Author : Pulkit Mohan

Published on Jul 27, 2021 Updated 0 Hours ago

हाल ही में हुई इस शिखर सम्मेलन ने, दोनों ही देशों को शस्त्र-नियंत्रण की प्रक्रिया में, एक नई शुरुआत की ओर बढ़ने का मौका प्रदान किया है.

बाइडेन और पुतिन शिखर वार्ता: भविष्य के परमाणु अप्रसार संधि के क्या हैं मायने

हाल ही मे जेनेवा मे संपन्न हुई अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच की बैठक, वॉशिंगटन और मॉस्को के बीच के तनावपूर्ण रिश्तों में कमी लाने की दिशा में एक स्वागतयोग्य बदलाव ला पाने में सफ़ल रहा है. करीब तीन घंटे तक चली, इस शिखर वार्ता में, दोनों ही नेताओं ने परमाणु हथियार और सैन्य कंट्रोल सहित काफी अहम मुद्दों पर विचार- विमर्श किया. वैश्विक परमाणु अप्रसार का भविष्य, आंशिक तौर पर अमेरिका और रूस के एक साथ काम करने, अन्य देशों को परमाणु अप्रसार की संधि के लिए राज़ी करने, अनुकूल नीति बनाने, और परमाणु हथियारों के वैश्विक प्रसार और प्रचार को सीमित करने के प्रति एकमत होने पर निर्भर करता है. 

परमाणु हथियार, अमेरिका और रूस के बीच, तनाव का प्रमुख मुद्दा रहा है. पूरे विश्व का 90 प्रतिशत से भी ज्य़ादा परमाणु हथियार इन्हीं दोनों देशों के पास है. कुछ प्रमुख परमाणु समझौतों जिसमें  आईएनएफ़ यानी Intermediate-Range Nuclear Forces Treaty(INF) और the New Strategic Arms Reduction Treaty (START)    शामिल है, उन्हें निरस्त करने मे ट्रंप प्रशासन की विशेष दिलचस्पी ने, दोनों देशों के परस्पर रिश्तों में अवांछित तनाव पैदा करने के लिए ख़ास तौर पर ज़िम्मेदार है. साथ ही साथ इसने वैश्विक परमाणु व्यवस्था को भी काफी हद तक प्रभावित किया था. रूस और अमेरिका के संदर्भ में देखा जाये तो, INF संधि, के असमय निरस्त्रीकरण ने दोनों देशों के बीच के तनाव को और भी बढ़ा दिया. 2011 में न्यू START प्रभाव में आया और उसके बाद दोनों ही देशों ने अपनी-अपनी सामरिक परमाणु जख़ीरे मे कटौती करना शुरू किया था. 2019 मे दोनों ही देशों की ओर से इस संधि को विस्तार दिए जाने के संदर्भ मे अनिच्छा जाहिर किए जाने के बाद, इस संधि के बढ़ाए जाने की संभावना काफी कमज़ोर पड़ गई थी. ट्रंप शासन के दौरान,  New Strategic Arms Reduction Treaty (START) दोनों ही देशों का ध्यान खींच पाने में असफ़ल रही है, और इसके बाद से दोनों ही देशों के बीच के रिश्ते पहले से भी बदतर हो गए हैं. दोनों देशों के बीच व्याप्त तनाव की वजह से एक नये परमाणु हथियार से जुड़ी प्रतिस्पर्धा चिंता का विषय बन गई है.    

रूस और अमेरिका के संदर्भ में देखा जाये तो, INF संधि, के असमय निरस्त्रीकरण ने दोनों देशों के बीच के तनाव को और भी बढ़ा दिया.

हालांकि, हाल के दिनों में, दोनों देशों के बीच के कूटनीतिक संबंध काफ़ी बिगड़ चुके थे, किन्तु अमेरिकी सत्ता का नेतृत्व बाइडेन के हाथों में आने के बाद, न्यू START को सन् 2026 तक विस्तार दे दी गई है, ये कदम दूर तक मारक क्षमता वाली परमाणु हथियारों को सीमित करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगी. उसके अलावे, हाल ही में हुई इस शिखर सम्मेलन ने, दोनों ही देशों को शस्त्र-नियंत्रण की प्रक्रिया में, एक नई शुरुआत की ओर बढ़ने का मौका प्रदान किया है. दोनों नेताओं ने, दुनिया के सभी बड़े परमाणु शक्तिओं के बीच भविष्य में, किसी भी प्रकार के परमाणु युद्ध की संभावनाओं को कम करने की दिशा मे एक सार्थक कदम उठाते हुए सामरिक स्थिरता वार्ता के अंतर्गत बातचीत का सिलसिला शुरू करने की आवश्यकता पर सहमति जतायी है.

परमाणु हथियारों की संख्या में कमी

इस आगामी बातचीत में होने वाली विचार-विमर्श के मुद्दों पर चर्चा किया जाना अभी बाकी है, किंतु, इससे पहले अमेरिका और रूस के बीच व्याप्त कई अन्य असहमतियों पर गंभीर विचार होना भी बाकी है. नए शस्त्र नियंत्रण वार्ता के अंतर्गत, वॉशिंगटन ने, सामरिक परमाणु हथियारों और साथ ही आने वाले नए टेक्नोलॉजी को शामिल किए जाने के विषय को लेकर अपनी असहमति जतायी है, और मॉस्को ने रक्षात्मक हथियारों के शामिल किए जाने को लेकर अपनी दिलचस्पी दिखलायी है. उसके साथ ही, अमेरिका एक ऐसा नया अनुबंध लाना चाहता है जिसके अंतर्गत, चीन को भी हथियार इकट्ठा करने के एक सीमित दायरे में लाया जा सके.  

हमारे लिए यह जानना भी अत्यंत ज़रूरी है कि, पिछले कुछ सालों में, वैश्विक स्तर पर, परमाणु हथियारों की संख्या मे काफ़ी गिरावट आयी है, परंतु इसके साथ ही परमाणु हथियार की तैनाती की संख्या भी काफ़ी बढ़ गई है. एक बहुत ही सकारात्मक पहलू ये ही है कि, अमेरिका और रूस, दोनों ही देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि वो अपने परमाणु हथियारों के जख़ीरे मे कमी लाने के लिए आगे भी काम करते रहेंगे. हालांकि, यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि दोनों ही देशों ने अपने उन ऑपरेशंस या परियोजनाओं में, परमाणु हथियारों की संख्या में वृद्धि  की है जो पहले से चल रहे हैं.

एक बहुत ही सकारात्मक पहलू ये ही है कि, अमेरिका और रूस, दोनों ही देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि वो अपने परमाणु हथियारों के जख़ीरे मे कमी लाने के लिए आगे भी काम करते रहेंगे.

शस्त्रों मे कमी से संबंधित अभियान की सफ़लता (या विफ़लता) दोनों ही पूर्णतया: दोनों देशों के बीच होने वाली वार्ता और उसके बाद होने वाली समझौते की विश्वसनीयता पर निर्भर करती है. किसी भी समझौते के बग़ैर, दोनों ही पक्षों की ओर से नये परमाणु हथियार, मिसाइल, और अन्य ख़तरनाक हथियारों का निर्माण जारी ही रहेगा. 2009 से शुरू हुई NEW START वार्ता और उसके बाद का उसका अमलीकरण, दोनों ही देशों के बीच हुई बातचीत के बाद शस्त्र-नियंत्रण के प्रयासों पर बनी आम सहमति के बाद ही संभव हो सकी है, क्योंकि दोनों ही देशों की तरफ़ से ऐसा करने के लिए स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया गया था.               

.दोनों देशों के बीच व्याप्त तनाव और वैश्विक परमाणु स्थायित्व के प्रति की चिंता की वजह से दोनों के लिए महत्वपूर्ण है कि आगामी संधि और आम सहमति पत्र में किन-किन बिंदुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है उसे पहले से ही निर्धारित किया जाये, ताकि उसे सहमति पत्र में प्राथमिकता दिया जा सके.

ठीक उसी तरह से वॉशिंगटन और मॉस्को दोनों को, स्पष्ट तरीके से उन शर्तों की पहचान कर उसे निर्धारित करने पड़ेगा, जो भविष्य में शस्त्र नियंत्रण वार्ता में शामिल किया जा सके और जिससे बेहतर और ठोस परिणाम ला पाने की दिशा में, सहमति कायम हो सके. दोनों देशों के बीच व्याप्त तनाव और वैश्विक परमाणु स्थायित्व के प्रति की चिंता की वजह से दोनों के लिए महत्वपूर्ण है कि आगामी संधि और आम सहमति पत्र में किन-किन बिंदुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है उसे पहले से ही निर्धारित किया जाये, ताकि उसे सहमति पत्र में प्राथमिकता दिया जा सके. ज्यों-ज्यों परमाणु हथियारों की तैनाती बढ़ती जा रही है, उसी तरह से तमाम परमाणु-अप्रसार के आदेश भी तनावपूर्ण होते जा रहे हैं. हाल ही में आयोजित शिखर सम्मेलन, शस्त्र नियंत्रण की दिशा में उठाया गया एक ज़रूरी पहल है जो एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है. हालांकि, सहयोग के संभावित पहलुओं को पहचान न पाने, और वाशिंगटन व मॉस्को में बीच के असहमति के ‘कारकों’ को सुलझा पाने की असमर्थता के कारण, भविष्य मे होने वाली इस वार्ता की सफ़लता में बाधा पहुंचा सकता है. इसलिये ये ज़रूरी है कि दोनों देश  अपनी-अपनी आकांक्षाओं का सही आकलन करें, फिर चाहे वो राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मामला हो अथवा रणनीतिक योजना –  उन्हें चाहिये कि वे बिल्कुल ही साफ़ और सुलझी हुई सोच, परस्पर सहयोग की भावना के साथ आगे बढ़ें, – ताकि हथियार जुटाने की आक्रामक होड़ को टाला जा सके.  

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