Published on Jul 16, 2018 Updated 0 Hours ago

खेल और राजनीति को तेल और पानी की तरह माना जाता है—वे आपस में घुल नहीं हो सकते। लेकिन तेल और पानी भी राजनीतिक चर्चाओं में घुल मिल गए है।

विश्व कप: एक ग्लो-बॉल रिश्ता

वैसा कोई और जश्न या खेल दुनिया को अपनी ओर नहीं खींचता जितना फुटबॉल विश्व कप। एक मायने में यही वास्तविक भूमंडलीकरण है जहां दुनिया की 32 सर्वश्रेष्ठ टीमें (और कई दूसरी टीमें इसके लिए बहादुरी से कोशिश कर चुकी होती हैं) एक देश में इकट्ठा होती हैं जिसे इसकी मेजबानी का अवसर मिला होता है और उन टीमों की दुनिया भर में फैले उनके फैन, उनके नेता और कई और लोगों का वहां जमावड़ा होता है। पूरे एक महीने तक इससे जुड़े सभी लोगों के लिए यह पार्टी टाइम होता है। भले ही, ओलंपिक कागजों पर इससे बड़ा ग्लोबल अवसर दिखे, लेकिन फुटबॉल विश्व कप के उत्साह का दुनिया भर में कोई और जवाब नहीं है। खेलों के इस महाकुंभ में प्रत्येक महादेश का प्रतिनिधित्व करने वाला देश, हर जाति, धर्म, भाषा, समुदाय के लोग सभी तरह की संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर और दिल खोल कर शिरकत करते हैं। उनकी जुबान, उनकी तहजीब टूर्नामेंट में भाग ले रहे दूसरे लोगों को भले ही समझ आ रही हो लेकिन जिस लगाव से वे एक ही जुबान बोलते हैं और एक ही धर्म को वे पूजते हैं, वह अनूठा है, और वह है फुटबॉल का धर्म ।

देखा जाए तो विश्व कप वास्तव में एक आनंदोत्सव ही है।

द फाइनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में एक लेख छापा कि किस प्रकार विश्व कप आज के निंदनीय राष्ट्रवाद (जैसेकि ट्रम्प, ब्रेक्स्टि, एर्डोगोन, ली पेन) के समय में विश्ववाद का एक वास्तविक जश्न है। बेशक, यह भूमंडलीकरण तब भी नजर आया जब दक्षिण कोरिया ने अप्रत्याशित तरीके से जर्मनी को हरा दिया और मैक्सिको को प्री-क्वार्टर फाइनल मुकाबले में जगह दिला दी और फिर मैक्सिको के सैकड़ों फैन ने दक्षिण कोरिया के पक्ष में झंडे फहराए और गाने गाये कि हम सभी कोरियाई हैं। इस टूर्नोमेंट में फाइनल में पहुंचने वाली और फेवरिट माने जाने वाली फ्रांस की टीम में सभी तरह के खिलाड़ी हैं, जिनमें से कई अफ्रीकी मूल के खिलाड़ी भी हैं। जर्मनी का चहेता खिलाड़ी मेसुट ओजिल टर्किश मूल का है जबकि टूर्नोमेंट का अब तक सबसे ज्यादा गोल करने वाला खिलाड़ी मिरोस्लाव क्लोज, जिसने डाई मैनशाफ्ट के लिए रिकार्ड 16 गोल किए, पोलैंड वंश का है।

वर्ल्ड कप के नॉक आउट चरण के बाद, मैंने टूर्नामेंट में विभिन्न टीमों की प्रगति की आसपास की वैश्विक राजनीति से तुलना करते हुए मजाकिया लहजे में एक फेसबुक पोस्ट डाली थी। हालांकि आप इसे पूरी तरह हल्केपन में ले सकते हैं लेकिन विश्व कप जैसे वैश्विक त्यौहार को आज की वैश्विक राजनीतिक घटनाओं से अलग कर देखना बहुत मुश्किल है।

टूर्नामेंट की शुरुआत में, कई लोगों को लगा कि रूस द्वारा विश्व कप की मेजबानी करने के अवसर को व्लादिमीर पुतिन अपने सार्वजनिक संबंधों को उजागर करने के रूप में भुनाएंगे, जैसाकि उन्होंने 2014 में सोची खेलों के दौरान किया था। जर्मनी के टूर्नामेंट से अचानक बाहर हो जाने के बाद कई प्रकार की कई प्रकार की चुटीली टिप्पणियां देखने में आईं। एक ने कहा, यह पहला अवसर नहीं था जब जर्मनी पूरे गोला बारूद के साथ रूस गया हो और मास्को को नहीं जीत पाया हो। ‘ उसका संकेत द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्टालिनग्रैड की लड़ाई की ओर था। हालांकि उस समय के जर्मनी के संदर्भों की निंदा की जाती है और बुरा भला तथा घृणा करने वाला जिक्र माना जाता है, ऐसे वाक्य ट्वीटर काफी ट्रेंड हो रहे थे।

जर्मनी के उसी करिश्माई मिडफील्डर एवं विश्व कप विजेता मेसुट ओजिल, जिसे जर्मनी के खेल प्रेमियों ने सर माथे पर बिठाया था, की उसके दत्तक देशवासियों ने वफादारी बदलने का इल्जाम लगाते हुए काफी निंदा की जब उसने टर्की मूल के ही इल्के गुंडोगन के साथ जाकर टर्की के राष्ट्रपिित रेसेप टायीप एर्डोगान से मुलाकात की। हो सकता है इन दोनों के प्रति लीवरपूल एवं मिस्र के सुपरस्टार मोहम्मद सलाह की कुछ सहानुभूति रही हो। ऐनफील्ड (लीवरपुल) के चहेते खिलाड़ी ने असावधानी वश खुद को बदनामी के दलदल में फंसा पाया जब उसने चेचन नेता रमजान कैडीरोव से मानद नागरिकता प्राप्त की।

क्या इसका कोई मतलब है? खेल और राजनीति को आपस में बिल्कुल भी नहीं मिलाना चाहिए और मिलाया भी नहीं जा सकता। लेकिन इसका कुछ मतलब तो जरुर है।

जॉर्ज ऑरवेल ने एक बार खेल को ‘बिना गोलीबारी के युद्ध’ कहा था। कुछ लोग इसे सनकपूर्ण अतिश्योक्ति कह कर उनका उपहास उड़ाएंगे। लेकिन उनकी किताबों से एक बात तो हमने सीखी ही है कि ऑरवेल की दूरदर्शिता को आसानी से झुठलाया नहीं जा सकता।

भारत में एक उत्साही क्रिक्रेट प्रेमी के रूप में बड़े होने के कारण, मैंने 1990 के दशक में भारत-पाकिस्तान मुकाबलों को अक्सर रद्द हो जाते देखा था, जब दक्षिण एशिया की इन दो प्रतिद्वंदी टीमों में तनाव चरम सीमा पर पहुंच जाता था। उसके बाद खेल के पंडितों द्वारा नीरस उपदेशों का दौर शुरु हो जाता था कि ‘खेलों को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।’ लेकिन यह मान लेना तो अदूरदर्शिता ही होगी कि मानवीय भावनाओं को आसानी से और प्रभावी तरीके से अलग अलग बांटा जा सकता है।

वाशिंगटन पोस्ट ने सटीक कहा कि विश्व कप ‘देशों का एक दुर्लभ त्यौहार है जो आदिम जुनूनों तथा एक असामान्य, शायद क्षणिक, वैश्विक एकतुटता से संचालित है।’ यह वही आदिम जुनून है जो राष्ट्रीयता की भावना जगाता है जब खिलाड़ी और फैन इस जुनून का अपने ऊपर ओढ लेते हैं। स्विट्जरलैंड के फुटबॉलर शेरडान शकीरी के मामले में, उसने इस जुनून को बिल्कुल अपने बूट पर ही धारण कर लिया।

विश्व कप के मैचों की फेहरिस्त में अप्रशिक्षित फुटबॉल प्रेमियों के लिए स्विट्जरलैंड-सर्बिया मुकाबला, हो सकता है कोई दिलचस्पी पैदा न करें फिर भी, यह मैच फुटबॉल से इतर कारणों से पूरी तरह सुर्खियों में रहा था। स्विट्जरलैंड, जिसने लंबे समय से दुनिया भर के शरणार्थियों को अपने देश में शरण दे रखा है, वह सर्बिया-कोसोवो संघर्ष में शांतिवाहिनी संचालनों के साथ भी सक्रियतापूर्वक शामिल है। और इसके परिणामस्वरूप, सुरक्षा मांगने वाले कई कोसोवो निवासियों को भी उसने आश्रय दिया।

संयोग से, सर्बिया के खिलाफ स्विट्जरलैंड के गोल करने वाले दोनों खिलाडि़यों-ग्रैनिट शाका एवं शकीरी अल्बानिया वंश के हैं और उनकी जड़ें कोसोवा से जुड़ी हुई हैं। दोनों ने अपने दोनों हाथों से गरूड़ की भंगिमा बना कर जश्न मनाया जो कई सजातीय अल्बानिया वंश के लिए राष्ट्रीय प्रतीक है।

शाका एवं शकीरी दोनों के लिए यह खेल से बढ़ कर भी कुछ था। शकीरी के बूट पर कोसोवो का झंडा था जबकि शाका ने अपने पिता के बारे में बात की जो एक राजनैतिक बंदी थे। दोनों खिलाड़ी अपनी पहचान को लेकर मुखर रहे हैं। फीफा ने खिलाडि़यों को दंडित करके अच्छा ही किया जिसने इसे राजनीतिक इशारों का एक निर्भीक और स्पष्ट संकेत करार दिया।

सर्बिया के कोच म्लैडन क्रस्टैजिक ने यह कहते हुए कि ‘मैं राजनीति में नहीं हूं‘ एक स्वर से इस विवाद को नकार दिया। लेकिन तब भी सर्बिया में राजनीति घुस ही गई। उसके समर्थक कोस्टा रिका के खिलाफ स्पष्ट राजनीतिक संदेशों वाले संदेश प्रदर्शित करते देखे गए। और जब सर्बिया ने कोस्टा रिका को हरा दिया तो सर्बिया के विदेश मंत्री ने उल्लासपूर्वक घोषणा की कि यह एक प्रतिशोध था और इसके जरिये उन्होंने यह भी संकेत दिया कि 2008 में कोसोवो की एकपक्षीय आजादी को मान्यता देने की कोस्टा रिका की गुस्ताखी को उनका देश नहीं भूला है।

एक और बाल्कन देश, जिसने टूर्नामेंट में आश्चर्यजनक प्रदर्शन किया है, फाइनल में पहुंचने वाला क्रोएशिया है। जब क्रोएशिया ने सेमी फाइनल में इंग्लैंड को हरा दिया तो ऐसी टिप्पणियां सुननें में आईं कि पिछली बार जब इंग्लैंड की टीम सेमी फाइनल में (1990 में पश्चिम जर्मनी के खिलाफ) पहुंची थी, उस वक्त एक देश के रूप में क्रोएशिया का वजूद भी नहीं था।

वास्तव में, अटलांटिक ने एक दिलचस्प लेख छापा कि किस प्रकार 1990 के दशक में युगोस्लाविया के विघटन ने ही क्रोएशिया को जन्म दिया जो एक प्रकार से फुटबॉल के मैदान में ही आरंभ हुआ था। सर्बिया के खेल प्रेमियों एवं क्रोएशिया के खेल प्रेमियों के बीच जग्रेब में एक मैच में हुई हिंसा ने ही क्रोएशिया के अलगाववादियों को आजादी के लिए प्रेरित किया।

क्रोएशिया के मेहनती कप्तान एवं मुख्य प्लेमेकर लुका मोडरिक शाका की कहानी से संबंधित हैं। उनके परिवार ने भी सर्बिया के आतंकियों के हाथों यातनाएं सहीं क्योंकि उसके दादा एवं परिवार के अन्य रिश्तेदारों की हत्या कर दी गई और उनका पूरा परिवार विस्थापित हो गया।

वाशिंगटन पोस्ट के लेख में उल्लेखित आदिम भावनाएं उस प्रकार के यूरेका वाले क्षण हैं जिनका अनुमान शर्लाक होम्स लगाना चाहेंगे। हो सकता है विश्व कप ऐसा जश्न हो जो प्रत्येक चार वर्षों पर मनाया जाता है, लेकिन राष्ट्रीय टीमों में वैसे खिलाड़ी होते हैं जो विभिन्न लीगों में विभिन्न क्लबों से जुड़े होते हैं। कुछ खास देशों के विभिन्न टीमों के बीच प्रतिद्वंदिता की वैचारिक जड़ें उनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामुदायिक एवं सामाजिक विभाजनों में छुपी रहती हैं।

स्टार खिलाडि़यों से सुसज्जित विश्व फुटबॉल की दो सबसे बड़ी टीमों रियल मैड्रिड एवं बार्सिलोना एल क्लासिगो के नाम से विख्यात प्रतिद्वंदिता साझा करते हैं। हालांकि यह असाधारण प्रतिभा समूह, शानदार फुटबॉल और शुद्ध मनोरंजन का एक बेमिसाल नजारा होता है, लेकिन प्रतिद्वंदिता की जड़ें केवल खेल से संबंधित प्रतिष्ठा तक ही सीमित नहीं होतीं।

इसकी जड़ें स्पेन-कैटालासेनिया तक जाती हैं जब कैटालोनियावासी सैन्य तानाशाह फ्रैंसिस्को फ्रैंको के उत्पीड़न से त्रस्त थे। रियल मैड्रिड फ्रैंको की क्लब थी और उत्पीडि़त कैटालोनियावासियों ने बार्सिलोना फुटबॉल क्लब के लिए नारा गढ़ा -मेस क्यू अन क्लब, जिसका अर्थ होता है ‘एक क्लब से कहीं ज्यादा।’ बार्सिलोना फुटबॉल क्लब कैटालन गौरव का प्रतिनिधित्व करती देखी गई और उन सभी चीजों के समर्थन में थी जो फ्रैंको का विरोध करते थे।

स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में दो सबसे बड़े क्लब केल्टिक और रैंजर्स हैं। इन दोनों ने लंबे समय तक स्कॉटलैंड के शीर्ष स्थान पर कब्जा जमाये रखा है और हालांकि उनमें रियल मैड्रिड और बार्सिलोना का वैश्विक ग्लैमर की कमी है, उनकी प्रतिद्वंदिता गहरे जमी हुई सांप्रदायिक जड़ों में है। पारंपरिक रूप से, केल्टिक के समर्थक कैथोलिक हैं जबकि रैंजर्स के फैन ज्यादातर प्रोटेस्टैंट हैं। उनकी प्रतिद्वंदिता की जड़ें आयरलैंड की आजादी के आंदोलन में दबी हुई हैं। संभवतः स्कॉटलैंड के होने के कारण, वे कैथोलिक समर्थन में आयरलैंड का झंडा लेकर चलते हैं जबकि रैंजर्स के समर्थक यूनियन के प्रति अपना समर्थन जाहिर करने के लिए यूनियन जैक फहराते हैं।

फिर भी, सूक्ष्म स्तर पर देखें तो खेल खेल है और खेल मनोरंजन है और मनोरंजन को निश्चित रूप से आनंददायक होना चाहिए न कि गहरे दबी राष्ट्रीय भावना या विद्वेष की भावना या छाती पीटने जैसी धींगामस्ती होनी चाहिए।

खेल और राष्ट्रीयता किसी वेन डायग्राम का समान हिस्सा साझा करते हैं। इसमें जुनून की मात्रा हो सकती है और जुनून कुछ भी हो सकता है, अच्छा भी, बुरा भी और कुरुप भी (धन्यवाद, क्लिंट ईस्टवुड)।

शायद शकीरी इस जुनून की व्याख्या बेहतर तरीके से करता है, जब वह कहता है, ‘फुटबॉल में आपके पास भावनाएं होती हैं। आप देख सकते हैं कि मैंने क्या किया। यह केवल भावना थी।’

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