Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

बदलती भू-राजनीति को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया और भारत- दोनों देश सिर्फ़ ज़ुबानी जमा खर्च से आगे बढ़ते हुए एक मज़बूत साझेदारी बनाने के लिए उत्सुक हैं.

ऑस्ट्रेलिया और भारत के द्विपक्षीय संबंधों में ‘नये अध्याय’ की शुरुआत
ऑस्ट्रेलिया और भारत के द्विपक्षीय संबंधों में ‘नये अध्याय’ की शुरुआत

ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंध दिन पर दिन बदल रहे हैं. बहुपक्षीय मंचों और क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच भागीदारी बढ़ गई है. इस भागीदारी का लक्ष्य दोनों देशों के लिए लाभदायक साझेदारी के उद्देश्य से असली प्रतिबद्धताओं और प्रक्रियाओं को बनाना है. अगर वर्ष 2020 ऑस्ट्रेलिया-भारत के द्विपक्षीय संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी (सीएसपी) तक बढ़ाने का साल था तो 2021 द्विपक्षीय संबंधों को रफ़्तार और ऊर्जा देकर द्विपक्षीय आर्थिक हिस्सेदारी को मज़बूत करने का साल रहा. इसी तरह 2022 निश्चित रूप से एक नई और प्रतिबद्ध हिस्सेदारी की सोच को केंद्रित शुरुआत देने का साल है और द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से फरवरी का महीना बेहद व्यस्त और भरोसा देने वाला महीना रहा.

इंडो-पैसिफिक आर्थिक एकीकरण को जारी रखने के लिए दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच ज़्यादा भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी स्थापित करने की भी ज़रूरत है.

गतिशील वैश्विक भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक स्थिति प्रतिस्पर्धा को तेज़ कर रहा हैऔर ये उन शक्तियों, सिद्धांतों और मूल्यों को बदलरहा है, जिन पर क्षेत्रीय व्यवस्था आधारित होनी चाहिए. महामारी की बाधाओं ने ज़्यादा संपर्क, सहयोग और सह-अस्तित्व के लिए नये तरह के उत्प्रेरक बनाये हैं. विशाल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, जिसमें कम-से-कम 38 देश आते हैं और जो दुनिया की सतह का 44 प्रतिशत हिस्सा है, में दुनिया की 64 प्रतिशत से ज़्यादा जनसंख्या रहती है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का वैश्विक जीडीपी में 62 प्रतिशत योगदान है और 50 फीसदी से ज़्यादा वैश्विक व्यापार इंडो-पैसिफिक के समुद्र से होकर गुज़रता है. ये क्षेत्र विकास के मामले में बेहद असमान है जहां अलग-अलग देश विकास के अलग-अलग स्तर पर हैं. इन सभी देशों को महासागर जोड़ता है और ये शक्ति के नये केंद्र बिंदु के रूप में उभर रहा है. ऑस्ट्रेलिया ने क्वॉड्रिलेटरल सुरक्षा संवाद (क्वॉड) के लिए भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर का स्वागत किया और समूह के दूसरे सदस्य देशों जापान और अमेरिका के साथ मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए अपना समर्थन दोहराया. क्वॉड के सदस्य देश “पूरे क्षेत्र में कोविड-19 वैक्सीन पहुंचाने में तेज़ी लाने के अलावा मानवीय सहायता और आपदा के दौरान जवाब देने, समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद का मुक़ाबला, दुष्प्रचार के जवाब और साइबर सुरक्षा समेत क्षेत्रीय चुनौतियों के समाधान” को लेकर सहमत हुए. ऑस्ट्रेलिया ने 2022 के मध्य में इंडो-पैसिफिक क्लीन एनर्जी सप्लाई चेन फोरम की मेज़बानी की पेशकश भी की है.

इंडो-पैसिफिक: आर्थिक एकीकरण

इंडो-पैसिफिक आर्थिक एकीकरण को जारी रखने के लिए दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच ज़्यादा भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी स्थापित करने की भी ज़रूरत है. ऑस्ट्रेलिया पांच वर्षों में 36.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर मुहैया कराएगा. इसमें से 11.4 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर समुद्री जहाज़, आपदा सामर्थ्य और सूचना साझाकरण पर क्षेत्रीय सुधार करने पर खर्चकिया जाएगा . ऑस्ट्रेलिया क्षेत्रीय आर्थिक चुनौतियों में भागीदारी बढ़ाने और बांग्लादेश के डिजिटल सेक्टर में नये अवसरों की तलाश करने पर 10.2 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का निवेश करेगा. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ऑस्ट्रेलिया के कारोबारियों के लिए क्षेत्र में बुनियादी ढांचें के निवेश के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए  5.8 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का निवेश करेगी. इसके साथ ही ऑस्ट्रेलियाई संसाधनों और खनन उपकरणों, तकनीक एवं सेवाओं को बेहतर करने और दक्षिण एशियाई बाज़ारों को समझने पर 4.8 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का निवेश करेगी. ऑस्ट्रेलिया, भारत और बांग्लादेश के बीच एलएनजी सप्लाई चेन को समर्थन देने के लिए 4.3 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और खर्च किया जाएगा. ये सभी क़दम उत्तर-पूर्व हिंद महासागर में व्यापार, निवेश और संपर्क के लिए अवसर पैदा करेंगे. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को लेकर बदलती सोच भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक परिकल्पना और माहौल में उभरते संरचनात्मक बदलाव के बारे में बताती है.

चौथी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के साथ आविष्कार, डिजिटल अर्थव्यवस्था और साइबर एवं महत्वपूर्ण तकनीक में सहयोग भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी का अहम हिस्सा बन गए हैं जो न्यू सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर क्रिटिकल एंड एमर्जिंग टेक्नोलॉजी पॉलिसी के ज़रिए सुरक्षा मानक, सर्वश्रेष्ठ कार्य प्रणाली और नैतिक रूप-रेखा बनाने के लिए उद्योग, शिक्षा क्षेत्र और विषय के जानकारों के बीच सहयोग का एक माहौल बनाते हैं. ऑस्ट्रेलिया-भारत के विदेश मंत्रियों के बीच शुरुआती साइबर संवाद में निवेश के लिए मज़बूत अवसरों और साइबर, महत्वपूर्ण एवं उभरती तकनीकों में अत्याधुनिक आविष्कार को और बढ़ावा देने पर ध्यान दिया गया.

ऑस्ट्रेलिया और भारत ने ऑस्ट्रेलिया-भारत इंफ्रास्ट्रक्चर फोरम की भी शुरुआत की है जो इंफ्रास्ट्रक्चर में दो तरफ़ से निवेश को बढ़ावा देने और व्यापक व्यापार और निवेश के द्विपक्षीय उद्देश्यों का समर्थन करने में केंद्र के रूप में काम करेगा. 

विदेश मंत्री  डॉ. एस. जयशंकर के ऑस्ट्रेलिया दौरे के समय ही ऑस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्री डैन तेहन भारत के दौरे पर गए. इस दौरे का उद्देश्य मौजूदा द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत, जिसे व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (सीईसीए) भी कहा जाता है, को आगे बढ़ाना था. इस बात की पूरी संभावना है कि पूर्ण रूप से सीईसीए आज नहीं तो कल वास्तविकता में बदलेगा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में संघीय चुनाव होने वाला है. जिस आर्थिक संदर्भ में सीसीईए पर बातचीत हो रही है, वो बदल गया है. दो साल पहले के हालात से ये अब पूरी तरह अलग है. जिस तरह से आपूर्ति, लोगों और संसाधनों के संकट ने कारोबार में ख़ुद को स्पष्ट किया है, उससे तरीक़ों की पूरी तरह जांच-पड़ताल करने की ज़रूरत है. सीईसीए के लागू होने से शुल्क कम होंगे और कपड़ों, दवाई, जूते-चप्पल, डेयरी उत्पादों, दूध, महंगी शराबों और कई अन्य क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया और भारतीय निर्यातकों को ज़्यादा पहुंच का अवसर प्रदान करेगा. सीईसीए कोविड के बाद आर्थिक रिकवरी पर ध्यान केंद्रित करेगा, साथ ही ऑस्ट्रेलिया में भारतीय कंपनियों की ऑफशोर (अपने देश के बाहर) आमदनी पर कर के मौजूदा मुद्दे का जल्द समाधान करेगा. ये एक ऐसा मामला है जिस पर ऑस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्री तेहन और भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बीच बैठक के दौरान भी चर्चा हुई. ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ ईयू, यूके और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता में फिर से जान डालने की भारत की कोशिश, अगले पांच वर्षों में 100 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार के लक्ष्य के साथ यूएई से मुक्त व्यापार समझौते पर भारत का दस्तखत भारत की इस इच्छा पर ज़ोर देता है कि वो वैश्विक व्यापार के लिए ख़ुद को खुला रखना चाहता है. इससे ये तय होगा कि भारत किस हद तक निवेश आकर्षित कर सकता है, निर्यात को बढ़ा सकता है, घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बना सकता है और दूसरे देशों के कारोबारियों को भारत में उत्पादन के लिए प्रोत्साहन दे सकता है. भारत का लक्ष्य 2025 तक विश्व में सामानों के निर्यात में 5 प्रतिशत और सेवा निर्यात में 7 प्रतिशत हिस्सा हासिल करना है जो कि वर्तमान में सामानों के निर्यात में 1.67 प्रतिशत और सेवाओं के निर्यात में 3.54 प्रतिशत है.

ऑस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्री तेहन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पर्यटन सहयोग पर समझौता ज्ञापन (एमओयू) के जरिए भी अपनी प्रतिबद्धताओं को नया रूप दिया है. इससे दोनों देशों के पर्यटन क्षेत्र के ऑपरेटर वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवा चुके वीज़ा धारकों, जिनमें पर्यटक और व्यवसायी शामिल हैं, के लिए ऑस्ट्रेलिया के द्वारा अपनी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को फिर से खोलने का लाभ उठा सकेंगे.

अगले 10 वर्षों में भारत दुनिया में सौर ऊर्जा की तकनीकों को अपनाने के मामले में सबसे बड़े देशों में से एक हो जाएगा और इस क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया और भारत के आविष्कारकों के लिए मिल-जुलकर काम करने की बहुत संभावना है.

ये समझौता दोनों देशों के कारोबारियों के आने-जाने को प्रोत्साहित करेगा और पर्यटन नीति, डाटा साझा करने, प्रशिक्षण और उद्योग भागीदारी के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देगा. महामारी से पहले ऑस्ट्रेलिया के लिए भारत अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के मामले में सबसे तेज़ी से बढ़ता देश था. 2019 में भारत के लगभग 4,00,000 पर्यटकों ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया और कुल मिलाकर 1.8 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए. ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय प्रवासियों की बड़ी संख्या और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का दस्ता भारतीय जनसंख्या के बड़े हिस्से के लिए अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के दरवाज़े खोलना जारी रखेगा. ये भारत में ‘ब्रैंड ऑस्ट्रेलिया’ को बनाने में भी मददगार हैं. इससे व्यापक द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी के दृष्टिकोण से सांस्कृतिक साक्षरता और एक-दूसरे के बारे में सोच में और सुधार होगा.

ऑस्ट्रेलिया-भारत इंफ्रास्ट्रक्चर फोरम की शुरुआत

ऑस्ट्रेलिया और भारत ने ऑस्ट्रेलिया-भारत इंफ्रास्ट्रक्चर फोरम की भी शुरुआत की है जो इंफ्रास्ट्रक्चर में दो तरफ़ से निवेश को बढ़ावा देने और व्यापक व्यापार और निवेश के द्विपक्षीय उद्देश्यों का समर्थन करने में केंद्र के रूप में काम करेगा. भारत में ऑस्ट्रेलिया के लिए शहरी बुनियादी ढांचे, परिवहन और पानी के क्षेत्र में अवसर ध्यान देने के मुख्य क्षेत्र हैं. ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े रिटायरमेंट फंड ऑस्ट्रेलियन सुपर, जिसके पास 200 अरब अमेरिकी डॉलर का फंड प्रबंधन के लिए है, ने वर्तमान में 1.5 अरब डॉलर का निवेश भारत में किया है. बड़े सॉवरेन फंड, पेंशन फंड और प्राइवेट इक्विटी के भारत में निवेश और भारत सरकार के राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के तहत 2025 तक 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के खर्च की योजना के साथ परस्पर क्षमताओं को मिलाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में ज़बरदस्त अवसर हैं.

सामाजिक और सांस्कृतिक रुझान तेज़ी से बदल रहे हैं और इन बदलावों को समझना, उन पर विचार करना और उनके साथ संगठित होना महत्वपूर्ण है. ऑस्ट्रेलिया-भारत के बीच सामुदायिक सहयोग, रचनात्मकता, समझ और आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने भी 20.8 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के कुल निवेश के साथ तीन मैत्री पहल की शुरुआत की है. 11.2 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के मैत्री छात्रवृत्ति कार्यक्रम का उद्देश्य भारत के प्रतिभावान विद्यार्थियों को ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के लिए मदद देना है. ये छात्र विशेष तौर पर विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग, गणित और स्वास्थ्य के होने चाहिए. 3.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का मैत्री अनुदान और फेलोशिप कार्यक्रम भविष्य के नेताओं के बीच संपर्क बनाएगा. ये कार्यक्रम ऑस्ट्रेलिया और भारत के जो लोग पेशेवर करियर के मध्य में है, उनको सामरिक अनुसंधान और साझा प्राथमिकता पर सहयोग के लिए समर्थन देगा. 6.1 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की ऑस्ट्रेलिया-भारत मैत्री सांस्कृतिक साझेदारी आर्थिक क्षेत्र में रचनात्मकता की भूमिका को बढ़ावा देगी. इसके साथ ही विज़ुअल एवं परफॉर्मिंग आर्ट, साहित्य, फिल्म, टेलीविज़न और संगीत उद्योग में कलाकारों की प्रतिभा एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहन देने के लिए लोगों के बीच आपसी संबंधों को बढ़ावा देगी. इस द्विपक्षीय साझेदारी के केंद्र में ‘लोग’ हैं और उनके बीच आदान-प्रदान मज़बूत सांस्कृतिक समझ और अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क की स्थापना के द्वारा सलाह और समर्थन का स्वाभाविक लाभ प्रदान करते हैं जिसका फ़ायदा बड़े पैमाने पर उठाया जा सकता है. नई क्षमता बनाने और ये समझने के लिए कि किस तरह सत्ता और संस्थान काम करते हैं, उसके लिए मज़बूत मानवीय पूंजी में रणनीतिक निवेश द्विपक्षीय संबंधों में विकास को लेकर एक बढ़ावा देने वाला क़दम है.

आज हम जो देख रहे हैं वो वास्तव में एक सच्ची व्यापक द्विपक्षीय विकास की कहानी है जो निरंतरता, प्रतिबद्धता और क्रियाशीलता से प्रेरित है. 

चौथे ऑस्ट्रेलिया भारत ऊर्जा संवाद में दोनों देशों ने तकनीक की लागत कम करने का निर्णय लिया है जिससे वैश्विक उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी. इसका उद्देश्य बेहद कम क़ीमत में सौर ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और उसके इस्तेमाल समेत वास्तविक गतिविधियों और परियोजनाओं पर ध्यान देना है. ये पहल ऑस्ट्रेलिया के तकनीकी निवेश मानचित्र का हिस्सा है जहां उसने नई अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी (565.8 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के निवेश के साथ) के समर्थन की प्रतिबद्धता जताई है और जर्मनी, सिंगापुर, जापान, दक्षिण कोरिया और यूनाइटेड किंगडम के बाद भारत, ऑस्ट्रेलिया के लिए छठा द्विपक्षीय निम्न उत्सर्जन तकनीकी साझेदार है. दुनिया भर में 90% से ज़्यादा सोलर बैटरी में ऑस्ट्रेलियाई तकनीक का इस्तेमाल होता है. अगले 10 वर्षों में भारत दुनिया में सौर ऊर्जा की तकनीकों को अपनाने के मामले में सबसे बड़े देशों में से एक हो जाएगा और इस क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया और भारत के आविष्कारकों के लिए मिल-जुलकर काम करने की बहुत संभावना है. हाइड्रोजन उद्योग में भारत का राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन ऑस्ट्रेलिया की आधुनिक तकनीक के साथ क़दम मिलाकर चल सकता है. केंद्रीय बजट 2022 में हरित बदलाव पर भारत के काफ़ी ज़ोर को देखते हुए भी दोनों देशों के बीच ये साथ ज़रूरी है.

ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच साझेदारी अब ऊपरी स्तर पर नहीं है. आज हम जो देख रहे हैं वो वास्तव में एक सच्ची व्यापक द्विपक्षीय विकास की कहानी है जो निरंतरता, प्रतिबद्धता और क्रियाशीलता से प्रेरित है. मुख्य बात ये है कि भारत में ऑस्ट्रेलिया से इस संबंध को बढ़ाया जाए और ऑस्ट्रेलिया में भारत से इस संबंध को बढ़ाया जाए. इसके लिए एक सर्वांगीण बहुपक्षीय रणनीति और दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो एक-दूसरे के लिए समझ और सराहना को और गहरा करते हैं.

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