Author : Soumya Bhowmick

Expert Speak India Matters
Published on May 07, 2024 Updated 0 Hours ago

लैंगिक समानता के लिए की जाने वाली कोशिशों के क्या नतीज़े सामने रहे हैं, यानी इसमें क्या प्रगति हो रही है, इसका आकलन करने के लिए पहले से स्थापित सूचकांकों की भूमिका बेहद अहम है. लेकिन दुर्भाग्यवश इनके लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीक़ों से लैंगिक समानता की सही तस्वीर सामने नहीं पाती है.

संख्या से परे: महिला नेतृत्व की नये सिरे से व्याख्या की ज़रूरत!

लैंगिक समानता का लक्ष्य यानी महिलाओं और पुरुषों के लिए हर क्षेत्र में समान अवसर प्रदान करना 21वीं सदी में एक सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आर्थिक गतिविधियों जैसे क्षेत्रों में ज़बरदस्त प्रगति के बावज़ूद लैंगिक असमानता बरक़रार है, यानी तमाम उद्योगों एवं सेक्टरों में शीर्ष पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुरुषों के बराबर नहीं पहुंच पाया है. ज़ाहिर है कि किसी कंपनी में शीर्ष स्तर पर समुचित महिला प्रतिनिधित्व नहीं होने से केवल कार्यबल का बेहतर इस्तेमाल करने में मुश्किलें आती हैं, बल्कि इससे सामाजिक विकास पर भी असर पड़ता है. उल्लेखनीय है कि लैंगिक समानता जानने के जो भी मानक हैं, उनमें कई ख़ामियां हैं. यानी ये मापदंड ऐसे नहीं हैं, जो महिलाओं के आगे बढ़ने या उनके शीर्ष भूमिकाओं तक पहुंचने की राह में आने वाली मुश्किलों का सही-सही पता लगा पाएं. ख़ास तौर पर ग्लोबल साउथ के देशों में तो यह एक सच्चाई है. इस कमी को दूर करने के लिए लैंगिक समानता की पड़ताल हेतु एक ऐसे व्यापक दृष्टिकोण को अपनाना ज़रूरी है, जो महिला नेतृत्व और महिला सशक्तिकरण के रास्ते में आने वाली हर परेशानी को ध्यान में रखता हो. यानी व्यापक स्तर पर आंकड़ों को एकत्र करना और उनका गहनता से विश्लेषण आवश्यक है, ताकि ज़मीनी हक़ीक़त का पता लगाया जा सके

 उल्लेखनीय है कि लैंगिक समानता जानने के जो भी मानक हैं, उनमें कई ख़ामियां हैं. यानी ये मापदंड ऐसे नहीं हैं, जो महिलाओं के आगे बढ़ने या उनके शीर्ष भूमिकाओं तक पहुंचने की राह में आने वाली मुश्किलों का सही-सही पता लगा पाएं. 

लैंगिक सूचकांकों का नए सिरे से निर्धारण

 

दुनिया में लैंगिक समानता को लेकर हो रही प्रगति को परख़ने के लिए तमाम विश्वसनीय और स्थापित सूचकांक मौज़ूद हैं. जैसे कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स और UNDP का लैंगिक असमानता सूचकांक. ये सूचकांक देखा जाए तो महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और राजनीति में हिस्सेदारी समेत तमाम दूसरे क्षेत्रों में उनकी स्थिति के बारे में ज़रूरी जानकारी उपलब्ध कराते हैं. इसके अलावा यूएन वुमन का महिला सशक्तिकरण सिद्धांत एवं जॉर्जटाउन इंस्टीट्यूट का महिला, शांति और सुरक्षा सूचकांक जैसी पहलें भी महिलाओं के अधिकारों एवं उनके समावेशन से जुड़े विशेष पहलुओं के बारे में जानकारी मुहैया कराती हैं. हालांकि, इन सूचकांकों और पहलों में अक्सर महिलाओं से संबंधित सभी मसलों को तवज्जो नहीं दी जाती है, बल्कि इनमें कुछ ख़ास विषयों से जुड़े आंकड़ों को ही प्रमुखता दी जाती है.

 

ख़ास तौर पर भारत जैसे विकासशील देश की महिलाओं की बात की जाए, तो जितने भी सूचकांक है, वे वास्तविक तस्वीर के बजाए आधी-अधूरी तस्वीर ही सामने लाते हैं. उदाहरण के तौर पर भारत की संसद में सितंबर 2023 में महिला आरक्षण विधेयक को स्वीकृति दी गई थी. इस विधेयक में राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है. हालांकि, सच्चाई यह है कि भारत में विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं के आरक्षण या फिर उनकी संख्या में बढ़ोतरी से यह ज़रूरी नहीं है कि नीति निर्माण की प्रक्रिया में भी उनका समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा. यह सच्चाई कहीं कहीं बुनियादी विषयों से लैस एक अधिक व्यापक और समावेशी ढांचे की ज़रूरत को सामने लाती है. यानी एक ऐसे फ्रेमवर्क की आवश्यकता को सामने लाती है, जिसमें महिला सशक्तिकरण के बहुआयामी पहलुओं और महिलाओं के कार्य करने की अलग-अलग परिस्थितियों के मुताबिक़ प्रावधान किए गए हों.

 

लैंगिक समानता सूचकांक के लिए एक बहुआयामी फ्रेमवर्क

 

  1. राजनीतिक नेतृत्व: वैश्विक स्तर पर उपलब्ध आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि दुनिया में हर स्तर पर निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व नहीं हैं. इन आंकड़ों से संकेत मिलता है कि राजनीति में लैंगिक समानता की बात अभी दूर की कौड़ी है. ज़ाहिर है कि महिलाओं से जुड़े मुद्दों को ज़ोरदार तरीक़े से उठाने और लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने के लिए राजनीति में महिलाओं की समुचित भागीदारी बेहद ज़रूरी है. कुल मिलाकर,इसके लिए सरकार में सिर्फ़ निर्वाचित पदों पर महिलाओं की समुचित भागीदार आवश्यक है,बल्कि राजनीतिक दलों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होना ज़रूरी है. साथ ही नीतियां बनाने वाली संस्थाओं में और महिला अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले संगठनों में भी महिलाओं की प्रभावशाली भूमिका होना ज़रूरी है.

 

  1. महिलाओं की उद्यमशीलता: महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण,उनके लिए रोज़गार के अवसरों के सृजन और इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं की अगुवाई में चलने वाले उद्यमों का प्रोत्साहन बेहद आवश्यक है. इसके लिए ऐसी बाधाओं के बारे में पता लगाना बेहद ज़रूरी है जो उद्यमशील महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बनती हैं. जैसे कि अपना उद्यम चलाने वाली महिलाओं को वित्तीय मदद देकर, उनका समुचित मार्गदर्शन करके,व्यावसायिक स्तर पर उनके लिए अनुकूल माहौल बनाकर और उन्हें आवश्यक क़ानूनी ढांचा उपलब्ध कराके, उनकी सफलता सुनिश्चित की जा सकती है.

 

  1. बिजनेस लीडरशिप: कॉर्पोरेट जगत में महिलाओं के शीर्ष पदों पर पहुंचने में, यानी उनकी तरक़्क़ी के रास्ते में तमाम बाधाएं बरक़रार हैं और कई कोशिशों के बावज़ूद इन्हें दूर नहीं किया जा सका है. इसके लिए बड़ी कंपनियों, गैर-लाभकारी संस्थाओं और सामुदायिक संगठनों समेत विभिन्न सेक्टरों और उद्योगों में शीर्ष पदों पर महिलाओं का उचिति प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. वर्ष 2023 के आंकड़ों के मुताबिक़ विभिन्न सेक्टरों की कंपनियों और उद्योगों में निदेशक,वाइस प्रेसिडेंट,या सीईओ, सीओओ और सीएफओ आदि जैसी शीर्ष भूमिकाओं में महिलाओं की संख्या 32.2 प्रतिशत थी, जो कि 41.9 प्रतिशत के कुल महिला कार्यबल की तुलना में क़रीब 10 प्रतिशत कम है.

 सच्चाई यह है कि भारत में विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं के आरक्षण या फिर उनकी संख्या में बढ़ोतरी से यह ज़रूरी नहीं है कि नीति निर्माण की प्रक्रिया में भी उनका समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा. 

चित्र 1: कार्यबल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व (विभिन्न उद्योगों में कुल महिला श्रमबल और शीर्ष स्तर पर नियुक्त महिलाएं)

 

 

स्रोत: वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023

 

  1. रिसर्च और अकादमिक सेक्टर में महिलाएं: सामाजिक बदलाव,सामुदायिक विकास और ज्ञान अर्जन यानी जानकारी हासिल करने के लिहाज़ के देखें तो शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण है. इसमें शोध और अनुसंधान से जुड़े कार्यों में महिलाओं की भागीदारी,अकादमिक संस्थानों में उच्च पदों पर उनकी संख्या और शैक्षणिक गतिविधियों एवं इनोवेशन में महिलाओं की भूमिका के बारे में आंकलन किया जाता है. यूनेस्को के आंकड़ों के मुताबिक़ वैश्विक स्तर जितने भी लोग रिसर्च कार्यों में जुटे हैं,उनमें महिलाओं की संख्या 30 प्रतिशत से भी कम है. ज़ाहिर है कि इस क्षेत्र में लैंगिक असमानता को वास्तविकता में कम करने के लिए,सिर्फ़ आंकड़ों पर ध्यान देने के बाजाए उन मुश्किलों को समझना ज़रूरी है,जो महिलाओं को रिसर्च में अपना करियर बनाने के आड़े आती हैं.

 

  1. लैंगिक रूप से उत्तरदायी सामाजिक संरक्षण और सुरक्षा: उल्लेखनीय है कि अगर महिलाएं किसी भी क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका में हैं,तो उनके लिए एक सुरक्षित और सहज माहौल का होना भी ज़रूरी है. इसमें इस बात की पड़ताल की जाती है कि कोई देश महिलाओं की सुरक्षा के लिए किस स्तर पर सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों को लागू करता है. इनमें बच्चों की देखभाल से जुड़ी सुविधाएं,हेल्थकेयर से जुड़ी सुविधाएं और हिंसा एवं भेदभाव जैसे मामलों में महिलाओं को लिए क़ानूनी प्रावधान शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, इसमें सार्वजनिक क्षेत्रों और कार्य स्थलों या दफ़्तरों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले इंतज़ामों का मूल्यांकन किया जाता है.

 

चित्र 2: क्षेत्रीय स्तर पर लैंगिक-उत्तरदायी सामाजिक संरक्षण और सुरक्षा के लिहाज़ से औसत उपलब्धि के आंकड़े

 

 

 

स्रोत: सतत विकास लक्ष्य 5, टार्गेट 5.1, यूएन वुमन

 

महिला नेतृत्व के इकोसिस्टम को विकसित करना

 

अलग-अलग सेक्टरों और क्षेत्रों में विभिन्न स्तरों पर महिलाओं के सामने आने वाली परिस्थितियों के बारे में जानकारी जुटाने से पता चलता है कि उन्हें किस-किस तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ता है और किस प्रकार के अवसर उन्हें प्राप्त होते हैं. व्यापक स्तर पर मिली यह जानकारी देशों के विकास स्पेक्ट्रम की गहराई से तुलना करने में मदद करती है,जिससे कहीं कहीं लैंगिक समानता की दिशा में होने वाली प्रगति का सटीक आकलन करने में सहायता मिलती है. ज़ाहिर है कि विकास स्पेक्ट्रम मानव विकास की स्थिति,उपलब्धि और क्षमता का पैमाना है,जिसका उपयोग व्यक्तियों,परिवारों या समुदायों के मानव विकास का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है. गौरतलब है कि जब शीर्ष पद पर बैठी महिला फैसले लेती है,तो उसका नज़रिया बिलकुल अलग होता है,जिससे अलग-अलग उद्योगों में ऐसे प्रभावशाली समाधान सामने आते हैं,जिनकी उम्मीद पुरुषों से नहीं की जा सकती है. इतना ही नहीं, अगर निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में महिलाओं की अधिक भागीदारी होती है,तो वे शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश को प्राथमिकता देती हैं,साथ ही गुणवत्तापूर्ण जीवन और बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने में योगदान देती हैं और शांति स्थापित करने वाली पहलों को प्रमुखता देती हैं.

 जब इस महिलाओं को होने वाली दिक़्क़तों से जुड़े व्यापक आंकड़े हासिल होंगे,तो इससे महिलाओं की प्रगति में आने वाली हर तरह की रुकावटों को दूर करने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही महिलाओं को सभी क्षेत्रों में नेतृत्व करने और आगे बढ़ने के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने हेतु विशेष नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने में भी सहायता मिल सकती है.

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि लैंगिक संकेतक कहीं कहीं उन शुरुआती तथ्यों को ही सामने लाते हैं, जो केवल महिला नेतृत्व के बारे में गहरी समझबूझ विकसित करने का काम करते हैं,बल्कि यह भी बताते हैं कि महिला सशक्तिकरण कितना महत्वपूर्ण है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास करने वाले कारकों को जानने-समझने के लिए ऊपरी तौर पर उपलब्ध आंकड़ों से हटकर इस दिशा में गंभीरता से कार्य किए जाने की ज़रूरत है. ज़ाहिर है कि जब इस महिलाओं को होने वाली दिक़्क़तों से जुड़े व्यापक आंकड़े हासिल होंगे,तो इससे महिलाओं की प्रगति में आने वाली हर तरह की रुकावटों को दूर करने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही महिलाओं को सभी क्षेत्रों में नेतृत्व करने और आगे बढ़ने के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने हेतु विशेष नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने में भी सहायता मिल सकती है. इतना ही नहीं, इस दिशा में गहन रिसर्च से जुड़े प्रयासों के अंतर्गत व्यापक स्तर पर आंकड़ों को एकत्र करने एवं उनका विश्लेषण करने के लिए एक बेहतर कार्यप्रणाली को भी विकसित किया जाना चाहिए,ताकि एक अधिक समावेशी लैंगिक समानता सूचकांक विकसित किया जा सके. यानी एक ऐसा सूचकांक विकसित किया जा सके,जिसमें वैश्विक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में शीर्ष पदों पर बैठी महिलाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों का पूरा विश्लेषण किया गया हो.


सौम्या भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

(लेखक ओआरएफ की इंटर्न एवं Pratham Ti फेलो आरती महतो का रिसर्च में मदद करने लिए धन्यवाद करते हैं.)

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