Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 27, 2022 Updated 0 Hours ago
भरोसे के सवाल पर क्वॉड टेक साझेदारी को लेकर नई दिल्ली का दृष्टिकोण!

क्वॉड क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप (The Quad Critical and Emerging Technology Working Group) को गठित हुए क़रीब दो वर्ष होने वाले हैं. मार्च, 2021 में क्वॉड लीडर्स समिट (Quad Leaders’ Summit 2021) के दौरान इस वर्किंग ग्रुप की स्थापना की गई थी. इस वर्किंग ग्रुप का दायरा काफ़ी बढ़ा है और यह कई क्षेत्रों में कार्य करता है, जैसे कि आपूर्तिकर्ता विविधीकरण, तकनीकी मानकों, ट्रेंड्स की निगरानी एवं डिज़ाइन, विकास और उपयोग के सिंद्धांत. अन्य उप-समूहों की बात करें तो, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), 5G, बायोटेक, सेमीकंडक्टर्स, आपूर्ति श्रृंखलाओं पर बने उप-समूह भी इसी वर्किंग ग्रुप के अंतर्गत कार्य करते हैं.

प्रत्येक उप-समूह हर महीने बैठक आयोजित करता रहा है और इनके अलावा क्वॉड टेक ग्रुप नियमित रूप से मीटिंग करता है. कुछ उप-समूह, दूसरों की तुलना में अधिक सक्रिय हैं और उनकी गतिविधियां दिखाई भी देती हैं. इनमें जापान की अगुवाई वाले 5जी उप-समूह की सक्रियता विशेषरूप से उल्लेखनीय है. ज़ाहिर है कि इस उप-समूह ने 5जी आपूर्तिकर्ता विविधीकरण और ओपन RAN पर सहयोग के मैमोरेंडम का ऐलान किया है. क्वॉड देशों ने तकनीकी मानकों के बारे में जानकारी साझा करने के उद्देश्य से क्वॉड साइबर सुरक्षा भागीदारी, क्वॉड सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला पहल और एक इंटरनेशनल स्टैंडर्ड कोऑपरेशन नेटवर्क भी शुरू किया है.

हालांकि, चीन का काउंटर करना यानी उसका मुक़ाबला करना क्वॉड के अस्तित्व की एक बड़ी वजह है. क्वॉड टेक साझेदारी का तेज़ विस्तार इस बात पर निर्भर करता है कि यह प्रत्येक क्वॉड सदस्य देश के व्यापक रणनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों को किस प्रकार से पूरा करता है. जिस तरह से ज़ल्दबाजी में घोषणाएं की जा रही हैं, ऐसे में इस बात का आकलन करने के लिए एक क़दम पीछे हटकर विचार करने की ज़रूरत है कि क्वॉड उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए भारत की दृष्टि में किस प्रकार से और कहां उपयुक्त बैठता है.

प्रत्येक उप-समूह हर महीने बैठक आयोजित करता रहा है और इनके अलावा क्वॉड टेक ग्रुप नियमित रूप से मीटिंग करता है. कुछ उप-समूह, दूसरों की तुलना में अधिक सक्रिय हैं और उनकी गतिविधियां दिखाई भी देती हैं.

A. भारत-प्रशांत क्षेत्र में भरोसेमंद भागीदारों के साथ आर्थिक साझेदारी

भारत के लिए, क्वॉड अपने आप में किसी अंत की तरह नहीं है, बल्कि यह भारत के लिए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ (ASEAN) समेत भारत-प्रशांत रीजन में व्यापक और गहरे व्यापारिक एवं प्रौद्योगिकी जुड़ाव के लिए एक लॉन्चपैड की भांति है. विशेष रूप से, जब टेक और डिजिटल बदलाव की बात सामने आती है, तो क्वॉड इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्वतंत्र, खुले और समावेशी प्रौद्योगिकी प्रवाह और व्यवस्थाओं का समर्थन करने वाले मज़बूत स्तंभ के रूप में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में, “क्वॉड इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए एक रचनात्मक एजेंडा लेकर चल रहा है. यह क्वॉड की छवि को 'फोर्स फॉर गुड' के रूप में और मज़बूत करेगा.” कहा जाता है कि यह इसके विपरीत है कि शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के साथ नई दिल्ली किस प्रकार जुड़ती है. शंघाई सहयोग संगठन में भारत किसी ख़ास ज़रूरत और उद्देश्य से जुड़ा हुआ है, कहा जा सकता है कि इसके ज़रिए भारत तेज़ी के साथ अलग-थलग हो रहे रूस और आक्रामक चीन के लिए एक चैनल को खुला रख रहा है. भारत ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा बनने से लगातार इनकार किया है। इसके बजाए भारत ने "आपसी विश्वास" एवं "विश्वसनीय, लचीली और विविधितापूर्ण आपूर्ति श्रृंखला" की ज़रूरत का आग्रह किया है.

B. भारतीय हितों को दर्शाने वाले प्रौद्योगिकी मानक

नई दिल्ली तकनीकी मानक निकायों में अपनी मौज़ूदगी और सक्रियता की ज़रूरत को बखूबी पहचानती है. 5G संचालन समिति की वर्ष 2018 की रिपोर्ट ने सिफ़ारिश की थी कि "सरकार... वैश्विक मानकों में भारत की प्रोफाइल यानी उपस्थिति को बढ़ाए". इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय की AI समिति की रिपोर्ट IEEE और ISO के साथ जुड़ाव पर बार-बार ज़ोर देती है. जहां तक भारत के हितों को आगे बढ़ाने की बात है तो, क्वॉड ना सिर्फ़ क्वॉड क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप के साथ भारत के जुड़ाव के आधार पर, बल्कि जब भारत की स्थिति क्वॉड से अलग हो जाती है, तब भी भारत के हितों को आगे बढ़ाने में मदद करता है. यह 5Gi मानक की कहानी से स्पष्ट हो जाता है, जिसने भारत के भागीदारों को आश्चर्यचकित कर दिया है. भारत 3GPP पर 5Gi को रिलीज 17 में एकीकृत करने के लिए दबाव बनाने में क़ामयाब रहा. ज़ाहिर है कि इसकी प्रमुख वजह, “क्वॉड की प्रक्रियाओं समेत उभरते वैश्विक गठबंधनों में एक भागीदार के रूप में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी.”

प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में, “क्वॉड इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए एक रचनात्मक एजेंडा लेकर चल रहा है. यह क्वॉड की छवि को 'फोर्स फॉर गुड' के रूप में और मज़बूत करेगा.”

C. भारत के प्रौद्योगिकी समाधानों को पूरी दुनिया तक पहुंचाना

अक्सर आत्मनिर्भर भारत की अलगाववाद और संरक्षणवाद के रूप में गलत तरीक़े से व्याख्या की जाती है. वास्तव में इसके पीछे जो उद्देश्य है, वो भारत की आपूर्ति श्रृंखलाओं को तमाम तरह के झटकों के प्रति लचीला बनाना है. फिर चाहे वे झटके आपदाओं की वजह से लगे हों, या महामारी के कारण, या फिर भू-राजनीति और नीतियों की वजह से. इसके साथ ही, नई दिल्ली की नीतियों का मकसद भारत को एक पसंदीदा, विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में प्रस्तुत करके, भारत को वैल्यू चेन में ऊपर की ओर ले जाना है. भारत के आईटी एक्सपोर्ट में मुख्य तौर पर सर्विस सबसे आगे है, हालांकि, इसमें एक मज़बूत प्रोडक्शन बेस स्थापित करने के लिए एक मिलाजुला प्रयास है, जो कि दुनिया भर को निर्यात करेगा. कई योजनाओं और नीतियों के साथ ही सॉफ्टवेयर उत्पादों पर राष्ट्रीय नीति (2019), इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सेमीकंडक्टर्स की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की योजना (SPECS), मॉडिफाइड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर्स (EMC 2.0) योजना एक तरह से इस बड़े लक्ष्य को हासिल करने का माध्यम हैं. घरेलू टेक प्रोडक्शन बेस स्थापित करने के लिए महत्त्वपूर्ण पूंजी, विशिष्ट ज्ञान और कौशल के साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश की ज़रूरत होगी. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, भारत का एक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी हब के रूप में परिवर्तन एक लंबी अवधि की रणनीति है और इसके लिए क्वॉड देशों के साथ विश्वसनीय एवं भरोसेमंद साझेदारी बेहद अहम होगी.

क्वॉड, इंडो-पैसिफिक के साथ ही इसके भीतर अपनी जगह के लिए प्रत्येक सदस्य राष्ट्र के नज़रिए को फलीभूत करने के लिए एक कैनवास की भांति है. क्वॉड क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप ने पिछले डेढ़ साल में, चारों सदस्य देशों के लिए तक़नीकी क्षेत्रों से जुड़े कई तरह के सहयोग को लेकर ज़मीन तैयार करने के स्थान के रूप में काम किया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या क्वॉड टेक सहयोग अब बैठकों और सम्मेलनों से आगे बढ़कर संयुक्त कार्रवाई की ओर क़दम उठा सकता है?

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