Author : Nandan Dawda

Published on Feb 20, 2024 Updated 0 Hours ago

भारतीय शहरों में टिकाऊ शहरी सार्वजनिक परिवहन को हासिल करना दुनिया की टॉप तीन अर्थव्यवस्थाओं में जगह बनाने की भारत की आकांक्षा के लिए महत्वपूर्ण होगा.

पसंद की बात: शहरी भारत के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम का निर्धारण

भारत में शहरी केंद्रों के तेज़ी से विस्तार का श्रेय बढ़ते औद्योगिक सेक्टर, आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी और रोज़गार के अवसरों में इज़ाफ़े को जाता है. भारत की जनगणना के अनुसार 10 लाख से ज़्यादा आबादी वाले महानगरों की संख्या 2001 में 35 से बढ़कर 2011 में 53 हो गई. ये रुझान आगे भी जारी रहना तय है और 2011 में 28.2 करोड़ की शहरी आबादी 2031 तक बढ़कर 59 करोड़ होने का अनुमान है. 

आवागमन पर शहरीकरण का असर

शहरीकरण ने यात्रा से जुड़ी मांग तेज़ की है और शहरी क्षेत्रों में लोगों के द्वारा की जाने वाली यात्रा की संख्या बढ़ाई है. अनुमानों से संकेत मिलता है कि परिवहन के सभी माध्यमों को मिलाकर प्रति व्यक्ति यात्रा की दर 0.8-1.55 से बढ़कर 2030 तक 1-2 हो जाएगी. फिर भी शहरी यात्रा में ये तेज़ी परिवहन से जुड़ी परेशानियों को बढ़ा सकती है जिनमें ट्रैफिक जाम, सड़क दुर्घटनाएं, पीक-आवर (व्यस्त समय) के दौरान यात्रा का अच्छा अनुभव नहीं होना, ज़रूरत से ज़्यादा भीड़ और पर्यावरण को नुकसान शामिल हैं. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों को सड़कों पर भीड़ की वजह से हर साल लगभग 14.7 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है. 2022 में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4,61,312 सड़क हादसे हुए जिनमें 1,68,491 लोगों की मौत हुई जबकि 4,43,366 लोग घायल हुए. इस तरह पिछले साल की तुलना में सड़क हादसों में 11.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि मरने वालों की संख्या में 9.4 प्रतिशत और घायलों की संख्या में 15.3 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ. 

दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों को सड़कों पर भीड़ की वजह से हर साल लगभग 14.7 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है. 2022 में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4,61,312 सड़क हादसे हुए जिनमें 1,68,491 लोगों की मौत हुई जबकि 4,43,366 लोग घायल हुए.

इसके अलावा शहरों के भीतर पीक आवर ट्रैवल की रफ्तार 17-26 किमी. प्रति घंटे से घटकर 6-8 किमी. प्रति घंटे होने का अनुमान है. बढ़ते ट्रैफिक जाम ने शहरों में एयर क्वालिटी (हवा की गुणवत्ता) भी ख़राब की है. उदाहरण के लिए 2022 में दिल्ली, कोलकाता और मुंबई की एयर क्वालिटी को क्रमश: ख़तरनाक, काफी ख़राब और ख़राब की श्रेणी में रखा गया और यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) क्रमश: 304, 233 और 158 रहा. 

इन चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से सतत (सस्टेनेबल) मास रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम (MRTS) के लिए रणनीतिक योजना बनाने की आवश्यकता है. इन आवश्यकताओं के जवाब में शहरों ने रेल आधारित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में निवेश किया है या निवेश करने का इरादा बनाया है और बस आधारित विकल्पों की तुलना में उन्हें तरजीह दी है. 

भारतीय शहरों में रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम के लिए गाइडलाइन

2005 में राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति के लागू होने के बाद सार्वजनिक परिवहन कई भारतीय महानगरों के लिए प्राथमिकता का क्षेत्र बना. इसके बाद 12वीं पंचवर्षीय योजना, राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति (NTDPC), शहरी एवं क्षेत्रीय विकास योजनाएं निर्माण और कार्यान्वयन गाइडलाइन- 2017 (URDPFI) और आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय (MoHUA) के द्वारा विकसित शहरी परिवहन विकास के लिए गाइडलाइन एवं टूलकिट ने शहरी परिवहन के उद्देश्य से सही परिवहन के माध्यम को चुनने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत तैयार किए. 

ये दिशा-निर्देश पीक आवर पीक डायरेक्शन ट्रैफिक (PHPDT) यानी व्यस्त रूट पर सबसे व्यस्त समय में ट्रैफिक, जनसंख्या, घनत्व और यात्रा की दूरी पर विचार करते हैं. इसके अलावा वो हर कसौटी के साथ जुड़े सीमा मूल्य (थ्रेसहोल्ड वैल्यू) मुहैया कराते हैं जो कि ये निर्धारित करने के लिए बुनियाद के तौर पर काम करते हैं कि किसी शहर के लिए बस रैपिड ट्रांज़िट (BRT), लाइट रेल ट्रांज़िट (LRT) या मोनो रेल में से कौन सा परिवहन साधन सबसे उपयुक्त है.

मौजूदा समय में 24 भारतीय शहरों में MRTS है जबकि 16 शहरों में मेट्रो रेल या BRT में से कोई एक रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम है. केवल पांच शहरों में दो या उससे ज़्यादा रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम यानी उपनगरीय रेल, मेट्रो और BRTS का मेल है.

भारतीय शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की स्थिति 

मौजूदा समय में 24 भारतीय शहरों में MRTS है जबकि 16 शहरों में मेट्रो रेल या BRT में से कोई एक रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम है. केवल पांच शहरों में दो या उससे ज़्यादा रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम यानी उपनगरीय रेल, मेट्रो और BRTS का मेल है. रेल आधारित ट्रांज़िट सिस्टम में मेट्रो रेल सिस्टम वर्तमान समय में 16 शहरों में चालू है, छह शहरों में निर्माणाधीन है और चार शहरों में मूल्यांकन के चरण में है. 20 शहर मेट्रो लाइट के औचित्य का अध्ययन (फीज़िबिलिटी स्टडी) करवा रहे हैं जबकि तीन शहर इसके साथ-साथ मेट्रो निओ के औचित्य की खोज-बीन कर रहे हैं. 

हालांकि, आंकड़ो से पता चलता है कि जिन शहरों में मेट्रो रेल सिस्टम चालू हालत में है, उनमें से किसी भी शहर में यात्रियों को ले जाने की क्षमता के मुताबिक यात्री मेट्रो में सफर नहीं कर रहे हैं. विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) में सवारी को लेकर जो अनुमान लगाए गए थे, मेट्रो रेल सिस्टम उन्हें हासिल नहीं कर पाए हैं. मुंबई (फेज 1) ने अपनी अनुमानित सवारी का 89 प्रतिशत हासिल किया है जबकि चेन्नई और हैदराबाद ने क्रमश: 35 प्रतिशत और 26 प्रतिशत हासिल किया है. इनके अलावा बाकी 13 शहर तो अनुमानित सवारी का 20 प्रतिशत हासिल करने में भी जूझ रहे हैं. 

इसके विपरीत लेखक के द्वारा नौ शहरों में बस आधारित ट्रांज़िट सिस्टम के लिए राइडरशिप के डेटा का विश्लेषण महत्वपूर्ण असमानता को उजागर करता है, ज़्यादातर शहरों में मेट्रो रेल की तुलना में बस की सवारी करने वाले लोगों की संख्या अधिक है. इन शहरों में यात्री रेल आधारित ट्रांज़िट सिस्टम के मुकाबले 0.9 से 19.7 गुना अधिक सार्वजनिक बसों का इस्तेमाल करते हैं. ये स्थिति तब है जब इन सभी शहरों में बसों की संख्या मांग से कम है.

ज़्यादातर भारतीय शहर आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) की इस गाइडलाइन का भी पालन नहीं करते कि प्रति लाख जनसंख्या पर कम-से-कम 40-60 बसें होनी चाहिए. प्रति लाख आबादी पर बसों की संख्या अलग-अलग शहरों में अलग-अलग हैं जो लखनऊ में छह से लेकर बैंगलोर में अधिकतम 45 तक हैं जबकि बाकी दूसरे शहरों में इस रेंज के बीच में हैं.

अपर्याप्त बस के बेड़े के बावजूद बस आधारित ट्रांज़िट सिस्टम में ज़्यादा लोगों की यात्रा और मेट्रो रेल सिस्टम में कम लोगों की यात्रा इस बात को उजागर करती है कि भारतीय शहर परिवहन के मौजूदा माध्यमों, ख़ास तौर पर बस, को बढ़ाने या उन्हें बेहतर बनाने के बदले बड़े रेल आधारित प्रोजेक्ट के निर्माण पर ज़्यादा ज़ोर दे रहे हैं. इसकी वजह से ऐसी परिस्थिति बन गई है जहां शहरों के भीतर सार्वजनिक परिवहन के सभी माध्यम एक दूसरे के मददगार बनने के बदले आपस में मुकाबला करते हैं. इसका नतीजा सार्वजनिक परिवहन के सभी माध्यमों के बिखराव और उनके अस्थिर संचालन के रूप में निकल रहा है. 

आगे का रास्ता 

भारतीय शहर सतत शहरी सार्वजनिक परिवहन के लक्ष्य को कैसे हासिल करते हैं, इस सवाल का जवाब दुनिया की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत की संभावना के लिए निर्णायक होगा. कई शहरों ने परिवहन की अपनी समस्या के रामबाण के रूप में मेट्रो रेल को अपनाने में जल्दबाज़ी की है जबकि बस के बेड़े और नेटवर्क को बढ़ाने या बहुत ज़्यादा खर्चीले रेल आधारित विकल्प के लिए ज़रूरत की समीक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया है. 

इसका ये मतलब नहीं है कि मेट्रो रेल सिस्टम की आवश्यकता नहीं है. कई टियर 2 शहरों में जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है और उन्हें मेट्रो रेल की ज़रूरत होगी लेकिन ये ज़रूरत उस समय होगी जब उनकी बस आधारित प्रणाली उपयोग के उच्चतम स्तर पर पहुंच जाए. परिवहन के मौजूदा साधनों को बढ़ाने और उन्हें व्यवस्थित करने पर विचार किए बिना शहरी परिवहन प्रणाली में निवेश के समय और मात्रा के बारे में अच्छी तरह से परिभाषित नियमों की कमी ने कई छोटे शहरों को अनुचित सार्वजनिक परिवहन विकल्पों के लिए गैर-ज़रूरी पैसा सौंपने की तरफ बढ़ा दिया है. इसके नतीजतन संचालन करने वाली एजेंसियों को काफी नुक़सान हुआ है. 

जिन शहरों में यात्रा की दूरी अपेक्षाकृत कम होती हैं, वहां मेट्रो रेल सिस्टम के निर्माण की जगह एक अच्छी तरह से संगठित सिटी बस सिस्टम एक किफायती और जल्द पहुंचाने वाले विकल्प के तौर पर उभरता है. सबसे बड़ी प्राथमिकता सिटी बस सिस्टम को बेहतर बनाना है जिसके तहत बसों की संख्या बढ़ाना और शहर के अलग-अलग इलाकों तक बस सेवा मुहैया कराना है.

अलग-अलग दिशा-निर्देशों ने शहरों को परिवहन के सबसे आदर्श साधन को चुनने में मदद के लिए जनसंख्या, घनत्व, यात्रा की दूरी और पीक आवर पीक डायरेक्शन ट्रैफिक (PHPDT) की कसौटी पर विचार किया लेकिन दूसरे योग्य मानदंडों (पैरामीटर) को नज़रअंदाज़ कर दिया जिनमें यात्रा का समय और यात्रा की लागत शामिल है जो कि किसी भी व्यक्ति के सामर्थ्य से सीधे तौर पर जुड़े हैं और अलग-अलग परिवहन के साधनों के बारे में सिफारिश करते समय सामूहिक रूप से शहर की आमदनी के पैटर्न, सुविधा और पहुंच के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं. इसके अलावा दिशा-निर्देश आवश्यक निवेश की मात्रा का विश्लेषण किए बिना मुख्य रूप से इन अलग-अलग साधनों में निहित तकनीकी परिप्रेक्ष्य से निकलते हैं. सही साधन का चयन करने में शहर का रूप और आकार भी महत्वपूर्ण है. 

टियर 2 और 3 शहरों में MRTS की रणनीतिक योजना के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. इसके लिए मुख्य रूप से मौजूदा सार्वजनिक परिवहन के इंफ्रास्ट्रक्चर, विशेष रूप से सिटी बस सिस्टम, के साथ एकीकरण होना चाहिए. कार्यकुशलता को बेहतरीन बनाने के लिए ये एकीकरण महत्वपूर्ण है. जिन शहरों में यात्रा की दूरी अपेक्षाकृत कम होती हैं, वहां मेट्रो रेल सिस्टम के निर्माण की जगह एक अच्छी तरह से संगठित सिटी बस सिस्टम एक किफायती और जल्द पहुंचाने वाले विकल्प के तौर पर उभरता है. सबसे बड़ी प्राथमिकता सिटी बस सिस्टम को बेहतर बनाना है जिसके तहत बसों की संख्या बढ़ाना और शहर के अलग-अलग इलाकों तक बस सेवा मुहैया कराना है. अधिक क्षमता और काफी खर्च वाले रेल आधारित MRTS को अमल में लाने पर तभी विचार किया जाना चाहिए जब बस सिस्टम लोगों की मांग को पूरा करने में कार्यकुशलता से काम करें और अपनी क्षमता की दहलीज तक पहुंच जाएं. इसी के अनुसार शहरों को भारत में MRTS तकनीक की पसंद का समर्थन करने के लिए मौजूदा गाइडलाइन से आगे जाना चाहिए और जानकारी आधारित नीतियों और तौर-तरीकों को बनाने पर ध्यान देना चाहिए. 

नंदन दावड़ा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अर्बन स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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