए गए थे. इनमें NIMHANS का राष्ट्रीय, टोल-फ़्री हेल्पलाइन शामिल हैं. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भी अलग से एक टोल-फ़्री हेल्पलाइन नंबर चलाता आ रहा है.

रोज़गार और भावी संभावनाएं

प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि बजट युवाओं का बेहतर भविष्य सुनिश्चित करेगा. भारत दुनिया में सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है. देश में 28 साल की औसत उम्र वाले युवाओं की अच्छी ख़ासी तादाद है. हालांकि नीति निर्माण में युवाओं की स्थिति अस्पष्ट और कमज़ोर रही है. राष्ट्रीय युवा नीति (2014) में शिक्षा, उद्यमिता, रोज़गार और कौशल विकास पर ज़ोर दिया गया है. साथ ही अच्छी सेहत को प्राथमिकता देते हुए खेल, राजनीति और प्रशासन में भागीदारी को युवाओं को सशक्त बनाने की क़वायद का मुख्य ज़रिया बताया गया है. नीति भले ही सामने आ गई है लेकिन इसे अमल में लाकर ज़मीन पर उतारने के ख़ास प्रयास नहीं किए गए हैं.

पिछले 2 वर्षों में युवाओं के लिए रोज़गार की संभावनाओं को काफ़ी चोट पहुंची है. हाल ही में रेलवे में भर्ती के लिए हुए प्रदर्शनों से ये बात ज़ाहिर होती है. अध्ययनों से पता चला है कि कोविड की मार के चलते दूसरे आयुवर्ग के कामगारों के मुक़ाबले युवा कामगारों की नौकरियों का ज़्यादा नुक़सान हुआ है. बजट प्रस्तावों के मुताबिक केंद्र की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना से अगले 5 वर्षों में 60 लाख नए रोज़गार पैदा होने की संभावना है. पीएम गतिशक्ति को नौकरियों और  सबके लिए उद्यमिता के अवसरों (ख़ासतौर से युवाओं के लिए) से जोड़ दिया गया है. एनिमेशन, विज़ुअल इफ़ेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स (AVGC) सेक्टर में युवाओं को रोज़गार देने की अपार संभावनाएं हैं. लिहाज़ा सरकार ने इस क्षेत्र के लिए एक टास्क फ़ोर्स के गठन का एलान किया है.

सरकार युवाओं को रोज़गार के मौक़े देने वाले उभरते हुए क्षेत्रों को मदद पहुंचाएगी. इनमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), जिओस्पेशियल सिस्टम्स और ड्रोन्स, सेमीकंडक्टर और उसका इको सिस्टम, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, जीनोमिक्स और फ़ार्मास्यूटिक ग्रीन एनर्जी और क्लीन मोबिलिटी सिस्टम्स शामिल हैं.

कौशल विकास के लिए बजटीय आवंटन हमेशा से ही बेहद साधारण रहा है. इस बजट में सरकार ने कौशल विकास और आजीविका के लिए एक डिजिटल इकोसिस्टम का एलान किया है. ऑनलाइन प्रशिक्षण के ज़रिए नागरिकों के कौशल विकास, कौशल सुधार और नए नए हुनर विकसित करने के लिए DESH स्टैक ई-पोर्टल की घोषणा की गई है. 

भारत कौशल के क्षेत्र में भारी कमी का सामना कर रहा है. पिछले कुछ सालों में कौशल विकास की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कई सरकारी कार्यक्रम शुरू किए गए हैं. रोज़गार हासिल करने की क्षमता पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है. हालांकि कौशल विकास के लिए बजटीय आवंटन हमेशा से ही बेहद साधारण रहा है. इस बजट में सरकार ने कौशल विकास और आजीविका के लिए एक डिजिटल इकोसिस्टम का एलान किया है. ऑनलाइन प्रशिक्षण के ज़रिए नागरिकों के कौशल विकास, कौशल सुधार और नए नए हुनर विकसित करने के लिए DESH स्टैक ई-पोर्टल की घोषणा की गई है.

उच्च-शिक्षा पर ख़र्च 38,350.65 करोड़ रु से बढ़कर 40,828.35 करोड़ किया गया है. इस कड़ी में मेडिकल शिक्षा को बढ़ावा देने , नए-नए मेडिकल कॉलेज खोलने और मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीटों की तादाद बढ़ाने पर ख़ासा ज़ोर दिया गया है. इसके साथ ही नेशनल मिशन इन एजुकेशन थ्रू आईसीटी (NMEICT) में भी सीटों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. इस कार्यक्रम का मकसद युवाओं के बीच  सूचना और संचार तकनीक (ICT) के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है.

कुल मिलाकर युवाओं से जुड़ी योजनाओं में बढ़ोतरी की गई है. हालांकि युवा आबादी की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के हिसाब से ये कतई पर्याप्त नहीं हैं. खेल से जुड़ा बजट हमेशा की तरह अपर्याप्त और रूखा-सूखा रहा है. हालांकि खेलो इंडिया पर ज़ोर देते हुए इसमें 305.58 करोड़ रु का इज़ाफ़ा किया गया है. युवाओं के चौतरफ़ा विकास से जुड़ी मुख्य योजना- राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम को 138 करोड़ रु आवंटित किए गए हैं. ये रकम पिछले साल के मुक़ाबले 29 करोड़ रु ज़्यादा है. राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) के लिए 283.50 करोड़ रु का आवंटन किया गया है. पिछले साल इस मद में 231 करोड़ रु दिए गए थे. राष्ट्रीय यूथ कोर के हिस्से 75 करोड़ रु आए हैं.

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