Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत और अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों की चौथी बैठक और इससे पहले हुई बैठकों का विश्लेषण

भारत और अमेरिका के बीच 2+2 की बातचीत: पहले की बैठकों पर एक नज़र
भारत और अमेरिका के बीच 2+2 की बातचीत: पहले की बैठकों पर एक नज़र

जब आप पहली बार 2+2 का नाम सुनते हैं, तो लगता है कि उच्च स्तर की सामरिक रूप से बेहद अहम इस द्विपक्षीय बातचीत को ये नाम देना बात को कुछ ज़्यादा ही आसान बनाकर पेश करने जैसा है. 2018 में शुरू हुई अमेरिका और भारत के विदेश और रक्षा मंत्रियों की मुद्दों पर आधारित ये बातचीत, दोनों देशों के बीच अब संवाद का एक नियमित ज़रिया बन चुका है. 2018 में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पूर्व रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो और पूर्व रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस के साथ इस डायलॉग की शुरुआत की थी.

2018 में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पूर्व रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो और पूर्व रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस के साथ इस डायलॉग की शुरुआत की थी.

अब भारत और अमेरिका के बीच 2+2 डायलॉग का चौथा संस्करण अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डी.सी. में हुआ. जो बाइडेन प्रशासन के राज में ये दोनों देशों के बीच पहला संवाद था. जिसमें अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मेज़बानी की. इससे पहले अचानक किए गए एलान के तहत अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच इस बैठक की शुरुआत आपस में वर्चुअल सम्मेलन से की.

दोनों देशों के बीच इस उच्च स्तरीय वार्ता के एजेंडे में बहुत से मुद्दे थे. आज जब दोनों देश आपसी संबंधों की 75वी सालगिरह मना रहे हैं, तो दोनों ही लोकतंत्र, ‘मुक्त, स्वतंत्र और समृद्ध हिंद प्रशांत क्षेत्र’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहरा रहे हैं. ये क्वॉड का अनाधिकारिक सूत्र वाक्य भी है- जिसमें ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका सामरिक सुरक्षा का संवाद करते हैं. लेकिन, चीन से भी ज़्यादा इस बातचीत में अहम मुद्दा था रूस के साथ भारत के रिश्तों का. आज जब यूक्रेन में युद्ध और जटिल होता जा रहा है, तो रूस पूरी दुनिया के लिए अछूत होता जा रहा है. लेकिन, रूस के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र के अलग अलग मंचों पर लाए गए प्रस्तावों पर भारत के मतदान से ग़ैरहाज़िर रहने से अमेरिका नाख़ुश है. रूस, पारंपरिक रूप से अमेरिका का भू-राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहा है. अमेरिका की अगुवाई में रूस पर बहुत से प्रतिबंध लगाए गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत में जो बाइडेन ने रूस का मुद्दा भी उठाया और कहा कि बेहतर होता कि यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत अधिक स्पष्ट रवैया अपनाए. हालांकि, अमेरिका ने इस मुद्दे पर भारत पर और अधिक दबाव बनाने से गुरेज़ किया. बाइडेन प्रशासन की ओर से कहा गया कि भले ही वो रूस के मुद्दे पर भारत के नज़रिए से सहमत न हों. मगर, उन्हें इस बात का अच्छे से एहसास है कि रूस, भारत का एक अहम साझीदार है.

.आज जब यूक्रेन में युद्ध और जटिल होता जा रहा है, तो रूस पूरी दुनिया के लिए अछूत होता जा रहा है. लेकिन, रूस के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र के अलग अलग मंचों पर लाए गए प्रस्तावों पर भारत के मतदान से ग़ैरहाज़िर रहने से अमेरिका नाख़ुश है.

दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की बातचीत में एक बड़ा मुद्दा दक्षिण एशिया में चल रही उठा-पटक का भी रहा. लंबे समय तक चली सियासी उथल-पुथल के बाद पाकिस्तान को नया वज़ीर-ए-आज़म मिला है. पाकिस्तान भयंकर महंगाई और आर्थिक संकट से दो-चार है. बदक़िस्मती से दक्षिण एशिया में ऐसी चुनौती झेलने वाला पाकिस्तान इकलौता देश नहीं है. श्रीलंका भी भयंकर आर्थिक संकट की चपेट में है. सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्श हो रहे हैं. सरकार से इस्तीफ़ा मांगा जा रहा है. वैसे तो भारत, पड़ोसी पहले की नीति पर अमल करता है. लेकिन, आज के हालात को देखते हुए भी भारत के लिए अपने आस-पास पर गहरी नज़र बनाए रखना ज़रूरी हो गया है. क्योंकि, आर्थिक संकट का सीधा ताल्लुक़ दक्षिण एशिया की सुरक्षा से है. इन समस्याओं के चलते दक्षिण एशिया की सुरक्षा संबंधी चुनौतियां और बढ़ गई हैं.

जहां रूस को लेकर भारत के रुख़ के चलते अमेरिका निराश है. वहीं, चीन एक ऐसा देश है, जिस पर दोनों ही देशों के सामरिक हित आपस में बहुत मिलते हैं. 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद से ही चीन, भारत और उसके क्वॉड साझीदारों की आंखों की किरकिरी बना हुआ है. पेंटागन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बातचीत के दौरान, अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने खुलकर चीन का नाम लिया और कहा कि आज जब चीन, भारत की सीमा पर दोहरे इस्तेमाल वाले मूलभूत ढांचे का निर्माण कर रहा है. भारत की संप्रभुता के लिए चुनौतियां खड़ी कर रहा है, तो इस मुश्किल वक़्त में अमेरिका पूरी मज़बूती से भारत के साथ खड़ा है.

रक्षा और विदेश मंत्रियों की इस बैठक में विदेश नीति, रक्षा और सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों पर द्विपक्षीय साझेदारी पर व्यापक रूप से चर्चा करेंगे. फ़ौरी तौर पर दोनों ही देशों का ज़ोर यूक्रेन के संकट, रूस और चीन की चुनौती, हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा, दक्षिण एशिया में स्थिरता और अमेरिका की नज़र से रक्षा के मामले में रूस पर भारत की निर्भरता और उससे सस्ता तेल ख़रीदने के मुद्दों पर रहा. हालांकि, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक सवाल के जवाब में कहा कि रूस से भारत जितना तेल महीने भर में ख़रीदता है, उतना तो यूरोप एक दिन दोपहर तक ख़रीद लेता है. भारत की संवेदनाओं का ख़याल रखते हुए, अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के सौदे पर कहा कि अभी अमेरिका ने इस सौदे को लेकर भारत पर प्रतिबंध लगाने पर विचार नहीं किया है. साफ़ है कि दोनों ही देश आपनी संबंधों को मज़बूती देने का दूरगामी नज़रिया लेकर चल रहे हैं. आख़िर इस रिश्ते के 75 साल भी तो पूरे हो रहे हैं. अमेरिका के अलावा भारत अब रूस, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भी 2+2 डायलॉग कर रहा है. आइए एक नज़र अमेरिका और भारत के बीच इससे पहले हुए 2+2 संवादों पर भी डाल लेते हैं.

आज के हालात को देखते हुए भी भारत के लिए अपने आस-पास पर गहरी नज़र बनाए रखना ज़रूरी हो गया है. क्योंकि, आर्थिक संकट का सीधा ताल्लुक़ दक्षिण एशिया की सुरक्षा से है. इन समस्याओं के चलते दक्षिण एशिया की सुरक्षा संबंधी चुनौतियां और बढ़ गई हैं.

2+2 डायलॉग सीरीज़ की शुरुआत (2018)

भारत ने अमेरिका के साथ पहला 2+2 डायलॉग सितंबर 2018 में दिल्ली में किया था. अमेरिका के साथ इस संवाद की शुरुआत को, ‘दोनों ही देशों द्वारा साझा प्रतिबद्धताओं’ और आपसी संबंधों में आए बदलाव के तौर पर देखा गया था. भारत की आज़ादी के बाद, पहले पचास बरस तक दोनों देशों के रिश्ते बहुत गर्मजोशी भरे नहीं रहे थे. मगर आज दोनों देशों के बीच ज़बरदस्त सामरिक संवाद हो रहा है. ट्रंप प्रशासन ने ओबामा की ‘एशिया पर केंद्रित’ नीति का फ़ायदा उठाते हुए, ‘मुक्त और स्वतंत्र हिंद प्रशांत क्षेत्र’ का जुमला गढ़ा था. उसी साल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांग्री-ला डायलॉग में भारत की सागर (SAGAR) नीति को सामने रखा था, जिसका मतलब क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास है.

दोनों देशों के बीच पहले 2+2 डायलॉग के दौरान कोमकासा (कम्युनिकेशन कॉम्पैटियबिलिटी ऐंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट COMCASA) पर भी दस्तख़त हुए थे. इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच सुरक्षित सैन्य संचार हो सकता है और भारत, अमेरिका में बने उन उपकरणों के ज़रिए सुरक्षित बातचीत कर सकता है, जिनका इस्तेमाल जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश करते हैं. ये क्वॉड साझीदारों में आपसी तालमेल बढ़ाने के लिए अहम क़दम था. अमेरिका ने भारत को सामरिक व्यापक की इजाज़त देने वाली रियायत (STA-1) दी थी, जिसके तहत भारत उन देशों में शामिल हो गया था, जिन्हें लाइसेंस के बग़ैर निर्यात, दोबारा निर्यात और तकनीक दी जा सकती है. दोनों देशों ने इसका स्वागत किया था. इसके अलावा भारत और अमेरिका ने इस रियायत का और विस्तार करने को भी पूरा सहयोग देने का वादा दोहराया था. दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों ने औद्योगिक सुरक्षा सूची (ISA) पर भी बातचीत शुरू की थी, जिसके तहत दोनों देशों के बीच रक्षा उद्योग के क्षेत्र में सहयोग और तालमेल को और बढ़ाया जा सके और तीनों सेनाओं के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए एक नई त्रिस्तरीय सेवा की शुरुआत की जाए, ताकि भारत और अमेरिका की सेनाओं के बीच और नज़दीकी संबंध बन सकें.

भारत की संवेदनाओं का ख़याल रखते हुए, अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के सौदे पर कहा कि अभी अमेरिका ने इस सौदे को लेकर भारत पर प्रतिबंध लगाने पर विचार नहीं किया है.

वॉशिंगटन डीसी में भारत और अमेरिका के बीच 2019 का 2+2 संवाद

इस मीटिंग में दोनों देशों की तरफ़ से तीन नए चेहरे शामिल हुए थे. 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत के बाद राजनाथ सिंह भारत के नए रक्षा मंत्री बन गए थे. वहीं, राजनयिक के तौर पर लंबी पारी खेल चुके एस. जयशंकर निजी क्षेत्र की नौकरी छोड़कर सरकारी सेवा में लौटे थे. उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया था. वहीं, अमेरिका में सेना के पूर्व सचिव मार्क एस्पर ने रक्षा मंत्री के तौर पर जिम मैटिस की जगह ली थी. दोनों देशों ने आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने का वादा दोहराया और ‘मुक्त और स्वतंत्र हिंद प्रशांत क्षेत्र’ बनाने के लिए भी मिलकर काम करने की बात दोहराई. इसके अलावा रक्षा और विदेश मंत्रियों ने टाइगर ट्रायम्फ जैसे तीनों सेनाओं के बीच पहले साझा युद्धाभ्यास के ज़रिए अमेरिका और भारत के सैन्य बलों के बीच बढ़ते अभूतपूर्व सहयोग का स्वागत करते हुए, दोनों देशों की आम जनता के बीच संपर्क बढ़ाने की बात कही.

दिल्ली में भारत अमेरिका 2+2 संवाद 2020

भारत और अमेरिका के बीच तीसरे 2+2 संवाद के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका के रक्षा और विदेश मंत्रियों की मेज़बानी की. दोनों देशों के मंत्रियों ने कोविड-19 महामारी के बीच क्वॉड देशों के विदेश मंत्रियों की दूसरी बैठक का स्वागत किया, दोनों ही देशों ने महामारी के लिए टीके, दवाएं और ज़रूरी मेडिकल उपकरण विकसित करने के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग का वादा दोहराया. इस मीटिंग की सबसे बड़ी उपलब्धि, भारत और अमेरिका के बीच बेसिक एक्सचेंज ऐंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) पर दस्तख़त की रही, जिसके ज़रिए दोनों देशों ने भौगोलिक और आकाशीय सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई.

रक्षा और विदेश मंत्रियों ने टाइगर ट्रायम्फ जैसे तीनों सेनाओं के बीच पहले साझा युद्धाभ्यास के ज़रिए अमेरिका और भारत के सैन्य बलों के बीच बढ़ते अभूतपूर्व सहयोग का स्वागत करते हुए, दोनों देशों की आम जनता के बीच संपर्क बढ़ाने की बात कही.

BECA सहयोग (2020)

तीसरे 2+2 डायलॉग के लिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर का दिल्ली में स्वागत किया. BECA समझौता होने से भारत और अमेरिका एक दूसरे के व्यापाक भौगोलिक और आकाशीय आंकड़ों का इस्तेमाल कर सकेंगे. मसलन, व्यापक नक़्शे, समुद्री और आकाशीय चार्ट और दूर-दराज़ के इलाक़ों की अंतरिक्ष से ली गई तस्वीरें. इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच गोपनीय जानकारियों के लेन-देन का ढांचा तैयार हो गया. भारत ने 2+2 डायलॉग का विस्तार करते हुए अपने क्वॉड साझीदारों जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ पहली बार रक्षा और विदेश मंत्रियों की बातचीत की. इसके अलावा भारत ने रूस के साथ रिश्तों में भी ऐसे संवाद का आग़ाज़ किया.

2+2 डायलॉग का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि शिखर नेताओं की बड़ी चर्चित मुलाक़ातों और दौरों से हटकर, दो देशों के सामरिक अंग यानी रक्षा और विदेश मंत्री आपस में नियमित रूप से बातचीत करके ऐसे मुद्दों पर समयबद्ध तरीक़े से सहमति बना सकते हैं, जो सामरिक रूप से अहम हों. इस स्तर पर नियमित संवाद से दोनों देश एक दूसरे की विदेश नीति के नज़रिए (मसलन सैन्य और सुरक्षा समझौतों का हिस्सा बनने में भारत की हिचक) को समझ पाते हैं.

2+2 डायलॉग का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि शिखर नेताओं की बड़ी चर्चित मुलाक़ातों और दौरों से हटकर, दो देशों के सामरिक अंग यानी रक्षा और विदेश मंत्री आपस में नियमित रूप से बातचीत करके ऐसे मुद्दों पर समयबद्ध तरीक़े से सहमति बना सकते हैं, जो सामरिक रूप से अहम हों.

अब से पहले हुई तीन 2+2 वार्ताओं की तरह, इस बार भी भारत और अमेरिका के रक्षा और विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात, दोनों देशों के सामरिक संबंधों को भविष्य के नज़रिए से विकसित करने पर ज़ोर देती नज़र आई. दोनों ही देश हिंद प्रशांत में ऊर्जा, सुरक्षा, जलवायु, विज्ञान और तकनीकी सहयोग, सार्वजनिक स्वास्थ्य और जनता के बीच संपर्क को बढ़ावा देने का सिलसिला जारी रखना चाहते हैं.

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