Author : Kanchan Gupta

Published on May 27, 2019 Updated 0 Hours ago

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का विस्तृत संदेश जिस रफ़्तार से आया वो उसे अलग माहौल बनाता है, यह संयमित लेकिन स्नेह भरा संदेश था.

2019 का फ़ैसला: मोदी जी अब भारत के मोदी Xi हैं

भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लोकसभा चुनावों में शानदार और ऐतिहासिक जीत हासिल की है. 2014 के नतीजों से आगे बढ़ते हुए बीजेपी ने बड़ी कामयाबी का परचम लहराया है और पूरे देश में पार्टी के वोट शेयर में ज़बरदस्त उछाल से बीजेपी ने बड़े ही आराम से बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया. इसका मतलब है कि बीजेपी को अपनी अगुवाई वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी एनडीए में अपने सहयोगियों पर आश्रित नहीं होना होगा. 1984 के बाद यह लगातार दूसरा चुनाव है जिसमें किसी एक पार्टी को निर्णायक जनादेश मिला है. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस बड़ी मुश्किल से 2014 के नतीजों से कुछ ही आगे बढ़ पाई है और कट्टर विरोधी प्रतीत हो रही पार्टियां (जैसे कि चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई वाली टीडीपी) पूरी तरह साफ़ हो गई हैं या बुरी तरह लड़खड़ाई पार्टियों (जैसे कि ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल) के साथ बीजेपी नई लोकसभा में हावी रहेगी.

लेकिन यह मात्र तकनीकी विवरण है. इस चुनाव के असली विजेता नरेंद्र मोदी हैं — 2014 की तरह इस साल भी बीजेपी एक ऐसे शख़्स के समर्थन के सुनामी की लहर के साथ जीत तक पहुंच गई जिसकी लोकप्रियता उस समय में जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की लोकप्रियता से मेल खाती है. पिछली एनडीए-2 सरकार की अगुवाई करने वाले ताक़तवर शख़्स मोदी अब और भी मज़बूत बनकर उभरे हैं. निर्विवाद अधिकारों और बेमिसाल शक्ति के साथ पीएम मोदी एनडीए-3 सरकार में एक निर्विवाद नेता की तरह हावी रहेंगे. न सिर्फ़ सरकार पर उनका नियंत्रण होगा बल्कि पार्टी की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर होगी; बीजेपी का वैचारिक स्रोत, संघ जानता है कि इसके पास लंबी रेस का विजेता है और वो उसे अपने वश में, अपने अधीन करने के लिए कुछ नहीं करेगी.

इस चुनाव में जिस किसी ने भी बीजेपी के लिए वोट किया है वो बिना किसी हिचक के कहेगा कि उसने मोदी के लिए वोट किया. उसी तरह बीजेपी काडर और स्वयंसेवकों (वॉलंटियर्स) की बड़ी फ़ौज भी आपसे यही कहेगी कि उन्होंने मोदी को दोबारा सत्ता में लाने के लिए कड़ी मेहनत की — 2014 का स्लोगन, ‘अबकी बार मोदी सरकार,’ इस बार बदल कर ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ कर दिया गया था, ताक़ि इस हक़ीक़त को बार-बार दोहराया जा सके. आने वाले दिनों में जब नई सरकार का गठन होगा, तब बड़े पैमाने पर यह पुराने कार्यकाल का विस्तार होगा, लेकिन एक अंतर के साथ कि एक साल या यहां तक कि एक महीने पहले की तुलना में मोदी ज़्यादा ताक़तवर होंगे जैसे कि रूस में व्लादिमीर पुतिन और चीन में शी जिनपिंग का वर्चस्व है.

यह सुनने में घिसा-पिटा लग सकता है, लेकिन यह सच है कि इस ताक़त के साथ ज़िम्मेदारियां भी बढ़ेंगी. अगर 2014 में लोगों की उम्मीदें बड़ी थीं तो 2019 में उम्मीदों का भार बहुत ज़्यादा है. लोग उम्मीद कर रहे हैं कि मोदी सरकार 2.0 तेज़ी, स्पष्टता और पारदर्शिता के साथ काम करे. पुलवामा आतंकी हमले और उसके जवाब में आतंक प्रायोजित पाकिस्तान को घुटनों पर लाने के लिए की गई कार्रवाई के बाद उपजे राष्ट्रवाद के माहौल ने 2014 में किए गए वादों पर उस हद तक खरा न उतरने को लेकर मोदी के ख़िलाफ़ बनने वाले माहौल को दबा दिया. उस उत्साह (राष्ट्रवाद) का समय के साथ ख़त्म हो जाना निश्चित है. ऐसे में मोदी की चुनौती यह है कि वो अपनी लोकप्रियता को कम न होने दें.

अपनी लोकप्रियता बरकरार रखने के लिए मोदी को फिर से काम पर लगना होगा और शासन के इंजन को फिर से शुरू करना होगा जो कि चुनावी व्यस्तता की वजह से पिछले तीन महीने या उससे भी ज़्यादा समय से लगभग बंद है. पिछले पांच सालों के संतुलन को बिगाड़े बिना उन्हें एक नई टीम को साथ लाना होगा. उन्हें एक एजेंडा तय करना होगा और तुरंत प्रभाव से उस पर मज़बूती से अमल करना होगा. संक्षेप में, उस एजेंडे में चार चीज़ें होंगी –

  1. अर्थव्यवस्था में तेज़ी कैसे लाई जाए;
  2. नौकरियों से परिवर्तन कैसे हो, क्योंकि हम उन्हें भविष्य के रोज़गार अवसरों की तरह देखते हैं;
  3. कृषि क्षेत्र में बेचैनी/असंतोष से कैसे निपटें;
  4. विपरीत/शत्रुतापूर्ण पश्चिमी पड़ोस में जहां अनिश्चितता के काले बादल मंडराते रहते हैं, वहां भारत की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए. नाटकीय तौर पर पाकिस्तान तक पहुंच, जैसा कि हमने मोदी के पहले कार्यकाल में देखा था, वो विकल्प नहीं है. और न ही भारत के नंबर-1 दुश्मन को हतोत्साहित करना और पूरी तरह ख़ारिज करना ही विकल्प है.

मध्यम अवधि में आर्टिकल 35- A को ख़त्म करने, पश्चिम बंगाल से शुरू कर पूरे देश में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स को अपडेट करने और नागरिक संशोधन बिल को पास कराने के वादे पर अमल करना होगा. इसके अलावा बैंकिंग सेक्टर में लोगों की परेशानियों को सुलझाने, निवेश को सुरक्षित बनाने, इंफ़्रास्ट्रक्चर निर्माण में तेज़ी लाने पर ध्यान देना होगा. इसके साथ केंद्र और राज्यों के संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए एक बेहतर तंत्र विकसित करना होगा, क्योंकि संघीय ढांचे की ग़ैर मौजूदगी में राज्यों और केंद्र के रिश्तों को बहुत झेलना पड़ा है. सूची लंबी है; समस्याओं को एक-एक कर चुन-चुन उठाना होगा बजाय इसके कि सभी को एक ही बार साधने की कोशिश हो, जैसा कि उन्होंने पिछले पांच सालों में किया था.

यह याद रखना होगा कि संसदीय चुनाव के बाद अब हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र, जम्म-कश्मीर और दिल्ली जैसे राजनीतिक रूप से बेहद अहम राज्यों में विधानसभा चुनावों की बारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले तीन से चार महीनों में जो भी काम करेंगे, उसका असर इन राज्यों के चुनावी नतीजों पर होगा, जहां अलग-अलग पैमाने पर और कई वजहों से सत्ता विरोधी लहर (एंटी इन्कम्बेंसी) खड़ी हो गई है. मोदी फ़ैक्टर उन भावनाओं को दूर करने और उनसे ऊपर उठने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है.

संसदीय चुनाव के नतीजों के औपचारिक ऐलान से पहले ही दुनिया भर के नेताओं में नरेंद्र मोदी को ऐतिहासिक जीत की बधाई देने की होड़ लग गई. इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू हिंदी में बधाई संदेश ट्वीट कर इस भीड़ से अलग दिखे. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का विस्तृत संदेश जिस रफ़्तार से आया वो उसे अलग माहौल बनाता है, यह संयमित लेकिन स्नेह भरा संदेश था. यह संदेश ऐसे समय में आया जब शिनपिंग ने अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों और धीमी अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से उबरने के लिए ‘लॉन्ग मार्च’ का आह्वान किया है.

निर्विवाद रूप से चीन के सबसे शक्तिशाली नेता शी जिनपिंग जो कि निकट भविष्य में भी बने रहेंगे, उनके पास सुलझाने के लिए अपनी ख़ुद की समस्याएं हैं. जीत का नया ताज पहननेवाले मोदी निर्विवाद रूप से भारत के सबसे ताक़तवर नेता हैं और निकट भविष्य में बने रहने के लिए तैयार हैं (उनके आलोचकों और विरोधियों को 2024 चुनाव जीतने की अपनी उम्मीदों पर पानी नहीं फेरना चाहिए) और उनके पास सुलझाने के लिए अपनी तरह की समस्याएं हैं. इस बात की पूरी उम्मीद है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मोदी के डिप्टी के तौर पर मंत्रिमंडल में शामिल होंगे जिससे नरेंद्र मोदी उन समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए ख़ुद को ज़्यादा समय तक समर्पित कर पाएंगे और वादों को पूरा करने/डिलिवरी के लिए अपना ख़ुद का ‘लॉन्ग मार्च’ तैयार करेंगे, जिसे कम से कम 23 मई के नतीजों की तरह शानदार होना चाहिए.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.