-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
जानकारों का तर्क है कि “आज एशिया में दो तरह के हथियारों की रेस चल रही है: एक मिलिट्री पावर और दूसरा सॉफ़्ट पावर के हथियारों के लिए।”
दावोस में 2016 वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की बैठक में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने भाषण में अपेक्षाकृत नरम और हल्के मुद्दों को छुआ। वे दुनिया में चीन को पर्यावरण के हितैषी और ग्लोबलाइजेशन एवं मुक्त व्यापार के पैरोकार के तौर पर स्थापित करना चाहते थे। चीन ने दुनियाभर में डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों और यूरोपियन यूनियन में ब्रेक्जिट की वजह से पैदा हुई अस्थिरता में अपने अवसर को पहचाना। अब चीन फ़िलीपींस से लेकर जापान और मनीला तक सभी से सहयोग की उम्मीद कर रहा है।
चूंकि चीन अपने घर में आर्थिक तौर पर लगातार मज़बूत हो रहा है और विदेशों में (अफ़्रीका से Qwad यानी इंडिया, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया गठबंधन तक) अपनी ताक़त बढ़ा रहा है, इसलिए इसे एक बेहतर कहानी बताने की ज़रूरत है। फ़ाइनेंशियल टाइम्स के अध्ययन के मुताबिक़ चीन के शक्तिशाली कुलीन वर्ग के लोगों के बीच जिन शब्दों का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है, उनमें से एक है सॉफ़्ट पावर। जानकारों का तर्क है कि “आज एशिया में दो तरह के हथियारों की रेस चल रही है: एक मिलिट्री पावर और दूसरा सॉफ़्ट पावर के हथियारों के लिए।”
सॉफ़्ट पावर के इस्तेमाल से चीन की तरक़्क़ी ख़ास कर दो क्षेत्रों में दिखती है — पर्यटन में और यहां आने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों की तादाद में। 2015 में चीन में 10 करोड़ से ज़्यादा विदेशी पर्यटक आए। इसी साल 3,97,635 अंतरराष्ट्रीय छात्र यहां आए।
बीजिंग ओलिंपिक और शंघाई एक्सपो के अलावा सॉफ़्ट पावर को मज़बूत करने के लिए चीन एक बहुपक्षीय रणनीति पर काम करता है।
बीजिंग के 135 फुयौ स्ट्रीट पर बना एक गुमनाम कंपाउंड वैश्विक स्तर पर चीन के सॉफ़्ट पावर को बढ़ाने के लिए वॉर रूम की तरह काम करता है। माओ ज़ेडोंग ने गोपनीय यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट (UFWD) को “जादुई हथियार” बताया था। तब से, UFWD का क़द बढ़ा है। राष्ट्रपति शी चिनफ़िंग के कार्यकाल में इसे सबसे ज़्यादा अहमियत मिली है। उनके कार्यकाल में चालीस हज़ार से ज़्यादा लोगों को काडर से जोड़ा गया है। इसका मक़सद चीन के राजनीतिक एजेंडे के लिए समर्थन जीतना, विदेशी प्रभाव जुटाना और महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा करना है। वेबसाइट अपने कामकाज और एजेंडे के बारे में बेहद कम जानकारी देती है। कुल 9 विभाग या ब्यूरो हैं जिन पर पूरे काम की ज़िम्मेदारी है।
9 विभाग/ब्यूरो ये हैं:
यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया को तिब्बत से हथियाने की भी कोशिश कर रहा है। इसने तिब्बत के अंदर 1,300 से ज़्यादा अनुमोदित “जीवित बौद्ध” का डेटाबेस बनाया है, जिन्हें समय आने पर बीजिंग की पसंद को स्वीकार करने के लिए कहा जाएगा। ये विभाग वैटिकन के साथ कूटनीतिक रिश्तों पर भी काम करता है। ज़्यादातर चीनी दूतावास में ऐसे कर्मचारी ज़रूर होते हैं जो यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट प्रोजेक्ट पर काम कर रहे होते हैं।
यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट का अब भी सबसे महत्वपूर्ण फ़ोकस चीनी डायस्पोरा को साथ रखना, उनका विश्वास जीतना है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में चीनी छात्र और स्कॉलर्स एसोसिएशन वहां अपने दूतावास के राजनीतिक मक़सद को पूरा करते हैं। पश्चिमी दुनिया में चीनी मूल के राजनीतिक उम्मीदवारों की तादाद बढ़ रही है। कनाडा में 2006 में 44 उम्मीदवारों में से 10 उम्मीदवार चुनाव जीते, जबकि 2003 में 25 उम्मीदवारों में 6 उम्मीदवार चुने गए थे। 2010 में इसने कनाडा के राष्ट्रीय ख़ुफ़िया विभाग के डायरेक्टर को चीन की ओर इशारा करते हुए विदेशी मुल्कों के लिए एजेंट्स ऑफ़ इन्फ़्लुएंस के बारे में चेतावनी देने के लिए मजबूर कर दिया। न्यूज़ीलैंड में चीनी मूल के सांसद जियान यांग को चीन के मिलिट्री कॉलेजों में बिताए क़रीब एक दशक से ज़्यादा समय के लिए जांच का सामना करना पड़ा था। उन्होंने न्यूज़ीलैंड के विदेश मामलों और रक्षा समितियों के लिए काम किया है।
पश्चिम देश चीन के लंबे हाथ (बढ़ते दायरे) को लेकर परेशान हैं। विदेशों में राजनेताओं, मीडिया और विश्वविद्यालयों को ख़त्म करने के आरोप हैं। इस रणनीति का एकमात्र फ़ोकस है — पश्चिम के लोगों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की असलियत का यक़ीन दिलाना। फ़्लोरिडा के सीनेटर मार्को रुबियो इन प्रयासों को “व्यापक” मानते हैं। जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में चीनी पॉलिसी प्रोग्राम के निदेशक डेविड शम्बाघ के मुताबिक़, चीन इस तरह की कोशिशों में सालाना 10 से 12 बिलियन डॉलर ख़र्च करता है। दुनियाभर के बड़े ऐकेडेमिक पब्लिशिंग हाउस भी चीन के इस सख़्त रुख़ का अनुभव कर रहे हैं। निजी सेक्टर उलझन में पड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए, जब दक्षिण कोरिया ने मिसाइल डिफ़ेंस शील्ड तैनात की, तब कोरियाई चेन Lotte के चीन स्थित स्टोर्स अचानक फ़ायर कोड उल्लंघन के दोषी पाए गए। चीन अपना सॉफ़्ट पावर बनाने का वैसे ही हक़दार है जैसे दूसरे सभी देश हैं। हालांकि, सॉफ़्ट पावर के लिए सरकार की आक्रामक कोशिशों की वजह से इसकी कई सफलताओं में कमी आई है। सॉफ़्ट पावर को सॉफ़्ट टच यानी कुछ नरमी और ऑर्गेनिक डेवलपमेंट यानी सहजता से आगे बढ़ने की ज़रूरत होती है।
सॉफ़्ट पावर की अवधारणा शीत युद्ध की दुनिया के बाद का पुरावशेष है। दुनिया के सभी बड़े देशों ने इसमें निवेश किया है और अब भी कर रहे हैं। सॉफ़्ट पावर एक देश के लिए मित्रों को जीतने और दबदबा हासिल करने में मददगार हो सकता है। सूचना युग के लिए यह सबसे सटीक है।
इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि चीन के पास एक विस्तृत सॉफ़्ट पावर एजेंडा है। दुनिया में चीन का महत्व बढ़ता जा रहा है। ये देश और विदेश दोनों जगहों के चीनी लोगों के लिए बहुत ख़ुशी और गर्व की बात है। 19वीं शताब्दी के ओपियम युद्धों के अपमान और गुमनामी से भरे कई सालों के बाद ये पुनर्जन्म की कहानी है।
हालांकि, कुछ सीमाएं बनी रहती हैं। सॉफ़्ट पावर के काम करने के लिए, एक देश का इतिहास अपने आचरण के साथ असंगत नहीं हो सकता है। चीन अपने इरादे में सफल हो पाता है या नहीं, ये तो वक़्त ही बताएगा। हालांकि, दूसरे देशों को चीन के इस क़दम का सामना करने के लिए इस पर संज्ञान लेने और अपनी ख़ुद की रणनीति बनाने में जुटने की ज़रूरत है।
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Vinayak Dalmia is an entrepreneur and political thinker. He has worked with the Indian Prime Minister's Office and McKinsey &: Co. Vinayak regularly writes and ...
Read More +