Author : Kabir Taneja

Published on Jun 15, 2022 Updated 0 Hours ago

रूस-यूक्रेन के बीच जारी जंग को देखते हुए अमेरिका को अपनी पिछली नीति से कदम खींचते हुए, सऊदी अरब के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाना होगा जिसके लिए मध्य पूर्व में विस्तार करना भी अहम है.

जो बाइडेन का प्रस्तावित सऊदी अरब का दौरा: अराजकता को शांत करने की कोशिश!

वाशिंगटन डीसी में इन दिनों अफ़वाहों का बाज़ार इस बात को लेकर बेहद ग़र्म है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) के साथ सीधे तौर पर संबंध कायम करने की अपनी पुरानी नीति को नज़रअंदाज़ करने की योजना बना रहे हैं और रियाद की यात्रा पर जाने वाले हैं. साल 2019 के संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के चुनाव अभियान के दौरान, पत्रकार जमाल ख़ाशोगी की हत्या के बाद जो बाइडेन ने सऊदी अरब को एक “अछूत” देश की संज्ञा दी थी. हालांकि, 2022 में यूक्रेन रूस के बीच युद्ध की वज़ह से अमेरिकी राष्ट्रपति को एक ऐसा क़दम उठाना पड़ रहा है जिसे लेकर वो लंबे समय से बचते आ रहे थे.

दूर से देखने पर यही लगता है कि खाड़ी के साथ अमेरिका के संबंध काफी अव्यवस्थित हैं, इस सच्चाई के बावज़ूद कि व्हाइट हाउस के सबसे सक्षम मध्य पूर्व सलाहकार ब्रेट मैकगर्क इसकी अगुआई कर रहे हैं.

कुल मिलाकर, यूएस-सऊदी संबंधों से परे, मध्य पूर्व क्षेत्र को लेकर बाइ़डेन प्रशासन के संबंध हमेशा से टकराव वाले ही रहे हैं. सऊदी अरब का छोटा लेकिन ताक़तवर पड़ोसी देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने हाल ही में अबू धाबी और सऊदी अरब पर हूती आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों पर अमेरिका के दोहरे रवैए का विरोध करने के लिए शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों से मिलने से साफ इनकार कर दिया था. दूर से देखने पर यही लगता है कि खाड़ी के साथ अमेरिका के संबंध काफी अव्यवस्थित हैं, इस सच्चाई के बावज़ूद कि व्हाइट हाउस के सबसे सक्षम मध्य पूर्व सलाहकार ब्रेट मैकगर्क इसकी अगुआई कर रहे हैं. जहां तक अमेरिका के खाड़ी देश के भागीदारों का संबंध है, ईरान परमाणु समझौते को फिर से स्थापित करने के लिए एक नए सिरे से दिख रही तेज़ी और जिस अराजक तरीक़े से अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना की वापसी कराई, और अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता को फिर से कट्टर तालिबानी ताक़तों के हाथों सौंप दिया, उसने अमेरिकी सुरक्षा की छत्रछाया की विश्वसनीयता को लेकर ख़तरे की घंटी बजा दी है. आज खाड़ी देश अमेरिका से सुरक्षा गारंटी की मांग तो करते हैं लेकिन अपनी ज़मीन पर विदेशी सैन्य तैनाती के लिए उनकी कम से कम दिलचस्पी है, और ‘हमेशा के लिए युद्ध‘ को समाप्त करने के नैरेटिव को लेकर वो भरोसा चाहते हैं.

बहरहाल, अमेरिका को कभी भी मध्य पूर्व से पूरी तरह से बाहर नहीं निकलना था. यह विचार शायद खाड़ी देशों को अपनी सुरक्षा के लिए ज़्यादा से ज़्यादा ज़िम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित करने से जुड़ा था. अगर इस क्षेत्र में अमेरिका की सख़्त चेतावनी कथित तौर पर पर्याप्त नहीं थी, तो रूस-यूक्रेन संकट ने क्षेत्रीय राजनीतिक समूहों को अपने विकास और संरक्षण के लिए मज़बूर कर दिया, जो मध्य पूर्व के भविष्य के भू-राजनीतिक अवसरों और चुनौतियों को कैसे देखता है, इसके लिए अहम हो गया है. दिलचस्प बात यह है कि ‘तेल के अंत’ की हड़बड़ाहट के कुछ वर्षों के बाद हाइड्रोकार्बन क्षेत्र के अस्तित्व के संकट की बात होने लगी है, और फिर से उन्हीं मूल बातों को लेकर चर्चा होने लगी है जैसा कि वैश्विक तेल की क़ीमतों को कम करना, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यात्रा के प्रमुख एजेंडों में से एक है, जो रियाद और टेक्सास के बीच पुराने द्विपक्षीय संबंधों में फिर से तेज़ी ला सकता है.

मौज़ूदा चुनौतियां

हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति के रास्ते में अवसरों से ज़्यादा चुनौतियां पसरी हुई हैं. अपने रियाद दौरे से कुछ सप्ताह पहले, सऊदी अरब ने खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के सदस्य देशों के अधिकारियों के साथ बैठक करने के लिए रूसी विदेश मंत्री, सर्गेई लावरोव की मेज़बानी की थी. यह ऐसे समय में हुआ जबकि यूरोप के साथ अमेरिका यूक्रेन में मॉस्को की सैन्य घुसपैठ के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश में है. हालांकि, वैश्विक सहमति के बजाय वैश्विक दक्षिण, एशिया, लैटिन अमेरिकी देश और अफ्रीका के देश रूस के ख़िलाफ़ सख़्त रुख़ अपनाने से बच रहे हैं और अपने स्वयं के रणनीतिक और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति को प्राथमिकता दे रहे हैं. और यहीं सऊदी अरब जैसे राज्यों ने ओपेक+व्यवस्था को बनाए रखने और उसे मज़बूत करने के विकल्प का चुनाव किया है, जहां सऊदी अरब 10 अन्य गैर-ओपेक (तेल उत्पादक देश) सदस्यों के साथ इस कार्टेल का स्थायी सदस्य है – जिसमें रूस भी शामिल है, जो दुनिया के शीर्ष तीन तेल उत्पादकों में से एक है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक वस्तुओं की क़ीमतों और मुद्रास्फीति को एक अजीब सी स्थिति में ला खड़ा किया है, जो छोटे और मध्यम आकार की अर्थव्यवस्थाओं को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है. ये छोटे या अधिक जोख़िम वाले देश ‘पूर्व’ बनाम ‘पश्चिम’ के नैरेटिव के बीच पिसने को मज़बूर हैं, और तो और बढ़ी हुई तेल की क़ीमतें ओपेक उत्पादकों के खजाने को हर तरह से फायदा पहुंचा रही हैं.

‘तेल के अंत’ की हड़बड़ाहट के कुछ वर्षों के बाद हाइड्रोकार्बन क्षेत्र के अस्तित्व के संकट की बात होने लगी है, और फिर से उन्हीं मूल बातों को लेकर चर्चा होने लगी है जैसा कि वैश्विक तेल की क़ीमतों को कम करना, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यात्रा के प्रमुख एजेंडों में से एक है, जो रियाद और टेक्सास के बीच पुराने द्विपक्षीय संबंधों में फिर से तेज़ी ला सकता है.

भले ही आज अमेरिका तेल के शीर्ष उत्पादकों में से एक है लेकिन यह अपेक्षाकृत तेल की क़ीमत तय करने वाले प्रभावों से बाहर ही है. उम्मीद है कि बाइडेन अपने दौरे के साथ एमबीएस के साथ संबंधों को ‘सामान्य’ करने का लक्ष्य रखें क्योंकि ऊर्जा और अन्य वस्तुओं की क़ीमतें एसोसिएशन द्वारा लगातार बढ़ाई जा रही हैं. आख़िरकार इस यात्रा की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि एमबीएस अमेरिका से क्या चाहते हैं ना कि बाइडेन क्या मांग रखते हैं.

खाड़ी देश विकल्पों में विविधता लाने के उत्सुक

अगर बाइडेन का दौरा सफल होता है, जैसा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन एमबीएस के साथ होने वाली बैठक को लेकर अपनी ही पार्टी के दबाव को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर रहे हैं, तो इससे मध्य पूर्व में एक नई भू-राजनीतिक वास्तविकता उनका इंतज़ार करती नज़र आएगी. साल 2020 में हस्ताक्षर किए गए अब्राहम समझौते से लेकर यमन में अस्थायी संघर्ष विराम, इज़राइल और सउदी के बीच स्ट्रेट ऑफ़ तिरान को लेकर हाल में हुए सुरक्षा समझौते तक, इस क्षेत्र में जितना मुमकिन हो सके संघर्ष को कम करने की भावना आकार ले रही है और इसी के तहत अमेरिका इन प्रयासों के सकारात्मक परिणाम निकलने का इंतज़ार कर रहा है. हालांकि, आख़िर में सउदी और अमीरात जिन नतीज़ों की तलाश कर रहे हैं वो कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि उच्च स्तर के आधुनिक हथियारों तक उनकी पहुंच, और यहां तक कि अगर उनके अस्तित्व पर कोई ख़तरा मंडराता है तब ऐसी हालत में वो अमेरिका से उसकी प्रत्यक्ष सैन्य भागीदारी की गारंटी भी चाहते हैं. ऐसा भरोसा पाने के लिए मध्य पूर्व के देशों ने भी अमेरिका से इतर दूसरी शक्तियों जैसे चीन पर दांव लगाने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई है, तो बीजिंग ने भी इस क्षेत्र में ख़ुद को इन देशों के साथ लंबे समय के लिए रणनीतिक और आर्थिक भागीदारी रखने में दिलचस्पी बढ़ाई है. हाल में अबू धाबी और बीजिंग के बीच एक दर्ज़न से ज़्यादा एल -15 ट्रेनर जेट के लिए रक्षा सौदा इस बात का इशारा है कि खाड़ी देश अपने विकल्पों में विविधता लाने के लिए उत्सुक हैं.

रूस यूक्रेन युद्ध की वज़ह से अप्रत्याशित तौर पर कई वैश्विक बदलाव देखे जा रहे हैं, ज़्यादा क्षेत्रीय दृष्टिकोण से देखें तो ईरान और परमाणु समझौते का दूसरा अवतार (जेसीपीओए) अभी भी विवादित मुद्दे बने हुए हैं. सऊदी अरब अब यह समझ चुका है कि तेहरान से सीधे निपटना एक बेहतर विकल्प हो सकता है, ख़ास कर तब जब कि अमेरिका जेसीपीओए 2.0 समझौते को पूरा होता देखना चाहता है. हालांकि, जैसी चीज़ें दिख रही हैं, यह सौदा एक बार फिर छिछले समंदर में उलझता दिख रहा है जिसमें पिछले कुछ महीनों में बहुत कम प्रगति हुई है, क्योंकि यह हथियार नियंत्रण समझौते से कहीं अधिक व्यापक है और इसके लिए बड़े स्तर पर बदलाव अपेक्षित है.

इसमें दो राय नहीं कि बाइडेन की रियाद यात्रा भले ही कुछ स्थितियों से निर्धारित हो, जिसके बारे में कयास लगाए जा रहे हैं लेकिन रणनीतिक और विदेश नीति के दृष्टिकोण से लंबे समय में यह सकारात्मक कदम के तौर पर जाना जाएगा. बाइडेन को जिस बात की सबसे ज़्यादा चिंता होगी वह यह कि घरेलू स्तर पर उनके समर्थक इस यात्रा को कैसे देखेंगे क्योंकि अमेरिका में मध्यावधि चुनाव की संभावना प्रबल होती दिख रही है और राष्ट्रपति बाइडेन विदेश और घरेलू दोनों नीतियां पर बुरी तरह घिरे नज़र आ रहे हैं.

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