Published on Aug 04, 2020 Updated 0 Hours ago

सरकार को बैंकिंग सेक्टर को ये भरोसा दिलाना होगा कि वो मुक्त होकर क़र्ज़ बांट सकते हैं. हमें, विकास दर हासिल करने के लिए क़र्ज़ का प्रवाह बढ़ाना होगा. क्योंकि, विकास का ये सबसे बड़ा इंजन होता है. 

कोविड-19 के बाद: वैश्विक अर्थव्यवस्था के बदलते हालात से भारत को मिला सुनहरा मौक़ा

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के वर्ष 2019 के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुट के मुताबिक़, भारत की जीडीपी (GDP) 2.94 ख़रब डॉलर थी. केवल अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की अर्थव्यवस्थाएं भारत से बड़ी हैं. और अगर हम परचेज़िंग पावर पैरिटी (PPP) को पैमाना बनाकर अर्थव्यवस्था के आकार का आकलन करें, तो भारत का नंबर चीन और अमेरिका के बाद तीसरा हो जाता है. 1980 में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 354 अमेरिकी डॉलर थी. जो उस समय चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी 339 अमेरिकी डॉलर से कुछ ही अधिक थी. लेकिन, आज चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी 10 हज़ार डॉलर से अधिक है. वहीं, भारत की जीडीपी महज़ 2200 डॉलर प्रति व्यक्ति है. पिछले तीस वर्षों के दौरान चीन की जीडीपी की औसत विकास दर दस प्रतिशत से अधिक रही थी. चीन की तरक़्क़ी इस बात का सबूत है कि अधिक जनसंख्या वाले देश भी लगातार आर्थिक विकास के पथ पर चलते रह सकते हैं.

कोविड-19 के बाद की दुनिया में चीन को लेकर तमाम चिंताएं ज़ाहिर की जा रही हैं. ऐसे में, दुनिया की आपूर्ति श्रृंखलाओं की नए सिरे से संरचना करने की कोशिशें हो रही हैं, ताकि किसी राजनीतिक और आपूर्ति के जोख़िम से बचा जा सके. ये बदलती हुई वैश्विक परिस्थिति भारत के लिए एक अवसर हो सकती है

पिछले चालीस वर्षों के दौरान चीन ने तरक़्क़ी की लंबी छलांग लगाई है. ये विश्व के निर्माण क्षेत्र का सबसे बड़ा केंद्र है. चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है, तो दूसरा सबसे बड़ा आयातक मुल्क भी है. ऐसे में ये देखकर क़तई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में चीन को लेकर तमाम चिंताएं ज़ाहिर की जा रही हैं. ऐसे में, दुनिया की आपूर्ति श्रृंखलाओं की नए सिरे से संरचना करने की कोशिशें हो रही हैं, ताकि किसी राजनीतिक और आपूर्ति के जोख़िम से बचा जा सके. ये बदलती हुई वैश्विक परिस्थिति भारत के लिए एक अवसर हो सकती है. आज भारत के पास ये मौक़ा है कि वो अपने अंदर झांके और अपनी निर्माण शक्ति का विकास करे. इसके साथ साथ भारत निर्यात पर आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देने का काम भी कर सकता है.

आज फॉर्च्यून ग्लोबल 500 की लिस्ट में भारत की केवल 7 कंपनियां हैं. जबकि, इस सूची में चीन की 119 कंपनियों ने जगह बनाई हुई है. ज़ाहिर है, भारतीय उद्यमियों को चीन से मुक़ाबले के लिए और मशक़्क़त करनी होगी. हमारे पास एक बड़ा मौक़ा है कि हम अपनी युवा आबादी की मदद से अपनी आर्थिक शक्ति का विकास कर सकते हैं. नए नए उत्पाद घरेलू बाज़ार में उतार सकते हैं, जहां नए उत्पादों और सेवाओं की भारी मांग है. इस काम में हमारा पर्याप्त रूप से उत्पादक कृषि क्षेत्र भी मदद कर सकता है. जिसकी मदद से अर्थव्यवस्था को और कार्यकुशल बनाया जा सकता है.

हमारे देश के प्रधानमंत्री ने अगले पांच वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था को 5 ख़रब डॉलर के स्तर पर पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इस चुनौती को पूरा करने के लिए हमें विश्व स्तर पर प्रतिद्वंदिता के लिए ख़ुद को तैयार करना होगा. इसके अलावा हमें हर साल कम से कम 15 प्रतिशत की विकास दर को हासिल करना होगा. कोविड-19 से कराह रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के दौर में ये लक्ष्य प्राप्त करना बेहद मुश्किल है. लेकिन, इस मुश्किल वक़्त को हम एक अवसर में तब्दील कर सकते हैं. और अपने काम करने के तौर तरीक़ों को बदल सकते हैं.

हमें इसके लिए एक मिशन तैयार करना होगा और देश के हर नागरिक तक ये संदेश पहुंचाना होगा कि उसे राष्ट्र निर्माण के इस महायज्ञ में अपनी पूरी शक्ति लगानी होगी. हम ये मानकर चलते हैं कि इस दौरान नीतिगत विकास में भी तेज़ी से तरक़्क़ी होगी. जिसकी मदद से हम विश्व स्तर का मूलभूत ढांचा बना सकेंगे. जिसके कारण हम देश के भीतर एक सकारात्मक कारोबारी माहौल तैयार कर पाएंगे, जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन आएगा और हुनरमंद कामगारों को तैयार करने के लिए आवश्यक प्रयास किए जाएंगे. नीतिगत फ़ैसलों से हम शहरों के बुनियादी ढांचों और आला दर्जे की स्वास्थ्य व्यवस्था का विकास कर सकेंगे. और इन सबकी मदद से भारत में रहन-सहन का स्तर सुधरेगा. और, मानव विकास सूचकांक में भारत की पायदान में भी सुधार आएगा.

इस सामाजिक आर्थिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच मज़बूत साझेदारी की ज़रूरत होगी. सरकार को खुलकर दिखाना होगा कि नीतिगत स्तर पर स्थिरता बनाए रखी जाएगी. कारोबार के नियम क़ायदों में अचानक बदलाव नहीं होंगे. इसके अलावा सरकार को इस बात का संकेत भी देना होगा कि वो नई नीतियां बनाने को लेकर विचारों में खुलापन रखती है

सहयोग करें – कार्यकुशलता से

इस सामाजिक आर्थिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच मज़बूत साझेदारी की ज़रूरत होगी. सरकार को खुलकर दिखाना होगा कि नीतिगत स्तर पर स्थिरता बनाए रखी जाएगी. कारोबार के नियम क़ायदों में अचानक बदलाव नहीं होंगे. इसके अलावा सरकार को इस बात का संकेत भी देना होगा कि वो नई नीतियां बनाने को लेकर विचारों में खुलापन रखती है. इसके अलावा सरकार देश के बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश कर सकती है. अपने निवेश के ज़रिए सरकार वैश्विक स्तर पर निवेशकों का हौसला बढ़ाने वाले संकेत दे सकती है. सरकार को विकास की तमाम नीतियां बनाने में तेज़ी दिखानी होगी. तभी दुनियाभर से पूंजी निवेश को भारत की तरफ़ आकर्षित किया जा सकेगा. इससे घरेलू अर्थव्यवस्था और रोज़गार में भी सुधार लाया जा सकेगा. निजी क्षेत्र नया बिज़नेस मॉडल सामने रख सकता है. इसके अलावा स्वदेशी निजी क्षेत्र के कारोबारी नए निवेश के ज़रिए उच्च गुणवत्ता के उत्पाद और सेवाओं का निर्माण कर सकते हैं. जिनमें दुनियाभर के ख़रीदार आगे चलकर दिलचस्पी दिखा सकते हैं. हालांकि, ये सब सुनिश्चित करने के लिए हमें घरेलू स्तर पर मज़बूत और स्थायी क़र्ज़ व्यवस्था का लाभ उठाना होगा. तभी घरेलू स्तर पर मांग को मज़बूती से आगे बढ़ाया जा सकेगा. इससे विदेश से आयात को कम किया जा सकेगा और भारत से निर्यात की रणनीति को प्रोत्साहन देने वाली नीतियां भी बनायी जा सकेंगी.

विकास को वित्तीय प्रोत्साहन और वित्तीय समावेशन के लिए डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल

सही समय पर निवेश और कारोबार को लेकर प्रतिबद्धता से विकास की गति तेज़ होगी. एक मज़बूत वित्तीय बाज़ार (ख़ासतौर से क़र्ज़ का बाज़ार) और कारपोरेट प्रशासन के उच्च मानकों को बढ़ावा देने की कोशिशों से भारत में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा. श्रम क़ानूनों में सकारात्मक और तेज़ गति से सुधार व कार्यकुशलता को बढ़ावा देने से निर्माण क्षेत्र को सबसे अधिक फ़ायदा होगा. भारत के विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए कई प्रयास करने पड़ेंगे. भारत की बैंकिंग व्यवस्था का कुल आकार लगभग 100 लाख करोड़ रुपए (या 1.3 खरब डॉलर) है. अर्थशास्त्री और बैंकिंग के विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि हमारी जीडीपी में सर्विस सेक्टर की सहयोगी भूमिका को देखते हुए हमें अपने क़र्ज़ के बाज़ार (बैंकिंग सेक्टर के आकार) को दोगुना करने की ज़रूरत है. तभी हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं. इससे पहले भी हमारे बैंकिंग क्षेत्र में उच्च स्तरीय क़र्ज़ विकास दर को होते हुए देखा गया है.

चीन और अमेरिका के साथ तुलनात्मक आंकड़ों पर एक नज़र

2019 में चीन का क़र्ज़ बाज़ार या बैंकिंग सेक्टर लगभग 40.6 ख़रब डॉलर का था. चीन की जीडीपी पिछले साल तक 15 ट्रिलियन डॉलर की थी.

वहीं, अमेरिका का क़र्ज़ बाज़ार 18 ट्रिलियन डॉलर का था, जिसकी मदद से अमेरिका 21 खरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बन सका.

आज हमें जिस सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के लिए सबसे अधिक पूंजी की ज़रूरत है वो है इन्फ्रास्ट्रक्चर का सेक्टर. इस क्षेत्र को पूंजी की ताक़त की भी ज़रूरत है. भारत के पास मूलभूत ढांचे से जुड़े ऐसे वित्तीय संस्थान नहीं हैं, जिनके पास मोटी पूंजी हो. इस संदर्भ में हमें, सरकारी क्षेत्र के बैंकों के योगदान को सदैव ध्यान में रखना चाहिए. क्योंकि, भारत के सरकारी बैंकों ने ही आम तौर पर वास्तविक अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों के विकास में पूंजी निवेश किया है. आज इस बात की ज़रूरत है कि सरकार भारी पूंजी वाले दो से तीन बैंकों में अपनी बड़ी हिस्सेदारी बनाकर रखे. क्योंकि, मूलभूत ढांचे के विकास में इन बैंकों की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी. सरकार ने आकलन किया है कि वो अगले पांच वर्षों में मूलभूत ढांचे के विकास में सौ लाख करोड़ रुपए का निवेश करेगी. अगर हम इस संकेत पर यक़ीन करें, तो सरकार के इस निवेश से मूलभूत ढांचे के विकास में निवेश का सकारात्मक माहौल बनेगा. इससे व्यवस्था में और पूंजी आएगी. रोज़गार के स्तर में सुधार आएगा. कॉरपोरेटर भारत को पूंजी के प्रवाह में भी तेज़ी आएगी. और इन सबकी वजह से पूंजी और क़र्ज़ बाज़ार का हौसला बढ़ेगा.

आज इस बात की ज़रूरत है कि सरकार भारी पूंजी वाले दो से तीन बैंकों में अपनी बड़ी हिस्सेदारी बनाकर रखे. क्योंकि, मूलभूत ढांचे के विकास में इन बैंकों की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी. सरकार ने आकलन किया है कि वो अगले पांच वर्षों में मूलभूत ढांचे के विकास में सौ लाख करोड़ रुपए का निवेश करेगी

दुनिया में इस समय जो डिजिटल क्रांति हो रही है, वो वित्तीय उत्पादों को भारत के कोने-कोने में लोगों तक पहुंचाने और उनमें सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी. डिजिटल सशक्तिकरण के साथ सूचना को कुछ ख़ास भौगोलिक सीमाओं और आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों के ग्राहकों तक सीमित नहीं रखा जा सकेगा.

इसके अलावा हम वित्तीय सेवाएं देने वाली तमाम कंपनियों और संस्थाओं के बीच साझेदारी को बढ़ावा दे सकते हैं. इससे नए युग के डिजिटल वित्तीय संस्थानों का विकास होगा, जो ग्राहकों की संख्या का विस्तार कर सकेंगे. डिजिटल संसाधनों के माध्यम से उन्हें फौरन ही ग्राहकों की प्रतिक्रिया भी प्राप्त हो सकेगी. जिससे वो अपने वित्तीय संसाधनों को अलग अलग ग्राहकों की विशिष्ट ज़रूरतों के मुताबिक़ त्वरित गति से ढाल सकेंगे. डिजिटल वित्त से वित्तीय साक्षरता भी बढ़ेगी और इससे पूरे देश में फैले छोटे छोटे वित्तीय बाज़ारों की मदद से देश की वित्तीय व्यवस्था मज़बूत हो सकेगी.

इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (IBC), पुराने पड़ चुके लो-इम्पैक्ट के नियम से आपराधिक दंड की व्यवस्था को हटाकर, कारोबार करने की राह में आने वाली बाधाएं दूर करने के लिए उठा गए क़दमों, ख़ासतौर से वित्तीय सेक्टर की परेशानियां दूर करने से अर्थव्यवस्था को लेकर सकारात्मक माहौल बनेगा. इससे देश की अर्थव्यवस्था में वित्तीय स्थिरता भी आएगी. इस ‘मिशन जीडीपी ग्रोथ’ के लिए हमें युद्ध स्तर पर काम करने की ज़रूरत है. वित्तीय सेक्टर के स्थायी मगर त्वरित विकास के लिए काम करना होगा. और ऐसी नीतिगत पहल करनी होंगी जिससे हमारे क़र्ज़, बॉन्ड और पूंजी बाज़ार की जड़ें मज़बूत होंगी. इसके अलावा हमें बैंकिंग और गैर बैंकिंग क्षेत्रों में नियम क़ायदों की ऊंची दीवारों को भी ढहाना होगा.

सकारात्मक माहौल की बुनियाद पर तरक़्क़ी की इमारत

कोविड-19 महामारी के अंधकार भरे समय में हमें देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के कुछ शुरुआती संकेत दिखने लगे हैं. मई महीने के आर्थिक गतिविधियों के सूचकांक, जैसे कि ईंधन की खपत, बिजली का इस्तेमाल, ख़ुदरा वित्तीय लेन-देन की संख्या और मात्रा, पूरे देश में सामानों की आवाजाही, ई-वे बिल और हाईवे पर टोल का संग्रह. ये सभी सूचकांक इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि देश में आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं. निर्माण क्षेत्र की PMI अप्रैल में 27.4 थी. जो मई महीने में बढ़कर 47.2 हो गई. मई महीने में CMIE की बेरोज़गारी दर जहां 23.5 प्रतिशत थी. वहीं, जून में ये घट कर 11 प्रतिशत ही रह गई थी. अच्छे मॉनसून सीज़न से ग्रामीण क्षेत्र में उत्पादों और सेवाओं की मांग बढ़ेगी. इससे हाउसिंग और ग्राहकों के लिए उपयोगी सामानों के सेक्टर की मांग बढ़ेगी. अगर मॉनसून और आने वाले त्यौहारी सीज़न के तीन महीनों के दौरान उचित और सकारात्मक नीतिगत फ़ैसलों वाले संकेतों से इस अवसर का भरपूर उपयोग किया जा सकेगा, तो इससे घरेलू निवेश भी बढ़ेगा और स्थानीय स्तर पर मांग में भी वृद्धि हो सकेगी.

देश की अर्थव्यवस्था की पुनर्संरचना के इस अवसर का इस्तेमाल करके, भारत के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना चाहिए. इससे घरेलू उत्पादन बढ़ेगा और आयात पर निर्भरता कम होगी. हां, ये बात और है कि हम निर्माण क्षेत्र में उन्हीं उत्पादों के निर्माण पर ज़ोर देंगे, जिनके लिए हमें भारी विदेशी मुद्रा का व्यय करना पड़ता है. विदेश से मिलने वाले सस्ते सामान का आयात हमें जारी रखना चाहिए. क्योंकि ये वो वस्तुएं हैं जिनकी सस्ती निर्माण की लागत के स्तर को हम कभी नहीं पा सकते हैं. अब सही समय आ गया है कि भारत ग्राहकों का ऐसा बाज़ार तैयार करे, जो अलग अलग उत्पादों और सेवाओं के ग्राहक हों और उन्हें सस्ती दरों पर हासिल कर सकें.

इन सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सही समय पर वित्तीय पूंजी की उपलब्धता सुनिश्चित कराना बेहद अहम होगा. सरकार को भारत के वित्तीय सेवाओं के सेक्टर के लिए मिशन 5 गुणा 5 की स्थापना करनी चाहिए. जिसका मक़सद पांच साल में 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी के लक्ष्य को हासिल करना होना चाहिए. इसके साथ साथ सरकार को उन संस्थानों को बढ़ावा देना चाहिए, जो राष्ट्र निर्माण के इस मिशन में सर्वाधिक योगदान दें. हमें उद्यमियों का हौसला बढ़ाने वाले क़दम उठाने होंगे. फिर चाहे वो सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों से जुड़े हों या बड़े उद्योगों से ताल्लुक़ रखते हों. उन्हें सरकार को ये संदेश देना होगा कि भारत में काम करना अब सबसे आसान होगा (Ease of Doing Business). सरकार को बैंकिंग सेक्टर को ये भरोसा दिलाना होगा कि वो मुक्त होकर क़र्ज़ बांट सकते हैं. हमें, विकास दर हासिल करने के लिए क़र्ज़ का प्रवाह बढ़ाना होगा. क्योंकि, विकास का ये सबसे बड़ा इंजन होता है.

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