Author : Soumya Bhowmick

Published on Dec 11, 2023 Updated 4 Hours ago
भारत के बदलते आर्थिक परिदृश्य का विश्लेषण

वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत के विकास दर के साथ भारत (G20 में सबसे तेज़ रफ्तार से बढ़ता देश) की अर्थव्यवस्था के 2026-27 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने की उम्मीद है. अपने आर्थिक विकास की यात्रा में भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है जहां अलग-अलग फैक्टर की गतिशील परस्पर क्रिया उसके आर्थिक परिदृश्य और जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक) संरचना को नया आकार देती है.

कई प्रमुख फैक्टर भारत के मौजूदा आर्थिक परिदृश्य को चिन्हित करते हैं. GDP विकास के बारे में 2022-23 के आर्थिक सर्वे के अनुमानों से संकेत मिलता है कि भारत वित्तीय वर्ष 2023-24 में वास्तविक रूप से 6.5 प्रतिशत के बेसलाइन GDP विकास के साथ 6 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच आर्थिक विकास का अनुभव करेगा. हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महंगाई लगातार एक चिंता बनी रही है. हाल की वित्तीय और मौद्रिक नीतियों में महंगाई को काबू में रखने की कोशिशें साफ तौर पर दिखी हैं जिसके तहत 2022 में प्रमुख ब्याज दरों में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा बढ़ोतरी की गई है. भारत ने आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए वित्तीय नीतियों को भी सक्रिय रूप से लागू किया है.

भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महंगाई लगातार एक चिंता बनी रही है. हाल की वित्तीय और मौद्रिक नीतियों में महंगाई को काबू में रखने की कोशिशें साफ तौर पर दिखी हैं जिसके तहत 2022 में प्रमुख ब्याज दरों में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा बढ़ोतरी की गई है.

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ग्लोबल वैल्यू चेन (GVC) में जुड़ने का भरोसा रखता है लेकिन उसके सामने श्रम आवश्यकताओं के साथ उत्पादन के पैमाने को संतुलित करने की चुनौती है. इस संदर्भ में ये पता लगाना ज़रूरी हो जाता है कि भारत इन अवसरों का लाभ कैसे उठा सकता है और अपनी बढ़ती आबादी के लिए सतत आर्थिक विकास एवं ज़्यादा रोज़गार के अवसरों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संबंधित चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है.

भारत में सर्विस सेक्टर पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में कम लोगों को रोज़गार देता है लेकिन ये राष्ट्रीय ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) में लगातार योगदान दे रहा है. कंस्ट्रक्शन उद्योग ने भी औद्योगिक सेक्टर में उल्लेखनीय भरोसा दिखाया है और पिछले दो दशकों के दौरान इसमें काम करने वाले लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. बैंकिंग सेक्टर 16 लाख लोगों को रोज़गार देता है और इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा (49.1 प्रतिशत) सरकारी क्षेत्र के बैंकों में काम करता है. इसके अलावा, गिग वर्कर्स (अस्थायी कामगार), जो कि कुल वर्क फोर्स में फिलहाल 1.5 प्रतिशत हैं, की संख्या 2029-30 तक बढ़कर कुल रोज़गार में 4.1 प्रतिशत हिस्सा होने की उम्मीद है.

भारतीय घरेलू मैन्युफैक्चरिंग के पास GVC के भीतर अपनी स्थिति मज़बूत करने का सुनहरा अवसर है. इस तरह इसके काम-काज का पैमाना बढ़ जाएगा. फिर भी, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ज़्यादा कैपिटल-इंटेंसिव (पूंजी पर निर्भर) बनने की और बढ़ रहा है जिससे कैपिटल-आउटपुट रेशियो में गिरावट आएगी और इसके परिणामस्वरूप श्रम के लिए मांग कम होगी. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में काम-काज बढ़ाने और सरप्लस लेबर फोर्स को संभालने के बीच संतुलन स्थापित करना आने वाले दशक में एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी.

जैसे-जैसे भारत अपनी आर्थिक विकास की यात्रा में आगे बढ़ रहा है, ये अवसर पैदा करने वाले सेक्टर भारत के रोज़गार के परिदृश्य को निर्धारित करने में एक बुनियादी भूमिका अदा करने के लिए तैयार हैं.

मैन्युफैक्चरिंग के भीतर लेबर-इंटेंसिव (श्रम पर निर्भर) सब-सेक्टर (उप क्षेत्र) इस बदलाव के दौरान उत्पादकता में शुद्ध बढ़ोतरी हासिल करने में एक अहम भूमिका अदा कर सकते हैं. भारत का निर्यात बास्केट, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, आयरन और स्टील का बढ़ रहा हिस्सा शामिल है, उत्पादन और प्रतिस्पर्धी रिफाइनिंग सेवाओं के लिए अधिक क्षमता का प्रतीक है. खिलौना, कपड़ा, फुटवियर और फर्नीचर जैसे श्रम पर निर्भर निर्यात सेक्टर घरेलू नौकरियां पैदा करने में बहुत ज़्यादा संभावना रखते हैं और विकास के लिए इनको प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

सरकार के कदम

भारत में जीवंत (वाइब्रेंट) और गतिशील वर्क फोर्स (श्रम बल) के साथ सरकार की पहलों और नीतियों में आपसी साझेदारी नौकरियां पैदा करने के लिए एक प्रेरक माहौल का रास्ता तैयार कर सकती है. जैसे-जैसे भारत अपनी आर्थिक विकास की यात्रा में आगे बढ़ रहा है, ये अवसर पैदा करने वाले सेक्टर भारत के रोज़गार के परिदृश्य को निर्धारित करने में एक बुनियादी भूमिका अदा करने के लिए तैयार हैं. इसमें सरकार की पहल के रणनीतिक समर्थन और कदमों से प्रेरणा मिलेगी. कुछ प्रमुख सरकारी पहलों में शामिल हैं:

डिजिटल इंडिया प्रोग्राम

2015 में शुरू डिजिटल इंडिया प्रोग्राम भारत को एक नॉलेज इकोनॉमी (ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था) में बदलने की एक व्यापक सरकारी पहल है. डिजिटल पहल पर ज़ोर देकर ये प्रोग्राम डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देता है, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करता है और ई-सरकारी सेवाओं को बढ़ाता है. इस तरह ये एक डिजिटल इकोसिस्टम को बढ़ावा देता है. डिजिटल इंडिया की व्यापक छतरी के तहत सरकार ने छोटे शहरों में इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी-इनेबल्ड सर्विसेज़ में रोज़गार पैदा करने के लिए इंडिया BPO प्रमोशन प्रोमोशन स्कीम और नॉर्थ-ईस्ट BPO प्रमोशन प्रोमोशन स्कीम की शुरुआत की और पहले ही 52,000 नौकरियां दे चुकी है.

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

कौशल विकास पर केंद्रित प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) भारत में एक बुनियादी सरकारी पहल है जिसकी शुरुआत 2015 में हुई थी. इसके तहत मुफ्त में कम समय के स्किल ट्रेनिंग कार्यक्रम की पेशकश की जाती है और स्किल सर्टिफिकेट मिलने के बाद पैसे के रूप में प्रोत्साहन मुहैया कराया जाता है. इस तरह वर्क फोर्स के हुनर को उद्योग की ज़रूरत के साथ जोड़ा जाता है और लोगों को रोज़गार के ज़्यादा योग्य बनाया जाता है. PMKVY रोज़गार क्षमता को बेहतर करके और अच्छी नौकरियों के अवसरों तक भागीदारों की पहुंच को सशक्त बनाकर रोज़गार हासिल करने में आ रही दिक्कतों को दूर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और भारत के राष्ट्रीय कौशल विकास की कोशिशों में अहम योगदान देती है.

स्टार्टअप इंडिया:

स्टार्टअप इंडिया पहल की शुरुआत 2016 में हुई थी जिसका मक़सद रजिस्ट्रेशन को आसान बनाकर, टैक्स छूट देकर और एक विशेष (डेडिकेटेड) फंड बनाकर स्टार्टअप का समर्थन करना है. इसने रेगुलेटरी माहौल में सुधार किया और स्टार्टअप्स के लिए रुकावटों को दूर किया. सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम में से एक को सक्षम बनाकर भारत ने उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड) से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स में 9 लाख से ज़्यादा नौकरियों के अवसर पैदा किए.

रणनीतिक सेक्टर में प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव इन्सेंटिव (उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन):

2020 में शुरू भारत की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव इन्सेंटिव (PLI) स्कीम रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने की एक महत्वपूर्ण पहल है. इसका मुख्य उद्देश्य अलग-अलग क्षेत्रों जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्युटिकल्स, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, सोलर और टेलीकम्युनिकेशन में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और रोज़गार पैदा करना है. इसके अलावा ये लागत के मामले में प्रतिस्पर्धा में सुधार करके, विश्व व्यापार संगठन (WTO) की प्रतिबद्धताओं का पालन करके और निर्यात को बढ़ावा देकर भारतीय उत्पादन को वैश्विक स्तर पर रेस में लाने की कोशिश करती है. PLI स्कीम की वजह से 2021-22 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में 76 प्रतिशत की महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई और इसमें 2021-22 से शुरू होकर पांच वर्षों में 60 लाख नौकरियां पैदा करने की क्षमता है.

योग्य लाभार्थियों को बिना कुछ गिरवी रखे 3 लाख रुपये तक का कर्ज मिल सकता है. इस तरह वो अपने व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं या बढ़ा सकते हैं.

पीएम विश्वकर्मा योजना

सितंबर 2023 में शुरू पीएम विश्वकर्मा योजना लोहे का काम करने वालों, स्वर्णकारों, मिट्टी के बर्तन बनाने वालों, कारपेंटर और मूर्ति बनाने वालों जैसे परंपरागत कारीगरों और शिल्पियों को वित्तीय सहायता और कौशल विकास का समर्थन मुहैया कराने की एक सरकारी पहल है. योग्य लाभार्थियों को बिना कुछ गिरवी रखे 3 लाख रुपये तक का कर्ज मिल सकता है. इस तरह वो अपने व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं या बढ़ा सकते हैं. परंपरागत कारीगरों को सशक्त बनाकर और उनके हुनर को बढ़ावा देकर ये पहल पारंपरिक उद्योगों के संरक्षण में योगदान देती है और उद्यमशीलता (एंटरप्रेन्योरशिप) को आसान बनाती है. इस तरह भारत में स्वरोज़गार और आजीविका से जुड़े दूसरे अवसरों को बढ़ाती है.

मानवीय पूंजी का इस्तेमाल

जनवरी 2023 में भारत ने चीन को पीछे छोड़कर दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश का दर्जा हासिल कर लिया. चीन की 1.412 अरब आबादी की तुलना में भारत की आबादी 1.417 अरब हो गई. जनसंख्या में इस बदलाव ने भारत के द्वारा अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने और दुनिया में एक प्रमुख देश के तौर पर ख़ुद को स्थापित करने के लिए अपने व्यापक मानव संसाधन, विशेष रूप से अपनी युवा जनसंख्या, के इस्तेमाल की भारत की क्षमता की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है.

कुल जनसंख्या के 52 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों के 30 साल से कम उम्र के होने और उल्लेखनीय रूप से 43 प्रतिशत लोगों तक इंटरनेट की पहुंच के साथ भारत अच्छी संभावना रखता है. अंत में, जनसंख्या की विकास दर जहां कम हो गई है, वहीं उम्र का बंटवारा अवसर और चुनौतियां पेश करता है. शिक्षा, कौशल विकास और नई नौकरियों के ज़रिए भारत के इस डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा उठाने से आर्थिक विकास में बढ़ोतरी हो सकती है लेकिन इसके लिए बढ़ते वर्क फोर्स के मुताबिक प्रभावी संसाधन प्रबंधन और अवसर के प्रावधान की भी आवश्यकता है.


सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.

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Soumya Bhowmick

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Soumya Bhowmick is an Associate Fellow at the Centre for New Economic Diplomacy at the Observer Research Foundation. His research focuses on sustainable development and ...

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