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जर्मनी ने पहली बार अपने उस रणनीतिक दस्तावेज़ को सार्वजनिक किया है, जिसमें भारत के प्रति उसकी विदेश नीति की प्राथमिकताओं का वर्णन किया गया है.
Image Source: Getty
भारत और जर्मनी के बीच हर साल होने वाली अंतर-सरकारी परामर्श बैठक से ठीक एक सप्ताह पहले, जर्मन सरकार ने अपना पहला रणनीतिक दस्तावेज़ प्रकाशित किया. ये दस्तावेज़ पूरी तरह से भारत के साथ जर्मनी के जुड़ाव पर केंद्रित था. हालांकि आधिकारिक तौर पर इसमें किसी रणनीति का लेबल नहीं लगाया गया है, लेकिन "फोकस ऑन इंडिया" नाम के इस दस्तावेज़ को बनाने में मंत्रिमंडल स्तर की भागीदारी और कार्यक्षेत्र की प्राथमिकता इसे लेकर स्पष्ट संदेश देती है. इससे साफ ज़ाहिर होता है कि ये दस्तावेज़ भारत के प्रति जर्मनी के नियोजित दृष्टिकोण को बताने करने वाला एक व्यापक मैनुअल है. भारत-जर्मन विदेश, सुरक्षा और व्यापार संबंधों के कल्पित भविष्य के बारे में जर्मनी के विचारों को प्रस्तुत करने वाले इस सार्वजनिक दस्तावेज़ में घरेलू और बाहरी दोनों क्षेत्रों के कार्य बताए गए हैं. घरेलू स्तर की बात करें तो "भारत पर ध्यान" की मुख्य भूमिका सभी सरकारी विभागों को वैचारिक स्तर पर एक समान सोच पर लाना है. बाहरी रूप से, ये भारत को आश्वासन का एक मजबूत संदेश भेजता है. ये इस बात का संकेत देता है कि मौजूदा दौर में जर्मनी में राजनीतिक निर्णय लेने वाले नीति निर्माताओं के बीच भारत की प्रतिष्ठा बहुत उच्च स्तर की है.
भारत-जर्मन विदेश, सुरक्षा और व्यापार संबंधों के कल्पित भविष्य के बारे में जर्मनी के विचारों को प्रस्तुत करने वाले इस सार्वजनिक दस्तावेज़ में घरेलू और बाहरी दोनों क्षेत्रों के कार्य बताए गए हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यापार, प्रवासन और तकनीकी सहयोग जर्मन-भारत संबंधों के लिए ज़्यादा अहम हो गए हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर हाल ही में उभरी सुरक्षा चिंताओं ने दोनों देशों की साझेदारी में एक रणनीतिक गंभीरता ला दी है. पिछले कुछ साल से, दोनों साझेदारों को संशोधनवादी शक्तियों द्वारा भू-राजनीतिक रूप से धमकी दी गई है. 2020 में चीनी सेना के साथ गलवान घाटी में झड़प ने भारत को अपनी चीन नीति पर पुनर्विचार करने पर मज़बूर कर दिया. इसी तरह रूस के प्रति अब तक जर्मनी का जो दृष्टिकोण था, उसे भी चुनौती मिली है. रूस को लेकर जर्मनी का दृष्टिकोण "वांडेल डर्च हैंडेल" (व्यापार के माध्यम से परिवर्तन)का था लेकिन फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले ने इस नज़रिए को बदलकर रख दिया. इसके अलावा, जर्मनी ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में रूस के हमले की निंदा की, लेकिन इसी दौरान जर्मनी को पता चला कि अतीत में रूस के साथ भारत की साझेदारी कितनी मज़बूत और दीर्घकालिक रही है. जर्मनी और भारत दोनों के लिए पड़ोस की चुनौतियां एक-दूसरे में नई रुचि खोजने के लिए केंद्रीय थीं क्योंकि दोनों ही देश नए साझेदारों की पहचान करने के साथ-साथ अपनी बाहरी निर्भरता में विविधता लाने की कोशिश कर रहे थे.
रूस के प्रति भारत के व्यवहार ने जर्मनी की विदेश नीति के लिए दुविधा उत्पन्न कर दी. एक तरफ, जर्मन सरकार को एहसास हुआ कि जब यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की बात आई तो भारत उसका भू-राजनीतिक सहयोगी नहीं था. दूसरी तरफ, भारत को जर्मनी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार और ग्लोबल साउथ के एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधि के रूप में देखता है. दूसरे शब्दों में कहें तो जर्मनी को इस बात पर विचार करना था कि ऐसे साझेदार से कैसे निपटना है जो उसके भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी यानी रूस के साथ भी भागीदार है. भारत की प्राथमिकताएं बहु-स्तरीय रही हैं, जो विशेष रूप से, जर्मनी की स्थापित रणनीतिक प्रथा के विपरीत रही हैं. जर्मनी का दृष्टिकोण संधि-आधारित गठबंधन सहयोग पर केंद्रित रहता है. यही वजह है कि भारत के प्रति विदेश नीति की प्राथमिकताओं का वर्णन करने वाले जर्मनी के पहले सार्वजनिक रणनीतिक दस्तावेज़ को नए नज़रिए से देखने की ज़रूरत है. इसे चीन के साथ संतुलन बनाने में भारत की प्रासंगिकता के साथ-साथ रणनीतिक रूप से स्वायत्त भारत से निपटने की जटिलताओं की मान्यता के रूप में पढ़ा जा सकता है.
"फोकस ऑन इंडिया" दो काम करता है: पहला, ये मौजूदा साझेदारी की एक व्यापक फेहरिस्त प्रदान करता है, जिसमें न्यायिक, नागरिक समाज और उप-राष्ट्रीय सहयोग जैसे अलग-अलग कार्यक्षेत्र शामिल हैं. दूसरा, और शायद ये आगामी सरकारी परामर्शों के लिए ज़्यादा प्रासंगिक होगा, वो है संघीय विदेश कार्यालय के नेतृत्व वाले दृष्टिकोण का उद्देश्य नए साझेदारी प्रस्तावों को आगे बढ़ाना है. इसे लेकर तीन तरह के सुझाव सामने आते हैं: पहला, सरकारी परामर्शों का आकार बढ़ाना. दूसरा, एक प्रमुख सुरक्षा भागीदार बनने की इच्छा. तीसरा, जलवायु और ऊर्जा सहयोग पर ज़्यादा रणनीतिक दृष्टिकोण.
अगर जर्मनी में संघीय सरकार के सुझावों को लागू किया जाता है, तो द्विपक्षीय संबंध जल्द ही और अधिक व्यापक हो सकते हैं. एक प्रमुख प्रस्ताव ये है कि ज़्यादा इनपुट और फीडबैक के साथ द्वि-वार्षिक सरकारी परामर्श को समृद्ध करने के लिए भारत-जर्मन संवाद मंच की शुरुआत की जाए. हालांकि संवाद मंच को व्यापक चर्चा मंच बनने का प्रस्ताव है, लेकिन "फोकस ऑन इंडिया" इस बात पर ज़ोर देता है कि साइबर सुरक्षा से लेकर जलवायु नीति तक कई मुद्दों पर पूर्वकाल या वर्तमान में जो भी संवाद हो रहा है, उसमें और ज़्यादा विस्तार करने की ज़रूरत है. हालांकि, जिस बात का ज़िक्र नहीं किया गया है, वो ये कि संवादों की बहुलता को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक संरचना क्या होगी? सबसे व्यावहारिक रास्ता तो यही लगता है कि सभी क्षेत्रीय संवाद प्रारूपों को व्यापक संवाद मंच के उप-ट्रैक के रूप में रखा जाए. इसमें कुशलता और सुसंगतता सुनिश्चित करने के लिए संवाद मंच और नीति ट्रैक के बीच कम से कम कुछ समन्वय की आवश्यकता होगी.
फोकस ऑन इंडिया रणनीतिक दस्तावेज़ की सबसे महत्वपूर्ण नीति घोषणाएं द्विपक्षीय सुरक्षा संबंधों को लेकर हैं. इसमें सबसे दूरगामी एलान ये है कि जर्मन संघीय सरकार जर्मनी और भारतीय सेनाओं के बीच पारस्परिक रसद समर्थन पर एक समझौता स्थापित करना चाहती है.
फोकस ऑन इंडिया रणनीतिक दस्तावेज़ की सबसे महत्वपूर्ण नीति घोषणाएं द्विपक्षीय सुरक्षा संबंधों को लेकर हैं. इसमें सबसे दूरगामी एलान ये है कि जर्मन संघीय सरकार जर्मनी और भारतीय सेनाओं के बीच पारस्परिक रसद समर्थन पर एक समझौता स्थापित करना चाहती है. ये प्रस्ताव हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रक्षात्मक क्षमताओं को मज़बूत करने और रूस पर अपनी सैन्य निर्भरता कम करने को लेकर है. ये जर्मनी के हित से जुड़ा है. दिल्ली में हिंद महासागर क्षेत्र के लिए इंफोर्मेशन फ्यूज़न सेंटर में जर्मनी एक और बुंडेसवेहर संपर्क अधिकारी को नियुक्त करने में रुचि दिखा रहा है. इससे स्पष्ट है कि जर्मनी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की चिंताओं को समझना चाहता है. उसकी ये कोशिश 2020 में प्रकाशित जर्मनी के व्यापक इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण और 2021 में इस क्षेत्र में एक फ्रिगेट के कमीशनिंग पर आधारित है. हालांकि इस दस्तावेज़ में हथियार निर्यात नियंत्रण प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए जो प्रतिबद्धताएं दिखाई गईं हैं, वो जवाब कम देती हैं और सवाल ज़्यादा खड़े करती हैं. हालांकि ये घोषणा "फोकस ऑन इंडिया" की नीति के अनुरूप है, लेकिन इसमें हथियारों के प्रकार का उल्लेख नहीं किया गया है. इससे जर्मनी में ये घरेलू राजनीतिक बहस पैदा हो सकती है कि भारत को लेकर उसकी नई हथियार निर्यात नीति का दायरा क्या होगा. ऐसे में अगर दोनों देश एक-दूसरे की रक्षात्मक क्षमताओं को आगे बढ़ाने के लिए हथियारों के सहयोग पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करें तो ये बेहतर यथार्थवादी स्थिति हो सकती है.
"फोकस ऑन इंडिया" दस्तावेज़ में जो सबसे अनूठी यानी नयापन वाली बात है, वो है रणनीतिक गंभीरता. ये विभिन्न नीति क्षेत्रों में दोनों देशों के हितों के बीच संबंध बनाकर साझेदारी प्रदान करती है. इसका सबसे उल्लेखनीय उदाहरण जलवायु सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा का सीधा संबंध है. इन दोनों लक्ष्यों को सार्वजनिक रूप से जोड़ने से ये संकेत मिलता है कि भारत के साथ जर्मनी की विकास साझेदारी का औचित्य भू-आर्थिक रूप से कहीं ज़्यादा जागरूक हो सकता है. जिस नए संवाद मंच की स्थापना प्रस्तावित है, वो नीतिगत क्षेत्रों के बीच आगे के तालमेल का पता लगाने के लिए एक आदर्श स्थान होगा.
इस तरह के दृष्टिकोण का लाभ ये है कि रणनीतिक दस्तावेज़ निश्चित रूप से इस सप्ताह के सातवें सरकारी परामर्श के लिए एक उपयोगी बातचीत का आरंभिक बिंदु साबित हो सकता है.
"फोकस ऑन इंडिया" दस्तावेज़ व्यावहारिकता के साथ दोनों देशों के हित-आधारित दृष्टिकोण को जोड़ता है. ये उन क्षेत्रों में तो ध्यान देता ही है, जहां पहले से ही सहयोग बढ़ रहा है. जैसे कि ये सुरक्षा, जलवायु और प्रौद्योगिकी नीति में नए प्रासंगिक सुझाव देता है. हालांकि, जिन क्षेत्रों में साझेदारी को पहले चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, उन्हें लेकर इस रणनीतिक दस्तावेज़ में स्पष्ट तरीके से विचार सामने नहीं रखे गए हैं, जैसे कि बहुपक्षीय सहयोग या यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार समझौता. कुल मिलाकर, "फोकस ऑन इंडिया" उन नीति क्षेत्रों को मज़बूत करके द्विपक्षीय साझेदारी को संबोधित करता है, जहां जर्मनी पहले से ही प्रगति और अपने लिए मौके देखता है. इस तरह के दृष्टिकोण का लाभ ये है कि रणनीतिक दस्तावेज़ निश्चित रूप से इस सप्ताह के सातवें सरकारी परामर्श के लिए एक उपयोगी बातचीत का आरंभिक बिंदु साबित हो सकता है. हालांकि, रणनीतिक साझेदारी को परिपक्व करने और दबाव झेलने के लिए, विचार-विमर्श के क्षेत्रों पर स्पष्ट चर्चा सर्वोपरि है. इसके लिए दोनों देशों को ये तय करना होगा कि आखिर वो कौन सी नीतियां और सिद्धांत हैं, जिन पर वो कोई समझौता नहीं करेंगे. स्पष्ट विचारों के साथ साझेदारी में संभावित ज़ोखिमों पर आपसी समझ बनना ज़रूरी है. इसलिए ये महत्वपूर्ण है कि अगर प्रस्तावित भारत-जर्मन संवाद मंच को लागू किया जाता है, तो ये चुनौतियों के साथ-साथ प्रगति के बारे में भी खुलकर बातचीत करने का एक बहुहितधारक मंच बन जाएगा. इतना ही ज़रूरी ये भी है कि जर्मनी का दृष्टिकोण यूरोपीय संघ-भारत संबंधों के अनुभवों से लाभ उठा सकता है, उससे सीख सकता है. ये दोनों शक्तियों के बीच व्यापार संबंधों को आकार देने में महत्वपूर्ण है.
(टोबीस स्कोल्ज़ जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स में एसोसिएट हैं)
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Tobias Scholz is an Associate at the German Institute of International and Security Affairs. ...
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