Author : Rahul Mazumdar

Published on Aug 05, 2021 Updated 0 Hours ago

अब जब दुनिया उबर रही है तो भारत के पास निर्यात बढ़ाने का एक शानदार मौका है. उसे समयबद्ध तरीके से यह काम करना चाहिए ताकि भारत प्रतियोगी देशों से आगे निकल सके.

महामारी के बाद: तय समय के भीतर निर्यात में बढ़त दर्ज करने के लिये बननी चाहिये नई रणनीति

विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2021-26 पिछले साल आने वाली थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण सरकार को इसे टालना पड़ा. भारत ने 2015 की विदेश व्यापार नीति में 900 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा था, जो कई कारणों से हासिल नहीं हो पाया. इस नीति को बीच में संशोधित कर 2024 तक 1 लाख करोड़ डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन यह भी दूर की कौड़ी ही लगता है. 

अगर जीडीपी के मुकाबले में देखें तो 2011 में जहां निर्यात जीडीपी का 17 प्रतिशत था, वह 2018 में घटकर 12.4 प्रतिशत पर आ गया. 

चुनौतियां

यूं तो पिछले दो दशकों में भारत का निर्यात बढ़ा है. साल 2001 में यह 44 अरब डॉलर था, जो साल 2010 में 220 अरब डॉलर और 2019 में 323 अरब डॉलर हो गया. यहां हम साल 2020 के आंकड़ों का ज़िक्र इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि वह महामारी से प्रभावित रहा. यानी 21वीं सदी के दूसरे दशक में निर्यात में बढ़ोतरी तो हुई, लेकिन यह इससे पिछले दशक के कमोबेश बराबर ही रही है, जो चिंता की बात है. सच्चाई यह है कि साल 2001 में भारत का वैश्विक निर्यात में 0.7 प्रतिशत का योगदान था, जो 2010 तक बढ़कर 1.5 प्रतिशत पहुंच गया. हालांकि, 2019 में यह 1.7 प्रतिशत तक गया, जो 2010 की तुलना में थोड़ा ही अधिक है. अगर जीडीपी के मुकाबले में देखें तो 2011 में जहां निर्यात जीडीपी का 17 प्रतिशत था, वह 2018 में घटकर 12.4 प्रतिशत पर आ गया. 

कुछ पड़ोसी देशों से तुलना करने पर भारत का जीडीपी और निर्यात का रेश्यो बहुत खराब दिखता है. भारत के लिए जहां यह 2013 के 25 प्रतिशत से घटकर 2019 में 18 प्रतिशत रह गया था, वहीं वियतनाम के लिए 2010 के 72 प्रतिशत से बढ़कर यह हाल में 107 प्रतिशत तक जा पहुंचा. वियतनाम ही नहीं, कुछ अन्य उभरते हुए देशों का भी इस मामले में भारत से कहीं बेहतर प्रदर्शन रहा है. इनमें थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, फिलीपींस, श्रीलंका और चीन शामिल हैं. 

दूसरी तरफ, भारत के जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान लंबे वक्त से 15 प्रतिशत के करीब अटका हुआ है, जिसका बुरा असर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर भी पड़ा है. 2010 से शुरू होने वाले अगले 10 वर्षों में जहां फिलीपींस में एफडीआई 285 प्रतिशत की चक्रवृद्धि दर से बढ़ा, वहीं वियतनाम में 102 प्रतिशत से. इन देशों की तुलना में भारत में इसकी ग्रोथ 84 प्रतिशत रही. इस मामले में बांग्लादेश का प्रदर्शन भी 75 प्रतिशत के साथ बहुत बुरा नहीं रहा है. 

महामारी के बाद के मौके

अब जब दुनिया महामारी से उबर रही है तो भारत के पास निर्यात बढ़ाने का एक शानदार मौका है. उसे कम से कम समय में ऐसा करना चाहिए ताकि वह प्रतियोगी देशों से आगे निकल सके. इस मामले में भारत का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वैश्विक स्तर पर मुकाबले के लिए नीति-निर्माता पूरे विश्वास के साथ घरेलू रिफॉर्म्स करें. इसके लिए पहले तो भारत के निर्यात के बाज़ार का विस्तार करना होगा. देश का निर्यात क्षेत्र अगर अपनी क्षमता के मुताबिक नतीजे नहीं हासिल कर पा रहा है तो उसके लिए सुस्ती और जोख़िम न उठाने की प्रवृति ज़िम्मेदार है. 

अब जब दुनिया महामारी से उबर रही है तो भारत के पास निर्यात बढ़ाने का एक शानदार मौका है. उसे कम से कम समय में ऐसा करना चाहिए ताकि वह प्रतियोगी देशों से आगे निकल सके.

निर्यात के लिए देशों पर निर्भरता को लेकर हर्शमैन हर्फिंडल सूचकांक (एचएचआई) में भारत 2019 में 0.06 पर था, जो 2011 के 0.04 से अधिक था. इसका मतलब यह है कि इस दौरान भारत पहले की तुलना में कहीं अधिक देशों को निर्यात कर रहा था, जो कि अच्छी बात है. एचएचआई निर्यात के मामले में किसी देश की प्रतिस्पर्धी क्षमता का पता लगाने का पैमाना है. यह संख्या जितनी अधिक होगी, किसी देश को निर्यात में विविधता के मामले में उतना ही बेहतर माना जाएगा.

2019 में 5 देशों का भारत के कुल मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट में 37 प्रतिशत योगदान था, जबकि इससे 8 साल पहले 2011 में यह 40 प्रतिशत हुआ करता था. यह आंकड़ा चुनिंदा देशों पर निर्भरता या जोख़िम के लिहाज़ से भारत की इस दौरान बेहतर स्थिति को दिखाता है. मेक्सिको, फिलीपींस और वियतनाम जैसे उभरते हुए देशों से एचएचआई के आधार पर तुलना करने पर भी इस पैमाने पर भारत आगे है. मेक्सिको के लिए एचएचआई 0.54, फिलीपींस के लिए 0.10 और वियतनाम का 0.09 है, वहीं भारत के लिए यह आंकड़ा 0.06 है. 

ऐसी कंपनियां, जिनका कारोबार निर्यात आधारित है या जिन्हें निर्यात से अधिक आमदनी होती है, अगर वे अपने मुनाफ़े का कम से कम 0.5 प्रतिशत हिस्सा हर साल नए बाज़ार तलाशने की ख़ातिर सेमिनार करने पर ख़र्च करें तो सरकार को यह आइडिया पसंद आएगा. यह निर्यात बढ़ाने का गैर-पारंपरिक रास्ता हो सकता है. यह केंद्र सरकार के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) पहल की तरह होगा, जिसमें कंपनियां अपने कुल मुनाफ़े का 2 प्रतिशत सामाजिक योजनाओं पर ख़र्च करती हैं. कई भारतीय कंपनियों को विदेश में निर्यात के लिए गुणवत्ता के मानकों का पता नहीं है. इसलिए वैश्विक स्तर पर उन्हें अपना दायरा बढ़ाने में दिक्कत होती है. ऐसे में निर्यातकों को इन मुद्दों के प्रति जागरूक करना जरूरी है. ख़ासतौर पर देश की सूक्ष्म, लघु और मझोली कंपनियों (एमएसएमई) को, जिनका देश के कुल निर्यात में 48 प्रतिशत योगदान है. अक्सर इन कंपनियों को वैश्विक कानूनों और मानकों का पता नहीं होता. 

नए बाजार तलाशने के साथ देश के निर्यातक जिन बाजारों में मौजूद हैं, वहां उन्हें और अधिक किस्म के सामान भेजने की भी कोशिश करनी होगी. उदाहरण के लिए, भारत के लिए 2019 में एक्सपोर्ट मार्केट पेनिट्रेशन इंडेक्स (आईईएमपी) के 26.8 पर रहने का अनुमान है. यह 2011 के 27.1 से कम है. इससे पता चलता है कि भारतीय निर्यातक जिन देशों में मौजूद हैं, वे उसका पूरा फायदा इन 10 वर्षों में नहीं उठा पाए हैं. अगर विदेशी बाजारों में नेटवर्क मज़बूत हो तो यह काम आसानी से हो सकता है. चीन के लिए आईईएमपी दुनिया में सबसे अधिक 48.1 है. इसके बाद अमेरिका के लिए 40.6 और जर्मनी के लिए यह 39 पर है. आईईएमपी से किसी देश के निर्यात वाले बाजारों में उसकी पहुंच का पता चलता है.

तीसरा, भारत को देखना होगा कि ग्लोबल वैल्यू चेन के लिए कौन से क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं. फिर उन्हें प्राथमिकता में रखकर सामान बनाने होंगे, जिससे हमें नए बाज़ार मिल सकें. इस मामले में वियतनाम ने शानदार सफ़लता पाई है. उसकी अर्थव्यवस्था कृषि आधारित थी, लेकिन वह आज 30 प्रतिशत से अधिक निर्यात तकनीक आधारित इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए करता है. 

ऐसी कंपनियां, जिनका कारोबार निर्यात आधारित है या जिन्हें निर्यात से अधिक आमदनी होती है, अगर वे अपने मुनाफ़े का कम से कम 0.5 प्रतिशत हिस्सा हर साल नए बाज़ार तलाशने की ख़ातिर सेमिनार करने पर ख़र्च करें तो सरकार को यह आइडिया पसंद आएगा.

हाल ही में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव (पीएलआई) योजना शुरू की है ताकि घरेलू औद्योगिक क्षमता बढ़ाई जा सके. इससे भारतीय और विदेशी दोनों ही तरह की कंपनियों को लाभ होने की उम्मीद है. इसके साथ, इस योजना से देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी आ सकता है. यह बात ग़ौर करने लायक है कि भारत के कुल निर्यात में उच्च तकनीक वाले उत्पादों (हाई टेक) का योगदान 10 प्रतिशत है, जबकि मलेशिया के लिए यह 52 प्रतिशत और वियतनाम के लिए 40 प्रतिशत है. माना जा रहा है कि पीएलआई योजना से इस मामले में देश की स्थिति बेहतर होगी. 

चौथा, मैन्युफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र में वैल्यू एडेड एक्सपोर्ट आधारित ग्रोथ के लिए सरकार को एक राहत पैकेज लाना चाहिए. इसमें कंपनियों को टैक्स से छूट दी जा सकती है. ऐसा करने से इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा और उनकी ग्रोथ तेज़ होगी. पहले तो संबंधित क्षेत्र के लिए टैक्स छूट की अवधि को कंपनी की ओर से किए जाने वाले निवेश से जोड़ा जा सकता है. बाद के वर्षों में इसे कंपनी की बिक्री और निर्यात दोनों से ही जोड़ा जाना चाहिए. 

यह बात काफ़ी मायने रखती है कि भारतीय कंपनियां ग्लोबल वैल्यू चेन में भागीदार बनें. यह बात सही है कि कई देश आयात शुल्क बढ़ा रहे हैं, जो संरक्षणवाद यानी अपने यहां की कंपनियों को एक सुरक्षा कवच देने की कोशिश है. भारत में भी ऐसा किया जा सकता है

आख़िर में, यह बात काफ़ी मायने रखती है कि भारतीय कंपनियां ग्लोबल वैल्यू चेन में भागीदार बनें. यह बात सही है कि कई देश आयात शुल्क बढ़ा रहे हैं, जो संरक्षणवाद यानी अपने यहां की कंपनियों को एक सुरक्षा कवच देने की कोशिश है. भारत में भी ऐसा किया जा सकता है, लेकिन योजना शुरू करने के साथ ही यह भी बताना चाहिए कि कब यह कवच हटा लिया जाएगा. इससे भारतीय कंपनियों को यह संदेश मिलेगा कि उन्हें छूट की अवधि में ही खुद को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना होगा क्योंकि आयात शुल्क का कवच हमेशा के लिए नहीं है. 

भारत के पास आरसीईपी में 2020 में नहीं जुड़ने के पर्याप्त कारण थे. इस समझौते के लिए भले ही उसने बातचीत 2012 में शुरू की थी, लेकिन वह पिछले साल तक इसकी ख़ातिर तैयार नहीं था. हालांकि, वह फिर से यही दुहाई नहीं दे सकता. कुल मिलाकर, सरकार को ज़मीनी सचाइयों को ध्यान में रखते हुए कंपनियों के हक में ऐसी निर्यात नीति लानी चाहिए, जिस पर तय समय में अमल किया जा सके. नीति ऐसी हो, जो भारत को दूसरे देशों के साथ प्रतियोगिता करने के साथ वैश्विक व्यापार में भागीदारी बढ़ाने में मदद करे.  

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