Author : Harsh V. Pant

Published on Dec 22, 2021 Updated 0 Hours ago

अमेरिका ने यह संदेश तो दे ही दिया कि शिनजियांग में मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन को देखते हुए सब कुछ सामान्य ढर्रे पर नहीं चल सकता. 

2022 का विंटर ओलंपिक: निरंकुश होते चीन को अमेरिका का बहिष्कार

दुनिया भर में इन दिनों शीत युद्ध वाली भावनाओं का ज्वार तेजी से बढ़ रहा है. इसका ही प्रमाण है कि यह साल अमेरिका और चीन के बीच और तकरार बढ़ने के रूप में भी याद किया जाएगा. इसकी छाया फरवरी में चीन में आयोजित होने वाले विंटर ओलंपिक पर भी पड़ती दिख रही है. हाल में बाइडेन प्रशासन ने एलान किया कि चीन के लचर मानवाधिकार रिकार्ड को देखते हुए अमेरिका वहां अपने राजनयिक नहीं भेजेगा. हालांकि अमेरिका की मंशा खेलों के बहिष्कार की नहीं है, क्योंकि इससे उन खिलाड़ियों को निराशा होगी, जो अर्से से तैयारी में लगे हैं. फिर भी अमेरिका ने यह संदेश तो दे ही दिया कि शिनजियांग में मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन को देखते हुए सब कुछ सामान्य ढर्रे पर नहीं चल सकता. यह 1979 में सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में घुसने के विरोध में मास्को (1980) ओलंपिक के अमेरिकी बहिष्कार जैसा नहीं है, फिर भी बाइडेन प्रशासन द्वारा विंटर ओलंपिक का कूटनीतिक बहिष्कार अमेरिका-चीन के बीच पहले से ही बढ़ रहे मतभेदों की खाई को और गहरा करने का काम करेगा. शिनजियांग से लेकर हांगकांग और दक्षिण चीन सागर से लेकर हिमालयी सीमाओं तक चीन अपनी परिधि में उन तौर-तरीकों से पश्चिमी और अन्य देशों को चुनौती दे रहा है, जिसने गंभीर टकरावों को जन्म दिया है. आज वाशिंगटन को चीन एक रणनीतिक प्रतिस्पर्धी दिख रहा है. ऐसा प्रतिस्पर्धी जिसके साथ ताल मिलाने की संभावनाएं दिन-प्रतिदिन कमजोर पड़ती जा रही हैं.

बाइडेन प्रशासन ने एलान किया कि चीन के लचर मानवाधिकार रिकार्ड को देखते हुए अमेरिका वहां अपने राजनयिक नहीं भेजेगा. हालांकि अमेरिका की मंशा खेलों के बहिष्कार की नहीं है, क्योंकि इससे उन खिलाड़ियों को निराशा होगी, जो अर्से से तैयारी में लगे हैं. 

चीनी वरिष्ठ अधिकारी पर यौन शोषण का आरोप

भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में सबसे नया मोर्चा खेलों का जुड़ गया है. चीनी टेनिस खिलाड़ी पेंग शुई ने कुछ समय पहले चीनी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. इसके बाद वह गायब हो र्गई. इस मामले ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया. इसका ही परिणाम था कि चीन जैसे अपने भीमकाय बाजार की परवाह न करते हुए महिला टेनिस संघ यानी डब्ल्यूटीए ने बहुत ही साहसिक फैसला लेते हुए पेंग शुई के मसले पर चीन में प्रस्तावित सभी टूर्नामेंट रद कर दिए. हालांकि बाद में पेंग शुई इससे मुकर गईं कि उन्होंने किसी पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे. फिर भी उन्हें लेकर डब्ल्यूटीए ने जो कदम उठाया, उसकी अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ (आइओसी) के रुख से तुलना करें तो निराशा होती है. आइओसी चीन के साथ असहज मुद्दों को उठाने में हिचकता है, जो दर्शाता है कि राजनीतिक मुद्दों पर वह ‘बेपरवाह’ रवैया अपनाता है.

चीनी टेनिस खिलाड़ी पेंग शुई ने कुछ समय पहले चीनी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. इसके बाद वह गायब हो र्गई. इस मामले ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया. 

चीन को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का मुखर समर्थन

हालिया अमेरिकी पहल की भर्त्सना करते हुए चीन ने उस पर ‘खेल में राजनीतिक निरपेक्षता’ के उल्लंघन का आरोप लगाकर इसके विरोध में कदम उठाने की धमकी दी. वहीं ब्रिटेन, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे देश भी विंटर ओलंपिक के कूटनीतिक बहिष्कार की अमेरिकी मुहिम में शामिल हो गए हैं तो चीन को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का मुखर समर्थन मिला है. पुतिन न केवल खेलों के उद्घाटन समारोह में शिरकत करेंगे, बल्कि इस दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनकी बैठक भी होनी है. पुतिन के इस दांव के बाद शी ने भी नाटो से सुरक्षा की लिखित गारंटी संबंधी रूस की मांग का समर्थन किया है कि नाटो पूरब की ओर अपना विस्तार नहीं करे और यूक्रेन में हथियारों के जमावड़े से बचे. दरअसल रूस को इससे अपने लिए खतरे की आशंका है. यह देखना दिलचस्प है कि इटली और फ्रांस जैसे देश इस बहिष्कार के इच्छुक नहीं. फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने इसे ‘प्रतीकात्मक और निर्थक’ बताया है.

यूरोपीय संघ ने हमेशा की तरह चीन को सीधे-सीधे आड़े हाथों लेने में संकोच किया. जबकि जुलाई में ही यूरोपीय संसद ने संघ की सरकारों से आग्रह किया था कि जब तक चीनी सरकार हांगकांग, शिनजियांग उइगर क्षेत्र, तिब्बत, इनर मंगोलिया और चीन के अन्य हिस्सों में मानवाधिकार को लेकर अपना रवैया नहीं सुधारती, तब तक वे बीजिंग ¨वटर ओलंपिक में भागीदारी के लिए सरकारी प्रतिनिधियों और राजनयिकों को मिले आमंत्रण न स्वीकार करें.

ब्रिटेन, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे देश भी विंटर ओलंपिक के कूटनीतिक बहिष्कार की अमेरिकी मुहिम में शामिल हो गए हैं तो चीन को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का मुखर समर्थन मिला है. 

नि:संदेह अमेरिका का कदम विशुद्ध रूप से प्रतीकात्मक है. इससे खेलों की आभा फीकी पड़ने के कोई आसार नहीं. दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. इसकी उम्मीद भी कम ही है कि खेलों में कुछ राजनयिकों की गैरमौजूदगी के कारण चीन अपनी नीतियों और व्यवहार में कुछ बदलाव लाएगा. हालांकि अमेरिका में इस मसले पर दुर्लभ सर्वदलीय समर्थन देखने को मिला है. इससे भी बढ़कर यह कि कुछ सांसदों को यह अपर्याप्त लगता है. उनके मुताबिक बाइडेन प्रशासन को इन खेलों का पूर्ण बहिष्कार करना चाहिए था. जो भी हो, आगामी विंटर ओलंपिक हालिया दौर के इतिहास के सबसे तल्ख खेल आयोजनों में से एक बनता दिख रहा है और 1936 के बर्लिन ओलंपिक की प्रेत छाया इस विमर्श को निरंतर आकार देती है.

चूंकि अंतरराष्ट्रीय पटल पर शी जिनपिंग की स्वीकार्यता लगातार घट रही है तो उनके पास इसकी काट का यही तरीका है कि वह घरेलू स्तर पर अपनी साख बढ़ाएं. 

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के निरंकुश एजेंडे को चुनौती

यह सही है कि शी जिनपिंग की अतिवादी नीतियों से विश्व के समक्ष जो चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं, वे अभी वैसी नहीं जैसी हिटलर के समय थीं, परंतु शी की तिकड़मों के ख़िलाफ आवाज न उठाने के खतरे दिन-प्रतिदिन प्रत्यक्ष होते जा रहे हैं. यही कारण है कि विंटर ओलंपिक के ऐसे बहिष्कार अभियान ने नागरिक समाजों और देशों के बीच समान रूप से प्रभाव उत्पन्न किया है. चीन ख़ुद अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए खेलों का इस्तेमाल करने में आगे रहा है. फिर चाहे उसके द्वारा 1956 में मेलबर्न ओलंपिक का बहिष्कार करना हो या फिर आलोचकों को शांत करने के लिए अपने बड़े बाजार का डर दिखाकर निजी क्षेत्र पर दबाव बनना हो. अब यह स्पष्ट है कि शी जिनपिंग की आक्रामक विदेश नीति और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के क्रूर निरंकुश एजेंडे को चुनौती मिलना तय है. यद्यपि यह स्पष्ट नहीं कि इसमें ओलंपिक का बहिष्कार कितना मददगार साबित हो पाएगा. चूंकि अंतरराष्ट्रीय पटल पर शी जिनपिंग की स्वीकार्यता लगातार घट रही है तो उनके पास इसकी काट का यही तरीका है कि वह घरेलू स्तर पर अपनी साख बढ़ाएं. इसमें वह बाहरी दुनिया के ख़िलाफ और कड़ा रवैया अपनाएंगे. अब इसमें संदेह नहीं कि महाशक्तियों के बीच तल्ख प्रतिस्पर्धा के दौर में खेल एक बार फिर जंग के मैदान के रूप में उभर रहे हैं, जहां प्रतिद्वंद्विता और ठोस आकार लेगी.


यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.

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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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