हमारे समाज में डिज़िटल परिवर्तन हमेशा से साइबर अटैक के विस्तार, लगातार दुर्भावनापूर्ण साइबर गतिविधियों के बढ़ने और जिनसे ख़तरा महसूस किया जाता है उनकी क्षमता में हो रही बढ़ोतरी से जुड़ा हुआ है. दुर्भाग्यवश हाल की घटनाओं जैसे सोलर विंड्स और कोलोनियल पाइपलाइन हैक्स ने उन आशंकाओं को सच साबित कर दिया है, जिसे लेकर साइबर सुरक्षा से जुड़़े समुदाय हमलोगों को वर्षों से (एक दशक कहें तो ज़्यादा ठीक होगा ) सावधान रहने की आवश्यकता पर जोर देते रहे हैं. सच में जटिल साइबर हमले, जिनके निशाने पर, उदाहरणस्वरूप, सप्लाई चेन या फिर अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर होते हैं, उसका भौतिक, आर्थिक और पहचान संबंधी नुकसान काफी ज़्यादा होता है, जो संभवत: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी काफी ख़तरनाक हो सकता है. इन चेतावनियों और तमाम ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बावजूद सरकारी और निजी व्यवस्था दोनों ही कमज़ोर बने रहे हैं.
सच में जटिल साइबर हमले, जिनके निशाने पर, उदाहरणस्वरूप, सप्लाई चेन या फिर अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर होते हैं, उसका भौतिक, आर्थिक और पहचान संबंधी नुकसान काफी ज़्यादा होता है, जो संभवत: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी काफी ख़तरनाक हो सकता है.
इन सबके ऊपर, हमें कई क्षेत्रों जैसे निजता, कनेक्टिविटी, सप्लाई चेन सिक्युरिटी और सूचना के मुक्त प्रवाह के विस्तार होते भू-राजनीतिक चिंताओं को लेकर भी सतर्क और व्यावहारिक रहना होगा. ऐसे समय में जबकि शासकीय तकनीक और तकनीक के नवीनीकरण दोनों ही क्षेत्र में कई राष्ट्रों के बीच अपने स्थान को कायम करने की होड़ मची हुई है तो ऐसे में आपसी सहयोग द्वारा सामान्य मापदंड और एक स्तर को विकसित करने के लिए कितना आधार शेष रह जाता है?
कोई दावा कर सकता है कि नई तकनीकों के कार्यक्षेत्र को लेकर भरोसा और कानूनी स्पष्टता बढ़ाने के लिए अभी ज़्यादा नियम की आवश्यकता हो सकती है. या फिर इसके विपरीत यह तर्क भी दिया जा सकता है कि ज़्यादा नियमों से नए-नए समाधानों के विकास में कई तरह की बाधाएं खड़ी होंगी और जो लोग ऐसे प्रौद्योगिकी में निवेश करने को इच्छुक होंगे वह इससे हतोत्साहित होंगे. स्वाभाविक तौर पर ऐसे कई विकल्प हैं जो गैर-हस्तक्षेप और अधिक नियामकों के बीच आते हैं और इसमें सबसे ज़्यादा उपयुक्त नियामक समाधान, संबंधित प्रौद्योगिकी के विकास और संबंधित नीतियों और कानूनी कोशिशों पर निर्भर करेगा.
ये बातें स्पष्ट संकेत हैं कि मानकीकरण सरकार के हाथों में एक रणनीतिक उपकरण है जिससे शासकीय प्रौद्योगिकी में सरकारें अपनी भागीदारी बढ़ा सके और अपनी नीतियों को और प्रभावशाली बना सके.
नियामक रणनीतियों में से एक जो, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों की विशेषताओं के साथ अच्छी तरह से जुड़ा होता है – जैसे ब्लॉकचेन, मानकीकरण है. मानकीकरण में यह क्षमता होती है कि वह पूर्ण रूप से नीतियों के गाइडलाइन्स में परिणत हो जाता है और भविष्य में नियामकों की कोशिश को साकार करता है. हालांकि दो बातें यहां स्पष्ट की जानी चाहिए. पहला, अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक ध्यान बढ़ाना और मानकीकरण वेन्यू में हिस्सा लेना, ये बातें स्पष्ट संकेत हैं कि मानकीकरण सरकार के हाथों में एक रणनीतिक उपकरण है जिससे शासकीय प्रौद्योगिकी में सरकारें अपनी भागीदारी बढ़ा सके और अपनी नीतियों को और प्रभावशाली बना सके. दूसरा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी समझौते पर पहुंचने से पहले, प्रौद्योगिकी से जुड़े हर तरह के मामलों पर पहले घरेलू और स्थानीय स्तर पर चर्चा ज़रूर की जानी चाहिए. हालांकि इससे बंटवारा हो सकता है, यहां तक कि अनिवार्य तौर पर इससे सुसंगत अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की गति धीमी भी हो सकती है.
साइबर स्पेस, संयुक्त राष्ट्र और देशों का व्यवहार
यहां पर एक उपयोगी समानांतर उस जैसे कार्य से खींचा जा सकता है जिसके तहत ज़िम्मेदार राष्ट्र साइबर स्पेस को लेकर सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं. साइबर स्पेस में राष्ट्रों का व्यवहार जहां हम एक जैसी चीजें देख सकते हैं: रणनीतिक प्रासंगिकता और पहले घरेलू और कुछ मामलों में स्थानीय विवादों से निपटने की ज़रूरत. विशेषकर, संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में दो प्रासंगिक सहमति आधारित दस्तावेजों को जारी किया है जिसमें राष्ट्र के बर्ताव और साइबरस्पेस में स्थिरता की बात की गई है. ये परिचर्चा कथित तौर पर चार आधार पर टिके हुए हैं: अंतर्राष्ट्रीय कानून, राष्ट्र के व्यवहार संबंधी नियामक, भरोसा पैदा करना और क्षमता विकसित करना.
इस रिपोर्ट में ज़िम्मेदार राष्ट्र व्यवहार को लेकर फ्रेमवर्क के बारे में बताया गया है. इतना ही नहीं, इसमें संयुक्त राष्ट्र सरकारी विशेषज्ञों के समूह(यूएन जीजीई) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानून और नियामकों की सामान्य स्वीकार्यता के लिए किए गए पहले की कोशिशों का भी ज़िक्र है.
पहला, ओपन एंडेड वर्किंग ग्रुप ने इसकी रिपोर्ट को मार्च 2021 में लागू किया, जिसने संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के बीच चर्चा को दर्शाते हुए एक मिसाल कायम की और यह सुनिशचित किया कि संयुक्त राष्ट्र ही सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों को लेकर राष्ट्रों के बीच चर्चा को बढ़ावा देने के लिए अहम भूमिका निभाए. इस रिपोर्ट में ज़िम्मेदार राष्ट्र व्यवहार को लेकर फ्रेमवर्क के बारे में बताया गया है. इतना ही नहीं, इसमें संयुक्त राष्ट्र सरकारी विशेषज्ञों के समूह(यूएन जीजीई) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानून और नियामकों की सामान्य स्वीकार्यता के लिए किए गए पहले की कोशिशों का भी ज़िक्र है.
दूसरा, यूएनजीजीई ने अपनी रिपोर्ट जुलाई 2021 में जारी की. यूएनजीजीई की प्रक्रिया की आलोचना इस बात को लेकर हुई होगी कि यह पारदर्शी और समावेशी नहीं है लेकिन कई जटिल बिंदुओं पर सहमति बनाकर इसने उच्च स्तर की कूटनीतिक प्रयासों का संकेत ज़रूर दिया. इसमें साइबर स्पेस के क्षेत्र में राष्ट्र के बर्ताव में अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून की स्वीकार्यता के साथ-साथ उन सेक्टर की सूची तैयार करना भी शामिल है, जैसे स्वास्थ्य का क्षेत्र एक अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर है, और राष्ट्रों से यह अपील करना कि ऐसे सेक्टर को साइबर गतिविधियों द्वारा निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए.
अगर कानून सम्मत नियमों को संयुक्त राष्ट्र स्वीकार करने में आनाकानी करते हैं तो साइबरस्पेस के क्षेत्र में राष्ट्रों के व्यवहार को ठीक करने लिए मानदंडों को लागू करना दूसरा सबसे अच्छा विकल्प है.
साइबर स्पेस में राष्ट्र के व्यवहार के लिए आईएचएल की स्वीकार्यता के मुद्दे को हल करने के अलावा किसी भी रिपोर्ट में यह साफ़ नहीं है कि आख़िर कैसे अंतर्राष्ट्रीय कानून मान्य होंगे. इस तरह की धीमी गति किसी के लिए असंतोष की वजह बन सकती है लेकिन यह अंतर्राष्ट्रीय कानून और राष्ट्रों की अनिच्छा से संबंधित कई विषयों के बारे में अलग-अलग मतों के मौजूदा हालात को दिखाता है. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को साइबरस्पेस में कैसे अंतर्राष्ट्रीय कानून लागू होंगे इसे लेकर अपने घरेलू विचारों को व्यक्त करने के लिए बुलाया गया लेकिन इस तरह की दूरदृष्टि वैश्विक स्तर के साझा व्याख्या के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता है, और यह नहीं कहा जा सकता है कि आने वाले भविष्य में बेहद जल्द साइबर स्पेस के क्षेत्र में राष्ट्रों के व्यवहार को लेकर कोई अंतर्राष्ट्रीय समझौता तैयार हो सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को एक तरफ हटा कर, संयुक्त राष्ट्र प्रक्रिया ने सीमित तौर पर ही सही लेकिन ऐच्छिक और गैर-शर्तिया नियमों के मूल्य और कार्य को रेखांकित किया है. संक्षेप में, अगर कानून सम्मत नियमों को संयुक्त राष्ट्र स्वीकार करने में आनाकानी करते हैं तो साइबरस्पेस के क्षेत्र में राष्ट्रों के व्यवहार को ठीक करने लिए मानदंडों को लागू करना दूसरा सबसे अच्छा विकल्प है. जैसा कि ओईडब्ल्यूजी की रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि नियमों को मानने और स्वीकार्यता बढ़ाने से अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता का वातावरण तैयार होता है जिससे कई तरह की गलतफहमियां दूर होती हैं और आख़िरकार इससे कई तरह के विवादों से बचा जा सकता है. जबकि यूएनजीजीई और ओईडब्ल्यूजी दोनों ही रिपोर्ट नियमों की प्रासंगकिता पर बल देते हैं लेकिन दोनों ही रिपोर्ट में समस्या के हल के बारे में इशारा नहीं किया गया है: मानदंडों पर सहमति की प्रवर्तनीयता. राष्ट्र और दूसरे संबंधित हिस्सेदार जैसे की एनजीओ, निजी क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थान साइबर सिक्युरिटी से संबंधित तमाम चीजों पर परिचर्चा करने को तैयार दिखते हैं, फिर चाहे मानकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना हो या फिर ज़िम्मेदार राष्ट्र के बर्ताव और अन्य कार्यक्षेत्र को लेकर चर्चा करनी हो. हालांकि, इस तरह की परिचर्चा आसान नहीं होती है क्योंकि अक्सर इसमें अज्ञात विषयों को लक्षित किया जाता है और यह रणनीतिक और राजनीतिक मकसद के लिए होता है. इस तरह की चर्चा के लिए कोई भी तरीका स्पष्ट नहीं है, क्योंकि आगे बढ़ने के लिेए कई विकल्प मौजूद हैं, जैसा कि हाल में प्रस्तावित ज़िम्मेवार राष्ट्र के बर्ताव के फ्रेमवर्क में “प्रोग्राम ऑफ एक्शन” है.
निकट भविष्य में संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाओं के तहत वैश्विक स्तर पर एक अहम समझौते तक पहुंचना और एक विचार रखने वाले सहयोगियों द्वारा अपने दृष्टिकोण के तहत अपनी गतिविधि जारी रखने से कुछ हद तक बंटवारा निश्चित है.
दुर्भाग्यवश कई देश ऐसा व्यवहार करते हैं मानों वो नियमों के “बुफे” में हैं जहां वो ये चुन सकते हैं कि उन्हें कौन सा नियम पसंद है और कौन सा नापसंद. संक्षेप में, निकट भविष्य में संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाओं के तहत वैश्विक स्तर पर एक अहम समझौते तक पहुंचना और एक विचार रखने वाले सहयोगियों द्वारा अपने दृष्टिकोण के तहत अपनी गतिविधि जारी रखने से कुछ हद तक बंटवारा निश्चित है. वास्तव में अलग-अलग समूहों और स्थानीय संगठनों की बढ़ती गतिविधियों की वजह से ऐसा बंटवारा टाला नहीं जा सकता है. जैसा कि विश्लेषकों द्वारा बताया गया है कि विखंडन साइबरस्पेस में आम सहमति की प्रक्रिया में बाधा के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन साथ में यह ख़ास समुदायों को, सबसे बेहतर क्या हो सकता है, उस क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता रखने के लिए भी आमंत्रित करता है. और
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