Author : Rouhin Deb

Published on Aug 05, 2021 Updated 0 Hours ago

विविधताओं से परिपूर्ण भारत जैसे देश में, बग़ैर एक अनुकूल हस्तक्षेप वाली नीति के, जो ज़मीनी तौर पर हर देश के भीतर हर गांव तक पहुँच सके, एक ऐसा योग्य विकास मॉडल का बन पाना मुश्किल है-

महत्वाकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP): ग्रामीण भारत के लिए उम्मीद की एक किरण

जिस भारत ने 30 साल के उदारीकरण के दौर मे तीव्र गति से विकास दर रिकार्ड किया था, कोविड 19 महामारी के बाद से उसके विकास के तीव्र दर मे एक ज़बरदस्त ठहराव सा आ गया है. हालांकि, हाल-फिलहाल के आँकड़े बताते हैं, कि कोविड-19 की दूसरी लहर मे क्रमशः अब गिरावट आ रही है, और इस वजह से देश के ज्य़ादातर ग्रामीण जिलों मे,एक समावेशी विकास की कमी कि वजह से देश के कई जिलों से चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. विकास कार्यों में असमानता, और देश के भीतर शहरी-ग्रामीण में भेद और वर्गीकरण, वर्तमान समय में देश के दयनीय मानव विकास सूचकांक (HDI) रैंकिंग के लिए दोषी है. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की विश्व रैंकिंग रिपोर्ट में 180 देशों में भारत की रैंकिंग 131 रही है.  

विविधताओं से परिपूर्ण भारत जैसे देश में, बग़ैर एक अनुकूल हस्तक्षेप वाली नीति के, जो ज़मीनी तौर पर हर देश के भीतर हर गांव तक पहुँच सके, एक ऐसा योग्य विकास मॉडल का बन पाना मुश्किल है, जिसे सभी से साझा किया जा सके. इसी वजह से सरकार लगातार इस कोशिश में है कि, वो एक ऐसी नीति का निर्माण कर सके जिसका काफ़ी बड़ा और प्रभावशाली असर पूरे समाज पर पड़ सके. ऐसे कई बड़े सोची-समझ कर बनायी गई योजनाओं में से, कुछ हीं योजनाएं ऐसी रहीं जो कि असरदार रहीं और लोगों के जीवन में परिवर्तन ला पाने मे सफल रहीं. ऐसा ही एक प्रोग्राम “आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (Aspirational District Program – ADP) है,  जिसे सरकार ने जनवरी 2018 में लॉन्च किया था, इस कोशिश में, कि इसके ज़रिए उन विभिन्न सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के मापदंडों में पर्याप्त वृद्धि दर्ज की जा सके, जो विकास के लिहाज़ से अब भी काफी पिछड़े हुए हैं. ये कार्यक्रम सरकार कि उन कुछ चंद अहम सार्थक पहल में से एक है, जिसने काफ़ी कम समय में बेहतर प्रदर्शन करके विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की प्रशंसा पायी है जो विकास की दिशा में महत्वपूर्ण काम करते हैं.   

यह पहल, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई परिणाम केंद्रित कार्यक्रम का ही नतीजा है, जिसका उद्देश्य देश में 117 अति पिछड़े जिलों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने और इन जिलों को देश के अग्रिम पंक्ति मे ला खड़ा करने का है. 

यह पहल, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई परिणाम केंद्रित कार्यक्रम का ही नतीजा है, जिसका उद्देश्य देश में 117 अति पिछड़े जिलों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने और इन जिलों को देश के अग्रिम पंक्ति मे ला खड़ा करने का है. इस योजना में शामिल, विभिन्न हितधारकों के बीच आपस में झुकाव, सहयोग और प्रतिस्पर्धा  के तीन महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का उद्देश्य उन चिन्हित जिलों का उन 49 विकसात्मक संकेतकों के आधार पर मूल्याकंन करना है, जो पाँच बिंदुओं में बंटे हुए हैं. इनमें  स्वास्थ्य और न्यूट्रिशन, कृषि, आर्थिक समावेशन. कौशल विकास, आधारभूत इन्फ्रास्ट्रक्चर और गरीबी शामिल है.  

ये अलग कैसे है? 

इस प्रोग्राम की ख़ासियत, इस बात पर आधारित है कि सरकार द्वारा संचालित ये उन चुनिंदा कार्यक्रमों में से एक है जो कि विकास के दर को, रियल टाइम डेटा संग्रह के माध्यम  से, लगातार एक छोटे-छोटे अंतराल में इसके विकास की गति का मूल्यांकन करता है. इस कार्यक्रम का मूल इसी सोच पर आधारित है कि, “जिसका मूल्यांकन हो सकता है, उसी का प्रबंधन होता है,” और, इसलिए, ज़मीनी तौर पर रियल टाइम प्रोग्रेस को रिकार्ड करने पर सरकार ने अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर रखा है. दूसरा, यह एक ऐसा कार्यक्रम है जो कि इससे संबंधित केंद्रीय स्तर से लेकर पंचायत स्तर के सारे साझेदारों को, एक बिल्कुल साफ़ और शुद्ध रूप से परिभाषित फ्रेमवर्क में एक साथ खड़ा करता है, जहां सभी साझेदारों की भूमिका निर्धारित होने से वे सब अपने-अपने तयशुदा उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में एकचित्त हो काम करने के लिये प्रेरित होते हैं. जो विकास होगा, उसको मापने और उसकी गति पर नज़र रखने के लिए नीति-आयोग द्वारा तैयार किया गया डेल्टा रैंकिंग भी इस एडीपी की एक अनूठी ख़ासियत है. संख्याओं में वृद्धि से विकास में परिवर्तन के प्रतिशत पर अपना फोकस केंद्रित करने, अपेक्षाकृत पिछड़े ज़िलों को, समान मैदान पर खेलने और प्रतिस्पर्धात्मक बनने की प्रेरणा देती है. यह कार्यक्रम प्रतिस्पर्धा और सहयोगी संघवाद को अपने सर्वोत्तम भाव को दर्शाने का मौका देने वाला अनोखा मॉडल है.   

जिलों में लागू किये गए एडीपी का असर काफी प्रभावित करने वाला रहा है. विभिन्न स्टेक-होल्डर्स या हिस्सेदार जिसमें सरकारी संगठनों से लेकर एनजीओ और आम जनता तक के सम्मिलित प्रयास ने, पिछले तीन सालों मे काफ़ी बेहतरीन प्रदर्शन रिकार्ड किया है. 

कितना असर?

जिलों में लागू किये गए एडीपी का असर काफी प्रभावित करने वाला रहा है. विभिन्न स्टेक-होल्डर्स या हिस्सेदार जिसमें सरकारी संगठनों से लेकर एनजीओ और आम जनता तक के सम्मिलित प्रयास ने, पिछले तीन सालों मे काफ़ी बेहतरीन प्रदर्शन रिकार्ड किया है. हाल की UNDP की रिपोर्ट में इस्तेमाल किये गए फ़र्क से फ़र्क आधारित विश्लेषण में, इस कार्यक्रम से उत्पन्न प्रभाव का अध्ययन करने के दरम्यान यह तथ्य सामने आया कि, उन सारे आकांक्षी जिलों ने, कम आकांक्षा रखने वाले ज़िलों की तुलना में विकास कार्यों मे काफ़ी बेहतर प्रदर्शन किया है. इसके पीछे कई वजह हो सकती है जो कि, इस प्रोग्राम का राजनैतिक महत्व, सरकार की तरफ़ से इस कार्यक्रम की ओर दिए गए विशेष ध्यान, एक सुदृढ़ ढांचा अथवा फ्रेमवर्क, साथ ही एक प्रतिस्पर्धात्मक दबाव बनाने की नीति ने इस प्रोग्राम में विभिन्न हिस्सेदारों द्वारा दी गयी मदद से रैंकिंग प्रक्रिया में बेहतर रैंक ला पाने में सफलता हासिल की.ये करने के लिये हर किसी की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी. प्रमाणस्वरूप छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर ज़िले मे मलेरिया रोग मे आई कमी, झारखंड के राँची मे पोषण ए द्वारा गहन निगरानी के फलस्वरूप कुपोषण की बीमारी में आई सुधार, और असम के गोलपारा जिले में ई-कॉमर्स एप की मदद से स्थानीय उत्पादों को दिया गया बढ़ावा और महाराष्ट्र के वाशीन क्षेत्र में रिचार्ज पिट द्वारा सिंचाई सुविधा में कई गई सुधार- ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिसने एडीपी द्वारा इन पिछड़े ज़िलों मे सुर्खियां बटोरीं. इनमें से कुछ सुधार कार्यक्रमों ने जब इन ज़िलों को अपने उद्देश्य प्राप्ति में मदद की तब उससे प्रभावित होकर दूसरे जिलों नें भी इन्हें अपने स्तर पर अपनाया है. 

इस कार्यक्रम से भविष्य में क्या बदलाव आ सकते हैं?

हालांकि, ये प्रेरणादायक जिला प्रोग्राम बहुत सफल रहा है, पर इसमें भविष्य में और भी सुधार की गुंजाइश है. पहला इस प्रोग्राम में पहले से उपलब्ध 5 व्यापक विषयों के अतिरिक्त और भी कुछ नए विषय जोड़े जाने की आवश्यकता है, दूसरा, जिलों के बीच असमानता और भेदभाव इस प्रतिस्पर्धा को साफ़-सुथरा रख पाने मे असमर्थ है, अतः इस विषय को भी संबोधित किया जाना चाहिए. आगे ADP का अपना ही एक प्रतिस्पर्धात्मक पहलू है, जो कि इस रैंकिंग सिस्टम का एक महत्वपूर्ण विषय है, किन्तु डेटा संग्रह और डेटा रिकॉर्ड से संबंधित अव्यवस्था, बाद में- एक बड़ी चिंता का विषय हो सकता है, इसलिए नए मूल्यांकन पद्धति के बनाए जाने की बेहद सख्त़ ज़रूरत है, जो की डेटा से संबंधित गलत रिपोर्टिंग पर रोक लगा सके. अंत मे, ADP को  देश में समाज के बहुत बड़े वर्ग तक पहुँच पाने में सक्षम बनाने के लिये, उसे एक जन-आंदोलन बनाने के लिए, सरकार को चाहिए कि वो एक बेहतर क्षमता निर्माण प्रक्रिया की शुरुआत करने की ज़रूरत है. इसके अलावा फंड के आवंटन, और ब्लॉक स्तर पर उपयोगी तकनीकी अभ्यास की ओर अपना ध्यान केंद्रित करने की भी ज़रूरत है. ये सब ऐसे कुछेक क्षेत्र हैं जिसे संबोधित किया जाना बाकी है, वरना यह एक काफ़ी शानदार प्रोग्राम है.  

शुरुआत में, इस कार्यक्रम की रचना  वैश्विक मानव विकास सूचकांक मे भारत की रैंकिंग मे सुधार करने के मक़सद से किया गया, जो साफ़तौर पर अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है क्योंकि भारत आज भी विश्व रैंकिंग में131 स्थान पर है.

सारांश

UNDP द्वारा हाल ही मे जारी मूल्यांकन रिपोर्ट मे, उन जिलों मे जहां, इस महत्वकांक्षी  ज़िला स्तरीय कार्यक्रम को लागू किया गया था, वहां इसके काफ़ी सकारात्मक और प्रभावशाली असर दिखाई दिए है. हालांकि, शुरुआत में, इस कार्यक्रम की रचना  वैश्विक मानव विकास सूचकांक मे भारत की रैंकिंग मे सुधार करने के मक़सद से किया गया, जो साफ़तौर पर अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है क्योंकि भारत आज भी विश्व रैंकिंग में131 स्थान पर है. जिस चीज़ की सख्त़ ज़रूरत है, वो है कुछ संकेतकों की, जो शायद स्थूल पड़ गई है, और उसमें किसी तरह की कोई हरक़त होती दिखायी नहीं दे रही है. (जैसे कि बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर के तौर पर घरों मे दी जाने वाली बिजली); उनका नवीनीकरण और पुनर्रचना किया जाना चाहिए. उदाहरण के तौर पर, यादगीर (कर्नाटक) जैसे सबसे कम सुधार वाले ज़िले भी हैं, जहां सबसे ज्य़ादा कमज़ोरियां उजागर हुईं हैं. इन जिलों को अपेक्षाकृत और ज्य़ादा ध्यान और प्रोत्साहन दिए जाने की ज़रूरत है. अंत मे, जब की ये प्रोग्राम अब तीन वर्ष पुराना हो चुका है, इस कार्यक्रम की स्थापना के समय से इसके स्टेकहोल्डर्स या हिस्सेदार रहे लोगों और संस्थाओं में अब वो गति और प्रेरणा का अभाव दिखता है, और इसे फिर से पहले वाली गतिशीलता देने के लिए, सरकार को अलग-अलग स्तर पर दोबारा ट्रेन करने और लर्निंग प्रोग्राम दिये जाने की ज़रूरत है. सरकार द्वारा संचालित ADP संभवतः पहला ऐसा कार्यक्रम है जो भारत के सुदूर के छोटे गाँव और ज़िले मे रहने वाले लोगों के जीवन में एक अमिट छाप छोड़ने मे सफ़ल रहा है. अतः इस प्रोग्राम के प्रभावशाली क्रियान्वयन को ध्यान में रखते हुए, ये बहुत ज़रूरी है कि एडीपी मे शामिल सारे स्टेकहोल्डर्स को हमेशा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इसे गतिशील बनाए रखा जाना चाहिए. इस कार्यक्रम के तहत ज़िलों द्वारा अपनाए गए बेहतर और सर्वश्रेष्ठ प्रणालीओं को भविष्य में देश के बाकी जिलों मे भी अपनाया जाना चाहिए.  

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