Author : Sitara Srinivas

Published on Dec 21, 2021 Updated 0 Hours ago

कई राष्ट्रों ने बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेलों के बहिष्कार का फ़ैसला किया है. क्या इस मंच का इस्तेमाल लड़ाई में अपना-अपना पाला तय करने के लिए किया जा रहा है?

2022 का शीतकालीन ओलंपिक : क्या ठंडा रहेगा इसका स्वागत?

बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेलों (Winter Olympics) में सात हफ्ते से भी कम का वक्त रह गया है. सरगर्मी बढ़ रही है, मगर राजनयिक रूप से. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, अमेरिकी प्रेस सचिव जेन साकी (Jen Psaki) ने पुष्टि की कि अमेरिका आधिकारिक तौर पर ऐसा पहला देश होगा जो ओलंपिक खेलों का राजनयिक रूप से बहिष्कार करेगा. उन्होंने कहा, ‘चीन द्वारा शिनजियांग में मानवाधिकारों के खुले उल्लंघन और अत्याचार के मद्देनज़र, अमेरिका का राजनयिक या आधिकारिक प्रतिनिधित्व इन खेलों को बस किसी आम गतिविधि की तरह लेगा.’ इसके बाद, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा इन खेलों के अपने-अपने बहिष्कार की घोषण कर चुके हैं.

सोवियत यूनियन के 1979 में अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण के विरोध में, अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और 65 दूसरे देशों ने 1980 के मॉस्को ओलंपिक का बहिष्कार किया. इसके जवाब में, सोवियत यूनियन की अगुवाई वाले पूर्वी ब्लॉक के 14 देशों ने 1984 में लॉस एंजेलिस ओलंपिक का बहिष्कार किया, और अपने मैत्री खेलों (Friendship Games) के अलग आयोजन का निर्णय लिया. 1988 के सियोल ओलंपिक का बहिष्कार उत्तर कोरिया और पांच अन्य देशों ने किया. बहिष्कार का यह सिलसिला आकर थमा 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में- ओलंपिक वेबसाइट गर्व से बताती है कि 1972 से लेकर यह पहला ओलंपिक था, जिसका किसी ने बहिष्कार ने नहीं किया.

चीन द्वारा शिनजियांग में मानवाधिकारों के खुले उल्लंघन और अत्याचार के मद्देनज़र, अमेरिका का राजनयिक या आधिकारिक प्रतिनिधित्व इन खेलों को बस किसी आम गतिविधि की तरह लेगा.

ऊपर जिनका ज़िक्र किया गया है वो पूर्ण बहिष्कार थे, यानी उन देशों के एथलीट खेलों में शामिल नहीं हुए थे. लेकिन 2022 के शीतकालीन ओलंपिक के मामले में ऐसा नहीं है. यह एक राजनयिक बहिष्कार है, यानी एथलीट अपने राष्ट्रीय झंडे के तले खेलों में हिस्सा लेंगे, मगर उनके देशों के वरिष्ठ नेता, अधिकारी और राजनयिक गैरहाज़िर रहेंगे. इस तरह, यह पहले के बहिष्कारों जितना कठोर नहीं है. अपने उसी संबोधन में, प्रेस सचिव साकी का मंतव्य था कि पूर्ण बहिष्कार से इसलिए बचा गया, क्योंकि खिलाड़ियों ने खेल में काफ़ी मेहनत लगायी है. इन देशों द्वारा दोनों तरह के पत्ते एक साथ चलना आंतरिक स्तर पर प्रचार हासिल करने व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात को रखने, जबकि इस तरह के क़दम की वजह से संभावित बड़े स्तर की राजनयिक व आर्थिक प्रतिक्रिया को टालने का एक दांव हो सकता है.

भारत पर सबकी निगाहें..

ऐसा लगता है कि शीतकालीन ओलंपिक के बहिष्कार को लेकर जो बहुत सी घोषणाएं होनी हैं, उनकी शुरुआत अमेरिका ने कर दी है. कई लिथुआनियाई राजनीतिक नेता और समूह यह ऐलान कर चुके हैं कि वे खेलों में मौजूद नहीं रहेंगे, हालांकि उसका सरकारी रुख़ क्या होगा, यह अभी तक सामने नहीं आया है- शायद वह अमेरिकी घोषणा के नक्शे क़दम पर चले. भारत-चीन रिश्तों का एक साल मुश्किलों से भरा रहा, इसके बावजूद यह उम्मीद नहीं है कि भारत इन खेलों का राजनयिक रूप से बहिष्कार करेगा. इसका अंदाज़ रशियन फेडरेशन, भारत गणराज्य, और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के विदेश मंत्रियों की 18वीं बैठक के दौरान रूसी और भारतीय विदेश मंत्रियों, क्रमश: लावरोव और जयशंकर द्वारा जताये गये समर्थन से लगाया जा सकता है.

चीन ने बीते साल के दौरान कई पंगे लिये हैं, जिनमें कोविड-19 महामारी पर उसकी चुप्पी भी शामिल है. इसकी वजह से चीन के साथ कई देशों के रिश्ते में ठंडापन आ गया है. उनके पास चीन को लेकर शिकवा-शिकायत के लिए बहुत कुछ है. लेकिन, सभी बहिष्कारों का मुख्य फोकस चीन द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन पर है, जिसके लिए 2022 के ओलंपिक से पहले एक्टिविस्टों ने आह्वान करना जारी रखा हुआ है. इसमें वो घटनाएं भी शामिल हैं जिन्हें अमेरिका और दूसरे कई देशों ने शिनजियांग प्रांत में नस्ली जनसंहार (genocide) और ताइवान व हांगकांग में लोकतंत्र का दमन करार दिया है.

यह एक राजनयिक बहिष्कार है, यानी एथलीट अपने राष्ट्रीय झंडे के तले खेलों में हिस्सा लेंगे, मगर उनके देशों के वरिष्ठ नेता, अधिकारी और राजनयिक गैरहाज़िर रहेंगे. 

बची-खुची कसर पूरी कर दी शायद उन सवालों ने, जो चीनी टेनिस स्टार पेंग शुआई के लापता होने के इर्द-गिर्द खड़े हुए हैं. शी जिनपिंग के मातहत चीन के पूर्व वाइस-प्रीमियर झांग गाओली पर यौन हमले का आरोप सार्वजनिक रूप से लगाने के बाद वह लापता हो गयीं. विश्व टेनिस संघ (डब्ल्यूटीए) ने चीन से जवाब तलब किया और बाद में चीन और हॉन्गकॉन्ग में सभी टूर्नामेंट निलंबित कर दिये, लेकिन तीन बार की ओलंपियन के गायब होने के मामले में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) न केवल अपनी प्रतिक्रिया, बल्कि मिलीभगत के संदेह के लिए जांच-परख के घेरे में आ गयी है. और, इसकी वजह है उसका यह दावा कि इस मामले में किसी हल के लिए ‘शांत कूटनीति’ सबसे बढ़िया विकल्प है.

शीर्ष पर जमे रहने की क़वायद

चीन लंबे समय से ओलंपिक खेलों पर अपनी पकड़ बनाये हुए है- और इस तरह अपनी स्पोर्ट क्षमता से वह सॉफ्ट पॉवर की अपनी एक पहचान बनाने के क़रीब है. इसमें, चीन ने बहुत कुछ विभिन्न देशों के अतीत के अनुभवों से सीखा है, जैसे 1936 के बर्लिन ओलंपिक को हिटलर के आर्य नस्ल की श्रेष्ठता के सिद्धांत को उभारने के हथियार में बदल देने की कुख्यात घटना, और 1964 का टोक्यो ओलंपिक जिसमें जापान ने दुनिया को अपनी तकनीक से चकित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध की छाया को पीछे छोड़ तरक्की की नयी राह पकड़ने का एहसास कराया. वर्तमान चीन हर ओलंपिक में पदक तालिका में सबसे ऊपर के देशों में रहता है, और ओलंपिक में अपनी शान के लिए कम उम्र से ही (पेंग शुआई जैसी) एथलीटों को प्रशिक्षित करना उसकी इस सफलता का एक महत्वपूर्ण घटक रहा है. उसने 2008 के ग्रीष्म ओलंपिक की मेज़बानी भी की, जिसका शुभारंभ चीनी इतिहास और संस्कृति तथा दुनिया से जुड़ने की उसकी ख्वाहिश को प्रदर्शित करनेवाले एक समारोह के साथ हुआ. कई विशेषज्ञ यह कह चुके हैं- अगर 2008 का बीजिंग ओलंपिक इस बात का ऐलान था कि चीन कारोबार के लिए खुल चुका है, तो चीन द्वारा उसी शहर में शीतकालीन ओलंपिक का आयोजन (ऐसा इतिहास में पहल बार हो रहा है) इस बात की दावेदारी है कि वह यहां जमे रहने के लिए है. इस कार्यक्रम में 80 से ज्यादा राष्ट्राध्यक्षों और इसके अलावा भी वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी, चीन के लिए एक ऐसी छवि होगी जिसे भीतर और बाहर दोनों जगह चीनी राज्य की वैधता को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

भारत-चीन रिश्तों का एक साल मुश्किलों से भरा रहा, इसके बावजूद यह उम्मीद नहीं है कि भारत इन खेलों का राजनयिक रूप से बहिष्कार करेगा. 

लेकिन यह खेलों और चीन की छवि के लिए समग्र रूप में किस तरह सामने आयेगा? 2018 के प्योंगचांग ओलंपिक (शीतकालीन) की ख़ासियत रही कि दक्षिण कोरिया और उसके पड़ोसी उत्तर कोरिया के बीच राजनयिक संलग्नता देखने को मिली. उद्घाटन समारोह में दोनों देश एक झंडे (कोरियाई एकीकरण ध्वज) के तले क़दम से क़दम मिलाकर चले और एक खेल में एक देश की तरह शामिल हुए. प्रेसिडियम (Presidium) के अध्यक्ष व असल मायने में प्रमुख किम योंग-नाम और किम यो-जोंग (किम जोंग-उन की बहन) समेत वरिष्ठ उत्तर कोरियाई अधिकारियों का दक्षिण कोरिया में प्रतिनिधित्व दोनों देशों के इतिहास में एक उल्लेखनीय घटना थी. सॉफ्ट पॉवर के दृष्टिकोण से बात करें तो, ओलंपिक खेल-भावना में संलग्न होने के लिए परोक्ष शिखर सम्मेलन बन जाते हैं. चूंकि इसमें किसी हल के लिए कोई दबाव नहीं होता, और लोगों की नज़रें राजनीतिज्ञों पर नहीं होतीं, यह अक्सर संवाद और आपसी संलग्नता का एक मंच बन जाता है. यहां तक कि टकराव के दौर में भी ओलंपिक का मतलब होता है शांति-काल. ओलंपिक के उद्घाटन समारोह से एक हफ्ते पहले से लेकर समापन समारोह के एक हफ्ते बाद तक के लिए एक औपचारिक युद्धविराम का आह्वान किया जाता है.

सॉफ्ट पॉवर के दृष्टिकोण से बात करें तो, ओलंपिक खेल-भावना में संलग्न होने के लिए परोक्ष शिखर सम्मेलन बन जाते हैं. चूंकि इसमें किसी हल के लिए कोई दबाव नहीं होता, और लोगों की नज़रें राजनीतिज्ञों पर नहीं होतीं, यह अक्सर संवाद और आपसी संलग्नता का एक मंच बन जाता है. 

लेकिन क्या अमेरिकी प्रेस सचिव की घोषणा को भी खेल भावना के साथ लिया जा रहा है? अमेरिकी घोषणा से पहले, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा, ‘कोई आमंत्रण मिले बिना ही, अमेरिकी राजनीतिज्ञ बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के तथाकथित राजनयिक बहिष्कार का तूमार बांध रहे हैं. यह पूरी तरह से ख़याली पुलाव और तमाशेबाज़ी है.’ वहीं अमेरिकी घोषणा के बाद उन्होंने कहा कि अमेरिका इसकी ‘क़ीमत चुकायेगा’. आईओसी इस मामले में सामने आया है और उसने अमेरिकी बहिष्कार को यह कहते हुए स्वीकार किया है कि, ‘सरकारी अधिकारियों और राजनयिकों की उपस्थिति हर सरकार के लिए शुद्ध रूप से राजनीतिक फ़ैसला है, जिसका आईओसी अपनी पूरी राजनीतिक तटस्थता के साथ सम्मान करती है.’

2022 ओलंपिक के सॉफ्ट पॉवर खेलों का विजेता कौन होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कितने देश इन ओलंपिक खेलों का बहिष्कार करते हैं, उनके बहिष्कार में कितनी तीव्रता है. अगर बहिष्कार करनेवाले देश अल्पसंख्या में रहते हैं, तो यह चीन के फ़ायदे में जायेगा और एक वैश्विक जनाधार बनाने की उसकी कोशिशों में मददगार होगा.

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