Author : Shoba Suri

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

हमें हर हाल में उन कार्यक्रमों में निवेश जारी रखना चाहिए जिनका उद्देश्य पोषण बढ़ाने के लिए सामाजिक सुरक्षा, आरंभिक बाल विकास, शिक्षा और जल एवं स्वच्छता हो

#बजट2022 से महिलाओं और बच्चों की सेहत को लेकर ठोस कार्रवाई की अपेक्षा है सिर्फ़ दिखावे की नहीं!
#बजट2022 से महिलाओं और बच्चों की सेहत को लेकर ठोस कार्रवाई की अपेक्षा है सिर्फ़ दिखावे की नहीं!

ये लेख बजट 2022: संख्याओं के अलावा श्रृंखला का हिस्सा है.


महिलाओं और उनके बच्चों के स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त पोषण बेहद महत्वपूर्ण है. भारत में कुपोषण ख़त्म करने के लिए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कुपोषण के चक्र को तोड़ना प्रमुख उपाय है. नीचे बताए गए रेखाचित्र से संकेत मिलता है कि जिन महिलाओं को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है, उनके गर्भावस्था के दौरान भी कुपोषित रहने की आशंका बढ़ जाती है और इस बात का ख़तरा बढ़ जाता है कि वो सामान्य से कम वज़न के बच्चे को जन्म देंगी. ऐसे बच्चे अविकसित रह जाते हैं और उनकी मानसिक क्षमता कमज़ोर होती है, संक्रमण का मुक़ाबला करने की उनकी क्षमता कमज़ोर होती है और पूरे जीवन के दौरान उन्हें बीमारी होने की आशंका ज़्यादा रहती है. ऐसे बच्चों की मृत्यु दर भी ज़्यादा होती है.

भारत में 15-49 वर्ष (जिस दौरान महिलाएं बच्चे को जन्म दे सकती हैं) की पांच में से लगभग एक महिला (18.7 प्रतिशत) दुबली-पतली हैं. इन दुबली-पतली महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई यानी शरीर की लंबाई के अनुपात में वज़न) 18.5 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर से कम है. इसकी वजह से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कुपोषण का चक्र बना रहता है. दुबली-पतली महिलाओं का अनुपात शहरी क्षेत्रों (13.1 प्रतिशत) के मुक़ाबले ग्रामीण क्षेत्रों (21.2 प्रतिशत) में ज़्यादा है. लगभग एक चौथाई महिलाओं (23.3 प्रतिशत) की शादी 18 वर्ष पूरा होने से पहले ही ही जाती है. गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान अपर्याप्त पोषण होने वाले बच्चे के अविकसित रहने की सबसे बड़ी वजह है. मां और शिशु के स्वास्थ्य में निवेश करने से लागत के मुक़ाबले काफ़ी ज़्यादा फ़ायदा मिलता है. निम्न और उच्च-मध्यम आय वाले देशों में इसका तिगुना लाभांश मिलता है.

मिड-डे मील योजना से मदद

समन्वित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) और आंगनवाड़ी प्रणाली के ज़रिए भारत सरकार ने पिछले कुछ दशकों के दौरान कुपोषण का मुक़ाबला करने के लिए महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं. इनके ज़रिए गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं को अतिरिक्त पोषण मुहैया कराया गया है, स्कूलों में मिड-डे मील योजना और माताओं के लिए लाभदायक कार्यक्रम चलाए गए हैं और जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के ज़रिए कम क़ीमत पर अनाज मुहैया कराया गया है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को खाद्य और पोषण सुरक्षा का भरोसा देता है और खाने-पीने के सामान तक लोगों की पहुंच एक क़ानूनी अधिकार बन गया है. 2018 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन शुरू भारत के प्रमुख कार्यक्रम ‘पोषण अभियान’ का लक्ष्य बच्चों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताओं के लिए पोषण का स्तर सुधारना है.

विश्व बैंक के अनुसार ग़रीबी ख़त्म करने के लिए लड़कियों को शिक्षित करना और बाल विवाह को ख़त्म करना ज़रूरी है. संयुक्त राष्ट्र का टिकाऊ विकास लक्ष्य साल 2030 तक लैंगिक समानता और अच्छी शिक्षा का आह्वान करता है.

लेकिन तमाम कोशिशों और कार्यक्रमों के बावजूद महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा को अभी भी नज़रअंदाज़ किया जाता है. महिलाओं के बीच कम शिक्षा, ग़रीबी और कुपोषण जैसी समस्याएं मौजूद हैं. विश्व बैंक के अनुसार ग़रीबी ख़त्म करने के लिए लड़कियों को शिक्षित करना और बाल विवाह को ख़त्म करना ज़रूरी है. संयुक्त राष्ट्र का टिकाऊ विकास लक्ष्य साल 2030 तक लैंगिक समानता और अच्छी शिक्षा का आह्वान करता है. शिक्षा सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता को सक्षम बनाती है और इसलिए ग़रीबी से बचने के लिए ज़रूरी है. भारत में महिलाओं की आबादी क़रीब-क़रीब आधी (48%) है जबकि महिलाएं जीडीपी में सिर्फ़ 18 प्रतिशत का योगदान देती हैं. ऐसे में महिलाओं के द्वारा जिन चुनौतियों का सामना किया जा रहा है, उनका समाधान करने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. कोविड-19 संकट की वजह से महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ रही है. विश्व बैंक के अनुसार, महामारी ने 15 करोड़ लोगों को बेहद ग़रीबी की हालत में धकेल दिया है. इन परिस्थितियों को देखते हुए प्रभावी ढंग से कार्यक्रमों को लागू करने और बजट में आवंटन करने की ज़रूरत है.

पूर्व की योजनाओं से निराशा

केंद्रीय बजट 2021-22 निराशा पैदा करने वाला था क्योंकि महामारी की वजह से महिलाओं के द्वारा चुनौतियों का सामना करने के बावजूद महिलाओं और बच्चों के लिए महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के आवंटन में कटौती की गई थी. महिला और बाल विकास मंत्रालय के बजट में 0.7 प्रतिशत की कमी की गई. पर्याप्त पोषण की व्यवस्था करने के लिए मिशन पोषण 2.0 को शुरू किया गया था लेकिन पोषण योजना के लिए बजट आवंटन में 27 प्रतिशत (3,700 करोड़ से घटाकर 2,700 करोड़ रुपये) की भारी कटौती की गई. पोषण अभियान को उल्लेखनीय ढंग से नहीं लागू करने के बावजूद सक्षम और सामर्थ्य योजनाओं को मिलाकर पोषण 2.0 की शुरुआत की गई. 2.46 प्रतिशत के साथ बच्चों के लिए सबसे कम बजट का आवंटन किया गया. लैंगिक बजट का झुकाव निराश करने वाला था. योजनाओं को बजट में उपयुक्त जगह नहीं दी गई. मातृत्व लाभ योजना में बड़ी कटौती की गई. अनुमानों में 48 प्रतिशत का संशोधन किया गया जिससे आधी महिलाएं लाभार्थियों के रूप में बाहर हो गईं.

पोषण अभियान को उल्लेखनीय ढंग से नहीं लागू करने के बावजूद सक्षम और सामर्थ्य योजनाओं को मिलाकर पोषण 2.0 की शुरुआत की गई. 2.46 प्रतिशत के साथ बच्चों के लिए सबसे कम बजट का आवंटन किया गया.

इससे योजनाओं के ग़लत ढंग से लागू करने का पता चलता है जिसकी वजह से इसका लाभ उठाने वाले लाभार्थियों की संख्या में कमी होती है. बजट आवंटन भी किशोरों के पोषण को नज़रअंदाज़ करने वाला लगता है जबकि आंकड़े संकेत देते हैं कि किशोरों के बीच सूक्ष्म पोषकों की कमी है और उनके पोषण का स्तर ख़राब है. किशोर उम्र की लड़कियों के स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने वाली योजनाओं के लिए ज़्यादा बजट चाहिए और मज़बूती से उनको लागू करने की ज़रूरत है ताकि उन योजनाओं का लाभ उठाने वाले लोगों की घटती संख्या में सुधार किया जा सके. बजट के आवंटन में एक और ज़बरदस्त कमी (726 करोड़ रुपये से घटाकर 48 करोड़ रुपये) महिलाओं की रक्षा और सशक्तिकरण के मिशन में देखी गई. इससे ये संकेत मिलता है कि बदलाव के अवसरों की उम्मीद के बदले आर्थिक रूप से कमज़ोर महिलाओं और लड़कियों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया गया. विशेषज्ञों के अनुसार, “बजट में पोषण मिशन 2.0 का एलान किया गया लेकिन ये तभी प्रभावी होगा जब उसके लिए बजट में पैसे का आवंटन किया जाए.” लगता है कि 2021 के बजट में महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण के मामले में सिर्फ़ दिखावा किया गया.

टिकाऊ विकास के साथ जीवन बचाने और रहन-सहन के स्तर को सुधारने के लिए महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य में निवेश करने की तत्काल आवश्यकता है. ‘लैंगिक बजट’ पर ध्यान रखने की ज़रूरत है क्योंकि इसका महिलाओं और लड़कियों के जीवन पर कई तरह से असर पड़ता है. हमें हर हाल में उन कार्यक्रमों में निवेश जारी रखना चाहिए जिनका उद्देश्य पोषण बढ़ाने के लिए सामाजिक सुरक्षा, आरंभिक बाल विकास, शिक्षा और जल एवं स्वच्छता हो. आजीविका के नुक़सान की वजह से महामारी के दौरान पोषण संबंधी कार्यक्रमों में रुकावट को देखते हुए ये आवश्यक है कि देश की ज़रूरत का ध्यान रखा जाए. हर ज़रूरतमंद के लिए जन वितरण प्रणाली के साथ सबसे ग़रीब लोगों के लिए प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत राहत पैकेज को जारी रखने और बजट में उसके लिए प्रावधान करने की ज़रूरत है. आख़िर में, आर्थिक सुरक्षा के लिए बजट में महिलाओं की सेहत, मातृत्व लाभ और सुरक्षा के हिसाब से पर्याप्त फंड आवंटित करने की ज़रूरत है.


ये समीक्षा मूल रूप से न्यूज़18 में प्रकाशित हुई.

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