Published on Dec 08, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत-रूस संबंध रूस संबंध अतीत की नहीं, बल्कि वर्तमान भू-राजनीतिक अनिवार्यता है. यह रिश्ता व्यावहारिकता पर आधारित है. 

‘चुनौतियों के बावजूद मज़बूत होते भारत-रूस संबंध’

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा भले ही अत्यन्त संक्षिप्त रही हो, लेकिन उसकी राजनयिनक एवं राजनीतिक अहमियत कहीं ज्यादा रही. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ वार्ता के दौरान जब पुतिन ने भारत को एक ‘महान शक्ति’ एवं ‘समय की कसौटी पर खरा दोस्त’ कहा तो सबको पचास साल पहले बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में सोवियत संघ की अप्रत्यक्ष भूमिका का अवश्य स्मरण हुआ होगा. कोविड महामारी की शुरुआत के बाद से व्यक्तिगत रूप से द्विपक्षीय बैठक के लिए पुतिन की यह पहली विदेश यात्रा थी. इस दौरान भारत और रूस के बीच कई समझौते हुए और कई मुद्दों पर सहमति बनी. रूस-निर्मित एके-203 असॉल्ट राइफलों की आपूर्ति एवं भारत में उत्पादन पर हुए समझौते से रक्षा संबंधों को और बल मिलेगा.

इस दौरान भारत और रूस के बीच कई समझौते हुए और कई मुद्दों पर सहमति बनी. रूस-निर्मित एके-203 असॉल्ट राइफलों की आपूर्ति एवं भारत में उत्पादन पर हुए समझौते से रक्षा संबंधों को और बल मिलेगा. 

रूस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार

इस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों ने पहली बार 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता आयोजित कर अपने रिश्तों में एक नया आयाम जोड़ा. चूंकि वर्तमान में भारत केवल अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता करता है, इसलिए रूस का इस विशेष सूची में शामिल होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत के लिए रूस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है.

 पुतिन यह समझ चुके हैं कि क्वाड का वास्तविक उद्देश्य चीन को साधना है और रूस द्वारा उसका अनुचित विरोध भारत को अमरीका की तरफ धकेल देगा. 

राजनयिक और रक्षा निहितार्थ

तेजी से बदल रहे वैश्विक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में पुतिन-मोदी शिखर वार्ता के अनेक राजनयिक और रक्षा निहितार्थ हैं. बेशक ऐसे मुद्दे अभी ख़त्म नहीं हुए हैं, जहां दोनों देशों के विचारों में भिन्नता है, लेकिन यह किसी भी द्विपक्षीय संबंध की एक सामान्य विशेषता है. अमरीकी प्रतिबंधों के खतरों को नजरअंदाज करने हुए एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम रक्षा सौदे को अमली जामा पहनाना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भारत अपनी विदेश नीति बाहरी दबाव से प्रभावित नहीं होने देता. एक ‘बहुध्रुवीय’ विश्व बनाने के लिए भारत और रूस आज भी प्रतिबद्ध हैं. पुतिन की भारत यात्रा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अनेक संकेत देती है. सबसे महत्त्वपूर्ण तो यह कि नई दिल्ली और मास्को के संबंध आज भी प्रगाढ़ हैं. हालांकि ‘इंडो-पैसिफिक’ और ‘क्वाड’ के उद्भव पर दोनों देश अलग खड़े प्रतीत होते हैं, लेकिन रूस ने भारत के दृष्टिकोण को समझने का निरंतर प्रयास किया है. पुतिन यह समझ चुके हैं कि क्वाड का वास्तविक उद्देश्य चीन को साधना है और रूस द्वारा उसका अनुचित विरोध भारत को अमरीका की तरफ धकेल देगा. विदेश मंत्री एस. जयशंकर तो इंडो-पैसिफिक में रूस को एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित कर ही चुके हैं.

पुतिन इस बात से भी अवगत हैं कि चीन अब अपनी तुलना केवल अमरीका से करने लगा है. इसलिए पुतिन का अंतर्निहित संदेश यह है कि रूस, चीन का जूनियर पार्टनर नहीं है. 

रूस, चीन का जूनियर पार्टनर नहीं

पिछले साल भारत-चीन सीमा संकट के दौरान भी चीन द्वारा कथित तौर पर अपनी नाराजगी व्यक्त करने के बावजूद रूस ने भारत के साथ अपनी रक्षा भागीदारी बंद नहीं की. पुतिन ने भारत-चीन संबंधों में आई कड़वाहट को कम करने का भी प्रयास किया है, लेकिन शी जिनपिंग की हठधर्मिता ने उनके प्रयास विफल किए हैं. पुतिन इस बात से भी अवगत हैं कि चीन अब अपनी तुलना केवल अमरीका से करने लगा है. इसलिए पुतिन का अंतर्निहित संदेश यह है कि रूस, चीन का जूनियर पार्टनर नहीं है. भारत यह बात जानता है कि क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति संतुलन के लिहाज से रूस आज भी महत्त्वपूर्ण है. गौरतलब है कि पिछले माह भारत ने अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता की मेजबानी की थी, जिसमें मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ रूस और ईरान ने भी भागीदारी की थी. शुरुआती दौर में रूस ने तालिबान का काफी राजनयिक समर्थन किया था, लेकिन आश्चर्य नहीं कि रूस अब तालिबान की वापसी से क्षेत्रीय सुरक्षा के भारतीय आकलन के काफी करीब पहुंच गया है. पूर्ववर्ती सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके मध्य एशियाई गणराज्य और रूस अपने इर्द-गिर्द इस्लामिक कट्टरपंथ की वापसी से आशंकित हैं. मोदी और पुतिन दोनो यह बात समझ चुके हैं कि परस्पर सहयोग के बिना अफगानिस्तान में तालिबान को नियंत्रण में रखना असंभव है. भारत भी रूस के बुनियादी हितों के प्रति काफी संवेदनशील रहा है. इसका उदाहरण संयुक्त राष्ट्र में क्रीमिया में मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करने वाले यूक्रेन-प्रायोजित प्रस्ताव के ख़िलाफ भारत के वोट में नजर आया था. अभी रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जैसी परिस्थितियां बन रही हैं. यदि इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ एवं अमरीका रूस के ख़िलाफ कोई कार्रवाई करते हैं, तो रूस यह उम्मीद करेगा कि भारत संयुक्त राष्ट्र सहित अन्य वैश्विक मंचों पर कम से कम उसका विरोध न करे.

मोदी और पुतिन दोनो यह बात समझ चुके हैं कि परस्पर सहयोग के बिना अफगानिस्तान में तालिबान को नियंत्रण में रखना असंभव है. 

महाशक्तियों की राजनीति को नई दिशा देने में भारत की क्षमता अब पहले से बहुत मज़बूत है. भारत का भौगोलिक आकार, अर्थव्यवस्था की गतिशीलता, स्वतंत्र विचारधारा वाली विदेश नीति और लोकतांत्रिक स्वरूप किसी भी देश के लिए चुंबकीय आकर्षण है, जिसकी उपेक्षा रूस नहीं कर सकता. चूंकि भारत, चीन के उत्कर्ष को संतुलित करता है और अमरीका के साथ एक ख़ास रणनीतिक साझेदारी रखता है, तो रूस के साथ स्थिर संबंध में निवेश करना भारत के हित में हैं. भारत-रूस संबंध अतीत की नहीं, बल्कि वर्तमान भू-राजनीतिक अनिवार्यता है. यह रिश्ता व्यावहारिकता पर आधारित है.


यह आर्टिकल मूल रूप से पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है.

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Authors

Harsh V. Pant

Harsh V. Pant

Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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Vinay Kaura

Vinay Kaura

Vinay Kaura PhD is Assistant Professor in the Department of International Affairs and Security Studies and Deputy Director of Centre for Peace &amp: Conflict Studies ...

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