Author : Vinayak Dalmia

Published on Sep 20, 2018 Updated 0 Hours ago

जानकारों का तर्क है कि “आज एशिया में दो तरह के हथियारों की रेस चल रही है: एक मिलिट्री पावर और दूसरा सॉफ़्ट पावर के हथियारों के लिए।”

सॉफ़्ट पावर रणनीति में कितना सफल होगा चीन?

दावोस में 2016 वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की बैठक में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने भाषण में अपेक्षाकृत नरम और हल्के मुद्दों को छुआ। वे दुनिया में चीन को पर्यावरण के हितैषी और ग्लोबलाइजेशन एवं मुक्त व्यापार के पैरोकार के तौर पर स्थापित करना चाहते थे। चीन ने दुनियाभर में डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों और यूरोपियन यूनियन में ब्रेक्जिट की वजह से पैदा हुई अस्थिरता में अपने अवसर को पहचाना। अब चीन फ़िलीपींस से लेकर जापान और मनीला तक सभी से सहयोग की उम्मीद कर रहा है।

चूंकि चीन अपने घर में आर्थिक तौर पर लगातार मज़बूत हो रहा है और विदेशों में (अफ़्रीका से Qwad यानी इंडिया, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया गठबंधन तक) अपनी ताक़त बढ़ा रहा है, इसलिए इसे एक बेहतर कहानी बताने की ज़रूरत है। फ़ाइनेंशियल टाइम्स के अध्ययन के मुताबिक़ चीन के शक्तिशाली कुलीन वर्ग के लोगों के बीच जिन शब्दों का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है, उनमें से एक है सॉफ़्ट पावर। जानकारों का तर्क है कि “आज एशिया में दो तरह के हथियारों की रेस चल रही है: एक मिलिट्री पावर और दूसरा सॉफ़्ट पावर के हथियारों के लिए।”

सॉफ़्ट पावर के इस्तेमाल से चीन की तरक़्क़ी ख़ास कर दो क्षेत्रों में दिखती है — पर्यटन में और यहां आने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों की तादाद में। 2015 में चीन में 10 करोड़ से ज़्यादा विदेशी पर्यटक आए। इसी साल 3,97,635 अंतरराष्ट्रीय छात्र यहां आए।

बीजिंग ओलिंपिक और शंघाई एक्सपो के अलावा सॉफ़्ट पावर को मज़बूत करने के लिए चीन एक बहुपक्षीय रणनीति पर काम करता है।

  • ऑनलाइन: मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, अपने इतिहासको ऑनलाइन बढ़ावा देने के लिए बीजिंग ने लोगों की एक समर्पित आर्मी बनाई है, जिसमें ज़्यादातर युवा हैं। पिछले साल अक्टूबर में पार्टी के 19वें कांग्रेस में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रतिनिधमंडल से कहा कि: “चीन की कहानी को अच्छे से बताएं और चीन के सॉफ़्ट पावर को बनाएं।” पार्टी यूथ लीग का “इंटरनेट को सिविलाइज करने के लिए स्वयंसेवी अभियान” जैसी कई पहल हो रही हैं। पहले ऑनलाइन आर्मी हर एक पोस्ट के लिए 50 RMB लेती थी, अब कई लोग मुफ़्त में काम कर रहे हैं। कुछ लोग मशहूर ऑनलाइन राष्ट्रवादी फ़ोरम के रंग से प्रभावित होकर ख़ुद को “लिटिल पिंक्स” कहते हैं।
  • हॉलीवुड: एक फ़िल्म कहानी को जिस तरह बयां करती है, वैसा कोई दूसरा नहीं कर सकता। चीन ने अपने निजी उद्योगों को हॉलीवुड में महत्वपूर्ण निवेश के लिए प्रोत्साहित किया। वुडरो विल्सन सेंटर में फ़ेलो और चीन में बनी हॉलीवुड फ़िल्मों के लेखक एनी कोकास के मुताबिक़, “हॉलीवुड में बहुत मुश्किल से ऐसे निर्माता मिलेंगे जो चीन की नकारात्मक छवि पेश करनेवाली फ़िल्म बनाने को तैयार होंगे।” हालांकि हाल के दिनों में हॉलीवुड में जाने वाले चीनी पैसे में कमी की गयी है लेकिन लॉस अन्जेल्स में चीन की तरफ अब भी पलड़ा झुका है।
  • फ़ुटबॉल: खेल-कूद दिमाग़ी ताक़त और उसकी गंभीरता को नियंत्रित करता है और फ़ुटबॉल एकमात्र ऐसा खेल है जो दुनिया भर में खेला जाता है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तो एक “फ़ुटबॉल क्रांति” की भी अपील की है। पिछले तीन सालों में चीन के बड़े उद्योगपतियों ने मैन्चेस्टर सिटी और एसी मिलान समेत 20 यूरोपीय क्लबों में 2.5 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा का निवेश किया है। 2015 में, चीन के “महान कायाकल्प” की ख़ातिर चीन को फ़ुटबॉल महाशक्ति में बदलने के लिए राष्ट्रपति ने अपने विज़न से मेल खाती एक महत्वाकांक्षी एजेंडा का अनावरण किया था।
  • पांडा: बांस खाने वाले काले और सफेद भालू की मांग काफ़ी ज़्यादा है। पश्चिमी दुनिया के देशों के चिड़ियाघरों में ये मांग के आधार पर भेजे जाते हैं। उदाहरण के लिए, बर्लिन में एक चिड़ियाघर को दो जानवर अगले 15 सालों के लिए सालाना 1 मिलियन डॉलर पर उधार दिए गए थे। चांसलर मर्केल ने इसे “दोनों देशों के बीच रिश्ते का प्रतीकात्मक” क़रार दिया था। ये पांडा के बारे में कम औरउदारवादी नेता के रूप में जर्मनी के लिए अमेरिका के संभावित विकल्प होने के बारे में अधिक जानकारी थी। जोसेफ़ नाई के मुताबिक़, “इन्होंने देश के सॉफ़्ट पावर में काफ़ी कुछ जोड़ा है।” चीनी मीडिया इन्हें देश के सॉफ़्ट पावर के सबसे शक्तिशाली हथियारों में से एक मानता है। पांडा मिशेल ओबामा, जस्टिन ट्रूडो और बिल क्लिंटन के साथ तस्वीरों में भी दिखा है। फ़ाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक़, सोशल मीडिया के ज़रिए, चीन की सॉफ़्ट (नरम) छवि पेश करने के लिए स्टेट मीडिया क्यूट पांडा एंटीक्स के अनगिनत वीडियो को प्रचारित-प्रसारित करता है। फ़िलहाल, 20 देशों में 70 पांडा हैं और कई पाइपलाइन में हैं।
  • कन्फ़यूशियस इंस्टीट्यूट्स: चीनी संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए चीन ने 2004 में कन्फ़्यूशियस इंस्टीट्यूट्स की शुरुआत की। पूरी दुनिया में इंस्टीट्यूट ने 350 से ज़्यादा सेंटर खोले। इसके साथ ही कन्फ़्यूशियस इंस्टीट्यूट ने 103 देशों में सेंकेंड्री स्कूल से संबद्ध 430 क्लासरूम शुरू किए। चीनी विश्वविद्यालयों से हर साल सात हज़ार शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं और चीनी भाषा और संस्कृति के प्रसार के लिए इन्हें दो सालों के लिए विदेश भेजा जाता है। अब ऐसा अनुमान है कि दुनिया भर में 100 मिलियन से ज़्यादा विदेशी मेंडरिन भाषा सीख रहे हैं।

यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट

बीजिंग के 135 फुयौ स्ट्रीट पर बना एक गुमनाम कंपाउंड वैश्विक स्तर पर चीन के सॉफ़्ट पावर को बढ़ाने के लिए वॉर रूम की तरह काम करता है। माओ ज़ेडोंग ने गोपनीय यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट (UFWD) को “जादुई हथियार” बताया था। तब से, UFWD का क़द बढ़ा है। राष्ट्रपति शी चिनफ़िंग के कार्यकाल में इसे सबसे ज़्यादा अहमियत मिली है। उनके कार्यकाल में चालीस हज़ार से ज़्यादा लोगों को काडर से जोड़ा गया है। इसका मक़सद चीन के राजनीतिक एजेंडे के लिए समर्थन जीतना, विदेशी प्रभाव जुटाना और महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा करना है। वेबसाइट अपने कामकाज और एजेंडे के बारे में बेहद कम जानकारी देती है। कुल 9 विभाग या ब्यूरो हैं जिन पर पूरे काम की ज़िम्मेदारी है।

9 विभाग/ब्यूरो ये हैं:

  • पार्टीज़ वर्क ब्यूरो — चीन की 8 ग़ैर कम्यूनिस्ट राजनीतिक दलों से डील करता है।
  • अल्पसंख्यक और धार्मिक ब्यूरो — 55 आधिकारिक राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों से डील करता है।
  • हॉन्ग-कॉन्ग, मकाउ, ताइवान और विदेशी संपर्क ब्यूरो — इन क्षेत्रों के प्रति ज़िम्मेदार और 180 से ज़्यादा देशों में फैले 60 मिलियन चीनी डायस्पोरा (विदेशों में चीनी मूल के लोग) के प्रति भी ज़िम्मेदार।
  • काडर ब्यूरो — काडर और कार्यकर्ताओं को बढ़ाने पर केंद्रित।
  • इकोनॉमिक्स ब्यूरो — अनदेखी के शिकार इलाक़ों ख़ास कर उत्तर-पूर्व से ग़रीबी मिटाने पर केंद्रित।
  • गैर पार्टी सदस्य — वैसे बुद्धिजीवियों का समर्थन जुटाना जिनका किसी पार्टी से जुड़ाव न हो।
  • तिब्बत ब्यूरो — अलगाववादी आंदोलन को दबाने, दलाई लामा को कमज़ोर बताने और तिब्बत के बारे में विदेशों में प्रचलित कहानी पर प्रभाव डालने में।
  • न्यू सोशल क्लासेज ब्यूरो — मध्य वर्ग के बीच एकजुटता पैदा करना।
  • शिंजियांग ब्यूरो — वीघर, कज़ाख़ और ताजिक जैसे अल्पसंख्यकों के बीच अलगाववाद ख़त्म करने और विश्वास पैदा करने का ज़िम्मा।

यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया को तिब्बत से हथियाने की भी कोशिश कर रहा है। इसने तिब्बत के अंदर 1,300 से ज़्यादा अनुमोदित “जीवित बौद्ध” का डेटाबेस बनाया है, जिन्हें समय आने पर बीजिंग की पसंद को स्वीकार करने के लिए कहा जाएगा। ये विभाग वैटिकन के साथ कूटनीतिक रिश्तों पर भी काम करता है। ज़्यादातर चीनी दूतावास में ऐसे कर्मचारी ज़रूर होते हैं जो यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट प्रोजेक्ट पर काम कर रहे होते हैं।

यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट का अब भी सबसे महत्वपूर्ण फ़ोकस चीनी डायस्पोरा को साथ रखना, उनका विश्वास जीतना है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में चीनी छात्र और स्कॉलर्स एसोसिएशन वहां अपने दूतावास के राजनीतिक मक़सद को पूरा करते हैं। पश्चिमी दुनिया में चीनी मूल के राजनीतिक उम्मीदवारों की तादाद बढ़ रही है। कनाडा में 2006 में 44 उम्मीदवारों में से 10 उम्मीदवार चुनाव जीते, जबकि 2003 में 25 उम्मीदवारों में 6 उम्मीदवार चुने गए थे। 2010 में इसने कनाडा के राष्ट्रीय ख़ुफ़िया विभाग के डायरेक्टर को चीन की ओर इशारा करते हुए विदेशी मुल्कों के लिए एजेंट्स ऑफ़ इन्फ़्लुएंस के बारे में चेतावनी देने के लिए मजबूर कर दिया। न्यूज़ीलैंड में चीनी मूल के सांसद जियान यांग को चीन के मिलिट्री कॉलेजों में बिताए क़रीब एक दशक से ज़्यादा समय के लिए जांच का सामना करना पड़ा था। उन्होंने न्यूज़ीलैंड के विदेश मामलों और रक्षा समितियों के लिए काम किया है।

चीन के लंबे हाथ

पश्चिम देश चीन के लंबे हाथ (बढ़ते दायरे) को लेकर परेशान हैं। विदेशों में राजनेताओं, मीडिया और विश्वविद्यालयों को ख़त्म करने के आरोप हैं। इस रणनीति का एकमात्र फ़ोकस है — पश्चिम के लोगों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की असलियत का यक़ीन दिलाना। फ़्लोरिडा के सीनेटर मार्को रुबियो इन प्रयासों को “व्यापक” मानते हैं। जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में चीनी पॉलिसी प्रोग्राम के निदेशक डेविड शम्बाघ के मुताबिक़, चीन इस तरह की कोशिशों में सालाना 10 से 12 बिलियन डॉलर ख़र्च करता है। दुनियाभर के बड़े ऐकेडेमिक पब्लिशिंग हाउस भी चीन के इस सख़्त रुख़ का अनुभव कर रहे हैं। निजी सेक्टर उलझन में पड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए, जब दक्षिण कोरिया ने मिसाइल डिफ़ेंस शील्ड तैनात की, तब कोरियाई चेन Lotte के चीन स्थित स्टोर्स अचानक फ़ायर कोड उल्लंघन के दोषी पाए गए। चीन अपना सॉफ़्ट पावर बनाने का वैसे ही हक़दार है जैसे दूसरे सभी देश हैं। हालांकि, सॉफ़्ट पावर के लिए सरकार की आक्रामक कोशिशों की वजह से इसकी कई सफलताओं में कमी आई है। सॉफ़्ट पावर को सॉफ़्ट टच यानी कुछ नरमी और ऑर्गेनिक डेवलपमेंट यानी सहजता से आगे बढ़ने की ज़रूरत होती है।

सॉफ़्ट पावर की अवधारणा शीत युद्ध की दुनिया के बाद का पुरावशेष है। दुनिया के सभी बड़े देशों ने इसमें निवेश किया है और अब भी कर रहे हैं। सॉफ़्ट पावर एक देश के लिए मित्रों को जीतने और दबदबा हासिल करने में मददगार हो सकता है। सूचना युग के लिए यह सबसे सटीक है।

इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि चीन के पास एक विस्तृत सॉफ़्ट पावर एजेंडा है। दुनिया में चीन का महत्व बढ़ता जा रहा है। ये देश और विदेश दोनों जगहों के चीनी लोगों के लिए बहुत ख़ुशी और गर्व की बात है। 19वीं शताब्दी के ओपियम युद्धों के अपमान और गुमनामी से भरे कई सालों के बाद ये पुनर्जन्म की कहानी है।

हालांकि, कुछ सीमाएं बनी रहती हैं। सॉफ़्ट पावर के काम करने के लिए, एक देश का इतिहास अपने आचरण के साथ असंगत नहीं हो सकता है। चीन अपने इरादे में सफल हो पाता है या नहीं, ये तो वक़्त ही बताएगा। हालांकि, दूसरे देशों को चीन के इस क़दम का सामना करने के लिए इस पर संज्ञान लेने और अपनी ख़ुद की रणनीति बनाने में जुटने की ज़रूरत है।

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