Author : Khalid Shah

Published on Jan 13, 2021 Updated 0 Hours ago

कश्मीर में उग्रवाद हथियारों की आपूर्ति में कमी का सामना कर रहा है लेकिन भर्ती अभी भी बड़े पैमाने पर जारी है जो चिंता की बात है 

कश्मीर में  सिर्फ़ हथियार कम हुए हैं उग्रवाद नहीं!

कश्मीर में उग्रवाद एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर में पहुंच गया है. पिछले पांच वर्षों में उग्रवाद में बढ़ोतरी होती रही. भर्ती, घुसपैठ और हिंसक हमलों के मामले में हर साल इसका असर बढ़ता रहा. साल 2020 में उग्रवाद के रुझान में असाधारण बदलाव आया. इस तरह के संकेत मिले कि ज़्यादा भर्ती के बावजूद उसका असर कम हुआ है.

2020 में उग्रवादियों की भर्ती के आंकड़ों में उससे पिछले वर्ष के मुक़ाबले बड़ा बदलाव नहीं आया. ख़बरों के मुताबिक़, 2020 (अक्टूबर के आख़िर तक) में स्थानीय उग्रवादियों की भर्ती का आंकड़ा 145 रहा. ये पिछले एक दशक में दूसरी सबसे ज़्यादा भर्ती है. भर्ती के आंकड़ों से पता चलता है कि सुरक्षा बलों के उग्रवाद विरोधी ऑपरेशन से उग्रवादियों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है. एक उग्रवादी मरता है तो उसकी जगह किसी दूसरे की भर्ती हो जाती है या घुसपैठ करके नया उग्रवादी आ जाता है. लेकिन एक और आंकड़ा बताता है कि उग्रवादी घटनाओं में अच्छी-ख़ासी गिरावट दर्ज की गई है. आंकड़ों से पता चलता है कि कश्मीर में उग्रवादियों को हथियार और दूसरे संसाधनों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. इसकी वजह से बड़े, जानलेवा हमले करने की उनकी क्षमता पर असर पड़ रहा है.

भर्ती के आंकड़ों से पता चलता है कि सुरक्षा बलों के उग्रवाद विरोधी ऑपरेशन से उग्रवादियों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है. एक उग्रवादी मरता है तो उसकी जगह किसी दूसरे की भर्ती हो जाती है या घुसपैठ करके नया उग्रवादी आ जाता है.

ओआरएफ़ द्वारा हासिल किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में अक्टूबर के अंत तक सुरक्षा बलों ने 176 उग्रवाद विरोधी ऑपरेशन को अंजाम दिया. इस दौरान जिन 245 हथियारों को बरामद किया गया उनमें से 101 पिस्तौल या हैंडगन थे जबकि 144 अलग-अलग तरह के असॉल्ट राइफल- एके 47, एके 56, एम 4, इंसास इत्यादि. ऐसे भी कई ऑपरेशन अंजाम दिए गए जिनमें उग्रवादी मारे गए/गिरफ़्तार हुए/समर्पण किया लेकिन हथियार बरामद नहीं हुए.

गोला-बारूद की बरामदगी से पता चलता है कि पिस्तौल रखने वाले उग्रवादी अपने पास औसतन 10 राउंड कारतूस हर हथियार के लिए रखते हैं. असॉल्ट राइफल के मामले में औसतन 66 राउंड कारतूस का आंकड़ा रिकॉर्ड किया गया. पिस्तौल मुख्य रूप से अपनी रक्षा का हथियार है और इसका इस्तेमाल सिर्फ़ प्वाइंट-ब्लैंक रेंज पर किसी की हत्या में ही किया जा सकता है.

2019 के मुकाबले 2020 में कम हमले

ऊपर बताए गए आंकड़ों से साफ़ तौर पर पता चलता है कि पिस्तौल रखने वाले उग्रवादी कम ख़तरनाक हैं क्योंकि वो सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ बड़े हमले करने की क्षमता नहीं रखते हैं. इससे ये भी पता चलता है कि कुछ हमलों को छोड़ दें तो 2020 में कोई बड़ा हमला क्यों नहीं हुआ. 2020 में हुए ज़्यादातर हमलों में या तो आम नागरिकों की हत्या की गई या मुठभेड़ के दौरान जवानों की. आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में सिर्फ़ एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस या आईईडी बरामद हुई जबकि 2019 में 12 आईईडी बरामद हुई थी.

अप्रैल 2019 में भारत ने एलओसी के पार व्यापार को बंद कर दिया था. इसकी वजह ये थी कि जांच एजेंसियों ने पता किया कि इस रास्ते का इस्तेमाल “हथियारों, ड्रग्स और जाली करेंसी की तस्करी” में किया जा रहा था.

उग्रवाद के हालात का अंदाज़ा लगाने का तरीक़ा हथियारों की आपूर्ति में रुकावट नहीं बल्कि हथियारों की मांग में बढ़ोतरी है. दूसरे शब्दों में, उग्रवादियों की लगातार भर्ती से पता चलता है कि हथियारों के लिए मांग पिछले कुछ वर्षों के मुक़ाबले 2020 में ज़्यादा रही. शायद एलओसी के पार व्यापार बंद करने और उग्रवादी संगठनों के ओवरग्राउंड नेटवर्क के ख़िलाफ़ अभियान की वजह से हथियारों की सप्लाई चेन बाधित हुई है. पहले एलओसी के पार व्यापार में शामिल ट्रकों को सुरक्षा बलों ने एलओसी के भारतीय इलाक़े में हथियार लाते हुए पकड़ा था. अप्रैल 2019 में भारत ने एलओसी के पार व्यापार को बंद कर दिया था. इसकी वजह ये थी कि जांच एजेंसियों ने पता किया कि इस रास्ते का इस्तेमाल “हथियारों, ड्रग्स और जाली करेंसी की तस्करी” में किया जा रहा था.

ये सबको पता है कि उग्रवादियों की सांठगांठ सुरक्षा बलों के शरारती सदस्यों के साथ भी है और उनके ज़रिए भी उन्हें हथियार मिलते थे. डीएसपी देविंदर सिंह, वर्तमान में जिनके ख़िलाफ़ एनआईए जांच कर रही है, इस वास्तविकता को उस वक़्त दुनिया के सामने लेकर आए जब एक पूर्व सरपंच को हिज़्बुल मुजाहिदीन को हथियारों की आपूर्ति करने के आरोप में पकड़ा गया. डीएसपी देविंदर सिंह की गिरफ़्तारी और उसके बाद हुई जांच ने शायद इस नेटवर्क को तोड़ा और इसकी वजह से उग्रवादियों के हथियार हासिल करने में और दिक़्क़त खड़ी हुई.

भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया कि कश्मीर में उग्रवादी हथियारों में कमी का सामना कर रहे थे. हथियारों में इस कमी ने पाकिस्तान को मजबूर किया कि वो कश्मीर में उग्रवादियों को हथियारों की आपूर्ति के लिए नये रास्तों और तरीक़े का पता करे.

नए उग्रवादी संगठनों का जन्म

20 जून को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) ने हथियार और विस्फोटक ला रहे चीन में बने एक ड्रोन को मार गिराया. ये ड्रोन अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके पाकिस्तान की तरफ़ से जम्मू-कश्मीर के कठुआ के पास घुसा था. ड्रोन एक एम 4 कार्बाइन और सात ग्रेनेड लेकर आ रहा था. इसी तरह 19 सितंबर को गिरफ़्तार तीन उग्रवादियों से दो एके 47 राइफल, दो पिस्तौल और चार ग्रेनेड बरामद हुए. इन उग्रवादियों ने दावा किया कि उन्हें ड्रोन के ज़रिए हथियार और गोला-बारूद मिले थे. ड्रोन के ज़रिए हथियार गिराए जाने की घटनाएं सिर्फ़ जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं हैं. पंजाब में भी भारत और पाकिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर ड्रोन के ज़रिए हथियार गिराए जाने की घटनाएं सामने आई हैं. ये हो सकता है कि पंजाब में जो हथियार गिराए गए उन्हें जम्मू-कश्मीर ले जाया गया हो.

हथियार गिराए जाने की इन घटनाओं ने कश्मीर के उग्रवाद में एक नया आयाम जोड़ा है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ये घटनाएं कश्मीर में उग्रवादी संगठनों के और फैलने के संकेत हैं. हथियारों की कमी से नये उग्रवादी संगठनों जैसे द रेज़िस्टेंस फ़ोर्स (टीआरएफ़) और पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ़ोर्स (पीएपीएफ़) के मुक़ाबले परंपरागत उग्रवादी संगठनों जैसे हिज़्बुल मुजाहिदीन (एचएम) पर ज़्यादा असर पड़ रहा है. एचएम और लश्कर-ए-तैयबा में नये भर्ती उग्रवादियों को हैंडगन से काम चलाना पड़ रहा है जिससे उनकी गतिविधियां सीमित हो रही हैं.

हथियारों की कमी से नये उग्रवादी संगठनों जैसे द रेज़िस्टेंस फ़ोर्स (टीआरएफ़) और पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ़ोर्स (पीएपीएफ़) के मुक़ाबले परंपरागत उग्रवादी संगठनों जैसे हिज़्बुल मुजाहिदीन (एचएम) पर ज़्यादा असर पड़ रहा है.

उग्रवादियों के द्वारा हथियारों की कमी का सामना करने को लेकर भारतीय सेना के बयान के बाद टीआरएफ़ ने सुरक्षा बलों के दावे को झुठलाने के लिए सोशल मीडिया पर एक प्रोपेगैंडा वीडियो जारी किया. वीडियो में, जिसे देखकर लगता है कि इसे किसी घर के भीतर जल्दबाज़ी में रिकॉर्ड किया गया है, टीआरएफ़ का एक उग्रवादी दीवार के पास रखे गए एके 47 मॉडल के आठ असॉल्ट राइफल, सात पिस्तौल और कुछ हैंड ग्रेनेड की गिनती कर रहा है. वीडियो में एक बयान भी है जिसमें लिखा है कि “हथियारों की कोई कमी नहीं है.”

2020 में भले ही कश्मीर ने कम जानलेवा उग्रवाद को देखा लेकिन रुझानों से पता लगता है कि दिक़्क़त ख़त्म नहीं हुई है. उग्रवादी संगठनों में बढ़ती भर्ती चिंता की बात बनी हुई है और युवाओं को उग्रवादी संगठनों में शामिल होने से रोकने के लिए सुरक्षा बलों की कोशिशों का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला है. ये आने वाले महीनों के लिए भी चिंता की वजह बनी रहेगी. हवाई रास्ते से हथियारों का गिराया जाना बताता है कि उग्रवादी संगठन और उनके आका हालात ख़राब करने के लिए नये तरीक़ों और चालों का इस्तेमाल कर रहे हैं. शायद उग्रवादी संगठनों की ये बदलती चाल उनकी बड़ी साज़िश का सिर्फ़ एक हिस्सा भर है जिसे अभी अंजाम दिया जाना बाक़ी है. वो भविष्य में किसी बड़े हमले की साज़िश भी रच रहे होंगे ठीक उसी तरह जैसे 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद उग्रवाद की नई लहर शुरू हुई थी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.