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ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान के कमज़ोर परमाणु रुख का उजागर कर दिया. इसकी वजह से पाकिस्तानी सेना को आधुनिकीकरण के लिए मजबूर होना पड़ा जबकि भारत मज़बूत पारंपरिक अवरोध की तरफ बढ़ रहा है.
भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध लंबे समय से संकटग्रस्त रहा है और ऐसा ही बने रहने की उम्मीद है क्योंकि भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान उप-परंपरागत युद्ध की रणनीति का पालन करता है. इस पृष्ठभूमि में भारत के द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम देने से एक नई सामान्य स्थिति स्थापित हुई है. पाकिस्तानी सेना का असमान परमाणु रुख़ भारत की मज़बूत पारंपरिक प्रतिक्रिया के ख़िलाफ़ एक कमज़ोर अवरोध है. फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर का परमाणु शक्ति का प्रदर्शन इस कमज़ोरी को दर्शाता है. इसका उद्देश्य अपने देश के लोगों को आश्वस्त करना, भारत को अपने दृढ़ संकल्प का संकेत देना और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका को, भारत-पाकिस्तान संकट में एक भूमिका अदा करने के लिए प्रेरित करना है. इससे ये पता चलता है कि भारत के प्रति पाकिस्तान अपने परमाणु रुख़ को क्यों बदलना चाहता है.
पाकिस्तान के परमाणु हथियार भारत की बढ़ती पारंपरिक सैन्य क्षमता के ख़िलाफ़ उसे बराबरी की स्थिति में लाते हैं. पाकिस्तानी सेना का परमाणु रुख़ और उससे जुड़े तनाव में बढ़ोतरी के ख़तरे का उद्देश्य पाकिस्तान की उप-परंपरागत युद्ध की रणनीति के कम लागत वाले विकल्प के ख़िलाफ़ भारत की प्रतिक्रिया को रोकना है. भारत के द्वारा विकल्पों को विकसित करने की खोज के क्रमिक विकास के रूप में पाकिस्तान ने अपने परमाणु रवैये में खामियों को महसूस किया और अपने शस्त्रागार में सामरिक परमाणु हथियार (TNW) शामिल किए. पाकिस्तान के TNW केंद्र, जैसा कि रेखाचित्र 1 में दिखाया गया है, युद्ध के मैदान में विश्वसनीय हथियार न होकर केवल संकेत देने के उपकरण हैं. इस प्रकार TNW ने भारत की पारंपरिक प्रतिक्रिया के विकल्पों को सीमित करने के लिए एक पूरी तरह रुकावट की रणनीति तैयार करने के उद्देश्य से एक असमान परमाणु रुख़ बनाने में मदद की.
रेखाचित्र 1: पाकिस्तान का TNW केंद्र, पानो अक़ील, सुक्कुर ज़िला, सिंध

स्रोत: कर्नल विनायक भट्ट
रेखाचित्र 2: पाकिस्तान का TNW केंद्र, गुजरांवाला, पंजाब

स्रोत : कर्नल विनायक भट्ट
अगर भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान का परमाणु ब्लैकमेल बेअसर हो जाता है तो पाकिस्तान की तरफ से परमाणु तनाव बढ़ाने की धमकी का मक़सद तीसरे पक्ष को दखल देने के लिए शामिल करना है, विशेष रूप से अमेरिका को. अमेरिका की धरती से फील्ड मार्शल आसिम मुनीर का ताज़ा बयान एक उत्प्रेरक परमाणु रुख विकसित करने का प्रयास है जो निकट भविष्य में भारत के नए सिद्धांत को लेकर पारंपरिक प्रतिक्रिया के ख़िलाफ़ एक सेफ्टी वाल्व प्रदान करेगा. ये सिद्धांत राजनीतिक इच्छा से प्रेरित है और पाकिस्तान की उप-परंपरागत युद्ध की रणनीति के ख़िलाफ़ पारंपरिक प्रतिक्रिया अपनाने में ख़तरों को सहने की क्षमता रखती है जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर ने स्पष्ट रूप से दिखाया.
अमेरिका की डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (DIA) के नेतृत्व में वर्ल्डवाइड थ्रेट एसेसमेंट 2025 के अनुसार, “भारत को पाकिस्तान अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा मानता है और वो भारत की पारंपरिक सैन्य बढ़त की बराबरी करने के लिए अपने सैन्य आधुनिकीकरण के प्रयासों को जारी रखेगा जिनमें युद्ध के मैदान में परमाणु हथियारों का विकास शामिल है”. पाकिस्तान अपने लक्ष्य के विकल्पों और उसे ले जाने वाले साधनों को विकसित कर रहा है. दो महत्वपूर्ण क्षमताओं, जिनमें शाहीन-III और अबाबील मीडियम रेंज बैलिस्टिक मिसाइल का क्रमश: अप्रैल 2022 और नवंबर 2023 में परीक्षण शामिल है, का लक्ष्य भारत की बढ़ती मिसाइल रक्षा क्षमताओं पर निशाना साधना है. पाकिस्तान ने अबाबील को MIRV (मल्टिपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल) सक्षम के रूप में विकसित किया है ताकि भारत के ख़िलाफ़ अवरोध बढ़ाया जा सके.
क्रूज़ मिसाइल बाबर-3 का पनडुब्बी संस्करण, जिसका 2017 और 2018 में दो बार परीक्षण हो चुका है, निकट भविष्य में अगोस्टा-90B पनडुब्बियों पर तैनात किया जा सकता है. यह क्षमता पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध एक विश्वसनीय दूसरे प्रहार (second-strike) की योग्यता प्रदान करेगी
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान अब परमाणु ट्राएड की अपनी तलाश को और अधिक ज़ोरदार ढंग से आगे बढ़ा सकता है. वो अपने परमाणु भंडार की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भारत की बढ़त के ख़िलाफ़ समुद्र आधारित परमाणु क्षमता पर ध्यान देगा. क्रूज़ मिसाइल बाबर-3 का पनडुब्बी संस्करण, जिसका 2017 और 2018 में दो बार परीक्षण हो चुका है, निकट भविष्य में अगोस्टा-90B पनडुब्बियों पर तैनात किया जा सकता है. यह क्षमता पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध एक विश्वसनीय दूसरे प्रहार (second-strike) की योग्यता प्रदान करेगी.
उप-सतही परमाणु क्षमताओं से आगे पाकिस्तान ने एक अलग परंपरागत रॉकेट फोर्स बनाने का एलान किया है जिसका मुख्य उद्देश्य अलग-अलग लक्ष्यों पर निशाना साधना होगा जिनमें भारत के सैन्य और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे शामिल हैं. तालिका 1 में विभिन्न मिसाइल क्षमताओं को दिखाया गया है जिन्हें मुख्य रूप से परमाणु मिशन के लिए तैयार किया गया है और जिन्हें पारंपरिक भूमिकाओं के लिए भी बदला जा सकता है. अच्छी तरह से एकीकृत चीनी मूल का एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) तकनीकी रडार और बाइडू सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम पाकिस्तानी रॉकेट फोर्स के लिए नर्व सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) के रूप में काम करेगा. इसके अलावा अपने मिले-जुले प्रयास के हिस्से के रूप में चीन और पाकिस्तान ने सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड कंप्यूटिंग (CENTAIC) की स्थापना की है जिससे पाकिस्तानी वायु सेना (PAF) को अपने सेंसर-टू-शूट क्षमताओं को बेहतर ढंग से एकीकृत करने में मदद मिलेगी. इससे स्मार्ट-किल चेन बनाने में मदद मिलेगी जिसका नतीजा कम समय में परमाणु हथियारों की हवाई डिलीवरी (राद) में निकलेगा. ये शुरुआती तनाव बढ़ाने के लिए तैयार है और पाकिस्तान भी भारत को जल्द परंपरागत हमले के लिए उकसाने के मक़सद से पारंपरिक और परमाणु ताकतों को मिलाने के चीन के नज़रिए की नकल कर सकता है. भारत की बढ़ती गैर-परमाणु सामरिक क्षमताएं भी पाकिस्तान के लिए चिंता का कारण बन गई है जिसकी वजह से पाकिस्तानी सेना को अपनी हमला करने की क्षमता में बढ़ोतरी के लिए मजबूर होना पड़ा है.
तालिका 1: पाकिस्तानी मिसाइलों की सूची
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मिसाइल |
क्लास |
रेंज |
स्थिति |
वॉरहेड |
प्रोपल्शन |
पेलोड |
|
एग्ज़ोसेट |
ASCM |
40-180 किमी |
परिचालन में; सेवा में (1975-वर्तमान) |
165 kg HE (हाई एक्सप्लोसिव) फ्रैगमेंटेशन या सेमी-आर्मर पीयर्सिंग |
सोलिड-फ्यूल (MM40 ब्लॉक 3 माइक्रोटर्बो TRI 40 टर्बोजेट का उपयोग करता है) |
सिंगल वॉरहेड |
|
बाबर (हत्फ 7) |
क्रूज़ मिसाइल |
350-700 किमी |
परिचालन में; सेवा में (2010-वर्तमान) |
10-35 kt परमाणु, HE, सबम्यूनिशन |
टर्बोजेट |
सिंगल वॉरहेड, 450-500 किग्रा, परमाणु हमले के लिए सक्षम |
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राद (हत्फ 8) |
(एयर लॉन्च्ड) क्रूज़ मिसाइल |
350 किमी |
—- |
HE, परमाणु, पारंपरिक |
टर्बोजेट |
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अबाबील |
MRBM |
2,200 किमी |
– |
परमाणु, पारंपरिक |
सॉलिड-फ्यूल |
मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) |
|
हत्फ 5 “गौरी” |
MRBM |
1,250-1,500 किमी |
परिचालन में; सेवा में (2003-वर्तमान) |
12 – 35 kT परमाणु, HE, सबम्यूनिशन, केमिकल |
सिंगल-स्टेज लिक्विड प्रोपेलेंट |
सिंगल वॉरहेड, 700+ किग्रा |
|
शाहीन 2 (हत्फ 6) |
MRBM |
1,500-2,000 किमी |
परिचालन में; सेवा में (2014-वर्तमान) |
15 – 35 kT परमाणु, HE, सबम्यूनिशन, केमिकल |
टू-स्टेज सॉलिड प्रोपेलेंट |
सिंगल वॉरहेड, 700 किग्रा |
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शाहीन 3 |
MRBM |
2,750 किमी |
|
|
टू-स्टेज सॉलिड प्रोपेलेंट |
परमाणु, पारंपरिक |
|
अब्दाली (हत्फ 2) |
SRBM |
180-200 किमी |
परिचालन में; सेवा में (2005-वर्तमान) |
HE, सबम्यूनिशन, पारंपरिक |
सिंगल-स्टेज लिक्विड प्रोपेलेंट |
सिंगल वॉरहेड, 250–450 किग्रा |
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गज़नवी (हत्फ 3) |
SRBM |
290 किमी |
परिचालन में; सेवा में (2004-वर्तमान) |
HE, सबम्यूनिशन, 12–20 kT परमाणु |
सिंगल-स्टेज लिक्विड प्रोपेलेंट |
सिंगल वॉरहेड, 700 किग्रा |
|
हत्फ 1 |
SRBM |
70-100 किमी |
परिचालन में; सेवा में (1992-वर्तमान) |
पारंपरिक |
सॉलिड प्रोपेलेंट |
सिंगल वॉरहेड, 500 किग्रा |
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नस्र (हत्फ 9) |
SRBM |
70 किमी |
सेवा में |
कम ताकतवर परमाणु |
सिंगल-स्टेज सॉलिड प्रोपेलेंट |
सिंगल वॉरहेड, 400 किग्रा |
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शाहीन 1 (हत्फ 4) |
SRBM |
750-900 किमी (1A वेरिएंट) |
परिचालन में; सेवा में (2003-वर्तमान) |
35 kT परमाणु, HE, सबम्यूनिशन, केमिकल |
सिंगल-स्टेज सॉलिड प्रोपेलेंट |
700– 1,000 किग्रा |
स्रोत: CSIS मिसाइल डिफेंस प्रोजेक्ट
तालिका 2: पाकिस्तान का हवाई और समुद्र आधारित परमाणु शस्त्रागार
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प्रकार/ओहदा |
लॉन्चर्स की संख्या |
तैनाती का साल |
रेंज (किमी में) |
वॉरहेड x विनाशकारी शक्ति (किलोटन या kt) |
वॉरहेड की संख्या |
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हवाई हथियार मिराज III/V [JF-17] |
36 |
1998 |
2,100 |
1 x 5-12 kt बम या राद-I/II ALCM राद-I/II ALCM [JF-17] |
36 |
|
समुद्री हथियार बाबर-3 SLCM (हत्फ-?) |
- |
- |
450 |
1 x 5-12 kt |
- |
स्रोत: बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट
हवा और समुद्र आधारित मारक क्षमताओं (जैसा कि तालिका 2 में दिखाया गया है) को इस तरह से तैयार किया गया है कि लक्ष्य के विकल्पों और पहुंचाने के तरीकों का विस्तार करके भारत के ख़िलाफ़ विश्वसनीय संकेत के लिए पाकिस्तानी सेना की परमाणु फोर्स को मज़बूत करे. बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट के द्वारा 2023 में किए गए एक आकलन के अनुसार पाकिस्तान 14 से 27 वॉरहेड के बराबर फिसाइल मैटेरियल (विखंडनीय सामग्री) का उत्पादन कर रहा है लेकिन अनुमान से पता चलता है कि वास्तविक संख्या औसतन हर साल 5 से 10 के इर्द-गिर्द है.
भारत को अलग-अलग तकनीकों को विकसित करने का प्रयास जारी रखना चाहिए और अपने गैर-परमाणु सामरिक शस्त्रागार को मज़बूत करना चाहिए. पाकिस्तान के परमाणु दहलीज तक पहुंचने के रास्ते पर लगातार नियंत्रण बनाए रखने के लिए ये कोशिशें ज़रूरी हैं.
अपनी बढ़ती क्षमताओं के बावजूद पाकिस्तान को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. पहली चुनौती ये है कि सुरक्षा के लिए परमाणु हथियारों पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता की अपनी सीमाएं हैं. परमाणु उपयोग के लिए पाकिस्तान की व्यापक लेकिन अस्पष्ट सीमाएं, जिन्हें क्षेत्रीय, सैन्य, आर्थिक और घरेलू अस्थिरता में वर्गीकृत किया गया है, पहले इस्तेमाल के सिद्धांत के क्रियान्वयन में साफ तौर पर ‘कब, कहां और कैसे’ के तत्वों की कमी से जूझ रही है. दूसरी चुनौती ये है कि इस अस्पष्टता का उपयोग भारत ने अपने फायदे के लिए किया है. भारत की पारंपरिक सैन्य मज़बूती को बेअसर करने के लिए पाकिस्तान पहले परमाणु इस्तेमाल की नीति पर अत्यधिक निर्भर हो गया है जो कि बहुत विश्वसनीय नहीं है और जिसका पता ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी स्पष्ट रूप से दिख चुका है. इस प्रकार रणनीतिक स्थिरता को बनाए रखने का भार ज़्यादा नहीं तो पाकिस्तान पर भी उतना ही आ गया है. पाकिस्तान के दृष्टिकोण से देखें तो भारत के द्वारा पाकिस्तान के उप-परंपरागत युद्ध के ख़िलाफ़ पारंपरिक सैन्य विकल्पों के प्रयोग से तनाव बढ़ने का ख़तरा बढ़ गया है. इसने स्थिरता बनाए रखने की ज़िम्मेदारी भी समान रूप से, अगर ज़्यादा नहीं तो, पाकिस्तान पर डाल दी है. भारत के प्रधानमंत्री ने 12 मई को अपने संबोधन में “आतंकवाद को प्रायोजित करने वाली सरकार और और आतंकवाद के मास्टरमाइंड के बीच” अंतर नहीं करने की नई नीति के बारे में बताया था. भारत ने संयम बनाए रखा और आतंकवादी और सैन्य लक्ष्यों के बीच अंतर किया. हालांकि भविष्य में भारत के द्वारा ये फर्क किए जाने की उम्मीद नहीं है.
पिछले तीन दशकों से अधिक समय से पाकिस्तान की परमाणु रणनीति सरकार चलाने का एक साधन बनी हुई है जिसकी वजह से आतंकवाद के उसके प्रायोजन के विरुद्ध भारत की पारंपरिक प्रतिक्रिया में रुकावट आई है. लेकिन उरी, बालाकोट और ऑपरेशन सिंदूर के बाद ये समीकरण बदल गया है. भारत ने पाकिस्तान के द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के ख़िलाफ़ पारंपरिक सैन्य प्रतिक्रिया के माध्यम से अपनी इच्छाशक्ति और इरादे का विश्वसनीय प्रदर्शन किया है. हालांकि ऐसा सिद्धांत भविष्य में पाकिस्तानी आतंकी हमलों के ख़िलाफ़ पूरी तरह से गारंटी नहीं दे सकता.
भारत के विरुद्ध पाकिस्तान अपनी सैन्य क्षमताएं बढ़ा रहा है जिनमें एक अलग पारंपरिक रॉकेट फोर्स की उसका ताज़ा घोषणा शामिल है. भारत की चीनी सैन्य चुनौती, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है, पारंपरिक मिसाइल आधारित एकीकृत रॉकेट फोर्स (IRF) के लिए प्रेरक रही है. इस लक्ष्य को पाने के लिए भारत को विभिन्न रेंज वाली बैलिस्टिक, क्रूज़ और हाइपरसोनिक मिसाइल समेत अलग-अलग प्रकार की मिसाइल क्षमताओं की आवश्यकता है जो एक प्रभावी, विश्वसनीय पारंपरिक अवरोध की नीति का समर्थन करे. हालांकि अधिक फिसाइल मैटेरियल के उत्पादन की भारत की क्षमता को देखते हुए उसे ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए संख्या के मामले में परमाणु आधुनिकीकरण का प्रयास करना चाहिए.
भारत को अलग-अलग तकनीकों को विकसित करने का प्रयास जारी रखना चाहिए और अपने गैर-परमाणु सामरिक शस्त्रागार को मज़बूत करना चाहिए. पाकिस्तान के परमाणु दहलीज तक पहुंचने के रास्ते पर लगातार नियंत्रण बनाए रखने के लिए ये कोशिशें ज़रूरी हैं. इससे पाकिस्तान की दशकों पुरानी उप-परंपरागत युद्ध की रणनीति के विरुद्ध इनकार और दंड- दोनों के माध्यम से क्षमता स्थापित होगी.
कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.
राहुल रावत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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Kartik is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. He is currently working on issues related to land warfare and armies, especially the India ...
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Rahul Rawat is a Research Assistant with ORF’s Strategic Studies Programme (SSP). He also coordinates the SSP activities. His work focuses on strategic issues in the ...
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