Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

जो बाइडेन का स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण, यूक्रेन संकट और अफ़ग़ानिस्तान जैसे वैश्विक मुद्दों के बजाय अमेरिका के घरेलू मसलों पर ज़्यादा केंद्रित था.

बाइडेन का स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण: घरेलू मसलों पर ध्यान देने पर ज़ोर
बाइडेन का स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण: घरेलू मसलों पर ध्यान देने पर ज़ोर

स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण (SOTU), अमेरिका के राष्ट्रपति की वो सालाना तक़रीर होती है, जो वे अमेरिकी संसद के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र के सामने देते हैं. आम तौर पर इस भाषण के ज़रिए अमेरिकी राष्ट्रपति अपनी उपलब्धियों का बख़ान करते हैं. देश के सामने खड़ी चुनौतियों और प्राथमिकताओं के साथ-साथ अपने प्रशासन के विधायी प्रस्ताव भी सामने रखते हैं. इसका दूसरा पहलू ये है कि अमेरिकी राष्ट्रपतियों के स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण को राष्ट्रपति की ‘किए जाने वाले काम की सूची’ कहकर उसका मज़ाक़ बनाया जाता है. लेकिन, इस साल अपने भाषण में जो बाइडेन ने यूक्रेन पर रूस के हमले के ख़िलाफ़ तगड़ी बयानबाज़ी और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के घरेलू एजेंडे पर ज़ोर देकर शायद भाषण की आलोचना के दायरे को पार कर लिया. अब ये देखने वाली बात होगी कि बाइडेन के एलान इस साल होने वाले मध्यावधि चुनाव में उनकी राजनीतिक क़िस्मत का पलड़ा किस तरफ़ झुकाते हैं.

इस साल अपने भाषण में जो बाइडेन ने यूक्रेन पर रूस के हमले के ख़िलाफ़ तगड़ी बयानबाज़ी और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के घरेलू एजेंडे पर ज़ोर देकर शायद भाषण की आलोचना के दायरे को पार कर लिया.

जो बाइडेन ने 2 मार्च को अपना सालाना स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण दिया था. इसमें उन्होंने अमेरिकी संसद के सामने अपने पिछले एक साल के कार्यकाल का लेखा-जोखा रखा. बाइडेन ने अपना भाषण उन क़दमों का ज़िक्र करने से शुरू किया, जिनके ज़रिए यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई करने वाले रूस के क़दम रोकने की कोशिश की जा रही थी. रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सांसदों के शोर-शराबे के बीच बाइडेन ने अपना दूसरा स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण अपने ख़ास अंदाज़ में ही दिया. जैसा कि कम-ओ-बेश हर अमेरिकी राष्ट्रपति के स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण में होता है, बाइडेन ने अपने भाषण में सरकार के उन क़दमों का भी हवाला दिया, जो उन्होंने पिछले एक साल में जनता की भलाई के लिए उठाए हैं या फिर उठाने वाले हैं, और भाषण में इन योजनाओं के लाभार्थियों का भी ज़िक्र किया. भाषण के दौरान राष्ट्रपति बाइडेन की पत्नी जिल बाइडेन समेत कई अमेरिकी सांसदों ने यूक्रेन के प्रति समर्थन जताते हुए पीले और नीले रंग की पोशाक पहनी हुई थी, जो यूक्रेन के राष्ट्रीय झंडे के रंग हैं.

कई बार बदला भाषण का ड्राफ्ट

यूक्रेन संकट के बीच हुए इस भाषण के ड्राफ्ट को कई बार बदला गया था. यूक्रेन को लेकर बाइडेन के भाषण में उन बातों पर ज़ोर दिया गया था, जो उनके प्रशासन ने घरेलू राजनीतिक एकता बनाने और यूरोप के साथ गठबंधन मज़बूत करने के लिए उठाए हैं. इसके अलावा भाषण में इस बात को भी साबित करने की कोशिश की गई थी कि बाइडेन प्रशासन ने जो क़दम उठाए हैं, वो रूस के ख़िलाफ़ पर्याप्त रूप से ठोस उपाय हैं. ये प्रयास यूरेशिया में चल रही जियोपॉलिटिक्स से काफ़ी अलहदा है.

रूस के ख़िलाफ़ बाइडेन के तमाम क़दमों में से एक एलान ये भी था कि अमेरिका के न्याय विभाग की अगुवाई में एक टास्क फ़ोर्स रूस के रईसों और भ्रष्ट नेताओं के बारे में जांच करेगी. बाइडेन की इस एलान का मक़सद ये था कि वो पुतिन के क़रीबी लोगों को निशाना बनाकर सख़्त क़दम उठा रहे हैं. हालांकि, अपने भाषण में बाइडेन ने जिस तरह यूक्रेन संकट को तरज़ीह दी उससे साफ़ है कि पिछले एक साल के दौरान उनके प्रशासन की मुख्य चिंता विदेश नीति रही है; लेकिन, यूक्रेन का ज़िक्र करने के फ़ौरन बाद बाइडेन ने अपने भाषण में घरेलू मुद्दों का ज़िक्र किया, जो ये ज़ाहिर करता है कि घरेलू मुद्दों पर उनके प्रशासन के ध्यान केंद्रित करने से अमेरिका की पारंपरिक विदेशी प्रतिबद्धताओं पर स्वदेशी राजनीति हावी है. अमेरिका की विदेशी चिंताएं बाइडेन के भाषण से बिल्कुल नदारद ही रहीं. हम ये कह सकते हैं कि बाइडेन के भाषण में तीन प्रमुख बिंदुओं पर ज़ोर दिया गया था: यूक्रेन को अमेरिका का समर्थन; घरेलू अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाने पर ज़ोर; और, महामारी से निपटना.

महामारी, महंगाई और विदेशी आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता को आपस में जोड़ते हुए बाइडेन ने ‘मेक इन अमेरिका’ का नारा दिया. हालांकि, लोग इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि घरेलू उत्पादन  को बढ़ावा देकर आख़िर अमेरिका फ़ौरी तौर पर कैसे महंगाई पर क़ाबू पा सकता है.

बाइडेन ने भाषण में जिन घरेलू मुद्दों का ज़िक्र किया, उनमें अमेरिका में बढ़ी हुई महंगाई पर क़ाबू पाने के लिए उठाए जा रहे क़दम हैं. इस वक़्त अमेरिका की महंगाई की दर, पिछले चार दशकों में सबसे ज़्यादा है. महंगाई और बढ़ी हुई क़ीमतों का बाइडेन की राजनीतिक हस्ती पर गहरा असर पड़ा है. ज़्यादातर अमेरिकी नागरिक, बल्कि दस में से सात लोग ये मानते हैं कि बाइडेन प्रशासन, महंगाई से अच्छे तरीक़े से नहीं निपट रहा है. महामारी, महंगाई और विदेशी आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता को आपस में जोड़ते हुए बाइडेन ने ‘मेक इन अमेरिका’ का नारा दिया. हालांकि, लोग इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि घरेलू उत्पादन  को बढ़ावा देकर आख़िर अमेरिका फ़ौरी तौर पर कैसे महंगाई पर क़ाबू पा सकता है. 

बाइडेन ने अपने भाषण के ज़रिए डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रति बनाए जा रहे नकारात्मक माहौल का भी तोड़ निकालने की कोशिश की. क्योंकि, इससे उन्हें इसी साल होने वाले मध्यावधि चुनावों में नुक़सान उठाना पड़ सकता है. अमेरिकी संसद के निचले सदन के डेमोक्रेट सांसदों के प्रचार अभियान की जो सामग्री लीक हुई है, उससे पता चलता है कि रिपब्लिकन पार्टी के नेता, डेमोक्रेटिक पार्टी को तीन अहम मसलों को लेकर घेरने वाले हैं: ‘मुद्दों को लेकर समझ की कमी’, सीमा से बढ़ती घुसपैठ और पुलिस की फंडिंग रोकना. बाइडेन ने अपने भाषण के एक बड़े हिस्से को आख़िरी दो मुद्दों पर केंद्रित किया था. इस बारे में उन्होंने अमेरिका के ‘ड्रीमर्स’ का ज़िक्र किया और कहा कि अमेरिका में अवैध अप्रवास की समस्या से निपटने के लिए उसे अपनी सरहदों की कमियां दुरुस्त करने की ज़रूरत है. बाइडेन ने पुलिस को फंड देना जारी रखने का समर्थन किया. इसका मक़सद रिपब्लिकन पार्टी द्वारा पुलिस का फंड रोकने को मुद्दा बनाने से रोकना था. इससे ज़ाहिर है कि बाइडेन ने एक ऐसे एजेंडे को अपने भाषण में शामिल किया, जो डेमोक्रेटिक पार्टी के मुख्य मुद्दों में से नहीं है और न ही इसे दोनों ही दलों का पूरा समर्थन हासिल है.

रूस से आगे नहीं बढ़ें बाइडेन 

हैरानी की बात ये रही कि बाइडेन ने अपने भाषण में अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापसी में नाकामी के मुद्दे का बिल्कुल भी ज़िक्र नहीं किया. जबकि ये मुद्दा उनकी विदेश नीति का अहम पहलू था. अपने भाषण की शुरुआत में उन्हें काफ़ी शाबासी मिली. लेकिन अपने भाषण में बाइडेन रूस से आगे नहीं बढ़ सके, जो उनकी विदेश नीति में यूक्रेन के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया है. आज अफ़ग़ानिस्तान भयंकर मानवीय संकट का शिकार है. इसमें अमेरिका का भी योगदान है क्योंकि उसने अफ़ग़ानिस्तान की काफ़ी रक़म ज़ब्त कर रखी है. इसके बावजूद, बाइडेन ने अपने भाषण में इस मुद्दे से परहेज़ किया. घरेलू मोर्चे की बात करें, तो बाइडेन ने मूलभूत ढांचे के विकास के लिए उठाए जा रहे क़दमों का ज़िक्र किया जिन्हें उनकी सरकार ने ‘बिल्ड बैक बेटर’ कार्यक्रम के तहत शुरू किए हैं. बाइडेन के भाषण में जिन अन्य मसलों पर ज़ोर दिया गया था, उसमें इंसुलिन जैसी दवाओं और दूसरे मेडिकल उत्पाद के वैश्विक व्यापार में अमेरिका की होड़ लगा पाने की ताक़त बढ़ाना शामिल है. क्योंकि अमेरिका में शायद इंसुलिन सबसे महंगा है.

आज अफ़ग़ानिस्तान भयंकर मानवीय संकट का शिकार है. इसमें अमेरिका का भी योगदान है क्योंकि उसने अफ़ग़ानिस्तान की काफ़ी रक़म ज़ब्त कर रखी है. इसके बावजूद, बाइडेन ने अपने भाषण में इस मुद्दे से परहेज़ किया.

एक साल के भीतर, बाइडेन को दो बार विदेश नीति के मोर्चे पर अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. पहले अफ़ग़ानिस्तान में और अब यूक्रेन में चल रहे युद्ध के चलते. कुछ लोगों को ये महसूस होता है कि बाइडेन अपने भाषण में यूरोप के साथ नज़दीकी बढ़ाने पर और भी ज़ोर दे सकते थे. जिससे विदेश में अमेरिका के मज़बूत इरादों का संदेश जाता. अपने भाषण के ज़रिए बाइडेन ने थकान के उस माहौल से भी पार पाने की कोशिश की, जो उनके सत्ता में आने के बाद कई घरेलू विवादों और विदेश नीति की चुनौतियों के चलते तारी हो रही थी.

अमेरिका में राष्ट्रपति के स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण को बहुत बड़े पैमाने पर देखा जाता है. ज़्यादातर अमेरिकी राष्ट्रपति इस भाषण का इस्तेमाल, नाख़ुश मतदाताओं का दिल दोबारा जीतने के लिए करते रहे हैं. बाइडेन की लोकप्रियता की रेटिंग काफ़ी नीची रह रही हैं और अब उन्हें इसी साल मध्यावधि चुनावों का भी सामना करना पड़ेगा. इसीलिए, बाइडेन ने इस भाषण का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक लोकप्रियता का विस्तार करने के लिए किया. स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण के बाद उनकी लोकप्रियता की रेटिंग में असमान्य ढंग से उछाल आया और वो 47 फ़ीसद तक पहुंच गई. इससे निश्चित रूप से बाइडेन को एक राजनीतिक आशा प्राप्त हुई होगी. लेकिन, भविष्य में क्या होगा ये बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अगले आठ महीनों में उनकी लोकप्रियता में आए उछाल का सिलसिला जारी रहता है या नहीं. ये भी कहा जा रहा है कि बाइडेन के भाषण में नस्लवाद के मुद्दे को पूरी तरह से छोड़ दिया गया. जबकि 2021 के स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण में बाइडेन ने इस मुद्दे को काफ़ी तवज़्ज़ो दी थी. लेकिन, इस बार केतनजी ब्राउन जैक्सन को आगे बढ़ाने- जो अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला अश्वेत जज हो सकती हैं- के बावजूद बाइडेन इस बार नस्लवाद के मुद्दे से बचते दिखे. राष्ट्रपति चुनाव में बाइडेन की जीत में अश्वेत मतदाताओं ने बहुत अहम भूमिका निभाई थी और इसी वजह से अमेरिकी संसद के दोनों सदनों में डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत हासिल हुआ था. इस साल होने वाले मध्यावधि चुनावों में भी अश्वेत मतदाताओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी. और आख़िर में, चूंकि स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण के बाद यूक्रेन संकट को लेकर बाइडेन द्वारा उठाए गए क़दमों को समर्थन काफ़ी बढ़ गया है. तो, अब ये देखने वाली बात होगी कि यूक्रेन संकट किस मकाम पर पहुंचकर ख़त्म होता है, और इस युद्ध के बाद की दुनिया अमेरिकी नेतृत्व के लिए कैसी होगी. ये बड़े सवाल प्रेसिडेंट बाइडेन और उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए चुनौती बने रहेंगे.

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