Author : Shoba Suri

Published on Mar 27, 2021 Updated 0 Hours ago

दुनिया भर में फैली कोविड-19 की महामारी के चलते 96 मिलियन लोग अत्यधिक ग़रीबी की स्थिति में पहुंच सकते हैं, जिनमें से 47 मिलियन महिलाएं व लड़कियां हैं.

सालाना बजट में महिलाओं व बच्चों के पोषण से जुड़ी घोषणाएं मात्र खानापूर्ति; पैसों का आवंटन है ज़रूरी

महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए उचित पोषण काफी अहम है. कुपोषित मां से पैदा होने वाले बच्चों की मानसिक क्षमता अविकसित रह सकती है, उनमें संज्ञानात्मक दुर्बलता आ सकती है, उनमें संक्रमण के ख़िलाफ़ लड़ने की क्षमता यानी प्रतिरोधी क्षमता कम हो सकती है, और उनके पूरे जीवन में तमाम तरह की बीमारियों का जोखिम और उच्च मृत्यु दर का ख़तरा बना रहता है. (फ़िगर-1 देखें)

भारतीय महिलाओं में से एक चौथाई दुबली-पतली होती हैं. उनका बॉडी मास इंडेक्स (body mass index) 18.5 किलोग्राम/मीटर स्कवेयर्ड से कम है. ऐसे में इसकी संभावना काफ़ी अधिक रहती है कि वह कम वज़न के शिशु को जन्म दें. ऐसे बच्चों में संक्रमण का ख़तरा ज़्यादा होता है और उनका उचित विकास नहीं होता. इस तरह उनमें पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषण की समस्या बनी रहती है. गर्भधारण करने से पहले और गर्भावस्था के पहले तीन महीने के दौरान अपर्याप्त पोषण के कारण भ्रूण का उचित विकास नहीं होता. हाल के आंकड़ों से कुपोषण की चिंताजनक स्थिति और कुपोषण के दोहरे बोझ के ख़तरों का पता चलता है. मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर खर्च के कई फ़ायदे होते हैं. निम्न और उच्च-मध्यम आय (upper-middle income) वाले देशों में इसके तिहरे लाभ होते हैं. स्वास्थ्य, शिक्षा और बच्चों के विकास पर किए गए शुरुआती निवेश का फ़ायदा उन्हें पूरे जीवन में मिलता है.

भारत सरकार की अहम योजना ‘पोषण अभियान’ को 2018 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन लॉन्च किया गया. इस योजना का लक्ष्य बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के पोषण में सुधार करना है. 

बीते दशक में भारत सरकार ने कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं. आंगनबाड़ी व्यवस्था के जरिए एकीकृत बाल-विकास सेवा (Integrated Child Development Services, ICDS) शुरू की गई. इसके तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अतिरिक्त पोषण और घर ले जाने के लिए राशन दिया जाता है. स्कूलों में मिड-डे मील दिया जाता है, मातृत्व लाभ योजनाएं चलाई जा रही हैं और जन वितरण प्रणाली के जरिए कम दाम में अनाज उपलब्ध कराए जा रहे हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 (The National Food Security Act 2013) ने भोजन को क़ानूनी अधिकार बनाया है और इसके लिए ज़रूरतमंदों को भोजन और पोषण उपलब्ध कराया जाता है. भारत सरकार की अहम योजना ‘पोषण अभियान’ को 2018 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन लॉन्च किया गया. इस योजना का लक्ष्य बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के पोषण में सुधार करना है.

तमाम प्रयासों और कार्यक्रमों के बावजूद महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा को हमेशा से नज़रअंदाज़ किया गया है. महिलाओं के बीच कुपोषण, ग़रीबी और निम्न शिक्षा का गहरा जुड़ाव है. विश्व बैंक के अनुसार ग़रीबी को खत्म करने के लिए लड़कियों को शिक्षित करना और बाल विवाह को रोकना सबसे जरूरी है. संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास लक्ष्य (The UN’s sustainable development goals) में 2030 तक लैंगिक समानता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कही गई है, क्योंकि शिक्षा सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता पैदा करता है और इस तरह ग़रीबी से उबरने का अहम ज़रिया बनता है.

भारत की आबादी में करीब आधी महिलाएं हैं. उनकी हिस्सेदारी 48 फीसदी हैं. वह देश के जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में 18 फीसदी का योगदान देती हैं. ऐसे में उनके सामने आने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए काफ़ी कुछ किया जाना बाक़ी है. कोविड-19 महामारी के कारण महिलाओं पर आर्थिक और सामाजिक दोहरी मार पड़ी है. इस महामारी के कारण दुनिया में और 9.6 करोड़ लोग गंभीर ग़रीबी की चपेट में आने वाले हैं और इनमें से 4.7 करोड़ महिलाएं व लड़कियां हैं. ऐसे में आज कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन और बजट आवंटन की ज़रूरत है.

आम बजट 2021 (The Union Budget 2021) निराश करने वाला है. इसमें महिलाओं और बच्चों के अहम सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के लिए आवंटन घटा दिया गया है. ऐसा तब किया गया है जब ये महामारी की चुनौतियों का सामना कर रही हैं. 

आम बजट 2021 (The Union Budget 2021) निराश करने वाला है. इसमें महिलाओं और बच्चों के अहम सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के लिए आवंटन घटा दिया गया है. ऐसा तब किया गया है जब ये महामारी की चुनौतियों का सामना कर रही हैं. महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों के लिए बजट आवंटन के एक विश्लेषण से पता चलता है कि इसमें या तो यथास्थिति बनाए रखा गया है और फिर भारी कटौती की गई है. महिला और बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) के बजट में 0.7 फीसदी की कटौती की गई है. इस बजट में पोषण सामग्री, वितरण और नतीजे को मज़बूती देने के लिए ‘मिशन पोषण 2.0’ शुरू करने की बात कही गई है, लेकिन पोषण योजना के बजट आवंटन में 27 फ़ीसदी की भारी कटौती की गई है. इसे 3700 करोड़ से घटाकर 2700 करोड़ कर दिया गया है.

इन योजनाओं को दो भागों ‘सक्षम’ (SAKSHAM) और ‘सामर्थ्य’ (SAMARTHYA) में बांटा गया है. इनमें कुछ योजनाओं का विलय कर दिया गया है. पोषण अभियान (POSHAN Abhiyaan) के ख़राब क्रियान्वयन के बावजूद पोषण 2.0 अभियान की घोषणा की गई. ‘सक्षम आंगनबाड़ी’ और ‘पोषण 2.0’ को एक ही छत के नीचे यानी एकीकृत बाल विकास सेवा के तहत ला दिया गया. इसके अलावा पोषण अभियान, किशोरियों के लिए योजना और राष्ट्रीय क्रेच स्कीम के लिए 20,105 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. इस तरह कुल आवंटन 24,435 करोड़ रुपये का रहा. इस बजट में पिछले एक दशक में बच्चों के लिए सबसे कम 2.46 फ़ीसदी का आवंटन हुआ है. सामर्थ्य योजना में प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना (Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana), बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और ग्रामीण महिला सशक्तीकरण (empowering rural women scheme) योजना को मिला दिया गया है. लैंगिक बजट (टेबल 1 और 2) से सामने आने वाले रुझान निराशाजनक हैं.

इस बजट में ‘सामर्थ्य’ (SAMARTHYA) के तहत आने वाली योजनाओं को उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए. मातृत्व से जुड़ी योजनाओं में कटौती चिंताजनक है. इन योजनाओं में 48 फीसदी तक की कटौती की गई है जिससे आधी महिला लाभार्थी बाहर हो जाएंगी. सभी योजनाओं को मिलाकर बनाई गई सामर्थ्य में जो आवंटन किया गया है वह पिछले साल प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना (PMMVY) में किए गए आवंटन के बराबर है. यह स्पष्ट रूप से सभी योग्य लाभार्थियों को शामिल करने में विफल है क्योंकि इसमें केवल ‘पहले जन्म’ (First Birth) को शामिल किया गया है. इससे इस योजना के खराब क्रियान्वयन का पता चलता है. इससे मौजूदा लाभार्थियों की संख्या घट जाएगी. बजट आवंटन को देखकर ऐसा लगता है कि इसमें किशोर पोषण को नजरअंदाज़ कर दिया गया है. ऐसा तब किया गया है जब आंकड़ों में उच्च सूक्ष्म पोषण (micronutrient) लाभार्थी और खराब पोषण स्थिति दिख रही है. किशोरियों के स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ी योजनाओं के लिए उच्च आवंटन और मजबूत क्रियान्वयन की जरूरत है ताकि घटते हुए कवरेज को सुधारा जा सके.

जानकारों के मुताबिक “पोषण मिशन 2.0 के लिए बजट घोषणा तभी प्रभावी हो सकती है जब इसके लिए पैसा जारी किया जाए. केवल बजटीय प्रावधान से कुछ नहीं होगा.” 

महिला संरक्षण और सशक्तीकरण मिशन (Mission for Protection and Empowerment of Women) के लिए भी आवंटन में भारी कटौती (726 से 48 करोड़) की गई है. इसके तहत विभिन्न मंत्रालयों या विभागों की योजनाओं या कार्यक्रमों का अभिसरण (convergence) होता है. इस कटौती से पता चलता है कि जोख़िम वाली महिलाओं और लड़कियों को दरकिनार किया गया है जबकि उम्मीद इनके उत्थान और आशा की थी.

जानकारों के मुताबिक “पोषण मिशन 2.0 के लिए बजट घोषणा तभी प्रभावी हो सकती है जब इसके लिए पैसा जारी किया जाए. केवल बजटीय प्रावधान से कुछ नहीं होगा.” बजट 2021 महिला स्वास्थ्य और पोषण को लेकर खानापूर्ति से अधिक कुछ नहीं है. टिकाऊ सतत विकास के साथ जीवन बचाने और जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर तुरंत निवेश करने की जरूरत है.

यह ठीक ही कहा गया है कि, “महिला स्वास्थ्य का मुद्दा अहम और केंद्रीय होना चाहिए- हमेशा से ऐसा नहीं हुआ है, लेकिन अब तो कम से कम ये होना ही चाहिए.”

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