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कई मायनों में क्वॉड अमेरिका के लिए एशिया के साथ हिस्सेदारी का प्रयोग वाला मंच साबित हुआ है जहां अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति की रूप-रेखा तय हुई है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका-भारत सहयोग में बढ़ोतरी हुई है.
2007 में क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग की शुरुआत, फिर ठहराव और उसके बाद क्वॉड 2.0 के रूप में उसका नया जन्म, इस बहु-पक्षीय समूह के सफ़र में काफ़ी बदलाव आया है. कोरोना वायरस महामारी के दौर में चीन के ज़िद्दी रुख़ के बाद ऐसी चर्चाएं फिर से होने लगी हैं कि क्वॉड चीन का सामना करने में नाकाम रहा है.
कोविड-19 महामारी की वजह से जो बदलाव आया है और उसके साथ कई वैश्विक मोर्चों पर चीन का अड़ियल रवैया जैसे भारत के साथ चीन के गतिरोध की वजह से एशिया-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अमेरिका की सोच में बदलाव आया है और नतीजतन क्वॉड को लेकर भी. हिंद-प्रशांत में संतुलन की स्थापना करना इस क्षेत्र में क्वॉड के व्यापक लक्ष्य के लिए ज़रूरी है. अभी तक अमेरिका, जापान और भारत के बीच त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास रहे मालाबार नौसेना अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने से सैन्य मामलों में एकता आएगी और वास्तव में क्वॉड सहयोग को पूरा करेगी और हिंद-प्रशांत में संतुलन को और स्थिर करेगी. इसका एक मतलब ये भी है कि क्वॉड के केंद्र में भारत की भूमिका बढ़ेगी. इस तरह अमेरिका के साथ भारत का सहयोग क्वॉड देशों की आपसी साझेदारी को बढ़ाता है और क्वॉड के तहत कम-से-कम दो त्रिपक्षीय सहयोग संगठन बनते हैं.
वैसे तो क्वॉड 2.0 का विचार 2017 में क्वॉड देशों की मंत्री-स्तरीय बैठक में सामने आया लेकिन मौजूदा महामारी के नतीजे के तौर पर सहयोग के लिए जो नये क्षेत्र सामने आए हैं, उनसे क्वॉड के सदस्यों को इस बात की प्रेरणा मिली है कि वो साप्ताहिक बैठक करें और अच्छी बातों को साझा करें. नये अवतार में क्वॉड के सदस्य पहले ही कई मुद्दों पर एकजुट हो चुके हैं, साथ ही क्वॉड प्लस के ज़रिए हिंद-प्रशांत के दूसरे देशों के साथ सहयोग की भी वजह उन्हें मिली है. अब महामारी की वजह से सहयोग का चलन और बढ़ा है. ख़ासतौर पर मालाबार सैन्य अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने की ख़बर, LAC पर चीन के साथ भारत के गतिरोध और प्रशांत महासागर में ज़्यादा आक्रामक ढंग से चीन का मुक़ाबला करने के अमेरिकी संकल्प को देखते हुए तो ऐसा ही लगता है.
नये अवतार में क्वॉड के सदस्य पहले ही कई मुद्दों पर एकजुट हो चुके हैं, साथ ही क्वॉड प्लस के ज़रिए हिंद-प्रशांत के दूसरे देशों के साथ सहयोग की भी वजह उन्हें मिली है. अब महामारी की वजह से सहयोग का चलन और बढ़ा है.
ये सारी गतिविधियां उस पृष्ठभूमि में हुई हैं जब ट्रंप प्रशासन ने दक्षिणी चीन सागर में भी अमेरिकी सैनिकों को और आक्रामक ढंग से तैनात किया है और हिंद महासागर समेत कई जगह क्वॉड देशों के साथ सैन्य अभ्यास किया है. ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने दक्षिणी चीन सागर में फ़्रीडमऑफ नेविगेशन ऑपरेशन्स (FONOPS) की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी की है. क्वॉड के सदस्य देश जहां अभी भी सावधानी बरत रहे हैं वहीं ट्रंप प्रशासन ने दो तरीक़ों से चीन का आमने-सामने मुक़ाबला करने का फ़ैसला किया है. पहले तरीक़े के तहत अमेरिका ने मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत के सिद्धांत को बढ़ावा दिया है (ख़ासतौर पर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो के नेतृत्व में) और दूसरे तरीक़े के तहत “ज़्यादातर दक्षिणी चीन सागर में तट से दूर संसाधनों” पर चीन के दावों को “पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी” ठहराकर अपने लड़ाई वाले रुख़ के ज़रिए. अपने मज़बूत इरादे ज़ाहिर करने के बावजूद अमेरिका ने ये माना है कि ये कार्रवाई क्वॉड की दीर्घकालीन क्षेत्रीय रणनीति के विकल्प नहीं हो सकते हैं. हाल के दिनों में घरेलू आर्थिक दबाव और कोरोना वायरस महामारी के फैलने को लेकर ज़िम्मेदारी तय करने के लिए जांच के विदेशी दबाव के बीच चीन ने दुश्मनी के कई मोर्चे खोल दिए हैं. इसे देखते हुए क्वॉड देशों के नेतृत्व में हिंद-प्रशांत की शक्तियों ने महसूस किया है कि वो इस इलाक़े में अपने हितों को जोड़ें. उदाहरण के तौर पर 27 जून को भारतीय नौसेना और जापान की नौसेना (जापान मैरिटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स) के युद्धपोतों ने हिंद महासागर में साझा युद्ध अभ्यास किया. 20 जुलाई को USS निमित्ज़ के नेतृत्व में अमेरिकी नौसेना के कैरियर स्ट्राइक ग्रुप ने हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की पूर्वी कमान के युद्धपोतों के साथ समुद्री अभ्यास किया. ये अभ्यास भारत-अमेरिका की नज़दीकी को साफ़ तौर पर दिखाता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की रेस में जो बाइडन से कड़े मुक़ाबले के बीच चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप का कड़ा रुख़ नवंबर में होने जा रहे चुनाव में उनके सबसे बड़े मुद्दों में से एक है. जैसे-जैसे अमेरिका में चुनाव की तारीख़ नज़दीक आएगी वैसे-वैसे हिंद-प्रशांत में अमेरिकी हिस्सेदारी, ख़ासतौर पर चीन का मुक़ाबला करने के लिए उठाए गए क़दम, भारत के साथ उसके सहयोग पर निर्भर रहेगी.
बाइडन ने एलान भी किया है कि अगर वो निर्वाचित होते हैं तो भारत के साथ साझेदारी को विकसित करना उनकी प्राथमिकता होगी. वैसे कोविड-19 महामारी ने दोनों देशों के बीच साझेदारी की व्यापक रेंज तैयार की है जिसके तहत भारत के विदेश मंत्री, विदेश सचिव की अमेरिका के विदेश मंत्री और विदेश सचिव के साथ अक्सर बातचीत होती है.
अमेरिका में नवंबर के चुनाव का जो भी नतीजा हो, ट्रंप प्रशासन ने भारत के साथ सहयोग के लिए नई ज़मीन तैयार की है जिसे पलटना आसान नही होगा. बाइडन के राष्ट्रपति बनने की हालत में भी भारत को लेकर अमेरिका का सकारात्मक रुख़ जारी रहेगा. बाइडन ने एलान भी किया है कि अगर वो निर्वाचित होते हैं तो भारत के साथ साझेदारी को विकसित करना उनकी प्राथमिकता होगी. वैसे कोविड-19 महामारी ने दोनों देशों के बीच साझेदारी की व्यापक रेंज तैयार की है जिसके तहत भारत के विदेश मंत्री, विदेश सचिव की अमेरिका के विदेश मंत्री और विदेश सचिव के साथ अक्सर बातचीत होती है. चीन पर भारत की व्यापारिक निर्भरता के समय भारत की तरफ़ से व्यापार घाटा कम करने की इच्छा और बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौतों जैसे चीन के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक सहयोग (RCEP) से भारत के अलग रहने के फ़ैसले को देखते हुए भारतीय वाणिज्य मंत्री का हाल के दिनों में ये इशारा कि भारत और अमेरिका के बीच सीमित व्यापार समझौता हो सकता है, न सिर्फ़ द्विपक्षीय साझेदारी बल्कि क्षेत्रीय सहयोग के लिए भी अच्छा है. पिछले दशक में भारत की महत्वाकांक्षाओं और चीन के उदय के साथ शक्ति संतुलन में बदलाव के बीच भारत के संबंधों को लेकर व्यापक चर्चा हुई. इस चर्चा के केंद्र में था कि भारत अमेरिका के साथ अपने संबंधों में कैसे बदलाव लाए. कई मायनों में क्वॉड अमेरिका के लिए एशिया के साथ हिस्सेदारी का प्रयोग वाला मंच साबित हुआ है जहां अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति की रूप-रेखा तय हुई है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका-भारत सहयोग में बढ़ोतरी हुई है. हिंद-प्रशांत में भारत को एक ताक़त मानने के अमेरिकी रुख़ के साथ ट्रंप का भारत को बड़ा रक्षा साझीदार मानने का फ़ैसला और द्विपक्षीय संबंधों को “व्यापक वैश्विक सामरिक साझेदारी” का दर्जा देने से दोनों देशों के बीच संबंध गाढ़े हुए हैं.
निश्चित तौर पर लगातार घरेलू मजबूरियां और दोनों देशों की अलग-अलग सामरिक सोच भारत-अमेरिकी संबंधों की पूरी संभावना की राह में बाधा बन सकती हैं. हाल के दिनों में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ये बयान दिया कि अमेरिका को बहुध्रुवीय विश्व के साथ काम करने को लेकर सीखने की ज़रूरत है और उसे गठजोड़ से आगे जाना चाहिए. वहीं अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने इस बात पर ज़ोर दिया कि चीन का मुक़ाबला करने के लिए गठजोड़ बनाना चाहिए. इन बयानों की वजह से भारत-अमेरिका के संबंधों में मतभेद भी ज़ाहिर हुआ है. ये इस बात की तरफ़ भी इशारा करता है कि बहुपक्षीय मंचों के ज़रिए अमेरिका-भारत संबंधों में विस्तार की राह में अड़चनें हैं. लेकिन पिछले दशक के दौरान सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर अमेरिका-भारत के बीच व्यापक सहयोग की ज़रूरत और स्पष्ट हुई है. इस ज़रूरत की वजह से कुछ पारंपरिक रुकावटें दूर हुई हैं. कोविड-19 महामारी ने इस रुझान को और तेज़ किया है. अमेरिका-भारत सहयोग में आई मज़बूती, जो महामारी की वजह से और बढ़ी है, से ऐसा लगता है कि हिंद-प्रशांत में ये लंबे वक़्त तक कायम रहेगी.
वहीं अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने इस बात पर ज़ोर दिया कि चीन का मुक़ाबला करने के लिए गठजोड़ बनाना चाहिए. इन बयानों की वजह से भारत-अमेरिका के संबंधों में मतभेद भी ज़ाहिर हुआ है.
इसलिए जहां भारत-अमेरिका संबंध हिंद-प्रशांत में शक्ति के बदले हुए संतुलन का आधार है, वहीं मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने के लिए भारत का सहमत होना हिंद-प्रशांत देशों के पक्ष में क्षेत्रीय संतुलन को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम साबित होगा. लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण ये है कि इससे हिंद-प्रशांत में शक्ति संतुलन बहुपक्षीय बनेगा.
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Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...
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