भूमिका
इस साल अगस्त में अंतरिम तालिबान प्रशासन (आईटीए) ने पिछले साल अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा करने का एक साल पूरा किया. विदेशी सैनिकों की वापसी, जो अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा शांति समझौते पर दस्तख़त की वजह से संभव हो पाई, का नतीजा अंत में काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के रूप में सामने आया. इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के गिरने के बाद से तालिबान देश की शासन व्यवस्था संभालने के लिए हाथ-पैर मार रहा है लेकिन वो जो कर रहा है उसे ‘शासन व्यवस्था’ की श्रेणी में रखे जाने पर भी सवाल है.
काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद सबसे पहले अफ़ग़ानिस्तान को आर्थिक मदद और सहायता पर अचानक रोक लग गई. उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान के वित्तीय संस्थान अलग-थलग हो गए. इसकी वजह से जो बैंकिंग संकट खड़ा हुआ उससे अर्थव्यवस्था में एक खालीपन आ गया है.
काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद सबसे पहले अफ़ग़ानिस्तान को आर्थिक मदद और सहायता पर अचानक रोक लग गई. उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान के वित्तीय संस्थान अलग-थलग हो गए. इसकी वजह से जो बैंकिंग संकट खड़ा हुआ उससे अर्थव्यवस्था में एक खालीपन आ गया है. लोग दो वक़्त के खाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और कारोबारी अपनी दुकान समेट रहे हैं. इस ‘युद्ध के आर्थिक दौर’, जिसका इस्तेमाल अफ़ग़ानिस्तान के केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर ने किया है, को समझने के लिए अफ़ग़ानिस्तान के बैंकिंग संकट की छानबीन करना ज़रूरी है. इस बैंकिंग संकट की वजह से मानवीय आपदा में बढ़ोतरी हुई है जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मामले में राहत पहुंचाने के लिए काफ़ी कोशिशें कर रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था की संरचना किस तरह है?
2001-2021 के बीच अफ़ग़ानिस्तान ने अमेरिका और उसके सहयोगियों के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के द्वारा मुहैया कराई गई सहायता, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) और विदेशों में रहने वाले अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के द्वारा भेजी गई रक़म पर गुज़र-बसर किया. 2002 में अफ़ग़ानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन ट्रस्ट बोर्ड (एआरटीएफ) के गठन के साथ 34 दानकर्ता अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर लगाने के लिए साथ आए. ये कोशिशें जहां स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और दूसरे सूचकों की असाधारण उन्नति के मामले में सफल रही, वहीं अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद ‘पहुंच के नेटवर्क’ में गहराई तक व्याप्त होने में नाकाम रही. इसका नतीजा ये हुआ कि घरेलू प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा या कारोबारी क्षेत्र को आगे बढ़ाने के क़दम अपर्याप्त साबित हुए. नवंबर 2020 में जेनेवा में एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अफ़ग़ानिस्तान में बुनियादी सेवाओं और शांति प्रक्रिया को जारी रखने के लिए 2020-2024 के दौरान आर्थिक सहायता के रूप में 13 अरब अमेरिकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई. सहायता की इस रक़म के साथ ‘घरेलू संसाधनों को जुटाने, भ्रष्टाचार कम करने की कोशिश, शासन व्यवस्था में बेहतरी एवं संरचनात्मक सुधार की शुरुआत’ करनी थी. लेकिन जैसे ही अफ़ग़ानिस्तान रिपब्लिक की जगह अमीरात बना, वैसे ही इन सारी प्रतिबद्धताओं को किनारे कर दिया गया.
अफ़ग़ानिस्तान के मानवीय संकट का समाधान तलाशने के लिए अमेरिका तालिबान के अधिकारियों के साथ संपर्क में है ताकि 7 अरब अमेरिकी डॉलर में से ‘अफ़ग़ानी लोगों’ के लिए आरक्षित 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर की रक़म के वितरण के लिए एक पारिस्परिक रूप से स्वीकार्य रूप-रेखा तैयार की जा सके.
ऐतिहासिक रूप से अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक प्रणाली पर बातचीत ‘सत्ता के केंद्रीकरण और विखंडन’ के बीच झूलती रही है. क्षेत्रीय स्वायत्तता और कमज़ोर केंद्र की अधिक समझ की वजह से पूरे देश पर सरकार का असरदार नियंत्रण कभी नहीं रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में वसीता यानी सफलता के योग्य बनाने के लिए जान-पहचान के असर के सिद्धांत को आम तौर पर मान्यता मिली हुई है. इसकी वजह से क्षमता निर्माण और उत्पादक क्षेत्रों को बढ़ावा देने पर केंद्रित एक स्थायी और न्यायोचित अर्थव्यवस्था विकसित करने की कोशिश कारगर साबित नहीं हुई है.
स्त्रोत- वर्ल्ड बैंक 2017
अफ़ग़ानिस्तान की लगभग 80 प्रतिशत अर्थव्यवस्था जहां अनियमित क्षेत्र में है वहीं 7,00,000 से ज़्यादा निजी व्यवसाय हैं जिनका 2018 में देश की जीडीपी में आधे से ज़्यादा योगदान था. गृह युद्ध, वित्त प्राप्त करने में अक्षमता और सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से ये सेक्टर हमेशा अनिश्चितता के दलदल में फंसा रहा है. 2011-12 से विदेशी सैनिकों की संख्या में कमी और उसके परिणामस्वरूप विदेशी मदद एवं निवेश में कटौती से आर्थिक हालात ख़राब हुए. 2011 से 2015 के बीच निजी क्षेत्र के निवेश में भी 24 प्रतिशत की गिरावट आई. अर्थव्यवस्था को अलग-अलग क्षेत्रों तक ले जाने में नाकामी और अच्छे वेतन वाले नौकरी की अनुपलब्धता के कारण विकास कुछ ख़ास केंद्रों तक ही सीमित रहा जबकि ग़रीबी फैलती रही.
स्त्रोत – आधिकारिक डेटा, बैंक स्टाफ प्रोजेक्शन
तालिबान के फिर से आने के साथ ये समस्याएं और ज़्यादा बढ़ गई हैं. नये प्रशासन को लेकर अनिश्चितता, बैंकिंग सेक्टर में संकट और मांग में गिरावट कारोबार के लिए चिंता का एक विषय है. विश्व बैंक के मुताबिक़ अंतरिम तालिबान प्रशासन ने साल भर के दौरान राजस्व के रूप में 100 अरब अफ़ग़ान मुद्रा (एएफएन) इकट्ठा किया लेकिन पारदर्शिता और आवंटन की प्रक्रिया को लेकर अभी भी कई तरह की चिंताएं हैं. महंगाई भी आसमान पर पहुंच गई है और अगस्त 2021 से लेकर घरेलू सामानों की महंगाई में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. साल भर के दौरान श्रम की मांग में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है लेकिन ये ज़्यादातर मौसमी है और हर प्रांत में बेरोज़गारी की दर अलग-अलग है. व्यवसायियों ने कर्मचारियों की छंटनी, वेतन में कटौती और नकद (57 प्रतिशत) एवं हवाला कारोबार (31 प्रतिशत) पर ज़्यादा निर्भरता के साथ अपने काम-काज का दायरा कम किया. अगस्त 2021 से पहले जहां 82 प्रतिशत कंपनियां बैंक में पैसे जमा करती थी, वहीं इसके बाद ये आंकड़ा गिरकर सिर्फ़ 12 प्रतिशत पर पहुंच गया. कृषि व्यवसाय, थोक और खुदरा व्यापार जैसे कुछ क्षेत्रों ने ही ज़्यादा लचीलापन दिखाया. निर्माण और सेवा क्षेत्रों को सबसे ज़्यादा नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा क्योंकि ये क्षेत्र दानकर्ताओं और सरकारी समर्थन पर बहुत हद तक निर्भर हैं. वैसे तो कारोबारियों ने इन चिंताओं में से कुछ के समाधान के लिए तालिबान के साथ बातचीत करने की कोशिश की लेकिन इन्हें समझ पाने और समस्याओं के समाधान की अयोग्यता के कारण हालात और बिगड़ गए.
स्त्रोत – आंकड़ो को एकत्र किया डब्ल्यूएफपी से, बैंक स्टाफ प्रोजेक्शन
अफ़ग़ानिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति
सत्ता में फिर से आने के बाद तालिबान ने अपने अधिकारियों- जिनमें से ज़्यादातर पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है- को सरकार के बड़े विभागों में तैनात कर दिया. इसके जवाब में अमेरिका ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर अफ़ग़ानिस्तान में आर्थिक मदद के प्रवाह को रोक दिया. इस तरह विश्व बैंक के द्वारा अफ़ग़ानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन ट्रस्ट फंड के ज़रिए वेतन देने के लिए मुहैया कराए गए 2 अरब अमेरिकी डॉलर का वितरण रुक गया. दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठन भी इसी राह पर चले. अफ़ग़ानिस्तान के केंद्रीय बैंक, दा अफ़ग़ानिस्तान बैंक (डीएबी), को अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली, वित्तीय समुदाय और दूसरे देशों के घरेलू बैंकों से अलग-थलग करने का फ़ैसला बाइडेन प्रशासन की सबसे महत्वपूर्ण कार्रवाइयों में से एक थी. इस नीति के कारण डीएबी के द्वारा अंतरराष्ट्रीय बैंकों में जमा, जिसमें से ज़्यादातर न्यूयॉर्क के अमेरिकी फेडरल रिज़र्व बैंक में जमा है, लगभग 9 अरब अमेरिकी डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार तक पहुंच पर व्यावहारिक रूप से रोक लग गई. ये फ़ैसला अब पहले से ज़्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि तालिबान और अमेरिका के अधिकारी इस मुद्रा भंडार के भविष्य और लोगों की मुश्किलों को आसान करने में उसके इस्तेमाल को लेकर कभी-कभी की बातचीत में शामिल हैं.
इन फंड के वितरण को लेकर बहस कई सवाल खड़े करते हैं. किसी समाधान की तलाश के लिए तालिबान जैसे समूह के साथ बातचीत का फ़ैसला एक आतंकी संगठन को वास्तविक वैधता प्रदान करने का संकेत देगा. लेकिन अगर बातचीत नहीं की जाती है तो अफ़ग़ान नागरिकों की मुश्किल में और बढ़ोतरी हो सकती है. हालात और भी जटिल इसलिए हो जाते हैं क्योंकि इस बातचीत में अमेरिका के घरेलू क़ानूनों को लागू करने से जुड़े सवाल भी शामिल हैं. अफ़ग़ानिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार तालिबान से मुआवज़ा मांगने वाले 9/11 के आतंकी हमलों के पीड़ितों की तरफ़ से दायर मुक़दमे में फंसा हुआ है. बाइडेन प्रशासन ने 11 फरवरी 2022 को पारित एक कार्यकारी आदेश में कुल विदेशी मुद्रा भंडार में से आधे को अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के लिए आरक्षित कर दिया और बाक़ी आधी रक़म मुक़दमे का हिस्सा बन गई. जब तक इस मामले में फ़ैसला नहीं आएगा तब तक वो रक़म उपलब्ध नहीं रहेगी. ये मुक़दमा आगे तक जाने के पूरे संकेत दे रहा है क्योंकि इसमें संप्रभुता का सवाल और अमेरिका में विदेशी संप्रभुता प्रतिरक्षा अधिनियम (फॉरेन सॉवरेन इम्युनिटीज़ एक्ट) के लागू होने की बात शामिल हैं. इस अधिनियम के तहत एक संप्रभु केंद्रीय बैंक की संपत्तियों को दंडात्मक कार्रवाई से छूट मिली हुई है. ये फ़ैसला और भी ज़्यादा मुश्किल हो जाता है क्योंकि अमेरिका तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान की संप्रभु शक्ति के रूप में मान्यता नहीं देता है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ज़ोर सहायता करने वाले संगठनों के साथ मिलकर निजी क्षेत्र को सशक्त बनाने पर होना चाहिए. उसे एक सीमित ढंग से वित्तीय संस्थानों के साथ बातचीत करनी चाहिए और केंद्रीय बैंक को तालिबान से ‘बचाने’ के लिए क़दम उठाना चाहिए
अफ़ग़ानिस्तान के मानवीय संकट का समाधान तलाशने के लिए अमेरिका तालिबान के अधिकारियों के साथ संपर्क में है ताकि 7 अरब अमेरिकी डॉलर में से ‘अफ़ग़ानी लोगों’ के लिए आरक्षित 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर की रक़म के वितरण के लिए एक पारिस्परिक रूप से स्वीकार्य रूप-रेखा तैयार की जा सके. इस बातचीत का एजेंडा ऐसे रास्ते बनाना है जिससे कि लोगों की मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए फंड जारी किया जा सके, उस फंड का इस्तेमाल बैंक के ‘फिर से पूंजीकरण’ के साधन के रूप में किया जा सके और बैंक को अपना काम-काज पूरा करने में समर्थ बनाया जा सके जिससे कि देश की अर्थव्यवस्था में बेहद ज़रूरी नकदी आ सके. जुलाई में ताशकंद सम्मेलन से अलग बातचीत के दौरान दोनों पक्षों ने प्रस्तावों का आदान-प्रदान किया. अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की सेवा के लिए फंड के आवंटन को सुनिश्चित कराने की चाह रखने वाले अमेरिका ने मांग रखी कि एक तीसरे पक्ष के नियंत्रक की नियुक्ति की जाए जो कि फंड के वितरण के लिए ज़िम्मेदार होगा. लेकिन एक ‘समानांतर’ केंद्रीय बैंक के उभरने की आशंका से चिंतित तालिबान ने बड़े पदों से अपने द्वारा नियुक्त लोगों को हटाने से इनकार कर दिया. हालांकि तालिबान कम-से-कम ‘सैद्धांतिक रूप से’ तीसरे पक्ष के ठेकेदारों को बैंक के द्वारा रक़म के वितरण का ऑडिट करने देने के लिए तैयार हो गया. पिछले दिनों काबुल की एक उच्चवर्गीय कॉलोनी में अल क़ायदा प्रमुख अल-ज़वाहिरी की हत्या के बाद डीएबी के फिर से काम-काज शुरू करने के लिए रास्ता बनाने की बातचीत में खलल पैदा हो गया है.
आगे का रास्ता
अफ़ग़ानिस्तान का संकट बहु-आयामी है. देश के भीतर आर्थिक उथल-पुथल के अलावा कोविड के लंबे असर, यूक्रेन में संकट की वजह से ऊर्जा की क़ीमत में बढ़ोतरी, देश में क़ुदरती आपदाओं के झोंके और इसके साथ-साथ ज़मीनी रास्ते के ज़रिए आर्थिक मदद के वितरण पर असर डालने वाली पाकिस्तान की बाढ़ ने मौजूदा स्थिति के सीधे समाधान को अव्यावहारिक बना दिया है. तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के एक साल बाद एक आतंकी समूह के साथ बातचीत की हदों के बारे में सवाल और मानवीय सोच-विचार को प्राथमिकता देने पर अभी भी बहस चल रही है. वैसे तो अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा त्रासदी से निपटने की आवश्यकता को लेकर आम तौर पर सहमति है लेकिन इस बात पर शायद ही कोई चर्चा हो रही है कि किस तरह देश के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला निजी क्षेत्र इस स्थिति को सुधार सकता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ज़ोर सहायता करने वाले संगठनों के साथ मिलकर निजी क्षेत्र को सशक्त बनाने पर होना चाहिए. उसे एक सीमित ढंग से वित्तीय संस्थानों के साथ बातचीत करनी चाहिए और केंद्रीय बैंक को तालिबान से ‘बचाने’ के लिए क़दम उठाना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि जिस काम के लिए पैसा है, उसका उसी में इस्तेमाल हो. वैसे तो ये सुनिश्चित करना काफ़ी मुश्किल काम होगा- चूंकि तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत से इसके प्रमाण मिलते हैं- लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को सुनिश्चित करने के मामले में बातचीत को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है. लेकिन जब तक अफ़ग़ानिस्तान में राजस्व के नये सतत रूपों के निर्माण पर ज़ोर नहीं दिया जाता तब तक अगर फंड को पूरी तरह जारी कर भी दिया जाता है तो भी ये ज़्यादा-से-ज़्यादा सीमित राहत ही मुहैया कराएगा.
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