Author : Ankita Dutta

Published on Apr 20, 2023 Updated 0 Hours ago

यूरोपीय संघ (EU) का सामूहिक रूप से, बनाम EU के अलग अलग देशों का चीन के प्रति रवैया एक ऐसा विरोधाभास प्रदर्शित करता है, जिसे दुरुस्त करना मुश्किल होगा.

मैक्रों और वॉन डेर लेयेन के चीन दौरे का मूल्यांकन: मतभेद जताने की कोशिश?

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के साथ चीन का दौरा, दोनों पक्षों के बीच कई वर्षों तक चले रहे टकराव के बाद हुआ है. चीन और यूरोपीय संघ निवेश के समझौते पर रोक लगाने, मानव अधिकारों के उल्लंघन, बाज़ार तक पहुंच को लेकर मतभेद और चीन द्वारा यूक्रेन में रूस की हरकतों की आलोचना से इनकार को लेकर टकराते रहे हैं. लेकिन, अब ये साझा दौरा चीन के प्रति यूरोपीय संघ की एकजुटता दिखाने के लिए किया गया है. हालांकि, ये दौरा भले ही एकजुटता दिखाने के लिए किया गया हो, मगर असल में इससे ये उजागर हो गया कि चीन के प्रति यूरोप की नीति भले ही कुछ और हो, व्यापक तो बिल्कुल नहीं है. ये लेख राष्ट्रपति मैक्रों और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष के चीन दौरे का मूल्यांकन करता है.

ये लेख राष्ट्रपति मैक्रों और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष के चीन दौरे का मूल्यांकन करता है.

दौरे का मूल्यांकन

ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति मैक्रों का ये दौरान यूक्रेन के संघर्ष को ध्यान में रखकर किया गया; इसके अतिरिक्त, द्विपक्षीय व्यापार; चीन के साथ अपना व्यापार घाटा, जो 2021 में लगभग 39.6 अरब यूरोप था, को कम करने की दिशा में काम करने; और यूरोपीय संघ के चीन से व्यापक रिश्ते भी इस दौरे के एजेंडे में थे. अपने दौरे से पहले फ्रांस की टोटल एनर्जी और चीन की नेशनल ऑफ़शोर ऑयल कॉरपोरेशन ने दोनों देशों के बीच आयातित तरल प्राकृतिक गैस की ख़रीद को चीन की मुद्रा युआन में करने के सौदे पर अंतिम मुहर लगाई गई. ये कारोबार शंघाई पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस एक्सचेंज़ स्थित लेन-देन के ज़रिए होगा और इस तरह डॉलर में व्यापार से किनारा करके किया जाएगा.

मैक्रों के इस दौरे में फ्रांस और चीन ने कई समझौतों पर दस्तख़त किए. इनमें 160 एयरबस विमान ख़रीदने और चीन में एयरबस की नई असेंबली लाइन स्थापित करके इसकी क्षमता दोगुना करने का समझौता भी शामिल था, जिससे चीन दुनिया में उड्डयन क्षेत्र का दूसरा बड़ा बाज़ार बनने में मदद मिलेगी. फ्रांस की सरकारी कंपनी EDF ने भी चीन के जनरल न्यूक्लियर पावर ग्रुप के साथ नए सिरे से समझौता किया, जिसके तहत चीन में परमाणु बिजलीघरों का विकास, निर्माण और संचालन किया जाएगा. इसके साथ साथ, चीन की एनर्जी इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन के साथ समुद्र तट से दूर पवन ऊर्जा बिजली घर बनाने का समझौता भी किया गया. फ्रांस और चीन द्वारा हस्ताक्षर किए गए साझा बयान में साझेदारी के कुछ अन्य अहम मुद्दों का भी ज़िक्र था. इनमें 5G तकनीक भी शामिल है. वैसे तो चीन की कंपनियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर यूरोप के मुख्य तकनीकी ढांचे से अलग रखा जा रहा है. मगर फ्रांस इस बात पर सहमत हो गया है कि वो चीन की कंपनियों द्वारा दी गई लाइसेंस की अर्ज़ियों के प्रतिनिष्पक्षता और बिना भेदभाववाला रुख़ अपनाएगा.

फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा चीन के साथ आर्थिक रिश्ते आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया. वहीं, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष का चीन को संदेश बिल्कुल स्पष्ट था- कि यूरोपीय संघ अपनेव्यापारिक संबंधों में जोखिम कम करनाचाहता है. हालांकि उन्होंने ये भी माना किचीन से पूरी तरह अलग होना तो व्यवहारिक है और ही इसकी उन्हें इच्छा है.अपने चीन दौरे से पहले, एक भाषण में वॉन डेर लेयेन ने चीन के प्रति EU की अब तक की सबसे स्पष्ट नीति रेखांकित की थी और कहा था कि चीन अपनी आर्थिक और बाज़ार की ताक़त का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय नियम आधारित व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने के लिए कर रहा है, ताकि ख़ुदचीन तो बाक़ी दुनिया पर कम से कम निर्भर हो, जबकि दुनिया उस पर अधिक से अधिक निर्भर हो जाए.’ उन्होंने यह संदेश राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाक़ात में भी दोहराया और उसके भेदभाव पूर्ण बर्ताव, चीन के बाज़ारों तक असमान पहुंच और उस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया कि यूरोपीय संघ, चीन पर अपनी निर्भरता को लेकर अधिक सजग होता जा रहा है, विशेष रूप से उभरती हुई तकनीकों के मामले में.

यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष का चीन को संदेश बिल्कुल स्पष्ट था- कि यूरोपीय संघ अपने ‘व्यापारिक संबंधों में जोखिम कम करना’ चाहता है. हालांकि उन्होंने ये भी माना कि ‘चीन से पूरी तरह अलग होना न तो व्यवहारिक है और न ही इसकी उन्हें इच्छा है.

वैसे तो इस दौरे के नतीजे फ्रांस और चीन के बीच आर्थिक सौदों तक सीमित थे. लेकिन दो ऐसे बड़े मुद्दे दौरे के केंद्र में बने रहे जिन्हें लेकर चीन और यूरोपीय संघ की राय और नज़रियों में मतभेद बिल्कुल स्पष्ट दिखे. पहला मुद्दा यूक्रेन और रूस का है. मैक्रों और वॉन डेर लेयेन दोनों ने इस दौरे के अपने लक्ष्य बताते हुए कहा था कि यूक्रेन में संघर्ष को लेकर वो चीन को रूस पर अपना दबाव बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने चीन के 12 सूत्रीय प्रस्तावों का हवाला देते हुए कहा कि चीन, ‘यूक्रेन में शांति स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है.’ वहीं, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष का नज़रिया कहीं कम उम्मीद भरा नज़र आया जब उन्होंने कहा किचीन और यूरोपीय संघ के रिश्ते किस दिशा में आगे बढ़ेंगे, ये बात इस पर निर्भर करेगी कि पुतिन के युद्ध को लेकर चीन आगे क्या रुख़ अपनाता है.’ अब तक चीन, इस युद्ध को लेकर रूस की आलोचना करने से इनकार करता रहा है. हालांकि उसने युद्ध विराम और शांति वार्ताएं शुरू करने की अपील ज़रूर की है. आज की तारीख़ में चीन, रूस के तेल उत्पादों का सबसे बड़ा ख़रीदार बन गया है और मार्च 2023 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का मास्को दौरा, ‘दोनों देशों के रिश्तों में और गहराई लानेपर केंद्रित था.

इस दौरे के निष्कर्षों में उस साझा बयान में यूक्रेन का संक्षेप में ज़िक्र किया गया था, जिस पर फ्रांस और चीन के राष्ट्रपतियों ने हस्ताक्षर किए थे. इस बयान में कहा गया था कि दोनों पक्षयूक्रेन में शांति स्थापित करने के सभी प्रयासों का समर्थन करेंगेऔर इसमें रूस का बिल्कुल भी ज़िक्र नहीं किया गया था. वहीं, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष ने इस दौरे के आख़िर में अपने बयान में कहा कि यूरोपीय संघये अपेक्षा करता है कि चीन एक न्यायोचित शांति स्थापित करने में अपनी भूमिका निभाएगाऔर उन्होंने चीन से अपील की कि वो रूस कोप्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई सैन्य उपकरण उपलब्ध कराए’, जिससे कि उनके संबंधों में और तनाव बढ़े. संक्षेप में कहें तो दोनों नेता, यूक्रेन को लेकर चीन से कोई ठोस वादा ले पाने में असफल रहे. हालांकि, चीन के राष्ट्रपति ने ये ज़रूर कहा कि वोसही समय और माहौल मेंयूक्रेन के राष्ट्रपति से ज़ेलेंस्की से बात करने को तैयार है. इस तरह की बातचीत की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं हो सकी.

हालांकि, ताइवान के मुद्दे पर एक तरफ़ यूरोपीय संघ और चीन और दूसरी तरफ़ फ्रांस और उसके साथियों के नज़रियों में मतभेद बिल्कुल साफ़ हो गया. EU की अध्यक्ष वॉन डेर लेयेन ने ये बात साफ़ कर दी कि ताइवान जलसंधि की स्थिरता काफ़ी अहम है और ताक़त के दम पर यथास्थिति में किसी तरह का बदलाव स्वीकार्य नहीं होगा. हालांकि, इस बैठक के बाद चीन द्वारा जारी बयान में इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि, ‘अगर कोई ये उम्मीद करता है कि ताइवान के सवाल पर चीन समझौता करेगा और रियायतें देगा, तो ये उनका ख़्वाब मात्र है.’ चीन ने ताइवान के मुद्दे को अपना मूल हित बताया.

हालांकि, इस मुद्दे पर राष्ट्रपति मैक्रों के बयान का उनके दोस्त देशों ने विरोध किया. मैक्रों ने कहा था कि, ‘यूरोप को इस सवाल का जवाब देना है कि... क्या ये हमारे हित में है कि हम ताइवान (के संकट) को बढ़ावा दें? नहीं. सबसे ख़राब बात ये सोचना होगी कि इस मुद्दे पर हम यूरोपीय देश अमेरिका के एजेंडे अनुगामी बन जाए और उसके इशारों पर नाचे जिस पर चीन की तरफ़ से तीखी प्रतिक्रिया आनी तय है.’ मैक्रों ने आगे कहा कि ताइवान एक संकट के रूप मेंहमारी समस्यानहीं है और यूरोप कोअमेरिका का अनुयायीबनने के बजाय इस विवाद से दूरी बनाकर रखनी चाहिए. मैक्रों का ये बयान, केवल यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष के रवैये के ठीक उलट था, बल्कि इसने ये सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या फ्रांस का रुख़ यूरोपीय संघ से मेल खाने वाला है. इससे भी बड़ी बात ये कि मैक्रों का ये बयान उस वक़्त आया है, जब चीन ने ताइवान के इर्द-गिर्द अपने युद्धाभ्यास की शुरुआत की है. हालांकि, राष्ट्रपति मैक्रों ने बाद में अपने इस बयान पर सफाई देते हुए कहा कि ताइवान जलसंधि में यथास्थिति बरकरार रखने को फ्रांस के समर्थन में कोई परिवर्तन नहीं आया है. उन्होंने इस बात का भी ज़िक्र किया कि फ्रांस की नौसेना के लड़ाकू जहाज़ की इस इलाक़े में मौजूदगी, ताइवान की आज़ादी के प्रति फ्रांस की प्रतिबद्धता का प्रतीक है

अगर पीछे मुड़कर देखें, तो ये पहली बार नहीं है कि राष्ट्रपति मैक्रों ने कोई पहली बार ऐसा बयान नहीं दिया है, जिससे विवाद खड़ा हुआ है. 2019 में उन्होंने नेटो के दिमाग़ी तौर पर मर जाने का बयान दिया था. अगर आप इस बयान के पीछे का मतलब समझने की कोशिश करें, तो असल बात अमेरिका की नीतियों की आलोचना नहीं है. बल्कि वो कहना ये चाहते हैं कि यूरोप को अपनी क्षमताओं को और मज़बूत बनाना चाहिए और अपनी रणनीति और हितों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए जिससे यूरोप, वैश्विक भू-राजनीति में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सके. हालांकि, ये बयान ऐसे वक़्त में आया और इस तरह दिया गया, जो मैक्रों के संदेश को स्पष्ट रूप से सामने नहीं रख सका.

संघ के हर देश के चीन के साथ अपने अलग और अनूठे रिश्ते है. ऐसे में चीन को लेकर एक साझा नज़रिया बनाने के लिए EU के सदस्य देशों को अपने राष्ट्रीय हितों को सामूहिक हितों के साथ संतुलित करना होगा.

आक्रामक मतभेद

पिछले कुछ वर्षों से यूरोप, चीन की भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक राह को लेकर शंकास्पद हो गया है; यूरोपीय संघ ने कोविड-19 महामारी से निपटने के तौर तरीक़ों, हॉन्ग कॉन्ग और शिनजियांग में उसकी गतिविधियों, वैश्विक स्तर पर उसके आक्रामक रुख़ और कई यूरोपीय कंपनियों और नेताओं पर चीन द्वारा प्रतिबंध लगाने की खुलकर आलोचना की है. हालांकि, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के अलग अलग राष्ट्रीय हितों के कारण, EU के लिए चीन को लेकर एक व्यापक और विस्तृत नीति निर्धारित कर पाना मुश्किल साबित हुआ है. ये साझा दौरा एक सुर में बोलकर एक ही नज़रिया पेश करने में नाकामी के इसी विरोधाभास को उजागर करने वाला है. इसकी प्राथमिक वजह ये है कि एक तरफ़ तो ये दौरा, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की अगुवाई में आक्रामक नीति जताने वाला था. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति मैक्रों के बयानों से ज़ाहिर है कि EU का रुख़ एकजुटता वाला हो, ये ज़रूरी नहीं है.

इस दौरे ने यूरोपीय संघ के सदस्य देशों द्वारा एकजुट होकर और अलग अलग स्तर पर चीन के संबंध में अपनाए जाने वाले रवैये में मतभेदों को रेखांकित किया है. दौरे से यह बात साफ़ हो गई कि राष्ट्रपति मैक्रों और उससे पहले दिसंबर 2022 में जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज़ के चीन दौरे के बावजूद, यूक्रेन को लेकर सकारात्मक नतीजे बेहद सीमित रहे हैं. लेकिन, इन दौरों ने ये ज़रूर सुनिश्चित किया है कि यूरोपीय संघ की दो सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियां, चीन के साथ अपने आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते बनाए रखने को उत्सुक है. भले ही चीन को लेकर यूरोपीय संघ का नज़रिया अलग क्यों हो. ये बात यूरोपीय संघ के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है. क्योंकि संघ के हर देश के चीन के साथ अपने अलग और अनूठे रिश्ते है. ऐसे में चीन को लेकर एक साझा नज़रिया बनाने के लिए EU के सदस्य देशों को अपने राष्ट्रीय हितों को सामूहिक हितों के साथ संतुलित करना होगा. क्योंकि एक तरफ़ तो लिथुआनिया और दूसरे बाल्टिक देश हैं, जो चीन को लेकर स्पष्ट रूप से कठोर नीति पर चल रहे है. वहीं दूसरी ओर जर्मनी और फ्रांस जैसे देश हैं जो चीन के साथ मेल-मिलाप वाले नज़रिए पर आगे बढ़ना चाहते है.

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