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इंडो-पैसिफिक में मौजूद देशों को महामारी के बाद के युग में आर्थिक बहाली की तरफ़ प्रेरित करने के लिए क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना होगा और अपनी नीतियों को एक जैसा रखना होगा.
ये लेख निबंध श्रृंखला इंडो-पैसिफिक में सामरिक तौर पर ऊंची लहरें: अर्थशास्त्र, पर्यावरण और सुरक्षा का हिस्सा है.
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र तीन कारणों से महत्वपूर्ण है. पहला कारण ये है कि दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं यानी अमेरिका, चीन और जापान यहां हैं और वैश्विक जीडीपी में इस क्षेत्र का हिस्सा 60 प्रतिशत है. दूसरा कारण ये है कि वैश्विक समुद्री व्यापार का 60 प्रतिशत हिस्सा इस क्षेत्र के समुद्र से होकर गुज़रता है. तीसरा और आख़िरी कारण ये है कि तीन सबसे तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं- कंबोडिया, भारत और फिलिपींस- भी इसी क्षेत्र से हैं. आर्थिक विकास इनमें से कई अर्थव्यवस्थाओं को उच्च-मध्य आमदनी वाली श्रेणी में पहुंचा सकता है और अरबों लोगों को ग़रीबी के जंजाल से बाहर निकाल सकता है. क्षेत्र में इस परिकल्पना को हासिल करने के लिए व्यापार बेहद महत्वपूर्ण है. जिन सवालों को पूछने की ज़रूरत है वो हैं: ए) इस क्षेत्र में व्यापार को बाधा पहुंचाने वाली प्राथमिक रुकावटें क्या हैं? क्या इसका जवाब बढ़ा हुआ द्विपक्षीयवाद है जो सह-निर्भरता को बढ़ा रहा है या फिर इसका जवाब ज़्यादा एकीकृत बहुपक्षवाद है? बी) क्या बढ़ा हुआ आर्थिक सहयोग इस क्षेत्र की आर्थिक बहाली में योगदान करता है? इस लेख में इन सवालों का जवाब देने की कोशिश की गई है.
आर्थिक विकास इनमें से कई अर्थव्यवस्थाओं को उच्च-मध्य आमदनी वाली श्रेणी में पहुंचा सकता है और अरबों लोगों को ग़रीबी के जंजाल से बाहर निकाल सकता है.
वैश्विक जीडीपी और समुद्री व्यापार में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्व विश्व के आर्थिक केंद्र के इंडो-पैसिफिक की तरफ़ झुकने को दर्शाता है. इसमें ग्लोबल वैल्यू चेन (जीवीसी) और ‘फैक्ट्री के रूप में एशिया’ के महत्व की वजह से बढ़ोतरी हुई है. कोविड-19 के बाद के हालात में पूर्वी एशिया के देशों की अगुवाई में आर्थिक बहाली हुई. कोविड-19 के दौरान कुछ देशों में बढ़ा हुआ संरक्षणवाद और चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध के बाद अलग-अलग देशों के लिए विकल्पों के फिर से मूल्यांकन और सप्लाई चेन में लचीलेपन की मांग की स्थिति बन गई है.
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) उन तरीक़ों के बारे में जानता है जिनके ज़रिए कम वक़्त में सप्लाई चेन को ज़्यादा लचीला बनाया जा सकता है: इसमें पारदर्शिता और व्यापार सुविधा के उपायों को बढ़ाना शामिल है, विशेष तौर पर आवश्यक सेवाओं के लिए.
कई देशों ने कोविड-19 की वजह से रुकावटें और निर्यात पाबंदियां लगा दी हैं. इनमें से कुछ रुकावटें ख़त्म हो गई होंगी लेकिन इन बाधाओं से पार पाना इस क्षेत्र में ज़्यादा व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है. ग्लोबल वैल्यू चेन में एकीकरण पर असर डालने वाले कारणों में शामिल हैं: क्षेत्रीय व्यापार समझौते; बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए निवेश की रुकावटें; बुनियादी ढांचे का विकास; वस्तुओं और सूचना की रफ़्तार और लचीलापन; क़ानूनी और नियामक प्रणाली का असर; सेवाओं की कार्यक्षमता; कुशल कामगारों की फ़ौज तैयार करना; दोस्ताना व्यावसायिक माहौल; और सप्लाई चेन में योगदान की घरेलू कंपनियों (अक्सर छोटी और मध्यम दर्जे की कंपनियां यानी एसएमई) की क्षमता. सीमा का प्रशासन, बाज़ार तक पहुंच में रुकावट और परिवहन के साजो-सामान कुछ और कारण हैं जो ग्लोबल वैल्यू चेन के एकीकरण पर असर डालते हैं.
साजो-सामान के प्रदर्शन और संचालन के लिए और साजो-सामान की सेवाओं के लिए एक व्यापक और मददगार महौल बनाने में नीतियों का महत्व है. अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी बेहतर करने के लिए निम्नलिखित तरीक़े अपनाए जा सकते हैं:
आसियान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन है और महामारी की शुरुआत से आसियान भी चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इसलिए जैसा कि पहले बताया गया है, क्षेत्रीय एकीकरण और ग्लोबल वैल्यू चेन महत्वपूर्ण हैं, विशेष तौर पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जिसने विश्व में आर्थिक बहाली की अगुवाई की है. निर्यात को बढ़ावा देने में आयात के महत्व को मान्यता देने से कुछ बाहरी मांग को दोबारा पाने और विकास को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है. सप्लाई चेन का लचीलापन भी महत्वपूर्ण है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) उन तरीक़ों के बारे में जानता है जिनके ज़रिए कम वक़्त में सप्लाई चेन को ज़्यादा लचीला बनाया जा सकता है: इसमें पारदर्शिता और व्यापार सुविधा के उपायों को बढ़ाना शामिल है, विशेष तौर पर आवश्यक सेवाओं के लिए. हालांकि लंबे वक़्त में विविधीकरण से मदद मिल सकती है. इन सबसे बढ़कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ़ ज़्यादा सहयोग से ही मदद मिल सकती है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए अलग-अलग देशों में सहयोग से आर्थिक फ़ायदे मिल सकते हैं.
एशियाई विकास बैंक के अनुमान के मुताबिक़ आर्थिक बहाली और जलवायु परिवर्तन के लिए इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास पर 2030 तक हर साल 1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की ज़रूरत पड़ेगी.
हाल की कुछ पहल में शामिल हैं:
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के अनुमान के मुताबिक़ आर्थिक बहाली और जलवायु परिवर्तन के लिए इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास पर 2030 तक हर साल 1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की ज़रूरत पड़ेगी. ई-कॉमर्स प्लैटफ़ॉर्म, साइबर सुरक्षा के क़दम, डिस्टेंस लर्निंग के प्रोटोकॉल, क़ानूनी रूप-रेखा में सुधार, ई-गवर्नमेंट सेवा और स्थानीय तकनीकी सहयोग बढ़ाने समेत डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की भी ज़रूरत पड़ेगी. इस क्षेत्र में व्यापार की राह में बनने वाली मुख्य रुकावटों को ज़्यादा सहयोग के द्वारा दूर किया जा सकता है. क्षेत्रीय एकीकरण के लाभ को उठाने के लिए व्यापार और विदेश नीति को एक सीध में रखना भी महत्वपूर्ण है. क्वॉड्रिलैटरल सुरक्षा संवाद (क्वॉड) का पुनरुद्धार हुआ है जो स्पष्ट तौर पर इंडो-पैसिफिक के लिए ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के लिए साझा दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है. बढ़ा हुआ आर्थिक सहयोग इस क्षेत्र की आर्थिक बहाली के लिए महत्वपूर्ण है जबकि इस क्षेत्र में स्थित देशों को उच्च आमदनी वाली श्रेणी में पहुंचाने और लोगों को ग़रीबी से बाहर निकालने के लिए विकास की ज़रूरत है.
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Saon Ray is a Professor Indian Council for Research on International Economic Relations New Delhi
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