Published on Oct 31, 2020 Updated 0 Hours ago

मास्टर प्लान और प्लानिंग की पहल में शहरों में सुलभता को लेकर दूरदर्शिता की कमी नहीं होती है. इस बात की ज़रूरत है कि छोटे स्तर की ज़्यादा योजना के दृष्टिकोण को समर्थन मिले.

कोविड-19 के बाद: भारत दोबारा करे अपनी 15 मिनट सिटी  ‘मिक्स्ड यूज़-टाउन प्लानिंग’ पर चर्चा

जिस वक़्त सामाजिक दूरी और पैदल चलना आमतौर पर मानक बन रहे हैं, उस वक़्त भारत के शहरों को अतीत में जाकर अपनी अर्बन प्लानिंग रूलबुक पर फिर से चर्चा करने की ज़रूरत है. उस रूलबुक में पैदल चलने और टहलने को प्लानिंग का प्रमुख हिस्सा बताया गया था. जब से पेरिस की मेयर एन हिडाल्गो ने ‘द 15 मिनट सिटी’ को फिर से अपने चुनाव जीतने का एजेंडा बनाया है, तब से ये अर्बन प्लानिंग का प्रचलित शब्द बन गया है. ये एक प्रगतिशील विचार है जिसका मक़सद नज़दीक में बुनियादी ढांचों की स्थापना है. ये कॉन्सेप्ट शहरी रूप-रेखा में नया नहीं है, ख़ासतौर से भारतीय संदर्भ में. लेकिन भारतीय शहरों को समर्थ बनाने के लिए प्लानिंग की प्रक्रिया में छोटे स्तर पर यानी वार्ड और पास-पड़ोस में टहलने की जगह तैयार करना महत्वपूर्ण बन जाता है

ये एक प्रगतिशील विचार है जिसका मक़सद नज़दीक में बुनियादी ढांचों की स्थापना है. ये कॉन्सेप्ट शहरी रूप-रेखा में नया नहीं है, ख़ासतौर से भारतीय संदर्भ में. लेकिन भारतीय शहरों को समर्थ बनाने के लिए प्लानिंग की प्रक्रिया में छोटे स्तर पर यानी वार्ड और पास-पड़ोस में टहलने की जगह तैयार करना महत्वपूर्ण बन जाता है.

‘15 मिनट सिटी’ के कॉन्सेप्ट को इस विचार से बढ़ावा मिला कि पेरिस में रहने वाले लोग अपनी ख़रीदारी, काम, मनोरंजन और सांस्कृतिक ज़रूरत 15 मिनट पैदल चलकर या साइकिल पर सवार होकर पूरी करें. ‘15 मिनट सिटी’ एक अर्बन प्लानिंग टूल है जिसका मक़सद शहरों में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी को बेहतर करना है. लोगों के सामान्य उद्देश्य जैसे काम, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, ख़रीदारी, मनोरंजन आदि गाड़ी से निकलने के मूल कारण हैं. ‘15 मिनट सिटी’ का कॉन्सेप्ट इस बात पर ध्यान देता है कि वहां रहने वाले लोगों की हर ज़रूरत उनके घर के 15 मिनट के दायरे में पूरी हो जाए ताकि गाड़ी का इस्तेमाल करने की नौबत ना आए. ‘15 मिनट सिटी’ के कॉन्सेप्ट को विकसित करने के पीछे ये सोच है कि शहरों की योजना नागरिकों और पैदल चलने वाले लोगों के लिए तैयार होनी चाहिए ना कि कार और गाड़ियों के लिए. संक्षेप में कहें तो 15 मिनट तक चलने की दूरी में हर चीज़ होनी चाहिए.

इस कॉन्सेप्ट में शामिल मुख्य सिद्धांत हैं मिले-जुले विकास को मंज़ूरी, पैदल चलने वाले लोगों के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण, बिना गाड़ी के परिवहन क्षेत्र, टहलने को बढ़ावा, सार्वजनिक परिवहन को बेहतर करना और इससे जुड़े बुनियादी ढांचे. इस सोच के साथ कि सड़क पर कार से ज़्यादा अधिकार पैदल चलने वालों का है, ये धारणा कार के रास्ते को संकरा करके पैदल रास्ते को ज़्यादा चौड़ा करने को मंज़ूरी देती है.

ये कॉन्सेप्ट रोज़गार और शहर के पर्यावरण को बेहतर करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है. ये उम्मीद कि शहरों को प्रदूषण से मुक्त करने की कोशिश में ये कॉन्सेप्ट कारगर हो सकता है, दुनिया भर के कई शहर इसकी तरफ़ आकर्षित हुए हैं. इसकी वजह से ये धारणा परंपरागत शहरीकरण को ख़ारिज करने में दुनिया भर में एक आंदोलन की तरह बन गई है. दुनिया के 96 शहरों के वैश्विक गठबंधन, जिसने जलवायु परिवर्तन से लड़ने और अपने काम-काज में टिकाऊ विकास को बढ़ाने की शपथ ली थी, उसे C40 सिटी ग्रुप कहा जाता है. इस ग्रुप ने ’15 मिनट सिटी’ को अपना मुख्य एजेंडा बना लिया है ताकि शहरों को हरा-भरा बनाया जा सके.

भारत के 5 शहर- बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT), जयपुर और कोलकाता इस ग्रुप के हिस्से हैं. चूंकि इस कॉन्सेप्ट का मक़सद मिले-जुले इस्तेमाल के लिए रूप-रेखा को विकसित करना, सार्वजनिक जगहों को बढ़ावा देना है, ऐसे में इन पांच शहरों के संदर्भ में कॉमन कोड को समझना ज़रूरी है. दिल्ली, पुणे, कोलकाता जैसे शहर इन वर्षों के दौरान सर्कुलरी विकसित हुए हैं. इन शहरों में मिले-जुले इस्तेमाल का विकास सबसे ज़्यादा हुआ है. भारतीय शहरों को मिक्स्ड लैंड यूज़ विरासत में मिली है जिसमें व्यावसायिक और रिहायशी इस्तेमाल का मिश्रण सबसे ज़्यादा है. चूंकि मिक्स्ड यूज़ डेवलपमेंट गाड़ियों के इस्तेमाल को कम करने के एजेंडे का साथ देता है, इस हिसाब से भारतीय शहर सही दिशा में विकसित हुए हैं. ये सभी शहर पहले से ‘15 मिनट सिटी’ बने हुए हैं. ऐतिहासिक तरीक़े से कहें तो जयपुर का पुराना शहर इस कॉन्सेप्ट का उत्कृष्ट उदाहरण है जो 294 साल पहले विकसित किया गया था. पुराने शहर में ज़रूरी सेवाओं और मनोरंजन के साधनों के अलावा काम-काज की जगह घर से 15 मिनट की दूरी पर हैं. इसके अलावा इन शहरों में रहने वाले लोग ग्राउंड फ्लोर का व्यावसायिक इस्तेमाल और ऊपरी मंज़िल का रिहायशी इस्तेमाल करते हैं. इसलिए मिक्स्ड यूज़ की अधिकता और अंतत: ‘15 मिनट सिटी’ का कॉन्सेप्ट पहले से भारत में है.

भारतीय शहरों को मिक्स्ड लैंड यूज़ विरासत में मिली है जिसमें व्यावसायिक और रिहायशी इस्तेमाल का मिश्रण सबसे ज़्यादा है. चूंकि मिक्स्ड यूज़ डेवलपमेंट गाड़ियों के इस्तेमाल को कम करने के एजेंडे का साथ देता है, इस हिसाब से भारतीय शहर सही दिशा में विकसित हुए हैं. 

सिर्फ़ इतिहास में ही नहीं बल्कि भारत में प्लानिंग की प्रक्रिया से जुड़े आधुनिक प्लानिंग टूल ने भी ख़ुद पर निर्भर, पैदल जाने वाले आस-पड़ोस पर ध्यान दिया है. बेंगलुरु, जयपुर, भोपाल जैसे शहरों के मास्टर प्लान के मूल सिद्धांत में सुलभता और समावेशी विकास है. नागपुर जैसे शहरों की प्लानिंग के पीछे भी शहर के सही ढंग से विकास का सिद्धांत रहा है.

‘15 मिनट सिटी’ के पहलुओं को लेकर भारत में प्लानिंग की प्रक्रिया की दूरदर्शिता ‘अर्बन एंड रीजनल डेवलपमेंट प्लान फॉर्मूलेशन एंड इम्प्लीमेंटेशन गाइडलाइंस’ (URDPFI गाइडलाइंस) से पता चलती है. मास्टर प्लान की तैयारी के पीछे इस गाइडलाइंस में 5 हज़ार तक की आबादी वाले शहरी रिहायशी इलाक़ों के लिए अलग मानक हैं. मज़े की बात ये है कि मुहल्ला स्तर (5 हज़ार से 15 हज़ार तक आबादी) के लिए अलग मानक हैं. इन गाइडलाइंस में कई सुविधा जिनमें ATM से लेकर मिल्क बूथ तक, पार्क और खेल के मैदान से लेकर स्कूल और डिस्पेंसरी तक के लिए मानक शामिल हैं. इससे पता चलता है कि भारतीय शहर 16वीं शताब्दी से ही सभी सुविधाओं से युक्त रिहायशी इलाक़े की स्थापना में लगे हुए हैं. ये अलग बात है कि यहां ‘15 मिनट सिटी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाता

इस बात में कोई शक नहीं है कि पैदल चलने वाले इलाक़ों और सुलभ प्लानिंग की विरासत के बावजूद तेज़ी से बढ़ते भारतीय शहरों में छोटे स्तर पर आवागमन की रणनीति बनाने की ज़रूरत है. इन शहरों में क्षेत्र आधारित प्लानिंग मॉडल के ज़रिए ज़रूरी लचीलापन हासिल किया जा सकता है.

इस बात में कोई शक नहीं है कि पैदल चलने वाले इलाक़ों और सुलभ प्लानिंग की विरासत के बावजूद तेज़ी से बढ़ते भारतीय शहरों में छोटे स्तर पर आवागमन की रणनीति बनाने की ज़रूरत है. इन शहरों में क्षेत्र आधारित प्लानिंग मॉडल के ज़रिए ज़रूरी लचीलापन हासिल किया जा सकता है. बाहरी इलाक़े जहां लोग रहते हैं, वहां मास्टर प्लान से नीचे दर्जे की प्लानिंग के हस्तक्षेप की ज़रूरत है. पुणे, मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों ने विकास के लिए ‘टाउन प्लानिंग स्कीम’ मॉडल को अपना लिया है. ये मॉडल सुविधाओं को इकट्ठा करने और नज़दीक में रिहायशी इलाक़ों पर ज़ोर देता है. ये मॉडल नये सिरे से विकास के मामलों में कामयाब रहा है क्योंकि लोगों से सलाह-मशवरा इसका अभिन्न हिस्सा रहा है. लेकिन पहले से विकसित इलाक़ों के मामले में प्लानिंग से ज़्यादा महत्वपूर्ण मैनेजमेंट है. स्थानीय क्षेत्र योजना की तैयारी जो किसी नगर निगम के वार्ड के बराबर इलाक़े के लिए तैयार किया गया हो, वो सुविधाओं की स्थापना में मदद कर सकता है. लैंड यूज़ ज़ोनिंग, घनत्व, मंज़ूर इमारत का इस्तेमाल और टिकाऊ विकास से जुड़े पहलू ऐसी छोटी योजनाओं में शामिल किए जाते हैं. ऐसे अनुभव और पहल को पहले ही आवासीय और शहरी मामलों का मंत्रालय शुरू कर चुका है. इसने भारत के 25 स्मार्ट सिटी निगमों में LAP और TPS योजना लॉन्च की है.

प्लानिंग के मानक, मास्टर प्लान और प्लानिंग की पहल में शहरों में सुलभता को लेकर दूरदर्शिता की कमी नहीं होती है. इस बात की ज़रूरत है कि छोटे स्तर की ज़्यादा योजना के दृष्टिकोण को समर्थन मिले. इस तरीक़े से भारतीय प्लानिंग की विरासत, जिससे ‘15 मिनट सिटी’ का कॉन्सेप्ट मिलता-जुलता है, ख़ुद को बचा सकती है और शहरों की उलझन का हल किया जा सकता है.


लेखक ORF में रिसर्च इंटर्न है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.