Author : Vikas Kathuria

Published on Feb 08, 2021 Updated 0 Hours ago

डिजिटल बाज़ारों की अनोखी सुविधाओं, ज़रूरतों और तकनीकी व आर्थिक प्रवृत्तियों के चलते इन्हें नियंत्रित करने वाले ‘सॉफ्ट-टच’ रेगुलेशन अब नाकाफ़ी साबित हो रहे हैं.

भारत में डिजिटल बाज़ारों के लिए प्रत्याशित नियमन

डिजिटल उत्पाद और सेवाएं हर जगह मौजूद हैं, और दुनिया भर में फैली महामारी के कारण यह और भी अधिक प्रमुख हो गए हैं, क्योंकि उपयोगकर्ता अब अपने घरों में क़ैद हैं और डिजिटल उत्पादों के ज़रिए अधिक से अधिक काम पूरा करने की कोशिशों में जुटे हैं. जहां एक ओर डिजिटल बाज़ार आधुनिक अर्थव्यवस्था के मूल में हैं, वहीं अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि इन बाज़ारों को उपभोक्ताओं के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए ‘एंटीट्रस्ट’ जैसे हस्तक्षेपों के अलावा भी कुछ तरीक़े चाहिए, ताकि डिजिटल उत्पाद सही मायने में उपभोक्ताओं के कल्याण के लिए काम कर सकें. आम तौर पर बाज़ार की परिस्थितियां इस तरह होती हैं कि उस में मौजूद प्रतिस्पर्धा, उत्पादों की कीमत को कम रखने और उनकी गुणवत्ता बहाल करने का काम करती है. नतीजतन, उपभोक्ता और अर्थव्यवस्था दोनों इस प्रतिद्वंद्विता से लाभान्वित होते हैं. इन बाज़ारों को नियमित करने के लिए ‘एंटीट्रस्ट’ क़ानूनों का उपयोग किया जाता है जो औद्योगिक क्षेत्रों की इकाईयों और सभी सेक्टर पर लागू होते हैं. यह क़ानून व्यापार को प्रभावित करने वाले तौर-तरीक़ों की वैधता का मूल्यांकन करते हैं. एंटीट्रस्ट में ‘ट्रस्ट’ शब्द का अर्थ है बड़े व्यापारिक घराने. यह सुनिश्चित करने के लिए कि बाज़ारो में मौजूद प्रतिस्पर्धा की प्रक्रिया निष्पक्ष और मज़बूत हो,  मुक्त बाज़ार, प्रतिस्पर्धा के क़ानूनों (competition law) का नरम रूप, जिसे सॉफ्ट टच रेगुलेशन के रूप में जाना जाता है, चुनते हैं जो नियमन का काम करता है. हालांकि, डिजिटल बाज़ारों की अलग व अजीब तकनीकी संरचना और उस में संबद्ध आर्थिक विशेषताओं को देखते हुए ‘सॉफ्ट टच’ यानी नरम क़ानूनी नियमन अब नाकाफ़ी साबित हो रहा है. माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft), गूगल (Google) और फेसबुक (Facebook) जैसी बड़ी टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ एंटीट्रस्ट मामलों में यह बात सामने आई है कि इस तरह की कार्रवाई की शुरुआत करने वाली इकाईयों को लगातार संघर्ष करना पड़ता है.

क्यों विशिष्ट हैं डिजिटल बाज़ार?

डिजिटल बाज़ारों में उपलब्ध उत्पाद, अक्सर स्व-शिक्षण एल्गोरिदम (self-learning algorithms) पर आधारित होते हैं, यानी एक ऐसी तकनीक जिस के ज़रिए सिस्टम खुद सीखता है और खुद को समृद्ध बनाता है. यह तंत्र पूरी तरह से बिग डेटा (big data) पर निर्भर होते हैं, यानी इंसानी इस्तेमाल से पैदा हुए असंख्य आंकड़ों पर आधारित. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एआई (artificial intelligence-AI) पारिस्थितिकी तंत्र में, बिग डेटा सबसे महत्वपूर्ण इनपुट है, और इसलिए, सभी कंपनियां सबसे पहले और सबसे बेहतर ढंग से इस डेटा तक पहुंचने की कोशिश करती हैं. बहु-पक्षीय व्यावसायिक मॉडल, आम तौर पर विज्ञापनदाताओं से पैसे ले कर, उपयोगकर्ताओं को मुफ्त सेवाएं प्रदान करने पर आधारित होते हैं, ताकि उन्हें उपयोगकर्ता के डेटा तक पहुंच की सुविधा प्रदान कर सकें. ये बाज़ार अक्सर नेटवर्क प्रभाव (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों) के रूप में प्रवेश संबंधी रुकावटों का अनुभव करते हैं. इसके अलावा इनके सामने आर्थिक विस्तार और निवेश से संबंधित आवश्यकताओं के रूप में भी, प्रवेश बाधाएं आती हैं. नतीजतन, ऐसे बाज़ार तेज़ी से एकाधिकार संबंधी ढांचे की ओर बढ़ते और उसमें ढलते हैं. यहां तक कि अगर उनके सामने अन्य प्रतियोगी हैं, तो भी वे लगभग नगण्य हैं. इसलिए, इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि हम में से अधिकांश लोग इंटरनेट पर खोज के लिए पूरी तरह से गूगल,  सोशल मीडिया से जुड़ने और उस पर समय बिताने के लिए पूरी तरह से फेसबुक और सामान ख़रीदने के लिए कई मायनों में अमेज़ॉन जो ऑनलाइन शॉपिंग को आसान बनाता है, पर निर्भर हैं और उसके नियमित उपयोगकर्ता हैं.

ऐसी कोई कंपनी अगर अपनी मज़बूत स्थिति का दृढ़ता से दुरुपयोग करते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी को नुकसान पहुंचाएगी तो प्रतिस्पर्धा क़ानून को लागू कर इस तरह के आचरण को प्रतिबंधित किया जा सकता है. 

किसी भी व्यापारिक इकाई की किसी बाज़ार में प्रमुख व महत्वपूर्ण स्थिति होना, अपने आप में, कोई समस्या नहीं है. उदाहरण के लिए, ऐसी कोई कंपनी अगर अपनी मज़बूत स्थिति का दृढ़ता से दुरुपयोग करते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी को नुकसान पहुंचाएगी तो प्रतिस्पर्धा क़ानून को लागू कर इस तरह के आचरण को प्रतिबंधित किया जा सकता है. हालांकि, अनुभव से पता चलता है कि तकनीकी क्षेत्रों और तकनीक क्षेत्र के जटिल मामलों में इस तरह के क़ानूनों को लागू करने और उनके तहत दोषी कंपनी को जवाबदेह बनाना बेहद धीमा और मुश्किल साबित होता है. यह देखा गया है कि प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित करने वाली मशीनरी जब तक इन मामलों में फ़ैसला सुनाती है, तक तक इतनी देर हो चुकी होती है कि दोषी कंपनी को अपने काम का भरपूर आर्थिक लाभ मिल जाए या प्रतिद्वंद्वी का नुकसान हो चुका हो. मिसाल के तौर पर, ऑनलाइन शॉपिंग के मामले में गूगल के प्रतिस्पर्धा-रोधी तौर तरीक़ों पर यूरोपीय आयोग (European Commission) की जांच में सात साल का समय लगा.

कुछ प्लेटफ़ॉर्म दोहरी क्षमता में कार्य करते हैं, वह न केवल वे माध्यम संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराने का काम करते हैं, बल्कि वह उन्हीं श्रेणियों में अन्य कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा भी करते हैं, जिनमें वह सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं. 

इसके अलावा, कुछ प्रमुख प्लेटफ़ॉर्म इस हद तक महत्वपूर्ण व ज़रूरी हो गए हैं कि उन्हें वास्तविक रूप में ऑनलाइन बाज़ारों का ‘गेटकीपर’ (gatekeeper) समझा जाने लगा है. इसके तहत वह इन ऑनलाइन बाज़ारों तक उपयोगकर्ताओं की पहुंच से संबंधित शर्तें व नियम तय करते हैं. दिलचस्प बात यह है कि डिजिटल बाज़ारों में, कोई कंपनी प्रतिस्पर्धा की स्थिति को तब भी प्रभावित कर सकती है, जब वह शीर्ष पर न हो या इस श्रेणी में कहीं नीचे हो. ब्रिटेन में स्थित संस्था फरमैन की एक रिपोर्ट किसी भी व्यापारिक इकाई की रणनीतिक बाज़ार स्थिति, एसएमएस (Strategic Market Status, SMS) की पहचान करती है. यह शीर्ष से निचली स्तर की कंपनियां भी हो सकती हैं और ऐसी कंपनियां जो ‘एक्स-एंटी रेगुलेशन’ (ex-ante regulation) यानी प्रत्याशित नियमन की सही उम्मीदवार भी हो सकती हैं. इसके अलावा, कुछ प्लेटफ़ॉर्म दोहरी क्षमता में कार्य करते हैं, वह न केवल वे माध्यम संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराने का काम करते हैं, बल्कि वह उन्हीं श्रेणियों में अन्य कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा भी करते हैं, जिनमें वह सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं. इसका एक उदाहरण हैं गूगल और अमेज़ॉन जैसी कंपनियां, जो व्यवसायों को प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करते हैं, लेकिन अपने स्वयं के उत्पाद और सेवाएं भी उपलब्ध कराते हैं, जो उन के लिए इस क्षेत्र में सफलता का एक तय नुस्ख़ा है.

‘डिजिटल गेटकीपर्स’ को अनुशासित करने संबंधी कोशिशें

इस मामले मे खासी बहस के बाद, कुछ जगहों पर बड़ी टेक कंपनियों को नियमित करने की दिशा में काम शुरु किया गया है. इस संबंध में ब्रिटेन एक डिजिटल मार्केट यूनिट की स्थापना कर रहा है. साथ ही यूरोपीय संघ में और अधिक ठोस क़दम प्रस्तावित किए गए हैं, जहां यूरोपीय आयोग एक डिजिटल मार्केट्स एक्ट के प्रस्ताव के साथ आगे आया है, जो यह सुनिश्चित करने का इरादा रखता है कि प्रत्याशित नियमन (ex-ante regulation) के ज़रिए, प्रतिस्पर्धी और निष्पक्ष डिजिटल बाज़ारों को नियमित किया जा सके. इस अधिनियम के तहत किसी फर्म को एक ‘गेटकीपर’ के तौर पर देखा जाएगा अगर:

  • बाज़ार में उसकी स्थिति आर्थिक रूप सेमज़बूत है, आंतरिक बाजार पर वह महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है और कई यूरोपीय संघ के देशों में एक साथ सक्रिय है.
  • उसकी स्थिति मज़बूत रूप से मध्यस्थता प्रदान करने की है, जिसका अर्थ है कि वह बड़ी संख्या में व्यवसायों को, बड़ी संख्या में उपयोगकर्ताओं के साथ जोड़ताहै.
  • बाज़ार में लंबे समय से उसकी मौजूदगी है, और उसकीस्थिति टिकाऊ है, जिसका मतलब है कि वह समय के साथ स्थिरता बनाए हुए है. कुछ मुख्य दायित्व जो एक गेटकीपर के रूप में उसे निभाने होंगे वह हैं:
  • एक गेटकीपर द्वारा किसी उपयोगकर्ता की सहमति के बिना उसके डेटा को, विभिन्न सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों को नहीं सौंपा जा सकता. यानी व्यक्तिगत डेटासंयोजन तब तक नहीं हो सकता जब तक कि उपयोगकर्ता की सहमति न हो.
  • मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) क्लॉज़ याप्राइस पेयर्टी (price parity) के क्लॉज़ पर रोक यानी जो संबंधित उत्पादों का एक दाम रखने पर आधारित है. इसका मतलब है कि ऑनलाइन व्यापार तीसरे पक्ष के ज़रिए दाम और शर्तें भी तय कर सकते हैं, जो उन दामों या शर्तों से अलग हैं, जो गेटकीपर के माध्यम से तय की गई हैं. हाल के कुछ दिनों में मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज़ कई तरह की क़ानूनी अड़चनों और अनिश्चितताओं की वजह रहा है.
    • व्यावसायिक उपयोगकर्ताओं (उदाहरण के लिए ऐप डेवलपर्स) को स्वतंत्र रूप से एक गेटकीपर के लिए सेवाएं प्रदान करने (उदाहरण के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम) की अनुमति देना. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India) ने गूगल पर ऐसे ही तथ्यों को ले कर जांच का आदेश दिया है.
  • किसी प्लेटफॉर्म की बुनियादी सेवाओं को एक साथ नहीं बांधा जा सकता.
  • किसी व्यवसाय या उसके उपयोगकर्ता के गैर-सार्वजनिक डेटा का उपयोग करने पर निषेध. इस का मतलब है किअमेज़ॉन जैसे प्लेटफॉर्म अब अपने ब्रांड को प्रतिस्पर्धी रूप से बेहतर बनाने के लिए, उपयोगकर्ताओं के संवेदनशील गैर-सार्वजनिक डेटा का इस्तेमाल नहीं कर सकते.
  • गेटकीपर द्वारा अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनी के उत्पादों के बजाय, अपने उत्पादों को प्लेटफॉर्म पर प्राथमिकता दिया जाना.
  • एंड-यूजर्स को प्रभावी डेटा पोर्टेबिलिटी सुविधा प्रदान करना.
  • उपयोगकर्ता को किसी भी पूर्व-स्थापित सॉफ़्टवेयर या एप्लिकेशन के इस्तेमाल से रोकना या उसे अन-इंस्टॉल करने के लिए कहना.डिजिटल गेटकीपरों को नियंत्रित करने के प्रयास संयुक्त राज्य अमेरिका में भी जारी हैं. एक समय अमेरिकी कंपनियां एंटीट्रस्ट मामलों को लेकर सबसे आगे थीं लेकिन पिछले कुछ सालों में इन मामलों में गिरावट देखी गई है. एंटीट्रस्ट को लेकर अमेरिकी सदन उपसमिति की एक रिपोर्ट कुछ प्रगतिशील सिफ़ारिशें करती हैं, ताकि डिजिटल बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा बनी रहे. इस के तहत लगभग दो वर्षों के बाद, अमेरिका में गूगल और फेसबुक के ख़िलाफ़ एकाधिकार के दो मामले दर्ज हुए हैं. विशेष रूप से, ये एंटीट्रस्ट के मामले हैं और पूर्व-नियमन को लेकर रास्ता अभी लंबा है.

कहां खड़ा है भारत?  

भारत एक महत्वपूर्ण बाज़ार है, जहां घरेलू और विदेशी दोनों तरह की टेक कंपनियां अपनी जगह बनाने के लिए लगातार काम कर रही हैं. दुनिया के अलग अलग देशों में एंटीट्रस्ट को लेकर जो मामले सामने आए हैं वह भारत में भी प्रतिध्वनित हुए हैं. गूगल सर्च को लेकर, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के सामने एक मामला लंबित है, जिसमें एंड्रॉयड ओएस (Android OS) और प्ले स्टोर (Play Store) भी शामिल हैं. इस के अलावा भारत की एंटीट्रस्ट एंजेंसियां, अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट के ख़िलाफ़ भी जांच कर रही हैं क्योंकि उन्होंने अपने प्लेटफॉर्म पर कुछ खास स्मार्टफोन्स की बिक्री को सुनिश्चित किया. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के माध्यम से किए गए, ई-कॉमर्स बाज़ार के अध्ययन में भी भारतीय हितधारकों की ओर से इस तरह की कई चिताएं सामने रखी गई हैं, जैसे कि प्लेटफार्म का तटस्थ तरीक़े से काम न करना, अनुचित अनुबंध और शर्तें, प्राइस पेयरिटी यानी मूल्य समता के क्लॉज़ का उपयोग, उत्पादकों के साथ विशेष समझौते और गहरी छूट (discount) दिया जाना.

दुनिया के अलग अलग देशों में एंटीट्रस्ट को लेकर जो मामले सामने आए हैं वह भारत में भी प्रतिध्वनित हुए हैं. गूगल सर्च को लेकर, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के सामने एक मामला लंबित है, जिसमें एंड्रॉयड ओएस (Android OS) और प्ले स्टोर (Play Store) भी शामिल हैं. 

भारत में प्रतिस्पर्धा आयोग डिजिटल बाज़ारों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए अपना काम कर रहा है, लेकिन फिर भी कुछ प्रकार के नियमन की ज़रूरत महसूस की जा रही है. ई-कॉमर्स बाज़ार को लेकर किए गए अपने अध्ययन में, प्रतिस्पर्धा आयोग ने पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, इन प्लेटफार्मों से ‘सेल्फ रेगुलेशन’ यानी खुद अपने लिए नियम बनाने और उन्हें स्वत: लागू करने की बात कही गई है, ताकि यह माध्यम पारदर्शिता के साथ काम कर सकें और डेटा के संग्रह, उपयोग और उसे साझा करने, उपयोगकर्ता द्वारा की गई समीक्षा और रेटिंग तंत्र, अनुबंध की शर्तों में संशोधन, और छूट से संबंधित नीतियों को ले कर पारदर्शी हों. हालांकि नियमन का यह रूप, पहले से लागू किए जाने वाले प्रत्याशित नियमन (ex-ante regulation) से कम है, जिस का समर्थन यूरोपीय संघ ने अपने प्रस्तावित ‘डिजिटल मार्केट्स एक्ट’ में गेटकीपर एक्सचेंज प्लेटफार्मों के लिए किया है. नतीजतन, भारत को हर रूप में इन्हें गेटकीपर माध्यमों के लिए बाध्यकारी बनाना चाहिए ताकि स्टार्ट-अप सहित सभी व्यवसायओं के लिए बाज़ार की समान शर्तें व उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके और उपयोगकर्ताओं के लिए बाज़ार की प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित हो.

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