विदेश नीति, घरेलू राजनीति और सांस्कृतिक टकरावों से लेकर आर्थिक विकास, कंपनियों और पहले से चली आ रही व्यवस्था में व्यवधान डालने वाले आइडिया तक की दृष्टि से 2018 एक रोमांचक वर्ष साबित होगा। वैसे तो हर देश में अपने स्वयं के ही अनगिनत अवसर और चुनौतियां होंगी, लेकिन इस साल भारत में समाचारों की सुर्खियों में निम्नलिखित 10 विषय छाए रहेंगे। बेशक, न तो राष्ट्र और न ही उनके राजनेता और इसके परिणामस्वरूप सुर्खियां ही पूर्वानुमानों के अनुसार बनाई जाती हैं। इससे भी बदतर बात यह है कि राजनीति एवं प्रौद्योगिकी से लेकर समाज और व्यवसाय तक के सभी क्षेत्रों में निरंतर नजर आ रहे व्यवधान के इस दौर में कोई भी ऐसी एकल विशेष बात नहीं है जिसके बारे में हम उम्मीद कर सकते हैं कि हमारे राजनेता उसके पीछे-पीछे भागेंगे। यह माना जा रहा है कि निम्नलिखित 10 ऐसी समाचार सुर्खियां हैं जिनके गवाह हम 2018 में पूरे साल रहेंगे।
चीन
चीन आगे भी भारत का सबसे बड़ा विरोधी या वैरी बना रहेगा। पाकिस्तान का समर्थन करके 11.2 लाख करोड़ (ट्रिलियन) अमेरिकी डॉलर की यह अर्थव्यवस्था आगे भी एक ऐसे देश के रूप में अपनी छवि बनाए रखेगी जो अपने शक्तिशाली विनिर्माण क्षेत्र की बदौलत भारत के बाजारों में अपनी व्यापक मौजूदगी दर्ज करने के बावजूद आतंकवाद को हवा देता है। वैसे तो चीन भी भारी अपमान झेलने के बाद ही एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर उभरा है, लेकिन पारस्परिक सम्मान पर आधारित पथ को तैयार करने के बजाय उसकी विदेशी नीति में अब भी यही चलन है कि अपने आगमन को महसूस कराने के लिए दूसरे देशों को खुलकर अपमानित करो। दरअसल, चीन यह भूल गया है कि वैसे तो पूरी दुनिया ने वर्ष 1978 से ही इसका निरंतर स्वागत किया और इसके विकास को सुनिश्चित किया, लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब वह स्वागत अप्रिय हो जाता है। पाकिस्तान का खुलकर समर्थन करने से लेकर डोकलाम का बदला लेने के लिए चीन 2018 में पूरे साल भारत को बेचैन रखेगा। चीन एक धमकाने वाला देश है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे अच्छी बात यह होगी कि वह अनेक पद संभाल रहे शी जिनपिंग की आंखों में आंखें डालकर बात किया करें। उत्तर कोरिया के किम जोंग-उन की भांति ही शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति हैं, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव हैं, केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष हैं, ‘सर्वोच्च नेता’ हैं और ‘सबसे महत्वपूर्ण’ नेता हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका
संयुक्त राज्य अमेरिका के नजरिए या ठोस कदमों के बारे में पूर्वानुमान लगाना आगे भी संभव नहीं होगा। आतंकवाद पर पाकिस्तान के दिखावे का उल्लेख करने से ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आखिरकार इस सच्चाई को स्वीकार करने लगे हैं कि पाकिस्तान एक दुष्ट या कपटी देश है। पाकिस्तान जिस शासन व्यवस्था को ‘लोकतंत्र’ कहने का दिखावा करता है उसके दूसरे स्तंभ के रूप में उसने आतंक को संस्थागत स्वरूप प्रदान कर दिया है, जबकि पहला स्तंभ सैन्य है। यह विश्व भर के लिए अच्छा दिखावा है जिसे आतंक के इस केंद्र के कारण बहुत नुकसान उठाना पड़ा है। जहां तक भारत का सवाल है, हमें और भी अधिक सतर्क रहना चाहिए क्योंकि दिखावे के झांसे में आना अदूरदर्शिता साबित हो सकता है। 18.6 लाख करोड़ (ट्रिलियन) अमेरिकी डॉलर की यह अर्थव्यवस्था अपनी विदेश नीति को लेकर पूरी तरह स्पष्ट है, जिसके जरिए अमेरिकी हितों का समुचित ख्याल रखना है। पिछले कई दशकों से भारतीय विदेश नीति का फोकस अच्छा दिखने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का ‘अच्छा लड़का यानी सबका हिमायती’ साबित होने पर रहा है। हालांकि, विदेश नीति एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें कोई प्रथम सिद्धांत नहीं होता है क्योंकि इसमें संबंधित देश का रुख या नजरिया बदलता रहता है। यह माना जा रहा है कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक दशक पुराने ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ के पुनर्जन्म के लिए अमेरिका के साथ सामरिक हाथ मिलाना एक सकारात्मक कदम है। अंत में, यह कहना श्रेयस्कर होगा कि आर्थिक मोर्चे पर और ज्यादा सुदृढ़ भारत-अमेरिका संबंधों से गहरी दोस्ती का मार्ग प्रशस्त होगा।
जापान
जापान भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत डोर में बांध रहा है। संभवत: चीन की सीधी आक्रामकता से घबराने और अपने अन्य दोस्त उत्तर कोरिया को इस देश से मिल रहे समर्थन को देखते हुए ही इस द्वीप राष्ट्र का झुकाव भारत की ओर हो रहा है। वैश्विक स्तर पर इसे अमेरिका का समर्थन हासिल है। भारत के साथ सामरिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करके 4.8 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की इस अर्थव्यवस्था, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है, ने अब एक क्षेत्रीय शक्ति का अतिरिक्त समर्थन प्राप्त कर लिया है। भारत-जापान असैन्य परमाणु समझौते के तहत विद्युत उत्पादन के लिए छह नए परमाणु रिएक्टरों का निर्माण किया जाएगा। एशिया-अफ्रीका विकास कॉरिडोर भी एक संयुक्त आर्थिक बुनियादी ढांचा बनाने और इसके जरिए बाजारों के लिए असीम संभावनाएं रख सकता है। उधर, तमाम तरह की आलोचनाओं के बावजूद मोदी मुंबई-अहमदाबाद बुलेट-ट्रेन के लिए अडिग हैं। इससे साफ जाहिर है कि जापान अपने पैसे वहां लगा रहा है जहां उसके अपने रणनीतिक हित हैं और इसके जरिए वह भारत-जापान संबंधों को प्रगाढ़ कर रहा है। वहीं, अपनी ओर से भारत जापान के साथ व्यवसाय के लिए खुली सोच रखता है। जापान के साथ भारत के आर्थिक हितों का आगाज सुजुकी के साथ हुआ। आपसी मेलजोल के तहत वे अब एकल-सौदा वाली व्यवस्थाओं से परे जाने को बेताब हैं।
भारत-जापान असैन्य परमाणु समझौते के तहत विद्युत उत्पादन के लिए छह नए परमाणु रिएक्टरों का निर्माण किया जाएगा। एशिया-अफ्रीका विकास कॉरिडोर भी एक संयुक्त आर्थिक बुनियादी ढांचा बनाने और इसके जरिए बाजारों के लिए असीम संभावनाएं रख सकता है।
पाकिस्तान
पाकिस्तान और आतंकवादियों का पालन-पोषण करने वाले देश के रूप में अपने अध: पतन या अपकर्ष के चलते वह वर्ष 2018 में भी ‘बदनाम’ ही रहेगा, क्योंकि इस दौरान वह अपनी सारी ऊर्जाएं मुख्यत: कश्मीर में और इसके साथ ही अफगानिस्तान एवं अन्य सभ्य राष्ट्रों में भी समान रूप से आतंक पैदा करने में झोंक देगा। वर्ष 2017 में भारत ने इसे अलग-थलग करके शानदार राजनयिक जीत हासिल की। इससे पहले, सर्जिकल स्ट्राइक कर इस देश को एक सैन्य संदेश से भलीभांति अवगत करा दिया गया था। आर्थिक दृष्टि से भारत-पाकिस्तान व्यापार फिलहाल 2.2 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर विराजमान है, जो वर्ष 2013-14 में हुए 2.7 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार से कम है। अगर अंतत: इस रिश्ते पर विराम लग जाता है, तो भारत का ध्यान इस ओर कतई नहीं जाएगा। वर्ष 2018 में पाकिस्तान के विश्व भर में और भी ज्यादा अलग-थलग पड़ जाने की प्रबल संभावना है क्योंकि पश्चिम एवं पूरब के सभ्य राष्ट्रों की ओर से इसकी नीतियों की निरंतर कड़ी निंदा की जा रही है। इसके परिणामस्वरूप इस्लामी सहयोग संगठन के इस्लामिक देशों को छोड़ अन्य सभी राष्ट्र इसे और भी ज्यादा अलग-थलग कर देंगे। हालांकि, इसके बावजूद पाकिस्तान अपने नापाक इरादों से कतई बाज नहीं आएगा और भारत के सुरक्षा कर्मियों को चैन से रहने नहीं देगा। वहीं, दूसरी ओर भारत में हम मित्रता और युद्ध दोनों से ही जुड़ी चर्चाएं सुनते रहेंगे। जहां एक ओर युद्ध करने पर विशेष जोर देने वाले लोग ‘परमाणु’ विकल्पों के उपयोग के अंदेशे से अंतत: शांत पड़ जाएंगे, वहीं दूसरी ओर शांति के मार्ग का अनुसरण करने पर जोर देने वाले लोगों के हौसले पाकिस्तान की ओर से होने वाली घुसपैठ और हमलों के कारण पस्त हो जाएंगे। सरकार वैसे तो राजनीतिक और कूटनीतिक सहभागिता की हल्की गुंजाइश को आगे भी टटोलती रहेगी, लेकिन इसके बावजूद वह हमला करने से पीछे नहीं हटेगी। वर्ष 2018 में पाकिस्तान बयानबाजी पर ध्यान देगा, लेकिन आगे चलकर इस देश की अहमियत कम हो जाएगी।
बजट 2018
बजट 2018 को बड़ी उम्मीदों के साथ पेश किया जाएगा, लेकिन हमेशा की तरह यह सामान्य ही साबित होगा। ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि गुजरात में हुए हालिया चुनाव में मामूली अंतर के साथ जीत हासिल होने के मद्देनजर एनडीए सरकार किसानों के लिए कुछ और अधिक रियायतों की घोषणा कर सकती है। इसकी संभावनाएं प्रबल हैं। हालांकि, आर्थिक पावदान (पेडल) पर दबाव निश्चित तौर पर कम नहीं होगा। यह सरकार आर्थिक विकास को लेकर काफी गंभीर है जिसका एक हिस्सा किसान भी हैं और उनकी आय दोगुनी करने का वादा उनसे पहले ही किया जा चुका है। उधर, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने से लेकर दिवाला एवं दिवालियापन संहिता को लागू किए जाने और ‘कारोबार में सुगमता सूचकांक’ में भारत की रैंकिंग बढ़ाने के जरिए सरकार ने विकास के लिए उत्प्रेरकों को सृजित करने का दुष्कर कार्य किया है। यह सिलसिला बजट 2018 के जरिए भी जारी रहेगा। हालांकि, एक मीडिया आयोजन या बड़ी-बड़ी नीतिगत घोषणाएं करने वाले एक दस्तावेज के रूप में बजट का समय अब हमारे पीछे रह गया है। आयकर दरों में बदलाव की उम्मीद मत करें। संभवत: एकमात्र परिवर्तन यह होगा कि आय स्लैब बढ़ा दिए जाएंगे, जिन पर टैक्स लगाया जाएगा। बजट 2018 में बड़ी चिंता का विषय बढ़ता राजकोषीय घाटा होगा जिसके लक्ष्य से अधिक रहने की प्रबल संभावनाएं हैं।
आर्थिक विकास
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही से आर्थिक विकास की वापसी 31 मार्च 2018 को समाप्त होने वाली तिमाही में होगी और यह सिलसिला अगली कुछ तिमाहियों के दौरान निरंतर जारी रहेगा। 1 जुलाई 2017 से जीएसटी को लागू करने की बदौलत ही यह संभव होगा। शुरुआती तकनीकी खामियों एवं झटकों, छोटे एवं मझोले उद्यमियों पर अत्यधिक अनुपालन बोझ और इसकी दरों को लेकर राज्यों के वित्त मंत्रियों एवं केंद्र के बीच राजनीतिक खींचतान के बाद जीएसटी के अब उच्च राजस्व सृजन का एक स्थिर स्रोत बन जाने के आसार हैं। अगले वित्त वर्ष के दौरान अप्रत्यक्ष कर संग्रह में तेज वृद्धि देखने को मिलेगी, जिसके फलों से केंद्र और राज्य दोनों की ही झोलियां भर जाएंगी। दिवाला और उनके समाधान की खबरें भी 2018 में पूरे साल सुर्खियां बनेंगी। दरअसल, विफल या दिवालिया हो रहे व्यवसायों का समुचित प्रबंधन आर्थिक विकास के लिए उतना ही मायने रखता है जितना कि किसी व्यवसाय का निर्माण करना। वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक पारित हो जाएगा और विफल होने वाली वित्तीय कंपनियों के लिए आखिरकार एक प्रणाली अवश्य ही वजूद में आ जाएगी। इस तरह की सकारात्मक खबरों पर सवार होकर शेयर बाजार 2018 में पूरे साल तेज फर्राटा भरता रहेगा।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही से आर्थिक विकास की वापसी 31 मार्च 2018 को समाप्त होने वाली तिमाही में होगी और यह सिलसिला अगली कुछ तिमाहियों के दौरान निरंतर जारी रहेगा।
चुनाव
विभिन्न राज्यों में होने वाले चुनाव भी 2018 में पूरे साल सुर्खियों में रहेंगे क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। वैसे तो 223 सीटों के साथ कर्नाटक ही एकमात्र बड़ा राज्य है, जहां अप्रैल-मई 2018 में विधानसभा चुनाव होंगे, लेकिन इसके साथ ही चार छोटे राज्यों में भी वर्ष 2018 के दौरान चुनाव होंगे। 2018 का बजट पेश किए जाने के तुरंत बाद ही तीन राज्यों यथा मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में फरवरी-मार्च 2018 के दौरान चुनाव होंगे। वैसे तो 60-60 सीटों के साथ ये तीनों ही अपेक्षाकृत छोटे राज्य हैं, लेकिन इन राज्यों में चुनाव होने से कर्नाटक के लिए राजनीतिक बहस का माहौल गर्मा जाएगा जहां अप्रैल-मई 2018 में विधानसभा चुनाव होंगे। साल की समाप्ति पर एक और छोटे राज्य मिजोरम में 40 सीटों के लिए अक्टूबर-नवंबर 2018 में चुनाव होंगे। हालांकि, इन राज्यों में चुनाव होने के साथ ही राजनीतिक बहस का दौर समाप्त नहीं हो जाएगा। कारण यह है कि वर्ष 2019 में आम चुनावों के अलावा भारत में 11 राज्यों में चुनाव होंगे और वर्ष 2018 में इन पांचों राज्यों के चुनावी नतीजों के आधार पर विश्लेषक न केवल मोदी और राहुल गांधी, बल्कि राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के बारे में भी अपने-अपने अनुमान व्यक्त करेंगे। राहुल गांधी और कांग्रेस की वापसी भी 2018 में पूरे साल सुर्खियों में रहेगी।
कंपनियां
तीन कंपनियां यथा एयर इंडिया, जियो और एपल वर्ष 2018 में भी सुर्खियों में बनी रहेंगी। एयर इंडिया संभावित विनिवेश और/या रणनीतिक बिक्री के कारण चर्चाओं में रहेगी। इसके खिलाफ हंगामा इस कंपनी में कार्यरत कर्मचारियों, विशेष रूप से मोटी तनख्वाह पाने वाले पायलटों द्वारा किया जाएगा, जिन्हें आगे चलकर वामदलों और कांग्रेस से राजनीतिक समर्थन हासिल हो जाएगा। इसको लेकर इन राजनीतिक दलों की ओर से ज्यादातर समर्थन ‘सिद्धांतों पर आधारित रुख’ के बजाय उनके ‘विरोध-धर्म या विपक्ष-धर्म’ का हिस्सा होगा। उधर, रिलायंस जियो अपनी उच्च गुणवत्ता वाली डेटा सेवा और सस्ती दरों (टैरिफ) की बदौलत आगे भी चर्चाओं में बनी रहेगी। उपभोक्ताओं ने इसे पूरे दिल से अपना लिया है और भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा डेटा उपभोक्ता है। जियो के साथ-साथ इसके द्वारा पूरे उद्योग में लाए गए व्यापक परिवर्तन भारतीय अर्थव्यवस्था और उसके आर्थिक एजेंटों या निस्र्पकों के कामकाज के तौर-तरीकों को एकदम से बदल कर रख देंगे। (प्रकटीकरण या डिस्क्लोजर: लेखक दिसंबर 2016 तक रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड में एक उपाध्यक्ष थे)। अंत में, एपल आगे भी कानूनी तौर पर और उपभोक्ताओं के मोर्चे पर दबाव में रहेगी, क्योंकि इसके धीमे पड़ते आईफोन को मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है (अंतिम गणना में कुल नौ मुकदमे हो चुके थे) और कंपनी की प्रतिष्ठा पर भी आंच आई है। यह दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी और एक समय दुनिया की पहली ट्रिलियन-डॉलर कंपनी बनने की ओर अग्रसर होने वाली एपल के लिए एक कठिन वर्ष साबित होगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और रोबोटिक्स से संबंधित खबरों को भारत में काफी हद तक अंदर के पन्नों तक ही सीमित रखा गया है, जबकि पूरी दुनिया इस मामले में काफी आगे चल रही है। यह स्थिति वर्ष 2018 में अवश्य ही बदल जाएगी। अमेरिका, चीन और रूस पहले से ही एआई से जुड़ी क्षमताओं एवं केंद्रों का निर्माण कर रहे हैं, ताकि इस क्षेत्र में वे विश्व भर में अग्रणी बन सकें। इन तीनों ही देशों के लिए एआई एक रणनीतिक हथियार है। अफसोस की बात यह है कि भारत में इस दिशा में अभी चर्चाएं तक भी शुरू नहीं हुई हैं। हालांकि, वर्ष 2018 में भारत को अपनी एआई सुविधाओं की स्थापना पर काम अवश्य ही शुरू कर देना होगा। इसका आगाज विभिन्न कंपनियों के जरिए होगा, लेकिन आगे चलकर यह सरकार में भी अपनी पैठ बना लेगी। इसके लिए भारत को एक ऐसा परितंत्र विकसित करने की जरूरत है जो प्रतिभा और नवाचार को खुलकर प्रोत्साहित करे, क्योंकि अच्छे इरादों के बावजूद देश में इसका सख्त अभाव देखा जा रहा है। हालांकि, यह परिवर्तन व्यापक प्रोत्साहन के बिना संभव नहीं होगा क्योंकि व्यापक विचार-विमर्श के दौरान यह दलील पेश की जाती रही है कि एआई दरअसल नौकरियों का स्थान ले रही है। रोबोट ने पहले से ही विनिर्माण संयंत्रों में अपना प्रवेश सुनिश्चित कर लिया है। इसकी संख्या वर्ष 2018 में और ज्यादा बढ़ जाएगी। इस मामले में समय ही कुंजी या बलवान है क्योंकि यदि हमने उचित समय पर इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया तो हमें अंतत: रक्षा उपकरणों की भांति ही इन प्रौद्योगिकियों का भी आयात अमेरिका और रूस से करना पड़ेगा। एआई और रोबोटों के राजनीतिक असर को इन विघटनकारी प्रौद्योगिकियों से जुड़ी स्मार्ट नीतियों के जरिए आवश्यक सहारा देने की जरूरत है। हालांकि, इस मोर्चे पर भारत अकेला नहीं होगा क्योंकि यह एक वैश्विक समस्या है। यह माना जा रहा है कि वर्ष 2018 के दौरान भारत में रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) दोनों ही सुर्खियों में रहेंगी।
टकराव
विभिन्न संस्कृतियों का आपसी टकराव वर्ष 2018 में और ज्यादा बढ़ जाएगा। सोशल मीडिया विभिन्न समुदायों, धर्मों, आर्थिक सिद्धांतों, राजनीतिक रुख, सामाजिक विकल्पों के बीच कायम दृष्टिकोण को अडि़यल या कठोर बना देगा। वर्ष 2017 में ‘घुमावदार उतार-चढ़ाव (स्पिन)’ का काफी चलन रहा यानी किसी भी घटना या समाचार को तब तक इतना ज्यादा तोड़ा-मरोड़ा गया जब तक कि वह पूर्व निर्धारित माहौल या बयानबाजी में तब्दील नहीं हो जाए। वर्ष 2018 में यह चलन कई गुना और ज्यादा जोर पकड़ लेगा। आगामी आम चुनावों को देखते हुए यह टकराव और इसे जानबूझकर हवा देने का सिलसिला वर्ष 2019 में भी जारी रहेगा। अत: विडंबना की बात यह है कि विशेष रूप से शिक्षित लोगों की ओर से सोशल मीडिया पर और ज्यादा असंवेदनशील व्यवहार किए जाने का अंदेशा है। हालांकि, इस तरह का दुर्व्यवहार जब परिचर्चाओं की सीमाओं को पार कर लेता है और विभिन्न क्षेत्रों में हिंसक रूप अख्तियार कर लेता है तो वैसे में राष्ट्रीय चेतना पर प्रहार होता है। राज्य सरकारों को कानून के शासन को लागू करने के मामले में अतिरिक्त रूप से सतर्क और बेरहम होना चाहिए क्योंकि हर हमला सरकार की कमजोर क्षमता को जगजाहिर कर देगा। इसी तरह हिंसा के ऐसे प्रत्येक उदाहरण से इस समस्या को सुलझाने के मामले में सरकार का कमजोर इरादा जगजाहिर हो जाएगा जिसमें गुनहगार को दंडित नहीं किया जाएगा। इन सभी के चलते टकराव से जुड़े मामले अक्सर समाचारों की सुर्खियों में बने रहेंगे।
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