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बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में लंबे समय से बनी हुई रुकावटों का समाधान करने से पूंजीगत खर्च में हुई बढ़ोतरी का पूरा फ़ायदा उठाने में मदद मिलेगी.
कोविड-19 महामारी की वजह से दुनिया भर में लगातार आर्थिक झटकों और अनिश्चितता के बीच केंद्र सरकार के बजट 2022-23 ने लगातार दूसरे साल राजकोषीय मज़बूती के बदले विकास को प्राथमिकता देना जारी रखा. 1 अप्रैल से लागू होने वाले केंद्रीय बजट में विशेष तौर पर बुनियादी ढांचे पर खर्च को बढ़ाया गया और इस क्षेत्र में जान डाली गई. पिछले वर्ष के केंद्रीय बजट में भी राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन का ऐलान किया गया जिसमें 110 लाख करोड़ रुपये के निवेश का वादा किया गया. इसमें केंद्र, राज्यों और प्राइवेट सेक्टर के बीच निवेश का अनुपात 39:39:22 था.
वित्तीय वर्ष 2022-23 का बजट इंफ्रास्ट्रक्चर के हर सेक्टर, ख़ास तौर पर परिवहन, की गहराई तक जाता है. बजट में राष्ट्रीय राजमार्ग का विस्तार और उसके लिए आवंटन में बढ़ोतरी, 500 नई वंदे भारत ट्रेन, स्थानीय कारोबार को समर्थन देने में रेलवे स्टेशन के लिए ‘एक स्टेशन-एक उत्पाद’, देसी सुरक्षा तकनीक ‘कवच’ के तहत 2,000 किलोमीटर रेल नेटवर्क को लाये जाने का एलान किया गया है. बजट के प्रावधानों में मेट्रो रेल के लिए ढांचे की प्रक्रिया में बदलाव, 2030 तक 280 गीगावॉट की स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उच्च कार्यक्षमता वाले मॉड्यूल के घरेलू उत्पादन में पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) योजना के तहत 19,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन और आने वाले वर्ष में आठ रोपवे प्रोजेक्ट का विकास शामिल हैं. हरित बुनियादी ढांचे के लिए संसाधन जुटाने के उद्देश्य से सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड का भी प्रस्ताव रखा गया है.
बजट में एनएचएआई और बीएसएनएल पर खर्च से इन संस्थाओं की वित्तीय सेहत तो सुधरेगी लेकिन इससे विकास की संभावनाओं में ज़्यादा सुधार नहीं होगा. अर्थव्यवस्था पर महामारी के विनाशकारी असर के बावजूद भारत का राजकोषीय प्रोत्साहन (स्टिमुलस) लगातार दूसरे साल कम रहा
बजट के प्रावधानों पर क़रीब से नज़र डालने पर पता चलता है कि वास्तव में पूंजीगत खर्च में 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी ग़लतफहमी पैदा करने वाली है क्योंकि एनएचएआई (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) और बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) पर इस बजट में सरकारी ख़ज़ाने से ज़्यादा खर्च किया गया है जबकि अतीत में इन्होंने बाज़ार से भी काफ़ी मात्रा में कर्ज़ लिया था. बजट में एनएचएआई और बीएसएनएल पर खर्च से इन संस्थाओं की वित्तीय सेहत तो सुधरेगी लेकिन इससे विकास की संभावनाओं में ज़्यादा सुधार नहीं होगा. अर्थव्यवस्था पर महामारी के विनाशकारी असर के बावजूद भारत का राजकोषीय प्रोत्साहन (स्टिमुलस) लगातार दूसरे साल कम रहा: विकसित देशों में जीडीपी के औसतन 8.5 प्रतिशत और विकासशील देशों में जीडीपी के औसतन 4.7 प्रतिशत के मुक़ाबले भारत में जीडीपी का सिर्फ़ 2.2 प्रतिशत. बजट में दूसरे बड़े विकास से जुड़े निवेश या नीतिगत सुधार की कमी निराशाजनक रही. पर्यटन, निर्यात, एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) जैसे काफ़ी ज़्यादा प्रभावित कई सेक्टर को पूंजीगत खर्च पर आधारित राजकोषीय प्रोत्साहन के रूप में पर्याप्त जगह नहीं मिली.
इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश जटिल है और किसी परियोजना का खाका खींचने से लेकर उसका डिज़ाइन तैयार करने, निर्माण और फिर काम-काज शुरू करना एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें अनगिनत रुकावटें हैं. योजना की कमी और ख़राब शासन व्यवस्था एक बड़ा कारण है जो इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को समय से पूरा होने से रोकता है.
2021-22 के बजट का काफ़ी इंतज़ार था. उम्मीद लगाई गई थी कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) में बढ़ोतरी होगी. लेकिन इस उम्मीद के उलट भारत के विकास में जान फूंकने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर दिया गया. इसके बावजूद पिछले एक वर्ष में हम देख रहे हैं कि ज़्यादा कुछ नहीं बदला. वास्तव में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का स्वभाव और संभावना को देखते हुए ये बहुत ज़्यादा हैरान करने वाला नहीं है. इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश जटिल है और किसी परियोजना का खाका खींचने से लेकर उसका डिज़ाइन तैयार करने, निर्माण और फिर काम-काज शुरू करना एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें अनगिनत रुकावटें हैं. योजना की कमी और ख़राब शासन व्यवस्था एक बड़ा कारण है जो इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को समय से पूरा होने से रोकता है. इस वजह से प्रोजेक्ट की लागत काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाती है और उसको तैयार करने का उद्देश्य भी पूरा नहीं होता है. ये दलील भी दी जाती है कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च की वजह से उम्मीद के मुताबिक़ जीडीपी में बढ़ोतरी वाला असर तभी आ सकता है जब पहले से मौजूद संस्थागत और प्रक्रियागत मजबूरियों को दूर किया जाए. ऐसा करने पर ही कोई भी प्रोजेक्ट समय पर पूरा किया जा सकेगा. सरकारी पूंजी हर हाल में पर्याप्त रूप से उत्पादक हो ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि उम्मीद के मुताबिक़ राजकोषीय लाभ अंतत: मिल सके. महामारी की वजह से आई जिस मंदी के दौर से भारत गुज़र रहा है, उसमें ये एक चुनौती है. इंफ्रास्ट्रक्चर में पूंजी लगाने को अक्सर सरकारों के द्वारा विदेशी निवेशकों के लिए निवेश का ठिकाना मुहैया कराने के साथ-साथ विकास बढ़ाने, रोज़गार और सेवा पहुंचाने के तरीक़े के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. तो भारत के लिए ये रणनीति कैसे काम कर रही है?
सब लोग ये मानते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर विकास का एक इंजन, रोज़गार पैदा करने का एक औज़ार और निवेश का एक आकर्षक ठिकाना है जो आधुनिकीकरण के लिए प्रेरित करता है और इसकी वजह से सेवाओं में सुधार आता है. लेकिन जैसा कि ऊपर के हिस्से में बताया गया है, भारत के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर ये बात हमेशा सही नहीं रही है. भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर को अनगिनत कारणों से उसकी पूरी संभावना तक पहुंचने से रोका जाता है. इन कारणों को संक्षेप में यहां बताया गया है:
इंफ्रास्ट्रक्चर से प्रेरित विकास के साकार होने का समय लंबा होता है जिस पर महत्वपूर्ण पूंजी की ज़रूरत होती है. बजट की मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए ये अनिवार्य है कि परियोजना की सफलता दर में सुधार करने और सरकारी संपत्ति में निवेश की तरफ़ प्राइवेट सेक्टर की सोच बदलने के लिए सुधारात्मक क़दम उठाया जाए
सरकार के बजट से लगता है कि आपूर्ति अपनी मांग ख़ुद बना लेती है. लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है. रोज़गार और आजीविका से जुड़ी अस्थिरता में बढ़ोतरी ने ज़्यादा बचत करने की ज़रूरत को बढ़ाया है. सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए ज़्यादा फंड का आवंटन कर सकती है लेकिन ऐसा करने से गहराई से समाई संस्थागत और प्रक्रियागत रुकावटों का समाधान नहीं होगा. पिछले वित्तीय वर्ष के बजट में की गई घोषणाओं, जैसे कि वित्तीय इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए राष्ट्रीय बैंक (एनएबीएफआईडी) का शुरू होना अभी भी बाक़ी है. इंफ्रास्ट्रक्चर से प्रेरित विकास के साकार होने का समय लंबा होता है जिस पर महत्वपूर्ण पूंजी की ज़रूरत होती है. बजट की मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए ये अनिवार्य है कि परियोजना की सफलता दर में सुधार करने और सरकारी संपत्ति में निवेश की तरफ़ प्राइवेट सेक्टर की सोच बदलने के लिए सुधारात्मक क़दम उठाया जाए. शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसे सामाजिक सूचकों पर इंफ्रास्ट्रक्चर का जो सकारात्मक असर हो सकता है, वो सतत विकास लक्ष्य 2030 को हासिल करने के लिए इसे प्रगति का प्रमुख स्तंभ बनाता है.
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Charmi Mehta is a Research Consultant with the Asian Development Bank and the Chennai Mathematical Institute. Her research interests lie at the intersection of public ...
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