Published on Nov 18, 2023 Updated 0 Hours ago
नई विश्व व्यवस्था की आहट के बीच भूटान की ‘किलेबंदी’

भूटान और चीन ने 23 और 24 अक्टूबर को सीमा पर बातचीत के 25वें दौर का आयोजन किया और इस तरह अपने सात साल पुराने गतिरोध को ख़त्म किया. ये बातचीत सीमा के परिसीमन और निर्धारण को लेकर साझा तकनीकी टीम (JTT) के काम-काज की रूप-रेखा तैयार करने को लेकर एक सहयोग समझौते पर दोनों देशों की तरफ से हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुई. इसके अलावा दोनों पक्षों ने जल्दी-से-जल्दी सीमा विवाद ख़त्म करने और कूटनीतिक संबंधों को स्थापित करने के उद्देश्य से अवसरों की तलाश के लिए दिलचस्पी भी जताई. ये ऐसा घटनाक्रम है जिसका इशारा भूटान के प्रधानमंत्री डॉ. लोते शेरिंग पहले ही कई बार दे चुके हैं. कमज़ोर अर्थव्यवस्था, निर्धारित सीमा नहीं होने और अपने उत्तरी पड़ोसी के साथ कूटनीतिक संबंधों के नहीं होने जैसी आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से घिरे भूटान को देखकर ऐसा लगता है कि अब वो ज़्यादा समय तक तेज़ी से बदलती विश्व व्यवस्था को नज़रअंदाज़ करने का जोख़िम नहीं उठा सकता है जहां एक मुखर और आर्थिक रूप से बलवान चीन एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. 

मनुहार और धमकी:

20वीं सदी के ज़्यादातर समय के दौरान भूटान ने अपनी अनूठी संस्कृति को बचाने और महाशक्तियों के बीच राजनीति में ख़ुद को घसीटे जाने से परहेज़ करने के लिए बाकी दुनिया से अलग होने की नीति को अपनाया. ये स्थिति तब थी जब उसने 1949 में भारत के साथ दोस्ती और सहयोग की संधि की थी. 1958 में नेहरू के भूटान दौरे और 1959 में तिब्बत पर चीन के कब्ज़े की घटनाओं ने अंतत: भूटान को इस बात के लिए तैयार किया कि वो अपने उत्तरी पड़ोसी के साथ सीमा को बंद कर दे और भारत के साथ एक विशेष संबंध को अपना ले. वैसे तो भूटान की अर्थव्यवस्था, विकास और सुरक्षा के लिए भारत की सहायता समय के साथ बढ़ी है लेकिन भूटान ने बाक़ी दुनिया के साथ अपने संबंधों को बढ़ाया है. फिर भी वो P-5 देशों- चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम (UK) और अमेरिका- के साथ राजनयिक संबंध रखने से कतराता रहा है. 

लेकिन दूसरे P-5 देशों से हटकर चीन और भूटान के बीच कुछ अलग किस्म की समस्याएं हैं. चीन के साथ सीमा साझा करने के बावजूद भूटान की सीमा निर्धारित नहीं है और चीन के साथ भूटान के कूटनीतिक संबंध भी नहीं हैं. इस तरह भूटान चीन का इकलौता ऐसा पड़ोसी देश है जिसके साथ चीन के कूटनीतिक संबंध नहीं हैं और 14 पड़ोसी देशों में वो दूसरा (भारत के अलावा) देश है जिसके साथ चीन का अनसुलझा सीमा विवाद है. इस प्रकार भूटान एक बढ़ती ताकत और एशियाई आधिपत्य की चीन के दर्जे को चुनौती देता है. इसके नतीजतन चीन ने सीमा विवाद ख़त्म करने और कूटनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए भूटान के साथ अक्सर धमकी और कभी-कभी मनुहार की नीति अपनाई है. उसने नये नक्शे जारी करके, सीमा पर घुसपैठ को प्रोत्साहन देकर, भूटान के चरवाहों को भगाने के लिए तिब्बत के चरवाहों को हथियार से लैस करके और भूटान के क्षेत्र के भीतर बस्तियों को बढ़ावा देकर भूटान को धमकाने का काम जारी रखा है. संयोग की बात है कि 1984 से 2017 के डोकलाम गतिरोध तक भूटान और चीन के बीच 24 दौर की बातचीत हुई है. 

हाल के वर्षों में भारत के साथ चीन की दुश्मनी, गैर-दोस्ताना भूटान को लेकर आशंका और तिब्बत में संभावित अशांति ने बीजिंग को इस बात के लिए प्रेरित किया है कि वो भूटान के ख़िलाफ़ धमकी देने की नीति को तेज़ करे. इसके परिणामस्वरूप चीन ने भूटान के विवादित उत्तरी और पश्चिमी सेक्टर में सीमा पर नए गांवों को बसाना जारी रखा है और भूटान के पूर्वी सेक्टर में नए दावे किए हैं. इसके जवाब में भूटान ने सीमा पर विवाद को लेकर बातचीत में तेज़ी दिखाई है. उदाहरण के लिए, 2020 में गलवान संघर्ष के बाद भूटान और चीन- दोनों देशों ने बातचीत की मेज पर सीमा को निर्धारित करने, तय सीमा रेखा के दौरे और औपचारिक रूप से सीमा के निर्धारण को लेकर तीन चरण के रोडमैप पर चर्चा की. इस समझौता ज्ञापन (MoU) पर 2021 में 10वें विशेषज्ञ समूह की बैठक (EGM) में हस्ताक्षर हुए. इसके बाद 11वीं, 12वीं और 13वीं EGM केवल 2023 में आयोजित हुई. 13वीं EGM के दौरान बॉर्डर के परिसीमन के लिए साझा तकनीकी टीम (JTT) की बैठक हुई. पिछले दिनों दोनों सरकारों ने बातचीत का 25वां चरण आयोजित किया और JTT के काम-काज और ज़िम्मेदारियों की रूप-रेखा तय करने को लेकर एक सहयोग समझौते पर दस्तखत किए. उन्होंने कूटनीतिक संबंध शुरू करने की संभावनाओं पर भी चर्चा की.  

उलझन और दांव

विवाद को तुरंत ख़त्म करने के इरादे के साथ भूटान असहज समझौता करने के लिए तैयार है. चीन के साथ भूटान का विवाद उत्तर, पूर्व और पश्चिम सेक्टर में है. उत्तर में विवादित क्षेत्र पासमलुंग और जकरलुंग घाटी हैं (नक्शा 1). भौगोलिक तौर पर बात करें तो ये सेक्टर पश्चिमी सेक्टर की तुलना में काफी बड़ा है और सांस्कृतिक रूप से भूटान के लिए महत्वपूर्ण है- फिर भी ये चीन और भारत के लिए बहुत कम भू-राजनीतिक और सामरिक महत्व रखता है. इसकी वजह से चीन ने विवाद को ख़त्म करने के लिए भूटान को ये क्षेत्र अपने पास रखने और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण पश्चिमी सेक्टर सौंपने को कहा. हालांकि, भूटान इसके लिए तैयार नहीं हुआ. 

नक्शा 1: उत्तरी सेक्टर में विवादित क्षेत्र

स्रोत- द वायर

पूर्व में (नक्शा 2) सकतेंग इलाका विवादित है. चीन ने इसके ऊपर दावा 2020 में आकर किया और शायद इसके मूल में अरुणाचल प्रदेश के ऊपर चीन का दावा है. बहरहाल, ये सेक्टर चीन की सीमा पर नहीं है और पहले की बातचीत में इस पर चर्चा नहीं की गई है. 

अंत में, पश्चिमी सेक्टर में चीन और भूटान के बीच विवाद द्रमाना एवं शाखातो, सिनचुलुंगपा एवं लैंगमारपो घाटी, याक चू एवं चरिथांग घाटी और डोकलाम क्षेत्र में है. ये विवादित इलाके सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चीन की चुंबी घाटी- भारत और भूटान के बीच छोटा त्रिकोणीय इलाका- के नज़दीक हैं. चीन के मौजूदा दावों (नक्शा 2) के हिसाब से चलें तो वो इस त्रिकोणीय इलाके का विस्तार करने का इरादा रखता है जिससे वो भारत के ख़िलाफ़ अपनी आक्रामक स्थिति को सुधारने में सक्षम हो जाएगा. दूसरी तरफ, भारत को इस बात का डर है कि मौजूदा स्थिति में बदलाव पूर्वोत्तर क्षेत्र को बाकी भारत से जोड़ने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर में उसकी रक्षात्मक स्थिति को ख़तरे में डाल सकता है. यहीं पर डोकलाम क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है. इस सेक्टर में डोकलाम इकलौता ट्राइजंक्शन (तिराहा) क्षेत्र है जहां पर चीन, भूटान और भारत की सीमा मिलती है. इस क्षेत्र पर नियंत्रण से चीन को घाटी में एक गहरी मौजूदगी मिलती है और जम्फेरी रिज के साथ-साथ भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर में उसकी निगरानी की क्षमता मज़बूत होती है. इसके नतीजतन चीन दावा करता है कि ट्राइजंक्शन की शुरुआत गिपमोची से होती है जबकि भारत और भूटान बतांग ला को ट्राइजंक्शन (नक्शा 2) बताते हैं. डोकलाम में चीन के द्वारा सड़क बनाने की कोशिश के कारण भारत के साथ 2017 में उसका गतिरोध भी हो चुका है.  

नक्शा 2: पश्चिमी और पूर्वी सेक्टर के विवादित क्षेत्र

स्रोत: फॉरेन पॉलिसी, लेखक 

भूटान की सुरक्षा जटिलताओं में चीन की मुखरता और भारत के साथ विशेष संबंध शामिल हैं. इसे देखते हुए भूटान ये सुनिश्चित कर रहा है कि दोनों पक्ष सीमा को लेकर बातचीत के साथ ख़ुश हों. उसने चीन के साथ बातचीत जारी रखी है और कुछ इलाकों पर अपना दावा छोड़ने का संकेत दिया है. ऐसी बातचीत में पूर्व और पश्चिम सेक्टर के क्षेत्र शामिल हो सकते हैं जहां भूटान ने लगातार चीनी घुसपैठ और बस्तियों से इनकार किया है. उत्तरी सेक्टर में उल्लेखनीय बदलाव की उम्मीद की जा सकती है क्योंकि यहां दिक्कतें कम हैं. पश्चिम में भूटान ने स्वीकार किया है कि डोकलाम क्षेत्र को लेकर बातचीत एक त्रिपक्षीय मुद्दा होगी. इस तरह उसने डोकलाम के अलावा दूसरे क्षेत्रों की अदला-बदली की तरफ इशारा किया है. बहरहाल, डोकलाम के आसपास भी दावा छोड़ने की उम्मीद की जा सकती है (जैसे कि पांगदा गांव) क्योंकि भूटान का इतिहास इस क्षेत्र में चीनी घुसपैठ से इनकार करता है. ये समझौता चीन को भी ख़ुश कर सकता है क्योंकि ये चुंबी घाटी में एक व्यापक (अगर काफी गहरा नहीं तो) मौजूदगी की पेशकश करता है. अंत में, पूर्व सेक्टर में इस बात की संभावना कम है कि रियायतों में सकतेंग सेक्टर भी शामिल होगा क्योंकि ये भारत के लिए ख़तरे का नया इलाका खोल देगा और अरुणाचल प्रदेश के ऊपर चीन के दावों को वैधता भी प्रदान करेगा. 

आर्थिक आकांक्षाएं:

सीमा को निर्धारित करके भूटान चीन के साथ अपने कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ाने की भी उम्मीद रखता है. आज भूटान कई आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है जैसे कि घटता विदेशी मुद्रा भंडार, बढ़ता व्यापार घाटा, कमज़ोर प्राइवेट सेक्टर, कर्ज़ का ख़तरा, सार्वजनिक खर्च से विकास में तेज़ी, पर्यटन में धीमा सुधार, राजस्व घाटा, इत्यादि. इन आर्थिक मुद्दों की वजह से भूटान से युवाओं के पलायन की रफ्तार भी बढ़ी है. इस प्रकार, कोविड-19 के प्रकोप के बाद देश में आर्थिक सुधारों और पुनर्गठन पर ज़ोर है. सरकार विविधता बढ़ाने, आयात को कम करने, निर्यात को बढ़ावा देने और डिजिटल एवं IT और विज्ञान एवं तकनीक के सेक्टर पर ध्यान देने के लिए उत्सुक है. इसके अलावा, चार औद्योगिक पार्क और एक विशेष आर्थिक क्षेत्र पर भूटान में काम चल रहा है और उम्मीद की जाती है कि ये निवेश लाएंगे और आर्थिक विकास को बढ़ावा देंगे. भूटान ने भारत में काम करने वाली दुनिया की बड़ी कंपनियों के द्वारा अपने यहां निवेश करने की इच्छा रखने पर उन्हें प्रोत्साहन (इन्सेंटिव) की पेशकश में भी दिलचस्पी दिखाई है. वास्तव में सुधारों, निवेश और विकास की ज़रूरत को देखते हुए इस बात को लेकर हैरान नहीं होना चाहिए कि भूटान ने हाल के वर्षों में मुखर होकर चीन से आर्थिक फायदे हासिल करने की ज़रूरत को ज़ाहिर किया है. 

इस तरह की चाहत के साथ-साथ चीन से आयात में भी बढ़ोतरी हुई है. वैसे तो कोविड महामारी के बाद ज़्यादा महंगाई, आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी, खर्च करने के लिए ज़्यादा रक़म (डिस्पोज़ेबल इनकम) होने की वजह से आयात पर भूटान के खर्च में बढ़ोतरी हुई है लेकिन पिछले दशक में चीन से आयात में भी धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही है. केवल पिछले दो वर्षों के दौरान ही आयात में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है और ये 2020 में 2 अरब रुपये से बढ़कर 2022 में 15 अरब रुपये हो गया है (टेबल और ग्राफ 1 देखिए). आयातित सामानों में खनिज/रसायन जैसे कि कोक, एल्युमिनियम, कैल्शियम, दुर्लभ पृथ्वी धातु (रेयर अर्थ मेटल्स), लौह मिश्र धातु, इत्यादि; महत्वपूर्ण सेक्टर के कैपिटल गुड्स जैसे कि खेती की मशीनें, मेडिकल उपकरण/मशीन, IT उपकरण, कंस्ट्रक्शन सेक्टर के सामान, इत्यादि; ड्यूरेबल और इंटरमीडियरी आयात जैसे कि टेलीफोन, टीवी, फ्रिज, कपड़े, गारमेंट, फर्नीचर, टाइल्स, खिड़कियां, दरवाजे, प्रीफैब्रिकेटेड इमारत, इत्यादि शामिल हैं. इस तरह मशीनरी और ड्यूरेबल सामानों का आयात संकेत देता है कि जैसे-जैसे भूटान आगे बढ़ रहा है और अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन कर रहा है, वैसे-वैसे चीन विकास का साझेदार बना रहेगा. 

टेबल 1. भूटान और चीन के बीच व्यापार अरब नगुल्ट्रम/भारतीय रुपये में 

वर्ष

चीन से आयात

चीन को निर्यात

चीन के साथ कुल व्यापार

2006

0.28

(<) 0.0001

0.28

2007

0.4

0.019

0.41

2008

0.84

0.012

0.85

2009

0.48

0.0015

0.48

2010

0.61

(<) 0.0001

0.61

2011

0.87

0.006

0.87

2012

1.3

0.0024

1.3

2013

1

0.001

1

2014

0.94

0.004

0.94

2015

1.3

0.0019

1.3

2016

1.4

0.008

1.4

2017

1.6

0.0014

1.6

2018

1.6

0.0014

1.6

2019

1.7

0.005

1.7

2020

2

0.0011

2

2021

7.5

0.155

7.7

2022

15

(<) 0.002

15

 

 

 

 

 

स्रोत: वित्त मंत्रालय, भूटान

ग्राफ 1. भूटान और चीन के बीच व्यापार अरब नगुल्ट्रम/भारतीय रुपये में 

टेबल 2. भूटान और भारत के बीच व्यापार अरब नगुल्ट्रम/भारतीय रुपये में (बिना जलशक्ति व्यापार के)

वर्ष

भारत से आयात

भारत को निर्यात

भारत के साथ कुल व्यापार

2006

13

14

27

2007

15

22

37

2008

17

21

38

2009

19

12

31

2010

29

15

44

2011

35

15

50

2012

41

17

58

2013

43

17

60

2014

47

21

68

2015

53

19

72

2016

55

19

74

2017

53

19

72

2018

59

21

80

2019

56

23

79

2020

51

15

66

2021

71

26

97

2022

85

26

111

 

स्रोत: वित्त मंत्रालय, भूटान

ग्राफ 2. भूटान और भारत के बीच व्यापार अरब नगुल्ट्रम/भारतीय रुपये में (बिना जलशक्ति व्यापार के)

स्रोत: वित्त मंत्रालय, भूटान

वैसे तो चीन के साथ भूटान का व्यापार भारत की तुलना में मात्रा में कम और एकतरफा है (टेबल 2 और ग्राफ 2 देखिए). लेकिन हाल के वर्षों में चीन के सामान की मांग भूटान में बढ़ी है. ये स्थिति तब है जब चीन से आयात भारत के ज़रिए होता है और उन सामानों पर अधिक टैक्स लगाया जाता है और उन्हें अनुचित व्यापार व्यवहार (अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस) से गुज़रना पड़ता है जिसकी वजह से कीमत बढ़ जाती है. इसके अलावा, चीन ने कूटनीतिक संबंधों की स्थापना होते ही भूटान के साथ सहयोग और व्यापारिक रियायतों की ज़्यादा संभावनाओं का संकेत दिया है. वैसे इस बात के पीछे औचित्य है कि भूटान चीन के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंध की बात क्यों कर रहा है. भौगोलिक और आर्थिक कारणों के द्वारा व्यापार और सुरक्षा के लिए भूटान को दक्षिण की तरफ धकेले जाने के बावजूद चीन अब भूटान के सामरिक और आर्थिक नफा-नुकसान का एक ज़रूरी हिस्सा बन गया है.  


आदित्य गोदारा शिवामूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो

हैं.

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Author

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. He focuses on broader strategic and security related-developments throughout the South Asian region ...

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