Author : Anirban Sarma

Published on Jun 29, 2022 Updated 0 Hours ago

महामारी शुरू होने के बाद से ही दुनिया भर में ऑनलाइन बाल यौन दुर्व्यवहार और शोषण (ओसीएसएई) की घटनाओं में तेज़ी आई है. भारत भी इस बड़े ख़तरे को लेकर कई तरह के कदम उठा रहा है लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में और किए जाने की ज़रूरत है.

#Cyber crime :बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की महामारी; क्या भारत अपने बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षित रख पा रहा है?

साल 2020 की शुरुआत से ही कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन और स्कूलों के बंद होने का ही यह नतीज़ा था कि ज़्यादातर बच्चे अपना समय इंटरनेट पर गुजारने लगे. जैसा कि यूनिसेफ ने पाया कि कंप्यूटर पर ज़्यादा समय गुज़ारने से इंटरनेट पर मौज़ूद आपत्तिजनक कंटेंट और नुक़सानदेह सामग्रियों के प्रति बच्चों के आकर्षित होने का जोख़िम बढ़ गया. कोरोना महामारी की शुरुआत के साथ ही दुनिया भर में बच्चों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार और शोषण की घटनाओं में भारी बढ़ोतरी हुई है. साल 2019 के मुक़ाबले भारत में साल 2020 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराध की घटनाओं में 400 प्रतिशत का उछाल देखा गया है. इनमें से 90 फ़ीसदी मामले बच्चों के यौन दुर्व्यवहार सामग्रियों (CSAM) के प्रकाशन और प्रसारण से जुड़े हुए थे. सोशल मीडिया मंचों का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग, ऑनलाइन क्लास पर ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों का आधारित होने के साथ शैक्षणिक ऐप के इस्तेमाल के चलते बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा ख़तरे में पड़ गई.

साल 2019 के मुक़ाबले भारत में साल 2020 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराध की घटनाओं में 400 प्रतिशत का उछाल देखा गया है. इनमें से 90 फ़ीसदी मामले बच्चों के यौन दुर्व्यवहार सामग्रियों (CSAM) के प्रकाशन और प्रसारण से जुड़े हुए थे.

बच्चों के लिए ऑनलाइन जोख़िमों को लेकर यूनिसेफ ने जिन छह वर्गों की पहचान की है, उसमें यौन दुर्व्यवहार और यौन शोषण को एक साथ माना जा सकता है और इसे ऑनलाइन बाल यौन दुर्व्यवहार और शोषण (OCSAE) के संदर्भ में प्रयोग किया जा सकता है. ओसीएसएई में सीएसएएम का उत्पादन और वितरण जैसी कई गतिविधियां शामिल हो सकती हैं; बच्चों को यौन बातचीत के लिए फुसलाना या आपत्तिजनक सामग्री बनाना; वास्तविक दुनिया में दुर्व्यवहार करने वाले से मिलने के लिए बच्चों को लुभाना; दुर्व्यवहार करने वाले द्वारा दिखावटीपन करना; और किसी बच्चे को इंटरनेट पर वेश्यावृत्ति या यौन तस्करी में शामिल होने के लिए बरगलाना.[i]

ऑनलाइन बच्चों की सुरक्षा को लेकर भारत की स्थिति क्या है?

भारत 1990 के बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CRC) को शुरुआती प्रमाणित करने वालों में से एक रहा था और 2002 में इसने सीआरसी के दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल को स्वीकार किया जो बच्चों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन और ऑफ़लाइन अपराधों के लिए सीआरसी के प्रावधानों को और मज़बूत बनाता है.

भारत ने ऑनलाइन बच्चों की सुरक्षा के लिए एक मज़बूत कानूनी ढांचा विकसित किया है. इसमें यौन अपराधों के ख़िलाफ़ बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 शामिल है; सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008, जो उन अपराधों की पहचान करके आईटी अधिनियम, 2000 के दायरे का विस्तार करता है जिनके लिए बच्चे सबसे अधिक संवेदनशील हैं; और हाल ही में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिज़िटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 जिसका उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर CSAM के प्रसार को रोकना है. इसके अलावा भारतीय दंड संहिता और अनैतिक यातायात रोकथाम अधिनियम की धाराएं भी OCSAE के मामलों की रिपोर्टिंग के लिए एक आधार देती है, जिसमें अश्लील सामग्री की बिक्री और प्रसारण पर रोक लगाने की कोशिश होती है; बच्चों का यौन उत्पीड़न, मानहानि, आपराधिक धमकी; और ऑनलाइन जबरन वसूली और बाल तस्करी जैसे अपराध शामिल हैं.

साल 2020 के चाइल्ड सेफ्टी ऑनलाइन इंडेक्स, महामारी के पहले वर्ष के दौरान किए गए 30 देशों के एक सर्वेक्षण में भारत को ‘बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ ऑनलाइन सुरक्षा’ के लिए नौवें (‘औसत’ रेटिंग के साथ) लेकिन ‘साइबर की सीमा’ में बच्चों द्वारा सामना किए जाने वाले जोख़िम के मामले में दूसरे स्थान का दर्ज़ा देता है

साल 2020 के चाइल्ड सेफ्टी ऑनलाइन इंडेक्स, महामारी के पहले वर्ष के दौरान किए गए 30 देशों के एक सर्वेक्षण में भारत को ‘बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ ऑनलाइन सुरक्षा’ के लिए नौवें (‘औसत’ रेटिंग के साथ) लेकिन ‘साइबर की सीमा’ में बच्चों द्वारा सामना किए जाने वाले जोख़िम के मामले में दूसरे स्थान का दर्ज़ा देता है. यह बताता है कि भारत में बच्चों को साइबर जोख़िमों का सामना करना पड़ता है, जबकि इन जोख़िमों से निपटने में देश की प्रभावशीलता ‘औसत’ है.

  • महामारी के दौरान OCSAE के मामलों को ठीक करना
    भारत ने महामारी के दौरान ओसीएसएई की घटनाओं का सामना चार तरह से किया है. इसने बच्चों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए मौज़ूदा व्यवस्था के प्रचार को बढ़ाया है; ऑनलाइन सीएसएएम की उपस्थिति पर नकेल कसने की कोशिश की है, ख़ासकर सोशल मीडिया पर; स्कूलों को संवेदनशील बनाने पर ध्यान केंद्रित किया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों (एलईएएस) की क्षमता को बढा़ने पर ज़ोर दिया और बाल सुरक्षा के ख़तरों का मुक़ाबला करने के लिए तकनीकी क्षमता को विकसित किया है.
  • OCSAE की रिपोर्टिंग व्यवस्था के बारे में जागरूकता फैलाना
    ओसीएसएई की घटनाओं के बारे में ख़ुद रिपोर्ट करने के लिए भारत में दो व्यवस्था है – पॉक्सो ई-बॉक्स, एक वर्चुअल शिकायत प्रबंधन प्रणाली है और राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) – ये दोनों व्यवस्थाएं कोरोना महामारी से पहले से ही मौज़ूद हैं. साल 2020 की शुरुआत से, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और राष्ट्रीय महिला आयोग ने इन रिपोर्टिंग प्लेटफार्मों और पॉक्सो और आईटी कानूनों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की कोशिशों को दोगुना कर दिया है, और तो और इसकी आउटरीच, इसकी वक़ालत और हितधारकों के जुड़ाव के लिए देश भर में कई कार्यक्रम की शुरूआत भी की है. महामारी के दौरान भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रेन (एनसीएमईसी) के बीच साल 2019 से ही सूचना-साझा करने के लिए एक अलग व्यवस्था और तंत्र तैयार किया गया है. एनसीआरबी को एनसीएमईसी से टिपलाइन रिपोर्ट की प्राप्ति होती है, जिसे वह राज्य-स्तरीय एलईएएस के साथ साझा करता है, जिससे उन्हें दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.इसमें दो राय नहीं कि ये कदम सराहनीय हैं लेकिन भारत के ओसीएसएई रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म के बारे में जागरूकता की सामान्य कमी अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जिसकी वज़ह से ख़ुद ऐसे अपराधों की रिपोर्टिंग करने वालों की तादाद अभी भी काफी कम है. 2020-21 में पोक्सो ई-बॉक्स ने 151 शिकायतें दर्ज़ कीं थीं और 2020 में एनसीआरपी ने बच्चों के ख़िलाफ़ 1,102 साइबर अपराध दर्ज़ किए थे. इसके विपरीत, एनसीआरबी को अकेले 2020 में एनसीएमईसी से ओसीएसएई की 2,725,518 रिपोर्ट प्राप्त हुई.

    सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सीएसएएम पर नकेल कसने की कोशिश

  • विवादास्पद सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिज़िटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 महामारी के दौरान पारित क़ानूनों में से अकेला ऐसा क़ानून है जो सोशल मीडिया पर सीएसएएम के मुद्दे से निपटने की कोशिश करता है. आईटी नियम सोशल मीडिया की अलग-अलग संस्थाओं से उनके यूज़र्स को सीएसएएम प्रकाशित करने या ऐसे कंटेंट को प्रसारित करने से रोकने की अपील करता है; इन संस्थाओं के लिए सीएसएएम की पहचान करने और ऐसी सामग्री तक यूज़र्स की पहुंच को रोकने के लिए तरीक़ा इज़ाद करना भी अनिवार्य बनाता है. ये नियम सोशल मीडिया के दूसरे मंचों को सूचना के पहले प्रसारक का पता लगाने में मदद करने की बात करते हैं, जब सीएसएएम या यौन सामग्री से संबंधित अपराध की जांच या अभियोजन के लिए न्यायिक आदेश जारी कर दिए जाते हैं.आईटी नियमों में कई समस्याएं हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए सामग्री का पता लगाने में मदद करने के लिए उन्हें इन प्लेटफॉर्म पर बाकी सभी ऑनलाइन संचार की सुरक्षा से समझौता करते हुए, अपने एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को भी तोड़ना पड़ेगा. इतना ही नहीं, यह नियम ट्रेसिबिलिटी को लागू करने के लिए भी एक भरोसेमंद व्यवस्था का सुझाव नहीं दे पाते हैं. इसके अलावा, जिस आईटी क़ानून से इसकी शुरुआत हुई है वह भी सरकार को ऐसे प्लेटफार्म में तक़नीकी बदलाव करने को निर्देशित करने का अधिकार नहीं देती है, ऐसे में नियमों की वैधता बहस का विषय बन जाती है. इस तरह सैद्धान्तिक तौर पर तो आईटी नियम ओसीएसएई से निपटने का प्रयास करते हैं लेकिन जब तक ऐसे मुद्दों का समाधान नहीं हो जाता है तब तक उन्हें लागू कर पाना कठिन लगता है.

    स्कूलों को संवेदनशील बनाना

  • ओसीएसएई समेत बच्चों के लिए दूसरे ऑनलाइन ख़तरों के बारे में स्कूलों को संवेदनशील बनाना कोरोना महामारी के ख़िलाफ़ भारत के रेसपॉन्स का अहम हिस्सा रहा है. एनसीपीसीआर और शिक्षा मंत्रालय दोनों ने स्कूल सुरक्षा के लिए नियमावली को विकसित और प्रसारित भी किया है जो बच्चों की साइबर सुरक्षा से संबंधित मौज़ूदा दिशानिर्देशों, क़ानूनों और रिपोर्टिंग तंत्र के सार के रूप में भी काम करता है. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद जैसे शीर्ष निकायों ने भी ऑनलाइन बाल सुरक्षा मुद्दों पर छात्रों के मुताबिक़ हैंडबुक जारी किया है तो साइबर सुरक्षा मामलों पर प्रशिक्षित शिक्षकों को भी तैयार किया है.केंद्र द्वारा संचालित ऐसे क़दम स्कूलों को ऑनलाइन बाल सुरक्षा के विषय में अपने प्रशासकों और शिक्षकों को संवेदनशील बनाने और सीधे तौर पर स्कूली बच्चों को संवेदनशील बनाने के लिए अधिक जवाबदेह बनाते हैं. हालांकि, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि राज्य सरकारें राज्य स्तर पर स्कूलों में ऐसे ही तरीक़ों को अपनाना सुनिश्चित करें. स्कूलों के लिए राज्य साइबर सुरक्षा निगरानी तंत्र के विकास से इसकी स्वीकृति और बढ़ेगी.
  • मानव और तक़नीकी क्षमता को मज़बूत बनाना
    अंत में, गृह मंत्रालय द्वारा संचालित ‘महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराध रोकथाम’ योजना के तहत महामारी के दौरान एलईए और न्यायिक अधिकारियों का प्रशिक्षण नए सिरे से जारी है. जब से कोरोना महामारी की शुरुआत हुई है उसके बाद से ही OCSAE से निपटने के लिए बड़े तक़नीकी फर्मों द्वारा तक़नीकी कदम उठाकर मानव क्षमता को विकसित कर इसके पूरक बनाया जा रहा है. उदाहरण के लिए भारत में, गूगल और फेसबुक दोनों ने अपने प्लेटफ़ॉर्म से CSAM को हटाने के लिए कदम उठाए हैं और बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में शिक्षित करने के लिए कार्यक्रम शुरू किया है.आगे का रास्ता…
    जैसा कि भारत कोरोना महामारी के तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तो ऐसे में यह आकलन करना बेहतर होगा कि वह अपनी ओसीएसएई प्रतिक्रिया प्रणाली को कैसे मज़बूत कर सकता है. OCSAE रोकथाम क़ानूनों, संसाधनों और रिपोर्टिंग तंत्र के बारे में सीमित जागरूकता भी एक बड़ी बाधा बनी हुई है. संवेदनशील बनाने की कोशिशें ज़्यादा होनी चाहिए और इसे निरंतर आगे बढ़ाया जाना चाहिए. ऑनलाइन बाल सुरक्षा को केवल महामारी से पैदा हुए संकट के रेसपॉन्स के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.

भारतीय जनसंचार माध्यमों द्वारा समर्थित एक चरणबद्ध राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाना जनता का ध्यान आकर्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहला कदम साबित हो सकता है. इसके साथ ही स्कूलों में कंप्यूटर विज्ञान और यौन शिक्षा पाठ्यक्रम में ओसीएसएई पर मॉड्यूल को एकीकृत करना – यह सुनिश्चित करते हुए कि केंद्र द्वारा विकसित नॉलेज़ कंटेंट क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराए जाते हैं – सबसे अधिक जोख़िम वाले वर्ग को संवेदनशील बनाने की दिशा में एक बेहतर कदम हो सकता है. तीसरा, बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध की लंबी सूची को भी तत्काल ठीक करने की आवश्यकता है और प्राथमिकता के आधार पर ओसीएसएई के मामलों को तेज़ी से ट्रैक करने की कोशिश की जानी चाहिए.

ओसीएसएई के ख़िलाफ़ युद्ध में निजी क्षेत्र को भी सहयोगी बनना होगा. आईटी नियम, 2021 को सोशल मीडिया की दूसरी संस्थाओं द्वारा वास्तविक रूप से लागू करने से पहले इसकी गहन पुनर्मूल्यांकन की ज़रूरत है. हालांकि इन नियमों में हाल ही में प्रस्तावित संशोधनों में कुछ सुझाव शामिल हैं जिनके सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जबकि ट्रेसबिलिटी और डिक्रिप्शन के बारे में विवादास्पद हिस्से में बदलाव नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा, भारत अब तक इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को सीएसएएम तक पहुंच को बाधित करने के प्रयासों में सहयोग करने के लिए राजी करने में असमर्थ रहा है. भारत के इस रिकॉर्ड में भी सुधार की ज़रूरत है.

आख़िर में, भारत अधिक बाहरी दृष्टिकोण अपना सकता है और ऑनलाइन बाल सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए द्विपक्षीय या बहुपक्षीय साझेदारी बढ़ाने की कोशिश कर सकता है. ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी पर विचार किया जा सकता है, जो OCSAE की समस्या को निपटाने के लिए मज़बूत व्यवस्था के लिए जाने जाते हैं

आख़िर में, भारत अधिक बाहरी दृष्टिकोण अपना सकता है और ऑनलाइन बाल सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए द्विपक्षीय या बहुपक्षीय साझेदारी बढ़ाने की कोशिश कर सकता है. ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी पर विचार किया जा सकता है, जो OCSAE की समस्या को निपटाने के लिए मज़बूत व्यवस्था के लिए जाने जाते हैं, और जिनके साथ भारत पहले से ही साइबर और प्रौद्योगिकी साझेदारी करता रहा है.
ज्ञान का आदान-प्रदान करने, एलईए की क्षमता को बढ़ाने और सीएसएएम अपराधियों के प्रसार को रोकने के लिए मिलकर काम करना दोनों भागीदारों के लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद हो सकता है और बच्चों के लिए एक सुरक्षित माहौल और सुरक्षित साइबर स्पेस बनाने में मदद कर सकता है.


[i] K Sanjay Kumar, Is Your Child Safe? (Kozhikode: The Book People, 2017), pp.46–58

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