Published on Mar 19, 2020 Updated 0 Hours ago

हो सकता है कि ऐसी परिस्थितियों के लिए इन दोनों देशों के चुनावी क़ानून में व्यवस्थाएं न की गई हों. लेकिन, ज़मीनी हालात ही ये तय करेंगे कि अगर ऐसा होता है, तो फिर क्या होगा.

कोरोना वायरस के बीच श्रीलंका और मालदीव में होने जा रहे चुनाव के मायने

आज कोरोना वायरस का बहुत अधिक ख़तरनाक रूप कोविड-19 दुनिया भर में सुर्ख़ियां बटोर रहा है. ऐसे में जिन दो दक्षिण एशियाई देशों में अगले महीने चुनाव होने वाले हैं, वहां के अधिकारी निश्चित रूप से इस वायरस के प्रकोप के भय से चिंतित होंगे और उन्हें इस बात की चिंता सता रही होगी कि कहीं इस वायरस का संक्रमण अन्य स्थानों के बजाय कहीं उनके अपने देश में न हो जाए. जहां, मालदीव में स्थानीय परिषदों के चुनाव 4 अप्रैल को होने वाले हैं. वहीं, श्रीलंका में राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण संसदीय चुनाव 25 अप्रैल को होने जा रहे हैं.

दोनों ही देशों में हर चुनाव के दौरान भारी मात्रा में मतदाताओं के घरों से बाहर निकलने का लंबा इतिहास रहा है. हालांकि, इन दोनों ही देशों में चुनाव की तारीख़ों के आस-पास इन देशों के किसी भी हिस्से में बीमारी के संक्रमण की अफ़वाहों, अटकलों के प्रसार का सीधा असर चुनाव के आख़िरी नतीजों पर पड़ना तय है. चुनाव के मोर्चे पर ज़मीनी हालात कैसे बनते हैं, इसका अभी से अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है. लेकिन, कम से कम मालदीव में तो विपक्षी राजनीतिक दलों ने वायरस के कुछ लोगों को संक्रमित करने की ख़बरें सामने आने के तुरंत बाद, अपना चुनाव प्रचार स्थगित कर दिया है.

इन दोनों देशों के बीच और वैसे भी मालदीव ने तब से पहली बार अपने यहां सार्वजनिक स्वास्थ्य का आपातकाल घोषित कर दिया है. वो भी तीस दिनों के लिए. इत्तेफ़ाक़ की बात ये है कि मालदीव में स्थानीय परिषद के लिए मतदान का दिन भी इन्हीं 30 दिनों के दौरान पड़ने जा रहा है. हालांकि, अब तक मालदीव के चुनाव आयोग ने तो इस बात के संकेत नहीं दिए हैं कि वो चुनाव की तारीख़ों में कोई परिवर्तन करने जा रहा है. एशियाई देशों में शायद मालदीव ही वो पहला देश था जिसने कोरोना वायरस के संक्रमण की व्यापकता और इसकी भयानकता को स्वीकार किया था. चूंकि मालदीव की अर्थव्यवस्था और रोज़गार मुख्य तौर पर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन पर निर्भर है. ऐसे में सरकार ने इस परिस्थिति से निपटने में पूरी शक्ति लगा दी है. राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने राजधानी माले में एक के बाद एक कई आधिकारिक बैठकों की अध्यक्षता की. इन परिस्थितियों को देखते हुए राष्ट्रपति सोलिह ने अपनी पार्टी एमडीपी के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन के लिए स्थानीय परिषद के चुनाव प्रचार को भी रोक दिया था.

आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र से जुड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कोरोना वायरस से निपटने के लिए मालदीव सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों की सराहना की है. हालांकि, संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद ने कहा है कि उनके अपने देश में लोगों को आने से रोकने के उपाय, कोरोना वायरस के प्रकोप को थामने का उचित समाधान नहीं हैं. इनमें से कोई भी राय बिना किसी ठोस कारण के नहीं है. मालदीव में टूरिज़्म के पीक सीज़न में भारी संख्या में विदेशी पर्यटक पूरी दुनिया से आते हैं. इस बार भी मालदीव में उन देशों से भारी संख्या में पर्यटक आ रहे थे, जिन देशों में कोरोना वायरस का प्रकोप शुरुआती दौर में फैला था, जैसे कि-चीन, दक्षिण कोरिया, जापान और इटली. इसीलिए, मालदीव की सरकार की चिंता ग़ैरवाजिब नहीं है. मालदीव की लगभग चार लाख लोगों की आबादी 1200 द्वीपों में फैली हुई है. साथ ही में इस क्षेत्र में मालदीव के पास ही प्राथमिक स्वास्थ्य की सबसे अच्छी सुविधाएं हैं. हालांकि, मालदीव की विशेषज्ञ स्वास्थ्य सेवाओं को पड़ोसी देशों भारत और मालदीव के स्तर तक पहुंचने के लिए अभी भी लंबा सफ़र तय करना है.

मालदीव के दिल के मरीज़ अक्सर इलाज के लिए विदेश जाते हैं. कई बार वो विशेष इलाज के लिए ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर तक जाते हैं. मालदीव की सरकार ग़रीब लोगों को इलाज कराने में मदद देती है. मालदीव में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता का स्तर, इस क्षेत्र के अन्य देशों की तुलना में और कई बार तो दूरस्थ देशों के अनुपात में भी काफ़ी अधिक है.

तब के बाद से मालदीव ने कोरोना वायरस के संक्रमण के कम से कम आठ केस पाए जाने की सूचना दी है. मालदीव के अधिकारियों ने उन विदेशी नागरिकों को भी अलग-थलग कर के रखा है, जो इन संक्रमित लोगों के संपर्क में आए थे. ताकि उनकी निगरानी और मेडिकल परीक्षण किए जा सकें. मालदीव का पहला कोरोना वायरस मरीज़ एक विदेशी कर्मचारी था. वो एक रिजॉर्ट वाले द्वीप पर काम कर रहा था. उसे इटली के एक सैलानी से कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ था. अधिकारियों ने 175 ऐसे लोगों की पहचान की है, जो इस विदेशी पर्यटक के संपर्क में आए थे. जब वो रिजॉर्ट में था और फिर उसके बाद वो दो दिनों तक राजधानी माले में भी रहा था.

विपक्ष ने रोका चुनाव प्रचार अभियान

मालदीव में जेल में बंद पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के नेतृत्व वाले पीपीएम-पीएनसी गठबंधन ने सरकार की घोषणाओं के बाद स्थानीय परिषद के चुनाव के लिए अपना प्रचार अभियान ये कहते हुए रोक दिया है कि वो ऐसा क़दम वायरस के प्रकोप को देखते हुए उठा रहे हैं. सत्ताधारी एमडीपी के कई सदस्यों ने अपने विरोधियों के इस निर्णय का संबंध इस बात से बताया है कि उन्हें इस चुनाव में अपनी पराजय का एहसास हो चुका है. क्योंकि वो इससे पहले 2018 में राष्ट्रपति चुनाव और 2019 में संसदीय चुनाव पहले ही हार चुके हैं.

मालदीव के पड़ोसी देश श्रीलंका में ‘द आइलैंड’ समाचार पत्र ने चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से लिखा कि अभी संसदीय चुनाव स्थगित करने के बारे में सोचना ग़लत होगा. दो छोटे द्वीपीय देशों की तरह श्रीलंका में भी वायरस के प्रकोप या हम इसे स्वास्थ्य का आपातकाल कहें, तो इस से निपटने के लिए सेना को मोर्चे पर तैनात किया गया है

जब 1970 के दशक के अंत में मालदीव ने अपने पर्यटन क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए खोला था, तो नए क़ानून भी बनाए थे. जिनके अंतर्गत, मालदीव के नागरिकों की रिहाइश वाले द्वीपों पर पर्यटकों के लिए रिजॉर्ट बनाने पर पाबंदी लगा दी गई थी. मालदीव की राजधानी माले में देश की लगभग एक तिहाई आबादी रहती है. इनमें से कई लोग वो थे जो दूर-दराज के द्वीपों से सप्ताहांत में अपने घरों को लौटते थे. यहां बने रिजॉर्ट में आम तौर पर मालदीव के स्थानीय नागरिकों को नौकरी पर रखा जाता है. रिजॉर्ट के ये कर्मचारी भी अपने मूल निवास वाले द्वीपों और राजधानी माले को लौटते हैं. कभी इसकी वजह काम होती है, तो कभी सप्ताह के अंत की छुट्टियां.

श्रीलंका में विरोध प्रदर्शन

मालदीव के पड़ोसी देश श्रीलंका में ‘द आइलैंड’ समाचार पत्र ने चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से लिखा कि अभी संसदीय चुनाव स्थगित करने के बारे में सोचना ग़लत होगा. दो छोटे द्वीपीय देशों की तरह श्रीलंका में भी वायरस के प्रकोप या हम इसे स्वास्थ्य का आपातकाल कहें, तो इस से निपटने के लिए सेना को मोर्चे पर तैनात किया गया है. सेना ने इसकी शुरुआत उन यात्रियों की पड़ताल से की, जो उन देशों से आए थे, जहां कोरोना वायरस का प्रकोप सबसे पहले शुरू हुआ था. दक्षिण कोरिया, इटली और ईरान से आने वाले लोगों को आइसोलेशन शिविरों में रखा गया. इसके लिए, पूर्वी बट्टीकलोआ क़स्बे में स्थित एक निजी मेडिकल यूनिवर्सिटी के कैम्पस को, जिसका लाइसेंस रद्द कर दिया गया है, ठिकाना बनाया गया है. इस क्षेत्र को विवादास्पद मुस्लिम राजनेता एम. एल.ए.एम. हिज़्बुल्लाह के कारण जाना जाता है.

कोरोना वायरस के पीड़ितों की जातीयता के भी प्रश्न उठ रहे हैं. सवाल उठाए जा रहे हैं कि जो यात्री, श्रीलंका के पश्चिमी तट पर स्थित राजधानी कोलंबो में उतर रहे हैं, उन्हें क्यों 220 किलोमीटर दूर, देश के उस पार, पूर्वी तट पर स्थित बट्टीकलोआ ले जाकर रखा जा रहा है. जहां पर तमिल और मुस्लिम समुदाय की आबादी ज़्यादा है

हिज़्बुल्लाह उस वक़्त चर्चा में आए थे, जब पिछले साल ईस्टर रविवार को हुए सीरियल बम धमाके हुए थे. उस वक़्त वो पूर्वी राज्य के गवर्नर थे. उन पर कई संदेहास्पद डील करने के आरोप लगे थे, जिनमें इस यूनिवर्सिटी के लिए लाइसेंस जुटाना भी शामिल था. तमिल मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बट्टीकलोआ के स्थानीय निवासी अपने यहां कोविड-19 वायरस पीड़ितों का आइसोलेशन कैम्प बनाए जाने से नाख़ुश हैं. वो इसके ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं.

कोरोना वायरस के पीड़ितों की जातीयता के भी प्रश्न उठ रहे हैं. सवाल उठाए जा रहे हैं कि जो यात्री, श्रीलंका के पश्चिमी तट पर स्थित राजधानी कोलंबो में उतर रहे हैं, उन्हें क्यों 220 किलोमीटर दूर, देश के उस पार, पूर्वी तट पर स्थित बट्टीकलोआ ले जाकर रखा जा रहा है. जहां पर तमिल और मुस्लिम समुदाय की आबादी ज़्यादा है. प्रश्न ये भी है कि इन लोगों को सड़क के रास्ते से क्यों ले जाया जा रहा है. ऐसे में कोरोना से संक्रमित लोगों को अलग-थलग रखने के प्रयासों पर ये सवाल भी उठ रहे हैं कि रास्ते में अगर उन्हें शौच वग़ैरह के लिए उतरना पड़ा, तो ऐसे में आइसोलेशन का मक़सद कैसे पूरा होगा?

चीन की पहेली

श्रीलंका में भी बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं. जो हर आर्थिक तबक़े से संबंध रखते हैं. इनमें से काफ़ी पर्यटक पड़ोसी देशों जैसे मालदीव से भी आते हैं. श्रीलंका में हर समुदाय के लोग बड़ी संख्या में दूसरे देशों में भी काम करते हैं. अप्रवासी श्रीलंकाई कामगारों में अधिकतर पुरुष खाड़ी-अरब देशों में काम करते हैं. और सिंहली-बौद्ध समुदाय की महिलाएं बड़ी संख्या में घरेलू नौकरानी का काम, खाड़ी देशों, यूरोपीय देशों और अन्य क्षेत्रों में करती हैं. श्रीलंकाई मूल के तमिलों का अपना अलग वर्ग है. श्रीलंका के इन सभी समुदायों के लोग क़रीब-क़रीब पूरे वर्ष ही श्रीलंका आते-जाते रहते हैं. और ये सभी लोग भयानक बीमारियों के वाहक हो सकते हैं. श्रीलंका की सरकार ने नौकरी के लिए बाहर जाने वालों और श्रीलंका आने वालों की विदेश यात्राओं पर अभी-अभी पाबंदी लगा दी है.

श्रीलंका में कोविड-19 वायरस के संक्रमण का शिकार हुआ पहला नागरित इटली से आया था. राजधानी कोलंबो में सरकारी डॉक्टरों ने उसके बाद से एक श्रीलंकाई नागरिक को भी इस भयंकर रोग के संक्रमण का शिकार घोषित किया है. हालांकि, श्रीलंका की भूमि पर कोरोना वायरस से संक्रमित पहला व्यक्ति एक चीनी यात्री था.

श्रीलंका में मौजूद चीनी नागरिकों को, ‘आवाजाही की स्वतंत्रता’ दिए जाने से देश के सभी लोग ख़ुश नहीं हैं. उनका प्रश्न है कि, कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण जब स्थानीय लोगों को अलग-थलग करके रखा जा रहा है, तो फिर चीन के नागरिकों को मुक्त रूप से विचरण की आज़ादी क्यों दी गई है?

आधिकारिक रिपोर्ट कहती हैं कि इस समय क़रीब चार हज़ार चीनी नागरिक श्रीलंका में मौजूद हैं. और अधिकारियों ने कहा है कि चीन के इन नागरिकों की गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही है. हालांकि, श्रीलंका में मौजूद चीनी नागरिकों को, ‘आवाजाही की स्वतंत्रता’ दिए जाने से देश के सभी लोग ख़ुश नहीं हैं. उनका प्रश्न है कि, कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण जब स्थानीय लोगों को अलग-थलग करके रखा जा रहा है, तो फिर चीन के नागरिकों को मुक्त रूप से विचरण की आज़ादी क्यों दी गई है? वामपंथी झुकाव वाले विपक्षी दल जेवीपी ने चीन के नागरिकों को अलग-थलग करने में नाकाम रहने पर श्रीलंका सरकार पर सवाल उठाए हैं. इस पूरे विषय पर मुख्य विपक्षी दल यूएनपी की ख़ामोशी पर भी प्रश्न उठाए जा रहे हैं.

मालदीव के उलट, अभी श्रीलंका में चुनाव प्रचार ने पूरी तरह से ज़ोर नहीं पकड़ा है. इसीलिए न तो अधिकारी, न राजनीतिक दल और न ही आम आदमी अभी चुनाव प्रक्रिया के कोरोना वायरस आयाम पर ध्यान दे पा रहे हैं. चुनाव आयोग युद्ध स्तर पर चुनाव कराने के लिए तैयारी कर रहा है. और अब तक किसी चुनाव अधिकारी ने आधिकारिक रूप से मतदान की तारीख़ नज़दीक आने पर, चुनाव प्रक्रिया पर कोरोना वायरस के प्रकोप को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है.

सत्ताधारी राजपक्षे बंधुओं के लिए ये बेहद महत्वपूर्ण चुनाव हैं. उन्हें 225 सदस्यों की संसद में बहुमत पाने की आवश्यकता है. क्योंकि पिछले वर्ष नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद राजपक्षे बंधुओं को संसद में अल्पमत के साथ जीना पड़ रहा है. राजपक्षे बंधु, यानी राष्ट्रपति गोटाबाया और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने सार्वजनिक रूप से अपने इरादों को स्पष्ट किया है कि वो आने वाले संसदीय चुनाव में दो तिहाई बहुमत प्राप्त करने का लक्ष्य रखते हैं, ताकि अपनी इच्छानुसार संवैधानिक संशोधन कर सकें. इसीलिए इस समय श्रीलंका में ऐसी स्थिति है कि संसदीय चुनाव में कोई भी नई संभावना बन सकती है. ये किसी भी दिशा में जा सकते हैं.

श्रीलंका में संसदीय चुनाव की प्रक्रिया पर कोरोना वायरस का कितना प्रकोप होगा, इसका अंदाज़ा तभी होगा, जब चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया ख़त्म होगी और चुनाव प्रचार पूरे ज़ोर-शोर से आरंभ होगा.

मालदीव और श्रीलंका, दोनों ही देशों में चुनाव प्रचार के दौरान वीवीआईपी नेताओं की आवाजाही पूरे देश में होगी. राजनीतिक दलों को अपने महत्वपूर्ण नेताओं के प्रचार अभियान और चुनावी दौरों की जानकारी, अपने उम्मीदवारों की जानकारी और कार्यकर्ताओं के बारे में सूचना देनी होगी. इससे भी महत्वपूर्ण ये है कि चुनाव के दौरान कोई भी अफ़वाह, न केवल मतदाताओं के घर से निकलने की संख्या बल्कि राजनीतिक दलों के एजेंटों के बूथ तक पहुंचने की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकती है. हो सकता है कि ऐसी परिस्थितियों के लिए इन दोनों देशों के चुनावी क़ानून में व्यवस्थाएं न की गई हों. लेकिन, ज़मीनी हालात ही ये तय करेंगे कि अगर ऐसा होता है, तो फिर क्या होगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.